कहीं झीलों का शहर कहीं लहरों पर घर

पुष्कर लेक
पुष्कर लेक
सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।

डल लेक

जहां लहरों पर दिखते हैं घर


डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक सौंदर्य के कारण। इस लेक को धरती के स्वर्ग के रूप में प्रसिद्ध जम्मू-कश्मीर की समर राजधानी श्रीनगर का गहना यूं ही नहीं कहा जाता। श्रीनगर की खूबसूरती को चरम पर पहुंचाने वाली इस लेक का क्षेत्रफल भी लगभग 18 वर्ग किलोमीटर है। इसकी लंबाई 15.5 किलोमीटर है और यह श्रीनगर के गले में हार की तरह दिखता है, जिस कारण इसे श्रीनगर का गहना भी कहा जाता है।

लेक में तैरते हाउसबोट और शिकारे पर्यटकों को दुनिया से अलग शांति, सुकून और मनमोहक खूबसूरती से भरी एक ऐसी दुनिया में होने का अहसास कराते हैं, जिससे कभी दूर होने का मन न करे। यहां आकर आप हाउसबोट मे ठहरेंगे तो आपको ‘सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पर अपना एक घर हो..’ गाना पीछे छूटता महसूस होगा। अंतर सिर्फ यह होगा कि इस लेक में खड़े हाउसबोट आपके अपने नहीं होंगे, आप यहां पर्यटक होंगे। कश्मीर पहुंचने के लिए तमाम बड़े शहरों से विमान सेवाएं तो हैं ही, यहां की विंटर राजधानी जम्मू तक रेल सेवाएं भी बहुत अच्छी हैं।

लेक पिछौला

यह है उदयपुर की शान


झीलों के शहर के नाम से प्रसिद्ध उदयपुर दुनियाभर के पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है। इस शहर की हवेलियां और किले तो पर्यटकों में लोकप्रिय हैं ही, यहां की झीलें भी इस शहर को झीलों का शहर कहलाने का गौरव प्रदान करती हैं। खासकर पिछौला झील तो सर्वाधिक लोकप्रिय है। यहां से लौटने के वर्षों बाद खासकर इस नीली झील की खूबसूरती को भूल पाना आपके लिए संभव नहीं हो पाएगा।

चार किलोमीटर लंबी और तीन किलीमीटर चौड़ी इस झील में जैसे एक संसार ही है। संसार भी ऐसा, जहां समय को एन्जॉय करने के तमाम साधन मौजूद हों। जी हां, इस झील में एक होटल है और आस्था से गहरे जुड़े प्रसिद्ध जग मंदिर भी। पिछौला गांव के नाम पर प्रसिद्ध यह झील आज जहां है, कभी उसका बड़ा हिस्सा पिछौला गांव था। महाराजा उदय सिंह ने शहर की स्थापना के बाद शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाने के उद्देश्य से यहां पहले से स्थित झील को बड़ा करवाया। उदयपुर पहुंच कर आप झील को देख कर रोमांचित तो होंगे ही, लहरों के बीच बने सुविधा सम्पन्न घर (होटल) में ठहर कर पानी के बीच बेहतरीन घर में ठहरने का आनन्द भी प्राप्त कर सकेंगे। यहां बोटिंग कर इस लम्बी-चौड़ी झील में ‘लॉन्ग ड्राइव’ जैसा लुत्फ उठा सकते हैं।

पुष्कर लेक

ब्राहा के कमल से बनी पुष्कर लेक


राजस्थान में किले और ऐतिहासिक इमारतें तो बहुत हैं, एक ऐसी धार्मिक झील भी है, जिसे हर टूरिस्ट देखना चाहता है। पुष्कर में स्थित इस लेक को पर्यटक पुष्कर लेक के नाम से तो जानते ही हैं, इसे ब्राहा लेक भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यह लेक ब्राहामाजी के कमल फूल से बनी है। राजस्थान के पुष्कर में हर वर्ष नवम्बर में लगने वाले मेले में जहां तरह तरह के सजे-संवरे ऊंटों की बड़ी संख्या होती है, वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।

