खतरे में नैनीताल

20 Sep 2018
0 mins read
नैनीताल में बढ़ता भूस्खलन
नैनीताल में बढ़ता भूस्खलन
नैनीताल में बढ़ता भूस्खलन (फोटो साभार - अमर उजाला)नैनीताल के जंगल को तेजी से सीमेंट और कंक्रीट में बदलने से उसकी परिस्थितिकी भी तेजी से बदल रही है। परिस्थितिकी के इसी बदलाव का असर उसकी प्रसिद्ध झील पर पड़ रहा है। नैनीताल में स्थित नैनी मन्दिर और वहाँ के ताल (झील) के कारण ही नैनीताल नाम अस्तित्व में आया है। नैनी मन्दिर को भले ही फिलहाल कोई खतरा न हो, लेकिन उसके ताल पर पिछले कई वर्षों से खतरा मँडरा रहा है। जब ताल का अस्तित्व खतरे में हो तो नैनीताल पर खतरा खुद-ब-खुद पैदा हो जाता है।

गत 18 अगस्त, 2018 की शाम को लगभग 5ः30 बजे नैनीताल के लोअर माल रोड का लगभग 25 मीटर हिस्सा देखते-ही-देखते भूस्खलन के कारण ताल में डूब गया। उस दिन सवेरे ही सड़क का लगभग 50 मीटर हिस्सा झील की ओर झुक गया था, जिसके बाद लोकनिर्माण विभाग सड़क की मरम्मत में लग गया था। जहाँ सड़क का हिस्सा झुक गया था, वहाँ सड़क को धँसने से बचाने के लिये लोकनिर्मण विभाग ने ताल की ओर से सुरक्षा दिवार बनाने की कोशिश की पर शाम को सड़क में भूस्खलन हो गया और वह नैनी झील में डूब गई। इसके बाद लोअर माल रोड पर यातायात पूरी तरह से बन्द कर दिया गया।

इस जगह पर गत 28 जुलाई, 2018 को ही सड़क में दरार आ गई थी, पर लोकनिर्माण विभाग ने इसे गम्भीरता से लेने के बजाय दरार वाली जगह पर डामर डाल कर उसे पाटने की कोशिश की। पर वह इसमें नाकाम रहे। लगभग तीन हफ्ते बाद ही सड़क की दरार चौड़ी हो गई और वह सड़क को झील में ले गई।

लगभग 172 साल पहले 1846 में अंग्रेजों ने इस सड़क का निर्माण किया था, जो अंग्रेज कमिश्नर कैप्टन जोंस के समय बनी थी। तब इस सड़क पर केवल पैदल चलने की ही अनुमति थी। ऐसा अंग्रेजों ने इसकी संवेदनशीलता के कारण किया था। केवल गवर्नर की गाड़ी ही कभी-कभार माल रोड में चलती थी। अंग्रेजों द्वारा बनाया गया यह नियम 1960 तक लागू रहा। उसके बाद 1970 में लोअर माल रोड में भी गाड़ियाँ चलाने की अनुमति दी गई। लोअर माल रोड की सुरक्षा दीवार को तब 8 मीटर तक गहरा बनाया गया था। सड़क की चौड़ाई 5ः30 मीटर रखी गई थी।

जिस सड़क की संवेदनशीलता को देखते हुये अंग्रेजों ने आज से 172 साल पहले ही उस पर गाड़ियाँ चलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था, उस सड़क पर पर्यटन सीजन के दौरान आजकल हर रोज लगभग 5,000 गाड़ियाँ चलती हैं। सप्ताहान्त में तो गाड़ियों की यह संख्या बढ़कर लगभग 9,000 हजार तक पहुँच जाती है।

नैनीताल में तल्लीताल से मल्लीताल आने-जाने के लिये ‘वन-वे’ व्यवस्था लागू है। तल्लीताल से मल्लीताल जाने के लिये लोअर माल रोड का उपयोग होता है तो वापसी में अपर माल रोड का। इस कारण लोअर मालरोड पर भी गाड़ियों का उतना ही दबाव रहता है, जितना कि अपर माल रोड पर।

लोअर माल रोड पर हर रोज बढ़ते यातायात के दबाव के कारण लोकनिर्माण विभाग ने उसकी मरम्मत के लिये साल भर पहले 40 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर सचिवालय को देहरादून भेजा था, पर उस प्रस्ताव को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। लोअर माल रोड नैनी झील के किनारे ही बनी हुई है जिसके कारण यह काफी संवेदनशील मानी जाती है। इससे पहले भी इस सड़क में कई बार भूस्खलन हो चुका है। पर इतना बड़ा भूस्खलन कभी नहीं हुआ।

लोअर माल रोड में इतने बड़े भूस्खलन के बाद नैनीताल के ऊपर मँडरा रहे खतरों पर एक बार फिर से चर्चा होने लगी है। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि इस बारे में शीघ्र ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गये तो इसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। भू-वैज्ञानिक प्रो.बीएस कोटलिया के अनुसार ‘नैनीताल भू-स्खलन के चार सक्रिय फॉल्ट के ऊपर बसा हुआ है। इस समय केवल एक ही फॉल्ट सक्रिय है, बाकी तीन फॉल्ट इस समय निष्क्रिय हैं।’ भू-वैज्ञानिक डॉ. चारुचन्द्र पंत कहते हैं, ‘नैनीताल का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी पत्थर पर नहीं बल्कि सैकड़ों वर्ष पूर्व पहाड़ियों से गिरे मलबे के ढेर पर बसा हुआ है।’

नैनीताल की लोअर माल रोड ही नहीं बल्कि अपर माल रोड भी खतरे की जद में है। भू-वैज्ञानिक पंत के अनुसार, शेर का डांडा पहाड़ी काफी कमजोर है। इसके अंदर जमीन खिसक रही है। लोअर माल रोड के प्रभावित क्षेत्र के ऊपरी क्षेत्र की पहाड़ी को देखें तो वहाँ पेड़ झुके हुए स्पष्ट तौर पर दिखाई देते हैं। इस पहाड़ी में 1880 में भारी भू-स्खलन हुआ था, जिसमें जान-माल का भी काफी नुकसान हुआ था। उस भू-स्खलन को देखते हुए अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का व्यापक भूगर्भीय सर्वे करवाया।

भू-वैज्ञानिक प्रो. जीएल साह कहते हैं। ‘उस सर्वे से पता चला कि बारिश का पानी रिसकर पहाड़ियों के बीच पहुँच रहा है, जिसके कारण भूमि अन्दर-ही-अन्दर धँसती है और भूस्खलन होता है। रिसाव को रोकने के लिये अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में समय-समय पर 30 नाले बनवाये, जिनमें से अब सिर्फ 18 ही अस्तित्व में हैं। दूसरे 12 नालों का अस्तित्व ही गायब सा है और ये गायब नाले ही नैनीताल के लिये खतरे की घंटी बन गए हैं।’

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading