कृषि आधारित उद्योग: चुनौतियां और समाधान

19 Dec 2019
0 mins read
कृषि आधारित उद्योग: चुनौतियां और समाधान
कृषि आधारित उद्योग: चुनौतियां और समाधान

कृषि-आधारित उद्योग अर्थव्यवस्था के विकास के लिए काफी अहम हैं। चूंकि ज्यादातर कृषि-आधारित उद्योग लघु, छोटे और मध्यम श्रेणी के हैं, और मुमकिन है कि उनके पास सस्ते या सब्सिडी वाले आयात से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता नहीं हो। ऐसे में सरकार की भूमिका काफी अहम हो जाती है। अन्य देशों के निर्यातकों की अनुचित व्यापार गतिविधियों के कारण सरकार को कृषि-आधारित उद्योगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की जरूरत है।

कृषि-आधारित उद्योग, अर्थव्यवस्था के प्राथमिक और सहायक क्षेत्रों के बीच पारस्परिक निर्भरता का बेहतर उदाहरण है। जाहिर तौर पर यह निर्भरता दोनों क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है। यह साबित हो चुका है कि भारत में कृषि-आधारित उद्योग स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर गरीबी और बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में काफी मददगार हैं। हालांकि, अन्य देशों से खराब गुणवत्ता वाले आयात के कारण अक्सर इन उद्योगों की प्रतिस्पर्धा क्षमता कमजोर पड़ जाती है। इन उद्योगों को अलग-अलग देशों के व्यापार प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ता है। इस लेख में व्यापार सम्बन्धी उन दिक्कतों के बारे में बताया गया है, जिनका सामना इन उद्योगों को करना पड़ता है।

कृषि आधारित उद्योग

जैसाकि नाम से ही पता चलता है, कृषि-आधारित उद्योग को कृषि उत्पादों के रूप में कच्चा माल मिलता है। इस तरह के उद्योगों का दायरा कई क्षेत्रों में फैला है-मसलन खाद्य प्रसंस्करण, रबर के उत्पाद, जूट, कपास, वस्त्र, तम्बाकू, लकड़ी आदि। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के उद्योग सम्बन्धी आंकड़ों के अनुसार, ऐसे उद्योगों से जुड़ी कई इकाइयां हैं और इनमें बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं। (सारणी-1) मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 43.6 प्रतिशत फैक्ट्रियां कृषि-आधारित उद्योगों से सम्बन्धित है। तकरीबन इसी अनुपात में (42.7 प्रतिशत) लोग कृषि आधारित उद्योगों से जुड़े हैं। जैसा कि सारिणी-1 से स्पष्ट है, न तो स्थाई पूंजी और न ही आमदनी के मामले में इन उद्योगों की बड़ी हिस्सेदारी है। इन उद्योगों में सबसे ज्यादा फैक्ट्रियां खाद्य उत्पादों, वस्त्र और रबड़ उत्पादों से जुड़ी हैं। जहाँ तक रोजगार का सवाल है, तो खाद्य उत्पाद, वस्त्र और परिधान जैसे क्षेत्रों की कम्पनियां इसमें अग्रणी हैं।

डी.जी.सी.आई.एंड.एस. के आंकड़ों की माने, तो देश के कुल निर्यात में सूक्ष्म, लघु और मध्यम-स्तर के उद्योगों की हिस्सेदारी तकरीबन 20 फीसदी है और पिछले 4 साल में निर्यात 5,600 करोड़ डॉलर से 5,900 करोड़ डॉलर के बीच रहा है (सारणी-2)। इनमें वस्त्र, रेडीमेड कपड़े आदि के निर्यात की हिस्सेदारी ज्यादा है।

सरकारी हस्तक्षेप

कृषि-आधारित उद्योगों में रोजगार पैदा करने की जबर्दस्त सम्भावनाएं हैं। साथ ही, ये उद्योग विदेशी मुद्रा की कमाई का भी अहम जरिया हैं। जाहिर तौर पर इन उद्योगों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए इन उद्योगों को अवसर प्रदान करने की खातिर कभी-कभी सरकार के लिए हस्तक्षेप या पहल करना जरूरी हो जाता है। उदाहरण के तौर पर इन उद्योगों को क्लस्टर या समूह के रूप में संगठित करना, कौशल और तकनीकी विकास के लिए जरूरी पहल, वित्तीय मदद की सुविधा, बाजार की चुनौतियों से निपटना, मार्केटिंग इकाइयों का नवीनीकरम, कारीगरों के उत्पादों का प्रदर्शन, प्रदर्शनी आयोजित करना, अन्तरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भागीदारी को बढ़ावा देना आदि। इसके अलावा, सरकार का ध्यान यह सुनिश्चित करने पर भी है कि ऐसे उद्योग अन्य देशों के निर्यातकों के अनुचित व्यापार नियमों के शिकार न बनें।

अनुचित व्यापार नियम

अन्य देशों के निर्यातकों की तरह से अपनाए गए अनुचित व्यापार नियमों के कारण कृषि-आधारित उद्योगों की प्रतिस्पर्धा क्षमता कमजोर पड़ जाती है। इस तरह का प्रचलन दो स्वरूपों में देखने को मिलता है।

सारिणी-1 एएसआई 2017-18 (पी) में प्रमुख औद्योगिक समूह से जुड़ी मुख्य जानकारी

विवरण

फैक्ट्रियां

स्थायी पूंजी

काम करने वाले कुल लोग

कुल मेहनताना

1

2

3

4

5

खाद्य उत्पाद

37,833

2,11,19,573

17,72,399

34,21,585

टेक्सटाइल

17,957

1,66,68,852

16,78,561

31,31,708

रबड़ उत्पाद

14,193

95,92,433

7,12,872

18,01,918

परिधान

10,498

28,57,883

11,89,520

20,99,762

कागज और इससे बने उत्पाद

7,109

58,59,566

2,84,057

6,81,274

तम्बाकू उत्पाद

3,591

6,08,951

4,61,335

2,94,121

चमड़ा और इससे बने उत्पाद

4,617

11,23,972

3,87,134

6,84,473

कपास से रूई तैयार करना, बीज प्रसंस्करण

3,316

4,73,207

79,471

1,16,224

लकड़ी और इससे जुड़े उत्पाद, (फर्नीचर को छोड़कर)

4,565

6,88,936

98,653

1,63,465

उपयोग

1,03,679 (43,6%)

5,89,93,373 (17,9%)

66,64,002 (42.7%)

1,23,94,530 (29.6%)

सम्पूर्ण भारत का आंकड़ा

2,37,684

32,93,41,000

1,56,14,598

4,18,35,726

स्रोतः उद्योगों का वार्षिक सर्वे, 2017-18, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार प्लास्टिक उत्पाद समेत

1. डपिंग

ऐसा देखा गया है कि अन्य देशों के निर्यातक अक्सर काफी सस्ती दरों पर भारतीय बाजार में अपना उत्पाद बेच देते हैं। निर्यातक अपने घरेलू बाजार में जिस दर पर उत्पाद बेचते हैं, उससे काफी कम में वे भारतीय बाजार में बड़ी मात्रा में माल उतार देते हैं।

2. सब्सिडी

भारत जिन देशों से आयात करता है, उन देशों की सरकारें अपने निर्यातकों को बड़े पैमाने पर सब्सिडी मुहैया कराती हैं।

दोनों स्थितियों में कम्पनी की प्रतिस्पर्धी क्षमता चौपट हो जाती है और कुल मिलाकर घरेलू बाजार नुकसान में रहता है। विश्वर व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ऐसे मामलों को एक समझौते के तहत अनुचित व्यापार नियमों की श्रेणी में रखता है। विश्व व्यापार संगठन से जुड़े जो देश इस तरह की गतिविधियों से परेशान हैं, वे डपिंग और सब्सिडी से नुकसान की स्थिति में क्रमशः एंटी-डपिंग ड्यूटी (एडीडी) और काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) लगा सकते हैं। इन शुल्कों से आयात महंगा हो जाता है और घरेलू उद्योगों को काफी हद तक बराबरी के साथ प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिलता है।

अन्य देशों के निर्यातकों की अनुचित व्यापार प्रथाओं के कारण भारत में बड़ी संख्या में कृषि-आधारित उद्योगों को नुकसान पहुँचा है। इन उद्योगों को बाजार हिस्सेदारी में कमी, बिना बिके हुए माल में बढ़ोत्तरी, मुनाफे में कमी, नुकसान में बढ़ोत्तरी, बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी, विनिर्माण इकाइयों की तालाबंदी के रूप में कई तरह के नुकसान झेलने पड़ते हैं। एक और दिक्कत यह है कि सस्ते आयात की गुणवत्ता का स्तर बेहद खराब होता है, लिहाजा इससे पर्यावरण और स्वच्छता सम्बन्धी समस्याएं भी पैदा होती हैं।

व्यापार सम्बन्धी नियमन

भारत का कस्टम टैरिफ कानून, 1975 और सम्बद्ध एंटी-डपिंग नियम व सीवीडी नियम, 1995 घरेलू विनिर्माताओं को अन्य देशों के निर्यातकों के अनुचित व्यापार प्रथाओं से बचाने के लिए कानूनी कवच मुहैया कराते हैं। भारत सरकार के वाणिज्य विभाग से जुड़ी संस्था डीजीटीआर अर्ध-न्यायिक इकाई है। जब जांच में पता चलता है कि अन्य देशों के निर्यातकों की अनुचित व्यापार प्रथाओं के कारण घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचने की आशंका है, तो यह संस्था नियमों को ध्यान में रखते हुए जरूरी सुझाव देती है। डीजीटीआर की सिफारिश पर भारत सरकार का राजस्व विभाग ड्यूटी में बढ़ोत्तरी करता है।

सारणी-3 में बताया गया है कि भारत ने कृषि-आधारित घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए 1995 के बाद से अनुचित व्यापार नियमों के खिलाफ क्या-क्या उपाय किए हैं। 1 जनवरी, 1995 से 31 दिसम्बर, 2018 के बीच टेक्सटाइल क्षेत्र में सबसे ज्यादा एंटी-डपिंग ड्यूटी (एडीडी) लगाई गई। अगर हम कृषि-आधारित उद्योगों की बात करें, तो इसी अवधि में कोई काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीडीडी) नहीं लगाई गई। दरअसल, भारत ने इन उपायों का नियंत्रित इस्तेमाल किया है। विश्व व्यापार संगठन के रिकॉर्ड के मुताबिक, 1 जनवरी, 1995 से 31 दिसम्बर, 2018 के बीच भारत ने सिर्फ दो बार काउंटरवेलिंग ड्यूटी के विकल्प का इस्तेमाल किया। हालांकि, दोनों में से कोई भी कदम कृषि-आधारित उद्योग से सम्बन्धित नहीं थे।

विश्व व्यापार संगठन के मुताबिक,भारत ने 1995 से अब तक कृषि-आधारित उद्योग समेत अन्य उद्योगों के मामले में जिन देशों पर सबसे ज्यादा एंटी-डपिंग ड्यूटी लगाई है, उनमें चीन, यूरोपीय संघ, कोरिया, ताइवाव, थाइलैंड और अमेरिका शामिल है। पिछले कुछ साल में भारत ने जूट जैसे कृषि उत्पादों पर बांग्लादेश और नेपाल के निर्यातकों के खिलाफ जांच शुरू की है। कुछ कृषि उत्पादों के मामले में चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, सऊदी अरब और थाइलैंड के खिलाफ भी जांच शुरू की गई है।

सारणी- 2 कृषि-आधारित एमएसएमई का निर्यात

उप-क्षेत्र

2014-15

2015-16

2016-17

2017-18

वेजिटेबल ऑयल और सम्बन्धित अन्य उत्पाद

973

877

893

1,264

तैयार खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ, तम्बाकू और सम्बन्धित उत्पाद

5,918

5,837

6,010

6,205

रबड़ और इससे जुड़े सामान

7,808

7,619

7,787

9,311

चमड़ा, यात्रा सम्बन्धी सामान, हैंडबैंग और इससे मिलते जुलते आइटम आदि

3,872

3,442

3,244

3,312

लकड़ी और इससे बना सामान, लकड़ी का चारकोल, कॉर्क और इससे सम्बन्धित सामान आदि

353

456

415

428

फाइबर से जुड़ी सामग्री, रद्दी कागज या पेपर बोर्ड, कागज व पेपरबोर्ड व इससे सम्बन्धित सामान आदि

1,430

1,447

1,464

1,702

टेक्सटाइल और टेक्सटाइल-आधारित उत्पाद

37,654

36,728

36,477

36,738

उपयोग

58,009

56,405

56,290

58,959

भारत का कुल निर्यात

3,10,338

2,62,291

2,75,852

3,03,376

भारत के कुल निर्यात में कृषि-आधारित एमएसएमई निर्यात का अनुपात (प्रतिशत में)

18.7

21.5

20.4

19.4

स्रोतः डी.जी.सी.ई.एंड.एस; 2 लघु, छोटे और मध्यम उद्योग मंत्रालय

भारत सरकार कृषि-आधारित उद्योगों की सुरक्षा के लिए व्यापार नियमन से जुड़े किस तरह के उपाय करती है, इस बारे में विस्तार से बताने के लिए यहाँ जूट उद्योग का उदाहरण पेश किया जा रहा है। डीजीटीआर की वेबसाइट के मुताबिक, 2017 में डीजीटीआर की सिफारिश पर (एंटी-डपिंग के तत्कालीन महानिदेशक), राजस्व विभाग ने बांग्लादेश से आने वाले जूट उत्पादों पर एंटी-डपिंग ड्यूटी लगाई थी। हालांकि, 2018 में डीजीटीआर को एक और याचिका मिली, जिसमें कहा गया कि निर्यातक एंटी-डपिंग ड्यूटी को नजरअंदाज कर बांग्लादेश से कुछ उत्पादों का निर्यात भारत में कररहे हैं। मामले की जाँच करने पर डीजीटीआर ने पाया कि सम्बन्धित जूट उत्पाद पर एंटी-डपिंग ड्यूटी लगाए जाने के बाद उसका आयात बढ़ गया। इसके अलावा, यह भी देखने को मिला कि सम्बन्धित उत्पाद-जूट की बोरियों को जूट के थैले में बदलने में एंटी-डपिंग नियमों के हिसाब से तय गुणवत्ता सम्बन्धी मानकों का पालन नहीं किया गया। डीजीटीआर का कहना था कि भारत में निर्यातकों द्वारा जूट की बोरियों को बेचने की कीमत और उन्हें घरेलू बाजार में मिलने वाले मूल्य का अंतर ही डपिंग मार्जिन है। यह पाया गया कि बांग्लादेश के निर्यातकों के कारण भारतीय जूट निर्माताओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। लिहाजा, डीजीटीआर ने मार्च 2019 में जूट की बोरियों और जूट के थैलों पर मौजूदा एंटी-डपिंग ड्यूटी बढ़ाने की सिफारिश की।

