कृषि संकट

संकट में किसान
संकट में किसान

किसानों की विरोध यात्रा : किसानों की सात माँगें मान ली गई हैं, और चार लम्बित हैं। सरकार ने कर्जमाफी तथा स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के क्रियान्वयन की बाबत स्थिति अभी स्पष्ट नहीं की है

बीते मंगलवार को दिल्ली-उप्र सीमा पर गाजीपुर गाँव के पास यूपी गेट पर हजारों किसानों, जो हरिद्वार से चलकर कर दिल्ली की सीमा पर पहुँचे थे, और दिल्ली पुलिस के जवानों के नाटकीय अन्दाज में आमने-सामने हो जाने के उपरान्त सरकार द्वारा किसानों की ग्यारह में से सात माँगें मान लिये जाने पर किसानों ने आन्दोलन समाप्त कर दिया। भारतीय किसान यूनियन से जुड़े हजारों किसानों ने बीती 23 सितम्बर को हरिद्वार से अपनी विरोध यात्रा आरम्भ की थी, लेकिन दिल्ली सीमा पर पहुँचने पर उनके काफिले को रोक लिया गया। उन पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने आँसू गैस के गोले छोड़े। पानी की बौछार बरसाई। इस बीच किसानों के प्रतिनिधिमंडल की गृहमंत्री राजनाथ सिंह तथा कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ बातचीत हुई। किसानों की माँगों की सूची और उन पर सरकार की प्रतिक्रिया इस प्रकार है:

जिन बिन्दुओं पर सहमति बनी

गन्ने का समय से भुगतान

बीते जून माह में सरकार ने गन्ना उद्योग को 8 हजार करोड़ रुपए का विशेष पैकेज दिया था ताकि गन्ना मिलें किसानों से गन्ना खरीद सकें। लेकिन कुछ किसानों का कहना था कि उन्हें महीनों से गन्ने का बकाया भुगतान नहीं मिला है। भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह, जो अधिकारियों के साथ बैठक में मौजूद थे, के अनुसार सरकार ने कहा है कि 5,500 करोड़ रुपए के बकाया का भुगतान करने के लिये धन जारी कर दिया गया है और लम्बित भुगतान 30 नवम्बर से पूर्व कर दिया जाएगा।

पुराने ट्रैक्टरों पर प्रतिबन्ध

2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दस साल से ज्यादा पुराने डीजल-चालिक वाहनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। इनमें ट्रैक्टर भी शामिल थे। प्रतिबन्ध दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये लगाया गया। बैठक में सरकार ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष ऐसे वाहनों पर प्रतिबन्ध हटाने के लिये याचिका दायर करेगी।

फसल बीमा योजना

सरकार सभी फसलों के लिये किसान-हितैषी फसल बीमा योजना लाएगी। योजना के तहत आग और चोरी से फसल को होने वाले नुकसान को भी लाया जाएगा। युद्धवीर सिंह ने बताया कि सरकार ने बीमा योजना की समीक्षा के लिये एक कमेटी के गठन पर सहमति व्यक्त की है। यह भी बताया कि जंगली जानवरों से फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये अलग से योजना लाने पर भी सरकार ने सहमति जताई है। सिंह ने बताया, ‘सरकार ने इन जानवरों को अलग से संरक्षित क्षेत्रों में रखने की पाइलट परियोजना आरम्भ करने की बात कही है, ताकि ये जानवर खेतों से दूर रहें।’

कृषि उपकरणों पर जीएसटी

किसानों की माँग थी कि खेती और सिंचाई में उपयोग किये जाने वाले उपकरणों और मशीनरी को जीएसटी की परिधि से बाहर रखा जाना चाहिए। इस समय सिंचाई उपकरणों पर 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगाया जाता है, जिससे किसानों के लिये इन्हें खरीदना महंगा पड़ता है। बैठक के उपरान्त केन्द्र सरकार ने कहा कि वह कृषि उपकरणों पर इस कर की दर कम करने के लिये जीएसटी काउंसिल के समक्ष अपना पक्ष रखेगी। फैसला किया गया कि जीएसटी के तहत कृषि उपकरणों पर जीएसटी के तहत शून्य से पाँच प्रतिशत की दर से कर लगे।

उपज आयात का मुद्दा

किसानों की माँग थी कि सरकार उन उपजों के आयात पर प्रतिबन्ध लगाए जो भारत में अतिरेक में पैदा होती हैं। वे यह भी चाहते हैं कि कृषि को विश्व व्यापार संगठन की परिधि से बाहर रखा जाये और मुक्त व्यापार समझौते में इसे शामिल नहीं किया जाये। सिंह ने बताया कि सरकार ने उपज आयात सम्बन्धी व्यापार समझौतों की शर्तों पर गौर करने का आश्वासन दिया है।

मनरेगा पर किसानों से परामर्श

भाकियू चाहती है कि कृषि मजदूरों को महात्मा गाँधी नेशनल रूरल इम्पलॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) के साथ जोड़े जाने सम्बन्धी फैसलों को लेकर किसानों से परामर्श किया जाये। इस योजना के तहत प्रत्येक परिवार को साल में सौ दिन दिहाड़ी पर काम दिया जाता है। किसान चाहते हैं कि दोनों क्षेत्रों-कृषि और मनरेगा-को परस्पर जोड़ा जाये क्योंकि बुवाई के दिनों में मनरेगा के कारण मजदूरों की कमी हो जाती है। सिंह ने बताया कि इस माँग को स्वीकार कर लिया गया है, और केन्द्र ने इस एक्ट के साथ समन्वयक प्रक्रिया में किसान प्रतिनिधियों को शामिल करने पर सहमति जताई है।

जिन बिन्दुओं पर नहीं बन सकी सहमति

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों और कर्जमाफी

2006 में कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग ने केन्द्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें सुझाया गया था कि कृषि क्षेत्र को ज्यादा टिकाऊ और प्रतिस्पर्धी बनाया जाये। रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की गई थी कि सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली कृषि उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य को उत्पादन लागत से पचास प्रतिशत ज्यादा रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, किसानों ने कर्जमाफी की माँग भी रखी थी। बैठक में सरकार के प्रतिनिधियों ने बताया कि यह ‘वित्तीय मुद्दा’ है और इस पर गहनता से विचार आवश्यक है। सिंह ने बताया कि ‘सरकार ने अभी भी इन दोनों मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।’

संसद का विशेष सत्र

पहले की जा चुकी देश की विभिन्न यूनियनों की किसान रैलियों की भाँति ही भारतीय किसान यूनियन ने भी किसानों के मुद्दों तथा कृषि संकट पर चर्चा के लिये संसद का विशेष सत्र बुलाने की माँग की थी। लेकिन सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया। सिंह ने बताया कि सरकार ने यह कहते हुए इस माँग को मानने से इनकार कर दिया कि ये मुद्दे सामान्य चर्चा के तहत आते हैं।

किसान परिवारों को सरकारी नौकरी

गृह मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, 2016 में हर दिन 17 किसानों ने आत्महत्या की। भाकियू चाहती है कि सरकार आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के किसी एक सम्बन्धी को नौकरी दे। सिंह ने बताया कि अधिकारियों ने इस माँग को मानने से इनकार कर दिया।

किसानों के लिये पेंशन योजना

भाकियू की माँग थी कि साठ साल की आयु पूरी कर चुके छोटे और सीमान्त किसानों के लिए प्रति माह पाँच हजार रुपए की पेंशन योजना होनी चाहिए। इस माँग को नहीं माना गया। सिंह ने बताया, ‘बैठक में सरकार ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिये प्रत्येक राज्य की अपनी पेंशन योजना है, इसलिये किसानों के लिये कोई पृथक योजना चलाया जाना सम्भव और स्वीकार्य नहीं है।

निशुल्क बिजली

किसानों ने बताया कि पंजाब और उत्तर प्रदेश में बिजली के बिल इतने ज्यादा हैं कि प्रति यूनिट आठ रुपए वसूले जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इससे ट्यूबवेलों का उपयोग खर्चीला हो गया है। लेकिन निशुल्क बिजली दिये जाने की उनकी माँग को सरकार ने मानने से इनकार कर दिया। युद्धवीर सिंह ने बताया, ‘सरकार ने हमें कहा कि बिजली राज्य का विषय है, इसलिये इस मुद्दे पर केन्द्र के स्तर पर चर्चा नहीं की जा सकती।’

 

 

 

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