एक तरफ प्रसिद्ध मंदिर है, जिस कारण इस लेक का नाम ब्राहा लेक पड़ा। लगभग दो किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली इस लेक की सुंदरता इन पहाड़ियों से घिरे होने के कारण और बढ़ गई है। यहां का पूरा नजारा बड़ा ही मनोरम लगता है। दिल्ली से लगभग 400 किमी और अजमेर से 11 किमी की दूरी पर स्थित इस धार्मिक लेक के बारे मान्यता है कि ब्राहामाजी के हाथ से यहां कमल गिरने के कारण इसका निर्माण हुआ। इस लेक के किनारे 52 स्नान घाट हैं। नागा कुंड, कपिल व्यापी कुंड समेत कई कुंड भी हैं, जिनकी अपनी-अपनी महत्ताएं हैं। पुष्कर जाने के लिए दिल्ली से अजमेर के लिए रेल बस सेवाओं की कमी नहीं। अजमेर से यातायात के और भी साधन मिल जाते हैं और वहां ठहरने के लिए भी राजस्थान टूरिज्म की ओर से काफी व्यवस्था की गई है।

चिलिका झील

सबसे बड़ी झील


एक ही जगह तरह-तरह के नजारे, कभी आंखों को खूबसूरत लगे, कभी मन को गुदगुदाएं तो कभी तन-मन को रोमांच से भर दें। दूर तलक नजर जाए और नजारों को समेटते हुए पास लाकर मन को तर कर दे, कुछ ऐसा ही दृश्य है यहां का। आखिर यह एशिया की सबसे बड़ी झील होने का तमगा जो पा चुकी है। उड़ीसा की इस ङील का नाम है चिलिका झील।

हिमालय क्षेत्र की तरह प्राकृतिक सौंदर्य से भरे ऐसे नजारे उड़ीसा में भी कम नहीं। खासकर जब आप समुद्र से लगे उड़ीसा के तटों की खूबसूरती को निहारना चाहें और पहुंच जाएं चिलिका झील। यूं तो यह एक झील है, लेकिन क्षेत्रफल इतना बड़ा कि इसके दूसरे किनारे को ढूंढ़ने के लिए आपको झील में उतरना पड़े यानी बोटिंग से इसकी थाह ले सकते हैं। आखिर ऐसा क्यों न हो, जब क्षेत्रफल 11 सौ वर्ग किलोमीटर हो।

कहीं समुद्र के नीले पानी की रंगत तो कहीं हरे-भरे टापुओं की हरियाली का असर। बीच में जहां-तहां मछुआरों की बड़ी-बड़ी नावें भी झील के सौंदर्य में चार चांद लगाती नजर आती हैं। लाखों मछुआरों को रोजगार से जोड़ने वाली यह झील पर्यटकों को भी खूब आकर्षित करती है। पर्यटकों के बीच डॉलफिन के करतब लोकप्रिय हैं, वहीं ङींगा व कई ऐसी मछलियां इन पर्यटकों के लंच और डिनर में प्रमुखता से शामिल होती हैं।

चिलिका के आइसलैंड भी पर्यटकों में खासे लोकप्रिय हैं। आइसलैंड की अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण झील शोधकर्ताओं को भी अपनी ओर खींचती रही है। बोटिंग आदि यहां के आकर्षणों में प्रमुखता से शामिल है। चार सीटों वाली बोट से लेकर 50 सीटों वाली बोट तक यहां उपलब्ध हैं। उड़ीसा टूरिज्म की ओर से यहां ठहरने की भी काफी अच्छी व्यवस्था की गई है। भुवनेश्वर से लगभग 104 किमी की दूरी पर स्थित चिलिका को एन्जॉय करने के लिए बेहतरीन समय अक्तूबर से जून के बीच होता है।

वूलर लेक

सबसे बड़ी फ्रेश वॉटर लेक


कश्मीर से 50 किलोमीटर की दूरी पर झेलम नदी से लगी इस लेक के लिए पर्यटक सामान्य तौर पर एक ही दिन का कार्यक्रम बनाते हैं और डे टूर के बाद वापस श्रीनगर आ जाते हैं। लेकिन जिन पर्यटकों की झीलों में गहरी रुचि होती है, वे भारत के सबसे बड़ी फ्रेश वॉटर लेक के रूप में प्रसिद्ध इस लेक के पास ज्यादा समय बिताना पसंद करते हैं। लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैली इस लेक में बोटिंग व अन्य सुविधाएं तो हैं ही, जम्मू-कश्मीर टूरिज्म द्वारा रहने आदि की भी काफी अच्छी व्यवस्था की गई है। इसे पिकनिक स्पॉट के रूप में खासी लोकप्रियता मिली हुई है। इस कारण जो भी पर्यटक खासकर जून से अगस्त के बीच कश्मीर पहुंचते हैं, एक दिन यहां के टूर की योजना जरूर बनाते हैं। खासकर रचनात्मक व्यक्ति के लिए भीड़ से अलग इस विशाल लेक के पास ठहरना अलग ही अनुभव होता है, क्योंकि यहां चलने वाली हवा उनकी रचनात्मकता को गति तो प्रदान करती ही है, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मन को खूब भाती है। इस लेक के पास बारामूला, बांदीपुर, शादीपुर, सोपुर आदि को देखना भी पर्यटकों को खूब पसंद आता है।

