कम पानी में भी लहलहाएँगी फसल

3 Dec 2016
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water scarcity
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जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए उत्पाकदता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जलवायु स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों में अनुसन्धान पर निवेश की आवश्यकता पर ध्यान नहीं दिया गया है। पानी की कमी बने रहने से भारतीय कृषि क्षेत्र में काफी समय से 'उच्च निवेश, उच्च जोखिम' की स्थिति है। जब तक अनुकूल समर्थन मूल्य के साथ कम पानी की खपत वाली फसलों विशेष रूप से दलहनों और तिहलनों पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया जाता है, तब तक लगभग 98 मिलियन हेक्टेयर वर्षा आधारित खेत कृषि क्षेत्र में वृद्धि के लिये योगदान नहीं कर सकते।देश की कृषि आज भी मानसून पर आश्रित है। खेती किसानी के लिये पानी की आपूर्ति आज भी समस्या बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद हमारे देश की सरकारों ने सिंचाई के लिये कोई इन्तजाम नहीं किया। कई स्तरों पर सिंचाई के लिये योजनाएँ बनी। बड़े-बड़े बाँध बनाए गए। लेकिन आज भी कृषि के लिये पर्याप्त जल आपूर्ति नहीं हो रहा है।

सिंचाई के लिये नहर, तालाब, ट्यूबबेल आदि का उपयोग होता है। लेकिन देश भर में सिंचाई व्यवस्था को उन्नत करने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक अनूठी सिंचाई योजना की शुरुआत की है। अब कम पानी से भी कृषि हो सकती है। 'हर खेत को पानी' सुनिश्चित करने के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) शुरू की गई है।

इस सिंचाई योजना से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त होगा। अभी तक हमारे देश में खेती का आलम यह है कि गेहूँ, धान, आलू आदि फसलों का रकबा बढ़ता जा रहा है। इस एकपक्षीय कृषि से जहाँ पानी की माँग अधिक बढ़ रही है वहीं पर दलहन और तिलहन के पैदावार पर असर पड़ रहा है। ऐसे में अब हमारे किसानों को कम पानी की खपत वाली फसलों विशेष रूप से दलहनों और तिहलनों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।

आजादी के बाद सिंचाई क्षेत्र में हजारों करोड़ के निवेश के बावजूद हर खेत को पानी उपलब्ध नहीं हो सका है। एक आँकड़े के मुताबिक अभी तक 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि में से केवल 45 प्रतिशत भूमि को पानी उपलब्ध हो पा रहा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) का ध्यान 'हर खेत को पानी' देने पर केन्द्रित है। इसके अन्तर्गत मूल स्थान पर जल संरक्षण के जरिए किफायती लागत और बाँध आधारित बड़ी परियोजनाओं पर भी ध्यान दिया जाएगा।

भारत की अगले पाँच वर्षों में सिंचाई योजनाओं पर 50 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना है। इसलिये देश में सूखे के प्रभाव को कम करना कार्यान्वन प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु बन गया है। पिछले दो वर्षों में दस राज्यों में गम्भीर सूखा पड़ा, जिससे कृषि क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा और वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं। वर्षा आधारित कृषि भूमि के अतिरिक्त छह लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के अन्तर्गत लाने के लिये योजना के कार्यान्वयन के पहले एक वर्ष में पाँच हजार तीन सौ करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।

वर्तमान में चल रही तीन योजनाओं- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, एकीकृत जल ग्रहण प्रबन्धन कार्यक्रम और खेत में जल प्रबन्धन योजनाओं का विलय कर पीएमकेएसवाई बनाई गई है। इसका उद्देश्य न केवल सिंचाई कवरेज बढ़ाना, बल्कि खेती के स्तर पर जल के उपयोग की दक्षता बढ़ाना भी है।

इस सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि इस योजना से लगभग पाँच लाख हेक्टेयर भूमि में ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा मिलेगा। अतिरिक्त सिंचित क्षेत्र के लक्ष्य को हासिल करने के लिये मौजूदा जल निकायों और पारम्परिक जलस्रोतों की भण्डारण क्षमता बढ़ाई जाएगी। पानी की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिये निजी एजेंसियों, भूजल और कमान क्षेत्र विकास के अतिरिक्त संसाधनों से पानी लेने का प्रयास भी किया गया। हालांकि यह सुनिश्चित करना गम्भीर चुनौती है कि मौजूदा तीस मिलियन कुओं और ट्यूबवेल से अतिरिक्त भूजल स्रोत का दोहन न हो।

इस सन्दर्भ में देश के प्रत्येक खेत में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिये जल संरक्षण और जल की बर्बादी कम करना महत्वपूर्ण है। इससे स्थायी जल संरक्षण और जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की आदत बनेगी, जो नई सिंचाई सुविधाओं जितनी ही महत्त्वपूर्ण है।

सिंचाई जल आपूर्ति के लिये कई विधियों से नगर निगम के गन्दे पानी का शोधन कर उसे दोबारा उपयोगी बनाने की भी योजना है। एक ऐसा देश जहाँ सूखा पड़ने का इतिहास रहा है, वहाँ केवल ऐसी पहलों से ही सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त होगा। वर्ष 1801 से लेकर 2012 तक देश में 45 बार गंभीर सूखा पड़ा है।

हाल के कमजोर मानसून का असर कृषि क्षेत्र पर पड़ा है और लगातार दूसरे वर्ष कृषि क्षेत्र का योगदान कम दर्ज किया गया। इसका बुरा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, जिसकी वजह से यह तर्क पुष्ट होता है कि सूखे के असर को कम करने से अर्थव्यवस्था पर कृषि का बुरा प्रभाव कम पड़ेगा। आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 में कृषि में बदलाव की बात करते हुए संकर और उच्च उपज बीज, प्रौद्योगिकी और मशीनीकरण पर अनुसन्धान में अधिक निवेश कर सूक्ष्म सिंचाई के जरिए जल का किफायती उपयोग करने का प्रस्ताव किया गया है।

जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए उत्पाकदता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जलवायु स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों में अनुसन्धान पर निवेश की आवश्यकता पर ध्यान नहीं दिया गया है। पानी की कमी बने रहने से भारतीय कृषि क्षेत्र में काफी समय से 'उच्च निवेश, उच्च जोखिम' की स्थिति है। कृषि क्षेत्र में अधिक पानी की खपत वाली फसलों के कारण जलवायु अनिवार्यता और बढ़ गई है।

जब तक अनुकूल समर्थन मूल्य के साथ कम पानी की खपत वाली फसलों विशेष रूप से दलहनों और तिहलनों पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया जाता है, तब तक लगभग 98 मिलियन हेक्टेयर वर्षा आधारित खेत कृषि क्षेत्र में वृद्धि के लिये योगदान नहीं कर सकते। इसलिये पानी की दीर्घावधि आवश्यकता की पूर्ति के लिये समग्र विकास के परिप्रेक्ष्य में पीएमकेएसवाई के अन्तर्गत 'विकेन्द्रिकृत राज्य स्तरीय नियोजन और कार्यान्वयन' को बढ़ाकर व्यापक जिला सिंचाई योजनाओं तक किया जाना चाहिए।

यह कार्य केवल स्थानीय जल संसाधनों का संरक्षण और सुरक्षित करना ही नहीं है, बल्कि वितरण नेटवर्क को दक्ष बनाना है, ताकि कठिनाई के समय में भी खेतों में फसल की उत्पादकता को कायम रखा जा सके। 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का 30 से 35 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता के कारण भारत को पीएमकेएसवाई के अनुरूप विकेन्द्रिकृत जल प्रबन्धन अपनाकर वृहद सिंचाई परियोजनाओं में कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा।

हालांकि इन योजनाओं का अधिक लाभ तभी मिल पाएगा, जब यथार्थवादी खेती के जरिए जैविक कार्बन मिट्टी को बढ़ाएँ, कार्बन स्टॉक मिट्टी की नमी बनाए रखे और जलवायु के प्रभाव से फसल की बर्बादी को कम किया जा सके। इस सन्दर्भ में विकेन्द्रिकृत जलागम विकास के माध्यम से सामुदायिक जल प्रबन्धन, पारम्परिक टैंक प्रणाली और 'मिट्टी में नमी बढ़ाने' के लिये सुधार के जरिए 'पानी की उपलब्धता' कायम रखना महत्त्वपूर्ण है। यह प्रयास ग्रामीण इलाकों में सूखे के प्रभाव को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि भूजल भण्डारण मूल स्थान पर मिट्टी को वास्तविक जलाशयों में परिर्वितत कर देता है, जो जलवायु के खतरों से असाधारण बचाव करता है।

अब सूखा प्रभावित न होने वाली कृषि का समय आ गया है। पीएमकेएसवाई का मुख्य उद्देश्य हैं- सिंचाई में निवेश में एकरूपता लाना, 'हर खेत को पानी' के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करने के लिये, खेतों में ही जल को इस्तेमाल करने की दक्षता को बढ़ाना ताकि पानी के अपव्यय को कम किया जा सके, सही सिंचाई और पानी को बचाने की तकनीक को अपनाना (हर बूँद अधिक फसल) आदि। इसके अलावा इसके जरिए सिंचाई में निवेश को आकर्षित करने का भी प्रयास किया जाएगा।

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