कुपोषण और घाटे का इलाज है स्पिरुलिना शैवाल की खेती

स्पिरुलिना शैवाल की खेती दिल्ली की बावड़ियों में भी सम्भव है
स्पिरुलिना शैवाल की खेती दिल्ली की बावड़ियों में भी सम्भव है


स्पिरुलिना शैवाल की खेती दिल्ली की बावड़ियों में भी सम्भव है (फोटो साभार - डाउन टू अर्थ)खेती में नुकसान, अधर में लटका भविष्य और कर्ज के बोझ से दबे किसान को अगर कम समय, कम लागत और अधिक लाभ का फार्मूला मिल जाये तो उसके दिन फिर जाएँगे। पर भारत जैसे देश में इस पेशे के प्रति जागरुकता की कमी और सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि हमारे पास कम लागत में अधिक कमाई का तरीका होते हुए भी उससे इस देश के किसान अनजान हैं। जी हाँ, स्पिरुलिना नामक शैवाल की खेती वह रास्ता है, जिससे किसानों के वारे-न्यारे हो सकते हैं। पर भारत में इसके बारे में 95 फीसदी लोगों को जानकारी ही नहीं है। ये बातें स्पिरुलिना फाउंडेशन के अध्यक्ष महेश और आर.वी. ने कही।

महेश पिछले डेढ़ दशक से स्पिरुलिना शैवाल की खेती कर रहे हैं और साथ ही इसे आमजन तक पहुँचाने के लिये तमाम कोशिशों में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि स्पिरुलिना हरे-नीले रंग का एक शैवाल है। इस शैवाल में करीब 60 फीसदी प्रोटीन होता है।

संयुक्त राष्ट्र ने 1974 में ही स्पिरुलिना को धरती के लिये ‘भविष्य का सर्वश्रेष्ठ आहार’ घोषित कर दिया था। भारत दुनिया में स्पिरुलिना का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। इसके एक ग्राम के सेवन से एक किलो फल और सब्जी के बराबर का पोषण मिलता है। महेश कहते हैं “यह अजब अन्तर्विरोध है कि इस पोषणयुक्त स्पिरुलिना का उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में होता है, बावजूद यह देश कुपोषण से जूझ रहा है।” यूनिसेफ के अनुसार, भारत में चार वर्ष से कम उम्र के 60 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।

दुनिया में कुपोषण के शिकार तीन बच्चों में से एक बच्चा भारत का है। देश में कर्नाटक पहला राज्य है जहाँ बाल पोषण योजना के अन्तर्गत 2016-17 के स्टेट बजट में घोषणा की गई कि स्पिरुलिना को पोषक आहार के रूप में कुपोषण से जूझ रहे लगभग 25,000 बच्चों को दिया जाएगा।

चेन्नई के पास नवाल्लोर गाँव में स्पिरुलिना की खेती करने वाली मणिमेखलई कहती हैं कि स्पिरुलिना वाकई पौष्टिक आहार है और इसका उपयोग कई दवाओं के निर्माण और सौन्दर्य-प्रसाधनों में भी किया जाता है। व्यावसायिक स्तर पर इसकी खेती धीरे-धीरे भारत के किसानों, विशेष रूप से तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक सहित देश के लगभग 15 राज्यों में फैली है।

स्पिरुलिना को खेती करने वाले चेन्नई के पुदुकोट्टै के किसान ने बताया कि भारत में किसानों को असमान मानसून के बीच स्पिरुलिना की खेती एक निश्चित बाजार और एक नियमित आय का वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराती है। स्पिरुलिना से प्रोटीन, आयरन, कॉपर और विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी3 बहुतायत में पाये जाते हैं। स्पिरुलिना में कैलोरी तो कम होती ही है साथ ही ओमेगा-6 और ओमेगा-3 फैटी एसिड की भी मौजूदगी है। स्पिरुलिना की इन तमाम खूबियों के बावजूद वयस्कों को इसका महज 4 ग्राम ही सेवन करना चाहिए।

स्पिरुलिना की खेती करने वाले तमिलनाडु के कांचिपुरम जिले के किसान करुप्पैया विजय कुमार कहते हैं कि 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में यह अच्छी तरह से बढ़ता है। इसे किसी भी सुविधाजनक आकार के सीमेंट या प्लास्टिक के टैंक में उगाया जा सकता है। टैंक का आकार 10X5 का होता है। एक किलोग्राम स्पिरुलिना के बीज के साथ 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट, 5 ग्राम सोडियम, 0.2 ग्राम यूरिया, 0.5 ग्राम पोटेशियम सल्फेट, 0.16 मैग्नीशियम सल्फेट, 0.052 मिली लीटर फास्फोरिक एसिड और 0.05 मिली लीटर फेरस सल्फेट पानी से भरे टैंक में मिलाए जाते हैं। इस पानी को डंडे की मदद से रोज हिलाया जाना चाहिए। इसे तैयार करने में एक हफ्ते का ही समय लगता है।

महेश कहते हैं कि आधुनिक बाजार ने स्पिरुलिना को सुपरफूड का नाम दिया है। इसके अलावा यह एक ऐसा फूड है जिसे हर कोई ले सकता है। इसमें किसी प्रकार की उम्र बाधा नहीं है।

तमिलनाडु कृषि विश्व विद्यालय के विज्ञानी एम.वो. गोपल ने बताया कि राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियाँ इसकी खरीद करती हैं। राज्य की ढाई से 3 हजार लघु उद्योग इकाइयाँ व 5-6 बड़ी कम्पनियाँ इस कार्य में जुटी हुई हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में स्पिरुलिना की बिक्री में कमी है। इसका कारण है कि बाजार में इससे मिलते-जुलते कई और उत्पाद आ गए हैं।

 

 

 

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