नक्की लेक

देवताओं ने नाखूनों से की खुदाई


राजस्थान के माउंट आबू में स्थित नक्की लेक यहां आने वाले पर्यटकों की खास पसंद बन जाती है। अनेक मंदिरों और आध्यात्मिक स्थलों के बीच स्थित इस लेक का महत्त्व इस कारण भी है, क्योंकि मान्यताओं के अनुसार इसकी खुदाई देवताओं ने अपने नाखूनों से की है। राजस्थान के एकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू जाएं और नक्की लेक न देख पाएं तो समझों कि आपने माउंट आबू को पूरा एन्जॉय किया ही नहीं। माउंट आबू की आध्यात्मिक और मनमोहक आबोहवा के बीच अनेक ऐतिहासिक मंदिर तो हैं ही, ऋषि-मुनियों और देवताओं की स्थली कही जाने वाली इस जगह पर देवताओं द्वारा तैयार यह लेक भी खूब लोकप्रिय है।

यह लेक अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों के बीच बसी है, जिस कारण इसकी खूबसूरती सर चढ़ कर बोलती है। लगभग एक किलोमीटर लंबी और 500 मीटर चौड़ी यह लेक खूबसूरती की तमाम विशेषताओं के कारण आपकी नजरों में बसे बगैर नहीं रहती। बस, आप एक बार इस लेक के किनारे बने वॉकिंग ट्रैक पर घूम लें और खासकर शाम के समय किनारे पर बने रेस्तरां में खूब खाते-पीते हुए इस लेक को निहार लें। राजस्थान टूरिज्म द्वारा लेक के बीच में बनाया गया फाउंटेन भी इसके आकर्षण में वृद्धि करता है।

यूं तो यहां सुबह और शाम दोनों समय पर्यटकों की भीड़ नजर आती है, लेकिन खासकर शाम के समय का नजारा ही कुछ अलग होता है। इस समय यहां की हवा में आपके मन को छूने की क्षमता तो होती ही है, लाइटिंग की वजह से माहौल और खुशनुमा बन जाता है। नीले आसमान और अरावली श्रृंखला की पहाड़ियों के बीच इस लेक के पानी का रंग भी नीलापन लिए होता है, जिसे बोट पर घूमते हुए छूना बड़ा रोमांचित करता है। रात में लाइटिंग से चमचमाते लेक के पानी और संगीत का अहसास कराते फाउंटेन के बीच आप एक बोट में बेहद ही शांति महसूस करेंगे।

नैनी लेक

इस ताल के क्या कहने


तालों में नैनीताल, बाकी सब तलैया..। हिन्दी फिल्म के एक गाने के बोल की ये पंक्तियां नैनी की ताल यानी लेक की खूबियों और लोकप्रियताओं का अहसास करा देती है। यह लेक पर्यटकों में इतनी लोकप्रिय हो गई कि उत्तराखंड के नैनीताल जिले को लेक डिस्ट्रिक्ट के रूप में भी जाना जाने लगा। यूं तो इस जिले में सतताल, भीमताल, नौकुचिया ताल भी हैं, लेकिन नैनीताल की बात ही अलग है। शहर के मध्य स्थित यह लेक शहर की खूबसूरती में चार-चांद लगाती है।

इस लेक के साथ भी भारतीयों की आस्था जुड़ी हुई है। लेक के साथ दो-दो कथाएं जुड़ी हैं। एक प्रसंग स्कंद पुराण के मानस खंड से संबद्ध है, जिसके अनुसार नैनी लेक को कभी ऋषि सरोवर कहा जाता था। दूसरी कथा के अनुसार यह देश के 64 शक्तिपीठों में से एक है। राजा दक्ष यज्ञ प्रकरण में भगवान शिव की पत्नी सती की एक आंख इसी जगह गिरी थी, जिस कारण इसे नैना देवी का घर भी कहा जाता है और नैन यानी आंख के आकार की इस लेक को नैनी लेक। नैनीताल काठकोदाम रेलवे स्टेशन से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इस शहर के लिए दिल्ली से भी नियमित बसें चलती हैं।

हुसैन सागर लेक

खूबसूरत राष्ट्रीय धरोहरों में से एक है


हैदराबाद सिटी के मध्य में 24 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुसैन सागर लेक की खूबसूरती ऐसी है कि एक नजर देख कर ही आप मोहित हो जाएं। खासकर शाम के समय इस लेक को देखना ऐसा अनुभव देता है कि आप इसकी तुलना किसी प्राकृतिक लेक से कर बैठें। यही कारण है कि इंसानों द्वारा निर्मित इस लेक को सरकार ने देश की बेहद खूबसूरत राष्ट्रीय धरोहरों में से एक घोषित किया हुआ है।

इस लेक का निर्माण सुल्तान इब्राहिम कुतुब शाह ने 1562 में करवाया था। तब इस लेक का निर्माण ढाई लाख रुपए खर्च कर पीने के पानी के स्रोत के रूप में किया गया था, लेकिन अब नेशनल लेक कंजर्वेशन प्लान के तहत संरक्षित यह लेक अब आंध्र प्रदेश की वित्तीय व्यवस्था में अहम भूमिका निभाती है। यहां काफी संख्या में पर्यटक आते हैं। लेक के बीचोबीच स्थित 18 मीटर ऊंची भगवान बुद्ध की प्रतिमा एक तरह से इस लेक की खास पहचान बन चुकी है। यहां पहुंचना भी पर्यटकों के लिए बेहद आसान होता है, क्योंकि हैदराबाद के लिए देश के तमाम बड़े शहरों से विमान सेवा भी है और रेल सेवा भी।

कर्ण लेक

जुड़ी है महाभारत से


दिल्ली चंडीगढ़ हाईवे पर हरियाणा के करनाल में स्थित कर्ण लेक महाभारत से संबद्ध है। कथा है कि महाभारत के प्रमुख पात्र कर्ण ने इस झील में स्नान किया था और अपने सुरक्षा कवच इन्द्र को सौंपे थे। तब से इस लेक को कर्ण ताल के नाम से जाना गया। इस कारण यह झील धार्मिक स्थल के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध हुई और हरियाणा के टूरिस्ट मैप पर प्रमुखता से दर्ज हो पाई। दिल्ली और चंडीगढ़ के बीचोबीच स्थित दिल्ली से 125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस लेक के किनारे पिकनिक स्पॉट बन गया और लोग इस जगह को बीच राह में कुछ घंटे के विश्राम के लिए भी इस्तेमाल करने लगे।

यहां आना एक पंथ दो काज जैसा साबित होता है। यहां पर्यटक एक स्वच्छ वातावरण में सुकून की सांस तो लेते ही हैं, बोटिंग को भी एन्जॉय करते हैं और खाने-पीने का भी आनन्द उठाते हैं। वैसे हरियाणा टूरिज्म द्वारा यहां ठहरने की भी व्यवस्था की गई है।

रेणुका लेक

प्राकृतिक खूबसूरती व आस्था का संगम


हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित रेणुका लेक भी आस्थाओं से जुड़ी है। यह एक पर्यटक स्थल के रूप में तो काफी लोकप्रिय हो ही चुकी है, यह मुख्य रूप से धर्म स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहां के मुख्य मंदिर, जिसे मठ कहा जाता है, में प्रमुख रूप से देवी रेणुका की प्रतिमा अवस्थित है। कहते हैं भगवान परशुराम ने यहां अपनी मां रेणुका को मार दिया था। इस लेक का आकार भी किसी सोई हुई महिला की तरह है। यहां एक छोटा-सा चिड़ियाघर भी है और 400 हेक्टेयर में फैला एक अभयारण्य भी है, जिसमें तरह-तरह की जड़ी-बूटियां तो हैं ही, चीतल, सांभर आदि जीव भी हैं। इन सबमें में पर्यटकों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय है रेणुका लेक, जो हिमाचल की सबसे बड़ी प्राकृतिक लेक भी कहलाती है।

हिमाचल टूरिज्म द्वारा पर्यटकों के लिए यहां तमाम तरह की व्यवस्था की गई है। यहां प्राकृतिक माहौल का आनन्द उठाने से लेकर लेक में बोटिंग करने आदि की व्यवस्था तो है ही, ठहरने की भी अच्छी व्यवस्था है। यहां पहुंचना भी काफी आसान है, क्योंकि दिल्ली से 315 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह लेक आसपास के भी तमाम शहरों से अच्छी तरह जुड़ी है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन यमुनानगर 106 किमी है। चंडीगढ़ से रेणुका की दूरी 123 किमी है जबकि शिमला से 165 किमी है। आप जब भी यहां आएं, हिमाचल प्रदेश टूरिज्म से पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लें।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading