क्या दस साल बाद सूख जाएगी हेंवल नदी

18 Feb 2016
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नीरी ने वर्ष 2010 के अपने एक अध्ययन में हेंवल नदी के जलग्रहण क्षेत्र के लगभग सभी जलस्रोतों को प्रदूषित बताया है। इसी क्षेत्र में ढाँचागत विकास के बावजूद वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी पाई गई, मगर जल संसाधन साल-दर-साल सिकुड़ते ही चले गए। हेंवल नदी का कमाल है कि मौजूदा समय में प्रतिदिन लगभग 65 हजार ली. पानी पम्प होता है, जो प्रतिदिन लगभग एक लाख लोगो की प्यास बुझाने का काम कर रहा है।

उत्तराखण्ड में ऐसी छोटी-छोटी सैकड़ों नदियाँ हैं जो राज्य की गंगा यमुना जैसी नदियों को निरन्तर फीडबैक करती रहती हैं। ये सदानीरा नदियाँ ग्लेशियरों से नहीं अपितु प्राकृतिक जलस्रोतों से निकलती हैं जो कुछ ही दूरी पर एक छोटी नदी का रूप ले लेती हैं। इनमें से एक है ‘हेंवल नदी’। जो अपने मूल स्थान सुरकण्डा के पास पुजारगाँव से बहकर शिवपुरी के पास गंगा नदी में संगम बनाती है।

‘हेंवल नदी’ की विशेषता यह है कि अपने 42 किमी के बहाव क्षेत्र में हजारों लोगों की आजीविका का स्रोत बनकर बहती है। इस नदी की कहानी अपने आप में अद्भुत है। जहाँ इस नदी का पानी स्थानीय लोगों की आजीविका से जुड़ा है वहीं नेपाल से आये हुए मजदूरों के जीवन से भी इस नदी के पानी का अटूट रिश्ता दिखाई देता है। मगर वर्तमान में जिस तेजी से हेंवल नदी का पानी घट रहा है उससे नगदी फसलों पर आये दिन बुरा प्रभाव नजर आ रहा है। जिसका खामियाजा स्थानीय और नेपाली परिवारों को उठाना पड़ रहा है।

ज्ञात हो कि हेंवल नदी के 42 किमी के नदी क्षेत्र में सौ फीसदी नगदी फसल होती है। इस नगदी फसल के उत्पादन से सीधे-सीधे 1000 परिवार नेपाल के जुड़े हैं जो हेंवल नदी के आसपास के लगभग 1000 परिवारों को ही उनकी खेती का किराया देते हैं। अर्थात हेवल नदी के पानी का ही कमाल है कि दो-दो परिवारों की अजीविका इसी पानी से जुड़ी है। इन नेपाली परिवारों की तो इस नदी पर ही आजीविका टिकी है। इनके पास यहाँ नदी के आस-पास की सिंचित जमीन है जिसका वे स्थानीय लोगों को किराया भुगतान करते हैं। दूसरी तरफ वे पशुपालन से जुड़े हैं। ये परिवार नगदी फसल के साथ-साथ दूध बेचने का काम भी करते हैं।

हेंवल नदी के सूखने से इन परिवारों की आजीविका संकट में पड़ जाएगी। दूसरी ओर हेंवल नदी के किनारे-किनारे स्थानीय लोगों के ढाबे भी हैं। इन ढाबों में भी आगन्तुकों की पेयजल की आपूर्ति हेंवल नदी के पानी से होती है।

टिहरी जनपद के सुरकण्डा स्थित 2699 मी. की ऊँचाई पर पुजार गाँव में हेवल नदी का जलग्रहण क्षेत्र है तो 42 किमी का रास्ता तय करके घड़ीसेरा नामक तोक (शिवपुरी) के पास गंगा नदी में संगम बनाती है। इस अन्तराल में नदी क्षेत्र को तीन भागों में देखा जाता है। एक अध्ययन के मुताबिक 1965 के आँकड़े बताते हैं कि हेंवल नदी क्षेत्र के 75.84 वर्ग क्षेत्रफल में कृषि कार्य होता था, जबकि 119.5 वर्ग क्षेत्रफल में सघन वन थे, मात्र 5.63 वर्ग क्षेत्रफल ही बंजर भूमि का था।

यदि वर्ष 2014 के आँकड़ों पर गौर फरमाएँ तो यहाँ पर कृषि क्षेत्र बड़ी मात्रा में घटा है यानि 56.08 वर्ग क्षेत्रफल में कृषि का क्षेत्र रह गया है। 5.63 वर्ग क्षेत्रफल में बंजर भूमि बढ़ी है और वन क्षेत्र तो 119.5 वर्ग क्षेत्रफल से बढ़कर 129.67 वर्ग क्षेत्रफल हो गया है। फलस्वरूप इसके यहाँ पर आबादी बड़ी मात्रा में बढ़ी है। जबकि हेंवल नदी का पानी भी बड़ी तेजी से घटा है।

हेंवल नदीकुल मिलाकर जिस तरह से आँकड़े बता रहे हैं उस तरह से नदी के संरक्षण बाबत लोगों ने कुछ भी काम नहीं किया है, सिवाय हेंवल नदी के पानी को उपयोग में लाने के। हेंवल नदी के पानी के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिये लोगों के पास कोई योजना नहीं है।

आने वाले 10 वर्षों में हेंवल नदी का पानी बहेगा भी की नहीं यह समय के गर्त में है। अब वैज्ञानिकों का दावा है कि आगामी 10 वर्षों में हेंवल नदी सूख जाएगी और 288.95 वर्ग क्षेत्रफल विरान हो जाएगा। यही नहीं इस क्षेत्र में पड़ने वाले लगभग 150 गाँवों की आबादी बिन पानी कैसे प्रवास कर पाएगी यह बड़ा सवाल आने वाले समय में कौतुहल का विषय बनेगा।

उल्लेखनीय हो कि वर्ष 1986 में पर्वतीय परिसर रानीचौरी के लिये पहली बार हेंवल नदी से पानी पम्प किया गया था। तब तक हेवल नदी का जलस्तर इतना ऊँचा था कि आस-पास के लोग नदी के पानी को एक तरफ सिंचाई के काम में लाते थे तो दूसरी तरफ नदी में मछली पकड़ने का काम करते थे।

वर्तमान में नदी की हालात इतनी कमजोर हो चुकी है कि खाड़ी नामक स्थान से ऊपर 15 किमी क्षेत्र में मछली का नामो-निशान ही समाप्त हो चुका है और सिंचाई काम भी बड़ी मशक्कत से ही हो पाता है। फिर भी हेंवल नदी का कमाल है कि मौजूदा समय में लगभग 65 हजार ली. पानी पम्प होता है जो क्रमशः बादशाहीथौल, रानीचौरी, डार्गी, वीड़, साबली, थान, पटोड़ी, चोपड़ियाली, बिड़कोट, लवाधार, मातली, नारंगी आदि गाँव व बाजारों की पेयजल की आपूर्ति करता है। यानि यूँ कह सकते हैं कि प्रतिदिन हेंवल नदी लगभग एक लाख लोगों की प्यास बुझाने का काम कर रही है।

बता दें कि टिहरी बाँध बनने के दौरान से ही इस हेंवलघाटी में विकास ने तेज रफ्तार पकड़ी है। जिसमें सर्वाधिक सड़कों का निर्माण, व्यक्तिगत और संस्थागत इमारतों का निर्माण बड़ी तेजी से हुआ है। इसके अलावा हेंवल घाटी के किसानों ने नेपाली मजदूरों के सह पर कृषि कार्य को जैविक खेती से बदलकर रासायनिक खेती में तब्दील किया।

संकट में हेंवल नदी का अस्तित्वइन खेतों में क्षणिक समय के लिये उत्पादों में बढ़ोत्तरी तो हुई मगर रासायनिक खादों ने जैविक खेती को इतना कमजोर कर दिया कि खेती की उपजाऊ क्षमता ही समाप्त हो गई है। रासायनिक खादों का पानी में घुलने के कारण जलस्रोतों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। यही वजह है कि नीरी ने वर्ष 2010 के अपने एक अध्ययन में हेंवल नदी के जलग्रहण क्षेत्र के लगभग सभी जलस्रोतों को प्रदूषित बताया है।

कौतुहल का विषय यह है कि इतने ढाँचागत विकास के बावजूद वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी पाई गई मगर जल संसाधन साल-दर-साल सिकुड़ते ही चले गए। हेंवल नदी में पानी की मात्रा घटने के कारण क्षेत्र में पशुपालन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है अब तो गाँव में मात्र एक या एक जोड़ी बैल ही बड़ी मुश्किल से नजर आते हैं।

आँकड़े गवाह हैं कि नदी क्षेत्र जो 1965 में 3.39 वर्ग मी. था वह 2014 में 2.39 वर्ग मी. ही रह गया है। इसी तरह 16.13 वर्ग मी. झाड़ी वाला क्षेत्र भी घटकर 12.93 वर्ग मी. ही रह गया है। 12.61 वर्ग मी. नदी क्षेत्र मौजूदा समय में 17.35 वर्ग मी. बढ़ गया है। कुल मिलाकर 1965 से लेकर अब तक जो भी अध्ययन हुए हैं वे यह नहीं बता पाये कि हेंवल नदी का पानी किन-किन कारणों से घटा है और हेंवल नदी के पानी को कैसे पुनर्जीवित किया जाये यह सवाल स्थानीय लोगों को बार-बार कचोट रहा है।

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