कृत्रिम भूजल पुनःपूरण

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समाप्ति की ओर अग्रसर भूजल संसाधनों (Ground Water Resources) का दक्षतापूर्वक प्रबंधन विश्व के उन सभी वैज्ञानिकों एवं अभियंताओं के लिए चुनौती है जो भूजल संसाधनों के विकास एवं प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत हैं। सामान्य परिस्थितियों में किसी जलभृत (Aquifer) के प्राकृतिक रूप से होने वाले पुनः पूरण एवं तद्नुसार उस जलभृत की सुरक्षित उत्पादक क्षमता (Safe Yield Capacity) में वृद्धि की जा सकती है। जलभृतों के पुनःपुरण हेतु मनुष्यों द्वारा इनके जल भंडारण में की जाने वाली संवृद्धि ही कृत्रिम पुनः पूरण (Artificial) है। विशुद्धता पूर्वक कहा जाये तो कृत्रिम भूजल पुनः पूर्ण (Artificial Groundwater Recharge) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा भूजल भृत (Groundwater Aquifer) से जल निकास की दर, संवर्द्धन (Augmentation) की दर से कम रखी जा सके।

मानव निर्मित कोई कार्य योजना जिसकी कल्पना जलभृत के भूजल भण्डारण संवर्द्धन के उद्देश्य से की गई हो, को कृत्रिम भूजल पुनः पूरण व्यवस्था के रूप में समझा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल आपूर्ति के परिप्रेक्ष्य में पेयजल स्रोतों की निरंतरता को अक्षुण्ण बनाए रखा जाना नितान्त गंभीर प्रश्न है। इसके लिए प्रयास हेतु सरकार की भूमिक क कार्यान्वयन प्राधिकरण (Impementation Authority) से हटते-हटते मात्र एक मार्गदर्शक (Consultant) तक सीमित हो चली है।

विश्व के प्रायः सभी देशों के विभिन्न प्रकार की वर्षाजल दोहन (Rain Water Harvesting) संरचनाओं के विकास एवं निर्माण के द्वारा समाज के लिए इनकी उपयोगिता सिद्ध हुई है। वर्षा जल दोहन एवं कृत्रिम जल पुनःपूरण, जल उपलब्धता की निरंतरता को बनाए रखने में सक्षम हैं और इसके लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः स्थानीय निकायों द्वारा इस प्रकार की गतिविधियों को विशाल स्तर पर कार्यान्वित किया जाना एक अति लाभकारी कृत्य होगा।

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