ये मामले इस बात की जानकारी देते हैं कि कृषि-आधारित उद्योग वैसे मामलों में अपनी शिकायतों के निपटारे के लिए डीजीटीआर का दरवाजा खटखटा सकते हैं, जहाँ दूसरे देशों के निर्यात के कारण उन्हें नुकसान हुआ हो या किसी तरह के नियमन के अभाव में इस तरह की आशंका हो। आमतौर पर किसी घरेलू उद्योग द्वारा शिकायत दर्ज करने के बाद डीजीटीआर की तरफ से अनुचित व्यापार नियमों के खिलाफ जाँच शुरू की जाती है। हालांकि, डीजीटीआर की तरफ से खुद भी संज्ञान लिया जा सकता है।

सारिणी-31 जनवरी, 1995 से 31 दिसम्बर, 2018 के बीच भारत की ओर से दर्ज एडीडी के मामले

उप क्षेत्र

एडीडी के आंकड़े

रबड़ और इससे जुड़े सामान

96

टेक्सटाइल और इससे जुड़े सामान

74

लकड़ी और इससे बने सामान, लकड़ी का चारकोल, कॉर्क और इससे सम्बन्धित सामान आदि

14

फाइवर से जुड़ी सामग्री, रद्दी कागज या पेपरबोर्ड, कागज व पेपरबोर्ड व इससे सम्बन्धित सामान आदि

12

उपयोग

196

भारत के कुल एडीडी मामले

693

भारत की ओर से दर्ज एडीडी के मामलों में कृषि-आधारित उद्योगों से जुड़े एडीडी का अनुपात (प्रतिशत में)

28.3

स्रोतः विश्व स्वास्थ्य संगठन

घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए एंटी-डपिंग ड्यूटी और काउंटरवेरिंग ड्यूटी के अलावा एक और विकल्प है। अगर बड़े पैमाने पर किसी कमोडिटी के आयात के कारण घरेलू उद्योग को नुकसान हो रहा है, तो सरकार इस विकल्प को आजमा सकती है। ऐसी स्थिति में प्रभावित देश ‘सुरक्षा ड्यूटी’ लगा सकते हैं। डीजीटीआर की वेबसाइट पर बताया गया है कि भारत और मलेशिया के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते के मुताबिक, मलेशिया से भारत में पाम ऑयल के निर्यात की अधिकता की स्थिति में द्विपक्षीय जांच शुरू करने की बात है। अन्य देशों द्वारा अनुचित व्यापार नियमों के मामले में भारतीय निर्यातकों के खिलाफ जांच शुरू किए जाने की स्थिति में उन्हें (भारतीय निर्यातकों) भी अपना पक्ष पेश करने में मदद की जरूरत हो सकती है। ऐसे मामलों में भी डीजीटीआर अपनी भूमिका निभाता है।

निष्कर्ष

कृषि-आधारित उद्योग, अर्थव्यवस्था के विकास के लिए काफी अहम हैं। चूंकि ज्यादातर कृषि-आधारित उद्योग लघु, छोटे और मध्यम श्रेणी के हैं, और मुमकिन है कि उनके पास सस्ते या सब्सिडी वाले आयात से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता नहीं हो। ऐसे में सरकार की भूमिका काफी अहम हो जाती है। अन्य देशों के निर्यातकों की अनुचित व्यापार गतिविधियों के कारण सरकार को कृषि-आधारित उद्योगों की मदद के लिए डीजीटीआर ने 23 सितम्बर, 2019 को सहायता केन्द्र स्थापित किया है। अन्य देशों के निर्यातकों के अनुचित व्यापार नियमों से सुरक्षा के लिए कृषि-आधारित उद्योगों के बीच जागरूकता फैलाना एक कारगर कदम है।

(लेखिका भारतीय आर्थिक सेवा की 1999 बैच के अधिकारी हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading