कहां से लाऊं हिम्मत जीने की

हमारे घर के जख्मी लोगों के इलाज में 90 हजार रुपए लगे हैं जोकि हमने अपनी बिरादरी और करीबी गांव वालों से उधार लिए हैं। सरकार की ओर से हमारे घर के मरने वाले तीन सदस्यों के लिए तीन-तीन लाख रुपए मिले हैं। यह पैसा भी बहुत कम हैं क्योंकि घर के लोगों ने अपने कीमती अंग भी खो दिए हैं और घर-बार का भी दोबारा निर्माण करना है। मुझे सबसे ज्यादा चिंता अपनी भतीजी की है जिसने इतनी कम उम्र में अपनी एक टांग खो दी, उसे अभी जिंदगी में बहुत कुछ करना था। नगीना बल्ले के नीचे दब गई थी और टीन लगने की वजह से उसको अपनी एक टांग गंवानी पड़ी। जम्मू एवं कश्मीर में आई बाढ़ ने लोगों से उनका सब कुछ छीन लिया। कुछ परिवार ऐसे हैं जो अतीत के भय के साए से अभी भी नहीं निकल पा रहे हैं। निकलें भी कैसे इन्होंने अपना घर-बार और अपनों को जो खोया है। एक ऐसा ही परिवार जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ जिले के मंडी ब्लॉक के छोल पंचायत के बराड़ी गांव का है।

इस परिवार ने बाढ़ की वजह से अपना सब कुछ खो दिया है। चरखा के ग्रामीण लेखकों ने जब इस गांव का दौरा किया तो इस परिवार की आप बीती को सुनकर उनके रोंगटे खड़े हो गए। इस परिवार ने अपने दर्द की दास्तां कुछ इस तरह बयान की।

सुबह के साढ़े सात बजे थे, नाश्ता तैयार हुआ था, घर में हमारे परिवार के 13 सदस्य मौजूद थे। बारिश काफी तेज हो रही थी, हर ओर जोर-जोर आवाजें सुनाई दे रही थीं। इतने में एक जोरदाज आवाज के साथ भूस्खलन हुआ जिसने हमारे घर को अपनी चपेट में ले लिया। मैं आवाज को सुनते ही किसी तरह खिड़की से छलांग लगाने में कामयाब हो गया।

करीब दस मिनट बाद मुझे होश आया तो देखा कि मेरा घर खत्म हो चुका है। उस समय शोर मचाने के सिवाए मैं कुछ नहीं कर सका। कोई बचाओ, कोई बचाओ बहुत देर तक मैं चिल्लाता रहा लेकिन घर के पास-पड़ोस में नाले के पानी के तेज़ बहाव के सिवा कुछ नज़र नहीं आ रहा था।

बड़ी मुश्किल से एक व्यक्ति मोहम्मद सलीम मुझे देखकर जैसे ही मेरे पास आया मैं फिर से बेहोश हो गया। एक घंटे की बेहोशी के बाद जब मुझे होश आया तो अपना उजड़ा घर और खड़े हुुए बेबस लोग नजर आए। मेरे घर में 13 लोग थे जिनमें से मैं ही सलामत बच पाया। इसके अलावा 20 भेड़-बकरियां, 4 भैंसे, 4 गायें, 1 घोड़ा, 20 मुर्गे और घर में रखे 50-60 हज़ार सब कुछ खत्म हो चुका था।

आस-पास के और मेरे घर के ज़ख्मी लोगों की एक लंबी कतार नज़र आ रही थी, चारों ओर खून-ही-खून था, जिसको देखकर सहनशीलता खत्म हो गई थी। इस हादसे में मेरे पिता सैद मोहम्मद जो उप सरपंच थे उनका देहांत हो गया था। हमारा गांव बरीयाड़ी पहले से ही पिछड़ा हुआ था और अब हमारी आवाज और दब चुकी है क्योंकि जनता की आवाज को बुलंद करने वाला कोई नहीं बचा है। मैं यह सब बर्बादी अपनी आंखों से देख रहा था मगर कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं था।

बेबसी और नाउम्मीदी और बढ़ रही थी। जख्मियों कों अस्पताल रवाना किया जा रहा था। पहले एक घंटे में नौ जख्मियों को निकाला गया। अब तलाश मेरी भाभी और दादी की थी क्योंकि वह भी मलबे में दब चुकी थीं। शाम को करीब तीन बजे मेरी भाभी सफूरा बेगम (20) की लाश मलबे में दबी हुई मिली, जिनकी शादी तीन महीने पहले ही हुई थी। निराशा के साथ तलाश अब मेरी दादी बूबा बी की चल रही थी।

पहले दिन हम उन्हें ढूंढने में नाकाम रहे। अगले दिन करीब चार बजे उनकी लाश को निकाला गया। इस घटना में मेरी प्यारी सी गुड़िया नगीना बी (12) की टांग कट चुकी थी। मेरी पत्नी अनवार जान की कमर की हड्डी टूट चुकी थी।

परिवार के मुख्तार अहमद की तीन पसलियां टूटी, जहीर अहमद का कान कट गया, इमरान खान के सिर में गहरे जख्म आए। इस तरह इस हादसे में घर के 9 सदस्य बुरी तरह जख्मी हुए। यह कहना है नगीना के चाचा मोहम्मद जावेद का जिनके इस हादसे में पिता, दादी और भाभी का देहांत हो चुका है।

हमारे घर के जख्मी लोगों के इलाज में 90 हजार रुपए लगे हैं जोकि हमने अपनी बिरादरी और करीबी गांव वालों से उधार लिए हैं। सरकार की ओर से हमारे घर के मरने वाले तीन सदस्यों के लिए तीन-तीन लाख रुपए मिले हैं। यह पैसा भी बहुत कम हैं क्योंकि घर के लोगों ने अपने कीमती अंग भी खो दिए हैं और घर-बार का भी दोबारा निर्माण करना है।

मुझे सबसे ज्यादा चिंता अपनी भतीजी की है जिसने इतनी कम उम्र में अपनी एक टांग खो दी, उसे अभी जिंदगी में बहुत कुछ करना था। नगीना बल्ले के नीचे दब गई थी और टीन लगने की वजह से उसको अपनी एक टांग गंवानी पड़ी। इस हादसे ने नगीना को झकझोर कर रख दिया है। नगीना अब स्कूल भी नहीं जा सकती क्योंकि भौगोलिक स्थिति की वजह से बैसाखी के सहारे पहाड़ो पर चलना मुश्किल ही नहीं असंभव है।

इस हादसे ने इस मासूम का भविष्य पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। पूरी दूनिया में पकिस्तान की मलाला शिक्षा के मैदान में जंग छेड़े हुए हैं लेकिन नगीना शारीरिक विकलांगता की वजह से कुछ भी करने में असमर्थ हो रही है। बिस्तर, बैसाखी और चारपाई के अलावा इसके पास कुछ नहीं है।

इस घर की एक और महिला अनवार जान जिनकी कमर की हड्डी टूट चुकी है वह भी नगीना के साथ बिस्तर पर ही जिंदगी गुजारने को मजबूर हो गई हैं। अब ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इन परिस्थितियों में नगीना और उसका परिवार भविष्य में अपनी जिंदगी कैसे गुजारेगा? क्या नगीना का बचपन इसी तरह गुजरेगा? क्या नगीना अपनी पढ़ाई पूरी कर पाएगी? नगीना का परिवार रोजी-रोटी का बंदोबस्त कैसे करेगा? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर इस परिवार को नहीं मिल पा रहा है।

आखिर में इस लेख के माध्यम से मैं तमाम सरकारी और गैर सरकारी संगठनों से यह अपील करता हूं कि इन परिस्थितियों में नगीना जैसे उन तमाम छात्र-छात्राओं का ख्याल रखा जाए जो प्राकृतिक आपदा के चलते जिंदगी में इस मुहाने पर आकर खड़े हो गए हैं। नगीना मलाला से कम नहीं बस उसे थोड़ी हिम्मत और सहारा देने की ज़रूरत है। हो सकता है कि थोड़ी-सी कोशिश से नगीना वह कर जाए जिसके बारे में किसी ने सोचा भी न हो।

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