खतरे में हैं प्रवासी पक्षी


शायद ही दुनिया का कोई आबाद कोना हो, जहाँ किसी न किसी तरह के पंछी न होते हों। यहाँ तक कि बर्फीला साइबेरिया भी पंछियों का साक्षी है। ये पंछी समय, काल और परिस्थिति के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं। अपना जीवन बचाने के लिये ये अपने मूल स्थान से हजारों किलोमीटर दूर जाने से भी परहेज नहीं करते। ऐसी लम्बी यात्राएँ ये करते कैसे हैं, यह आज भी एक रहस्य है।

खतरे में प्रवासी पक्षी

कौन हैं प्रवासी पक्षी


प्रवासी पक्षी वे होते हैं, जो अपने इलाके में जीवन जीने की कठिनाई को देखकर भोजन-पानी की तलाश में थोड़े समय के लिये दूसरी जगह कूच कर जाते हैं। वे परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर अपनी पुरानी जगह लौट भी आते हैं। कई परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि ये पंक्षी अपने पुराने निवास स्थान पर अपने पुराने घोंसले में लौट आते हैं। चिड़ियों के पैरों में छल्ले पहना कर उनके आने-जाने की मॉनीटरिंग भी की गई है।

कौन से पंछी आते हैं


भारत आने वाले पक्षियों में साइबेरिया से पिनटेल डक, शोवलर, डक, कॉमनटील, डेल चिक, मेलर्ड, पेचर्ड, गारगेनी टेल तो उत्तर-पूर्व और मध्य एशिया से पोचर्ड, ह्विस्लिंग डक, कॉमन सैंड पाइपर के साथ-साथ फ्लेमिंगो जैसे कई पक्षी आते हैं। भारतीय पक्षियों में शिकरा, हरियल कबूतर, दर्जिन चिड़िया, पिट्टा, स्टॉप बिल डक आदि प्रमुख हैं।

उड़ान कैसी-कैसी


अपनी यात्रा के दौरान हर तरह के पंक्षी अपने हिसाब से उड़ते हैं और उनकी ऊँचाई भी वे अपने हिसाब से निर्धारित कर लेते हैं। हंस जैसे पक्षी करीब 80 किलोमीटर प्रति घण्टे के हिसाब से भी उड़ान भरते हैं, तो जो पंछी बिना रुके यात्रा करते हैं, उनकी गति मुश्किल से 10 से 20 किलोमीटर प्रति घण्टे तक होती है। वे कछुए जैसी चाल से उड़ते हैं, परन्तु अपने गन्तव्य पर पहुँचकर ही दम लेते हैं। उदाहरण के लिये ईस्टर्न गोल्डन प्लॉवर लगातार उड़कर अपने निवास स्थान से भारत तक की 3200 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी बिना रुके पूरी करता है। इस दौरान वह समुद्र भी पार करता है। पहाड़ी इलाकों में पंछी कई बार एवरेस्ट से भी ज्यादा ऊँचाई पर उड़ते हैं, वहीं समुद्री इलाके में वे बेहद नीची उड़ान भरते हैं।

क्यों छोड़ते हैं घर


प्रतिकूल मौसम में दाना-पानी और आश्रय की तलाश इन पंछियों को दूसरी जगह जाने को मजबूर कर देती है। भारतीय उपमहाद्वीप पक्षियों के लिये बहुत अच्छी जगह है। यहाँ खाने-पीने की कमी नहीं है। अपने इलाके को लेकर ये पक्षी संवेदनशील होते हैं। भले ही वे करीब छह मास बाहर बिताते हैं, परन्तु जब ये अपने घर लौटते हैं, तब वहीं अंडे देते हैं।

रास्ते का निर्धारण


पक्षी विज्ञानी वर्षों से शोध कर रहे हैं, परन्तु आज तक वह यह पता लगाने में असफल रहे हैं कि पक्षियों को सही रास्ते का पता कैसे चलता है। पहले वयस्क पक्षी घर लौटते हैं, फिर मादाओं की बारी आती है और फिर बच्चे घर पहुँचते हैं। सर्दियों में वे फिर अपना घर छोड़कर जब नए स्थान की ओर चलते हैं, तो क्रम बदल जाता है। शायद अभिमन्यु की कथा इन बच्चों पर भी लागू होती है। माना जाता है कि इन रास्तों के बारे में बच्चों को जन्मजात पता होता है।

रूठ गए साइबेरियन क्रेन


एक समय था, जब केवलादेव बर्ड सेंक्चुअरी में 200 से ज्यादा साइबेरियन क्रेन आकर धमाल मचाते थे। पिछले 11 वर्षों से साइबेरियन क्रेन भारत से रूठ गए हैं। इसका मुख्य कारण है कि इनकी भारत यात्रा की चेन टूट गई है। अर्थात जो क्रेन भारत का रास्ता जानते थे, वे सभी युद्धरत अफगानिस्तान क्षेत्र में मारे जा चुके हैं। अब बाकी क्रेन भारत की बजाय कहीं और जाते हैं। पूरे विश्व में अब केवल 3200 साइबेरियन क्रेन बचे हैं और इनके विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। अब उम्मीद यही है कि शायद कभी कोई साइबेरियन क्रेन भूले-भटके भारत आ जाए, तो फिर से उनकी चेन बन जाए। तब तक तो हम बाट जोहते रहेंगे।

खतरे में हैं प्रवासी पक्षी

कम हो रहे हैं प्रवासी पक्षी


साइबेरिया से भारत की तरफ आने वाले पंछियों का रास्ता आजकल बेहद अव्यवस्थित है। यह रास्ता शिकार के लिये भी प्रसिद्ध रहा है। इस रास्ते में रूस के बर्फीले प्रदेश के साथ-साथ ईरान, इराक, पाकिस्तान के साथ युद्धग्रस्त अफगानिस्तान भी आता है। यहाँ उनका खूब शिकार होता है। वाइल्ड लाइफ एक्ट, 1972 के अन्तर्गत प्रवासी पक्षियों को मारना जुर्म है परन्तु इनका खुलेआम शिकार होता है।

शिकारियों के निशाने पर


साइबेरिया से अफ्रीका जाने वाले हजारों प्रवासी पक्षी हर साल नागालैंड से गुजरने के दौरान शिकारियों का शिकार बन जाते हैं। ‘कंजर्वेशन इंडिया’ की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एमर फॉल्कन, एक संरक्षित प्रजाति है। जब इस प्रजाति के पक्षी प्रवासन काल के दौरान साइबेरिया से उड़कर अफ्रीका की ओर रुख करते हैं, तो नागालैंड से गुजरने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये उनका शिकार किया जाता है। रिपोर्ट में आकलन किया गया है कि प्रवास काल के चरम पर होने के दौरान बिक्री और मांसाहार के लिये रोजाना 12 हजार से 14 हजार पक्षियों को मार दिया जाता है।

लाखों में शिकार


रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक वर्ष 1,20,000 से 1,40,000 प्रवासी पक्षियों को साइबेरिया से अफ्रीका जाने के दौरान नागालैंड में शिकार बना लिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एमर फॉल्कन जैसे संरक्षित पक्षियों का दुनिया भर में सबसे अधिक नागालैंड में शिकार किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार जब प्रवासी पक्षी देर शाम जलाशयों के किनारे बसेरा करते हैं या फिर जल्द सुबह उड़ान भरने की तैयारी करते हैं, तो शिकारी जलाशयों के नजदीक लगाए हुए जालों को खोल देते हैं, जिनमें ये पक्षी फँस जाते हैं। इन पक्षियों को मांसाहार के अलावा स्थानीय बाजार में जिन्दा बेचने के लिये पकड़ा जाता है।

सुरक्षा की माँग


एमर फॉल्कन पक्षी बड़ी संख्या में साइबेरिया से उड़कर अक्टूबर माह में उत्तरी भारत से गुजर कर सोमालिया, केन्या और दक्षिणी अफ्रीका तक पहुँचते हैं। गौरतलब है कि एमर फॉल्कन उन चुनिन्दा पक्षियों में शामिल हैं, जो प्रवास के लिये बेहद लम्बी दूरी की यात्राएँ तय करते हैं। यह पक्षी एक साल में लगभग 22 हजार किलोमीटर की यात्रा तय करता है। एमर फॉल्कन को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और प्रवासी प्रजाति समझौते के तहत संरक्षित घोषित किया गया है।

इन प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के बाबत पर्यावरणविदों ने केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्री को पत्र लिखा है। पत्र में केन्द्र और नागालैंड राज्य सरकार को प्रवासी पक्षियों की रक्षा के लिये तात्कालिक कदम उठाने और स्थानीय समुदाय में जागरूकता लाने के प्रयास करने की अपील की गई है।

सम्पर्क सूत्र :


श्री नरेन्द्र देवांगन, नरेन्द्र फोटो कॉपी, पोस्ट-खरोरा 493 225, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़) [मो. : 09424239336; ई-मेल : narendra_khr@rediffmail.com]

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