Pesticides in Vegetables
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खाने में जहर घोलते कीटनाशक

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खाने में जहर का असर हर ओर दिखने लगा है। जिन व्यक्तियों ने कभी धूम्रपान नहीं किया, वे कैंसर जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं। किडनी और लीवर फेल्योर के केस भी बढ़ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इसे रोका नहीं जा सकता लेकिन इसमें बाधक राज्य सरकारों की लाइसेंसिंग प्रक्रिया है। कीटनाशक बेचने का लाइसेंस किसी कृषि स्नातक को नहीं वरन किसी भी कम पढ़े-लिखे व्यक्ति को देने की व्यवस्था के चलते खाने-पीने की चीजें दूषित हो रही हैं।किसान अपनी फसल में रोग नियंत्रण के लिए 80 फीसदी से ज्यादा दुकानदारों पर निर्भर रहते हैं। दुकानदार त्वरित असर करने के लिए ज्यादा से ज्यादा जहरीली दवाएं देते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह दवा बैगन या शीघ्र बाजार में जाने वाली सब्जियों पर छिड़की जाएगी और दवा का असर हफ्तों तक रहेगा।

सब्जियों पर छिड़की जाने वाली दवाएं किन रोगों को फैलाती हैं

1.

डीडीटी-

क्रोनिक लीवर डैमेज, हेपेटाइटिस, ब्रेस्ट कैंसर, रक्त कैंसर, नॉन हॉकिंस लिम्फोमा आदि

2.

इंडोसल्फॉन-

प्रोस्टेट व वृषण कैंसर, किडनी और लीवर पर प्रभावित

3.

एल्ड्रिन-

लंग्स कैंसर व लीवर से जुड़ी बीमारियां

4.

हेप्टाक्लोर-

रिप्रोडक्टिव डिसऑर्डर व रक्त विकार

5.

लिंडेन-

ब्रेस्ट कैंसर, एलर्जिक डर्मेटाइटिस, क्रॉनिक लीवर डैमेज, लिम्फोम आदि

6.

प्रोफिनाफोस-

तंत्रिका तंत्र से जुड़ी सास्याएं

7.

फोरएट-

मानसिक एवं मांशपेशियों से जुड़े विकार

8.

मैलाथियोन-

नेत्ररोग, एलर्जी, व्यवहार में बदलाव, गर्भस्थ शिशु के दिमाग पर प्रभाव

9.

क्लोरोपॉयरीफॉस-

मानसिक विकार, जिड़चिड़ापन आदि

10.

डाइमिथोएट-

गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करता है।

11.

कार्बोफ्यूरॉन-

मानव और पशु के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।

12.

2, 4 डी-

लिम्फोमा व कैंसर की दर दोगुनी हो जाती है।

जानने योग्य तथ्य

1. कीटनाशक व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करते हैं। इनमें घरेलू मच्छरमार दवाएं भी शामिल हैं।

2. शोध परिणाम बताते हैं कि कीटनाशकों के प्रभाव के चलते यदि किसी व्यक्ति को लगातार केवल बैगन और भिंडी की सब्जी पांच साल तक खिलाई जाए तो उसकी श्वांस नली बंद हो सकती है। बैगन को चमकीला बनाए रखने के लिए उसे फोलिडन नामक कीटनाशक के घोल में डुबोया जाता है। इस दवा से फसल के कीड़े भी मारे जाते हैं।

3. भारत में प्रयोग की जाने वाली 67 कीटनाशक दवाएं विदेशों में निषिद्ध हैं। इनका उत्पादन ही बंद है।

4. सूक्ष्म मात्रा में खाद्य वस्तुओं में मिला कीटनाशक कोशिकाओं के सृजन और संवर्धन को प्रभावित करता है।

5. 2012 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष 25 लाख लोग कीटनाशकों के दुष्प्रभाव के शिकार होते हैं, जिनमें से करीब पांच लाख काल के गाल में समा जाते हैं।

6. बीएचसी रसायन, डीडीटी से ढाई गुना जहरीला है लेकिन इसका प्रयोग गेहूं भंडारण में होता है। इससे कैंसर और नपुंसकता बढ़ती है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के सर्वेक्षण के अनुसार, एक भारतीय अपने स्वादिष्ट भोजन के साथ हर दिन 0.27 मिलीग्राम डीडीटी भी अपने पेट में डाल रहा है। इससे भारतीयों के शरीर के ऊतकों में एकत्र हुए डीडीटी का स्तर 12.8 से 31 पीपीएम यानी विश्व में सबसे ज्यादा है।

7. गेहूं में कीटनाशक का स्तर 1.6 से 17.4 पीपीएम, चावल में 0.8 से 16.4, दालों में 2.9 से 16.9, सब्जियों में 5 एवं आलू में 68.5 पीपीएम डीडीटी पाया गया।

8. महाराष्ट्र में डेयरियों पर बोतलबंद दूध के 90 प्रतिशत नमूनों में 4.8 से 6.3 पीपीएम तक डिल्ड्रीन पाया गया।

क्या करें किसान

कृषि विशेषज्ञों की माने तो किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कि फसल में पांच से 10 प्रतिशत कीट प्रभाव न दिखे। दवाओं के डिब्बों पर खतरे वाले निशान के पास एक चौकोर खाने के आधे हिस्से में लाल, नीला, हरा और पीला निशान होता है।

इनमें से हरे और पीले रंग के निशान वाले रसायनों का प्रयोग करें। इस तरह के जहर का असर फसल में लंबे समय तक नहीं रहता। फसलों के साथ मित्रकीटों की संख्या बढ़ाने वाले गेंदा आदि फूलों को मेंड़ों पर लगाएं।

विशेषकर सब्जियों में डाइक्लोरोवास जैसी गैस बनाने वाली दवाओं का प्रयोग करें, जिनका असर कीड़े को मारने के साथ चंद घंटों में खत्म हो जाता है। साइपर मैथ्रिन, क्लोरोपॉयरीफॉस जैसे मिक्चरों का प्रयोग कतई न करें।

इनका असर हफ्तों तक रहता है। इन्हें सब्जियों पर छिड़केंगे तो खाने वालों को भी धीमा जहर पहुंचेगा।

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