खेती का स्वरूप बदलती खेत तलाई योजना


राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत राजस्थान के चयनित जिलों में सामुदायिक जल स्रोत निर्माण स्कीम तथा राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत खेत तलाई (फार्म पोंड) स्कीम शुरू की गई है। ये दोनों स्कीमें सूखे की कमी से ग्रसित जिलों में खरीफ एवं रबी की फसलों में फसल अवधि के मध्य या अंत में एक अथवा दो बार जीवन-रक्षक सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने में प्रभावकारी सिद्ध हो रही हैं। इन योजनाओं से कृषकों को न केवल सिंचाई सुविधा प्राप्त हुई है, बल्कि इनसे खेतों तथा उनके आसपास व्यर्थ बहकर चले जाने वाला वर्षा जल संरक्षित हो जाता है। कच्ची खेत तलाइयों से भूमिगत जल-स्तर में भी वृद्धि होती है। पर्यावरण में सुधार तथा मवेशियों के लिए पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता बनाए रखने में ये कृत्रिम जलाशय कारगर स्रोत सिद्ध हो रहे हैं।राजस्थान में वर्षा की कमी के कारण कई जिलों में प्रायः सूखे की स्थिति बनी रहती है। जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है, वहां भी बरसाती पानी बहकर व्यर्थ चला जाता है। अल्प वर्षा, अवर्षा, खंड वर्षा तथा अतिवर्षा जैसी असमान परिस्थितियों में प्रदेश के किसान या तो प्रकृति पर निर्भर रहते हैं या निजी जल स्रोतों पर। राज्य में भूमिगत जल-स्तर का निरंतर गिरते जाना अत्यंत चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐसे में वर्षा जल को संग्रहित कर उसके विवेकपूर्ण तथा मितव्ययितापूर्ण उपयोग की महत्ती आवश्यकता महसूस की गई है।

राज्य के कृषि विभाग ने किसानों के हितार्थ सिंचाई संबंधी अनेक योजनाएं क्रियान्वित की है। इनमें बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, कूप पुनर्भरण, पाइप लाइन, खेत तलाई एवं सामुदायिक जल स्रोत निर्माण आदि योजनाएं जल संरक्षण, जल के कुशलतम उपयोग, उत्पादन वृद्धि तथा श्रम एवं बिजली की बचत के उद्देश्य से बहुत कारगर साबित हुई है। सिंचाई संबंधी इन स्कीमों को अपने खेतों में काम में लेने वाले कृषकों को इकाई लागत पर 50 से 70 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है।

kheti ka swarup badalati khet talaee yojanaखेत तलाई स्कीम राज्य के उन जिलों में लागू की गई है, जिनमें भू-जल स्तर काफी नीचे चला गया है या नहरी सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऐसे समस्याग्रस्त जिलों में प्रदेश के नौ जिले यथा कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर एवं भीलवाड़ा शामिल किए गए हैं। कच्चे फार्म पोंड का निर्माण कृषकों द्वारा उनकी निजी खातेदारी की भूमि पर करवाकर उनमें संग्रहित जल का बोई गई फसलों में जीवन-रक्षक सिंचाई के रूप में उपयोग किया जाता है। खेत तलाई के निर्माण हेतु खेत का निचला बिंदु होना चाहिए, जिससे खुदाई के लिए कम से कम मेहनत करनी पड़ी। फार्म पोंड के लिए काली व भारी रचना की मिट्टी वाली भूमि सर्वोत्तम मानी गई है, क्योंकि इसमें पानी का रिसाव बहुत कम होता है। साथ ही स्थान का चयन करते समय इस बात का ध्यान भी रखना होता है कि भूमि की सतह कठोर हो। फार्म पोंड का निर्माण बैलगाड़ी, ट्रैक्टर या बुलडोजर आदि को उपयोग में लाकर या काश्तकार स्वयं मेहनत करके भी कर सकते हैं। पानी के भराव के लिए इनलेट तथा अधिक पानी की निकासी के लिए आउटलेट की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि अधिक पानी भर जाने पर फार्म पोंड टूटे नहीं।

आकार-प्रकार


बूंदी में कृषि विभाग के सहायक निदेशक श्री गजानंद यादव ने बताया कि खेत तलाई का निर्माण किसान को अपने खेत में करना होता है। तलाई की लंबाई-चौड़ाई कृषक अपनी सुविधानुसार रख सकता है, लेकिन गहराई तीन मीटर से कम नहीं होनी चाहिए। योजनान्तर्गत चार आकार की तलाइयां बनाई जा सकती है। पहला साइज 25 गुना 25 गुना 3 मीटर, दूसरा साइज 25 गुना 25 गुना 4 मीटर, तीसरा साइज 30 गुना 30 गुना 3 मीटर तथा चौथा साइज 30 गुना 30 गुना 4 मीटर निर्धारित है। यह आकार कृषकों की सुविधा के हिसाब से रखा गया है। कच्चे फार्म पोंड रेतीली मिट्टी वाली भूमि पर सफल नहीं होते। काली चिकनी मिट्टी पर बने फार्म पोंड पानी के ठहराव की दृष्टि से कामयाब माने गए हैं।

इकाई लागत


खेत तलाई की निर्माण लागत उनके साइज के हिसाब से नाबार्ड द्वारा तय कर दी गई है। यह लागत राशि 25 गुना 25 गुना 3 मीटर साईज के पौंड के लिए 50 हजार, 25 गुना 25 गुना 4 मीटर के आकार के पोंड के लिए 68 हजार तथा 30 गुना 30 गुना 3 मीटर के पोंड के लिए 76 हजार तथा 30 गुना 30 गुना 4 मीटर के लिए 86 हजार रुपए निर्धारित है। राजस्थान सरकार द्वारा खेत तलाई स्कीम में खेत तलाई का निर्माण करने वाले कृषकों को लागत राशि का 50 प्रतिशत या अधिकतम 30 हजार रुपए में से जो कम हो, अनुदान दिया जाता है।

जल संग्रहण


टोंक जिले के सहायक निदेशक कृषि (विस्तार) श्री आरसी जैन ने बताया कि पहली साइज यानी 25 गुना 25 गुना 3 क्यू. मीटर आकार के फार्म पोंड में एक लाख 87 हजार 500 लीटर वर्षा जल संग्रहित होगा, जो किसी भी फसल में एक हेक्टेयर भूभाग में दो बार पिलाई के लिए लगभग पर्याप्त होता है। दूसरे साइज अर्थात 25 गुना 25 गुना 4 मीटर आकार के पोंड में करीब ढाई लाख लीटर पानी संग्रहित होगा, जो ढाई हेक्टेयर भूमि पर दो बार पानी के लिए पर्याप्त होगा। इसी प्रकार इनसे बड़े आकार के फार्म पोंड से और अधिक रकबा सिंचित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि खेत तलाई का निर्माण इस प्रकार किया जाए, जिससे उसमें आसपास की जमीन का बरसाती पानी आकर एकत्रित हो सके। जिन इलाकों में दिन में बिजली नहीं आती हो, उनमें रात्रि के समय लाइट उपलब्ध रहने पर फार्म पोंड में नलकूप या किसी अन्य स्रोत से पानी भर लिया जाए और सुविधानुसार दिन के समय खेतों में पिलाई की जा सकती है।

काश्तकारों की जुबानी


अमीनपुरा (टोंक) के कृषक किशन जाट ने इस वर्ष 37 गुना 19 गुना 3 क्यू मीटर आकार का फार्म पोंड बनाया। उन्होंने रबी में 12 बीघा में सरसों बोई थी, जिसमें फार्म पोंड से दो बार पिलाई करने से दुगुनी पैदावार ले ली। पहले उनके खेत में प्रति बीघा दो क्विंटल पैदावार होती थी, जो इस बार सिंचाई सुविधा मिल जाने से दुगुनी यानी चार क्विंटल बैठी। अर्थात एक ही वर्ष में तलाई निर्माण में हुआ खर्चा वसूल हो गया। इससे पहले किशन जाट की कृषि भूमि पर सिंचाई का कोई साधन ही नहीं था। ग्राम पाडली के रामप्रसाद मीणा ने अपने खेत में 74 गुना 19 गुना 3 क्यू. मीटर आकार का फार्म पोंड बनाया, जिससे प्रतिवर्ष करीब डेढ़ लाख रुपए का अतिरिक्त लाभ ले रहे हैं। रामप्रसाद ने बताया कि उनके 25 बीघा के खेतों में पहले वह सरसों की खेती करते थे, जो प्रति बीघा डेढ़ क्विंटल बैठती थी, जबकि फार्म पोंड बन जाने के बाद सिंचाई की सुविधा मिल जाने से प्रति बीघा 5-6 क्विंटल बैठ जाती है। सरसों के अलावा अब वह गेहूं की पैदावार भी लेने लगे हैं, जो प्रति बीघा 14-15 क्विंटल तक हो रही है।

योजनान्तर्गत अलीमपुरा की महिला कृषक लाड कंवर ने भी अपने 40 बीघा के खेत में 67 गुना 19 गुना 3 मीटर आकार का फार्म पोंड बनवाया। यह महिला कृषक पूर्व में सरसों की पैदावार ही लेती थी, जो प्रति बीघा 2 क्विंटल होती थी, जबकि अब यह बढ़कर प्रति बीघा 5-6 क्विंटल तक होने लगी है। पहले गेंहू की पैदावार नहीं होती थी, जबकि अब प्रति बीघा 12 से 15 क्विंटल तक गेहूं का उत्पादन भी हो रहा है। लाड कवंर ने 40 बीघा में से 32 बीघा में सरसों तथा 8 बीघा में गेहूं बोए हैं।

ग्राम पाडली के ही कृषक भरतलाल मीणा ने अपने 20 बीघा के खेत में इस वर्ष 12 बीघा में सरसों तथा 8 बीघा में गेहूं बोए हैं। इनके पास भी सिंचाई का कोई साधन नहीं था। फार्म पोंड स्कीम के तहत इन्होंने 30 गुना 30 गुना 3 मीटर आकार का फार्म पोंड बनवाया और उससे अपने खेतों में दो बार पिलाई की। नतीजा वही रहा जो दूसरे कृषकों के साथ हुआ। भरतलाल पहले प्रति बीघा दो क्विंटल पैदावार लेते थे जो अब 5 क्विंटल हुई। उन्होंने भी इस वर्ष पहली बार गेहूं भी बोया, जो प्रति बीघा 12 क्विंटल तक हुआ।

इनकी भी बदली तकदीर


बूंदी जिले के नैनवां उपखंड क्षेत्र के कई काश्तकारों ने अपने खेतों में सिंचाई सुविधा प्राप्त करने के लिए खेत तलाइयों का निर्माण करवाया है। इस उपखंड क्षेत्र में भूगर्भ में कहीं 800 मीटर की गहराई तक पानी नहीं, तो कहीं 150 से 200 फीट पर ही अनुपयोगी पानी निकलता है। सिंचाई के लिए बांध और नहरें भी नहीं है। ऐसे में कई किसानों ने अपने खेतों में बरसाती पानी के संग्रहण एवं संरक्षण के लिए खेत तलाइयां बनवा ली हैं।

धानुगांव के किसान सुर्जन, उर्जन एवं भावपुरा के गोपाल ने बताया कि सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें दूर से पानी लाना पड़ता था। इस पर 600 से 800 लीटर डीजल खर्च हो जाता था। उत्पादन भी प्रति बीघा एक क्विंटल ही होता था, लेकिन पोंड में संग्रहित पानी से सिंचाई करने में मात्र 60 से 80 लीटर डीजल खर्च हुआ। समय भी कम लगा और उत्पादन भी तीन गुना यानी तीन क्विंटल प्रति बीघा हुआ। साथ ही भूमि खराब होने का खतरा भी टल गया।

लाभार्थी कृषक सुर्जन ने बताया कि उसने अपने खेत में पोंड बनाकर बरसाती पानी संग्रहित करके 25 बीघा भूमि में सिंचाई की। कम लागत में तीन गुना सिंचाई कर ली और भूमि की उर्वरक क्षमता में वृद्धि हुई। सुर्जन का अनुसरण कर क्षेत्र के करीब दो दर्जन गांवों के किसान ने अपने खेतों में कच्चे फार्म पोंड बनवाए हैं।

सामुदायिक जल स्रोत


व्यक्तिगत खेत तलाई स्कीम के अलावा सामुदायिक जल स्रोत स्कीम भी कृषकों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। सामुदायिक फार्म पोंड (जलाशय) पक्की संरचना होती है, जिसकी संपूर्ण इकाई लागत 10 लाख रुपए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत अनुदान स्वरूप दी जाती है। इन सामुदायिक जल स्रोतों के सार-संभाल की जिम्मेदारी एवं उपयोग का अधिकार कृषक समूह का ही होता है। प्रत्येक कृषक समूह में दस किसान सम्मिलित हैं। इस स्कीम में किसानों को स्वयं-सहायता समूह बनाना होता है। कृषक समूह के पास एक स्थान पर 10 हेक्टेयर भूमि होना जरूरी है। कृषक समूह में न्यूनतम कृषक संख्या पांच रहनी चाहिए। कृषक समूह को जल स्त्रोत निर्माण के बाद वर्षा जल संचित होने पर कम से कम 4 हेक्टेयर में ड्रिप के साथ फलोद्यान भी लगाने होते हैं।

ये हैं लाभार्थी समूह


सामुदायिक जल स्रोत स्कीम में बूंदी जिले में 19 काश्तकार समूहों के 190 कृषक लाभान्वित हुए हैं। इस स्कीम से वर्ष 2008-09 में लाभार्थी समूहों में हनुवंतपुरा, मूंडली, चैनपुरिया, बडगांव, नैनवां, लालगंज एवं मानपुरा के समूह, वर्ष 2009-10 में जगमूंडा, मीणों की झौंपड़िया (जैतपुर), उगेन, नाहरगंज एवं भावपुरा तथा प्रारंभिक वर्ष 2007-08 में काछोला, बटावदी, नयागांव, बीजलवा, जजावर तथा कोलासपुरा के कृषक समूह शामिल रहे। मूंडली के कृषक समूह के अध्यक्ष श्री बजरंग लाल मीणा ने बताया कि उनके खेतों में सिंचाई के लिए निजी जल स्रोत होते हुए भी उन्होंने आसपास के दस किसानों का एक समूह बनाकर सामुदायिक जल संरक्षण संरचना (वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर) का निर्माण करवाया है। कृषि विभाग ने प्रत्येक फार्म पोंड के लिए 10 लाख रुपए का अनुदान बागवानी मिशन योजनान्तर्गत उपलब्ध करवाया है। फार्म पोंड 42 गुना 42 मीटर साइज में है, जिसमें एकत्रित पानी से कृषक समूह के काश्तकारों की करीब 10 हेक्टेयर कृषि भूमि एवं बगीचों में जीवन-रक्षक सिंचाई सुविधा प्राप्त की जा रही है।

निःसंदेह राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत फार्म पोंड स्कीम तथा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सामुदायिक फार्म पोंड स्कीम कृषकों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। इन योजनाओं में निर्मित पोंड (तलाइयों) में किसान बरसाती पानी को संग्रहित कर लेते हैं, जो वैसे भी उपजाऊ होता है। इनसे विपरीत परिस्थितियों में रबी एवं खरीफ फसलों में सिंचाई कर बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है। कच्चे फार्म पोंड तो खेत के आसपास का जल स्तर भी बढ़ाते हैं। पोंड से सिंचाई में यदि स्प्रिंकलर सेट का उपयोग किया जाए तो डेढ़ गुना भूमि में सिंचाई सुविधा प्राप्त की जा सकती है। बरसात के पानी का सिंचाई कार्यों में बेहतर उपयोग करने तथा गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में उपयोग करने की वैज्ञानिक सोच की सार्थकता को सिद्ध करने वाली ये योजनाएं खासतौर से छोटे एवं मझोले कृषकों के लिए वरदान साबित हो रही हैं।

(लेखक सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी हैं।)
ईमेल: cprbun@hotmail.com

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