लोग तरस रहे हैं, कारखाने पानी पी रहे हैं

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पर्यावरणविद कहते हैं कि महाराष्ट्र का जो इलाका इस वक्त भयंकर सूखे का सामना कर रहा है, वह कभी प्राकृतिक जलस्रोतों से भरपूर था। नदियाँ, जलाशय, झीलें, कोयला आदि यहाँ भरपूर था। सरकार ने इस इलाके में 60 विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिन्होंने खनन, वनों की कटाई, जलाशयों का दोहन और बाँधों के पानी पर कब्जा करना शुरू कर दिया। इस इलाके में बहने वाली छोटी-बड़ी नदियों में बेदर्दी से खनन किया गया, जिस वजह से नदियाँ सूख गर्इं और वनों के कटान की वजह से बरसात भी कम होने लगी।

महाराष्ट्र का मराठवाड़ा अंचल इस समय सदी के सबसे भयंकर सूखे का सामना कर रहा है। प्रभावित ग्यारह हजार गाँवों के लोग कामकाज के लिये देश के कई हिस्सों में पलायन कर रहे हैं। दाने-दाने को मोहताज महिलाएँ शरीर बेचने तक को मजबूर हैं। राज्य सरकार ने 125 तहसीलों को पूरी तरह से सूखे से प्रभावित घोषित कर दिया है। सरकारी स्तर पर 3,905 गाँवों की फसलों को पूरी तरह से चौपट मान लिया गया है। सोलापुर, अहमदनगर, सांगली, पुणे, सतारा, बीड़, नासिक, बुलढाणा, लातूर, उस्मानाबाद, नादेड़, धुले, औरंगाबाद, जालना और जलगाँव जिले सूखे से बुरी तरह प्राभावित हैं। प्रभावित क्षेत्रों में भूगर्भ जलस्तर 20 फुट से 200 फुट तक गिर चुका है।

गन्ना, केला, चीकू, संतरा, अंगूर, हल्दी और प्याज की फसल बुरी तरह से प्रभावित है और पशुओं के चारे की भारी किल्लत है। राज्य सरकार के उपाय ऊंट के मुँह में जीरे के समान हैं। मराठवाड़ा में करोड़ों की आबादी पानी की बूँद-बूँद को तरस रही है, इस क्षेत्र में बने बाँधों, जलाशयों और नदियों के पानी पर इलाके की औद्योगिक इकाइयों का कब्जा है। गाँवों में पीने के पानी के लिये केवल सात हजार टैंकरों की व्यवस्था है लेकिन औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आने दी जा रही है। मुंबई में एक तरफ जहाँ सूखे से प्रभावित लाखों लोग बड़ी संख्या में मजदूरी के लिये चौराहों पर जमा हो रहे हैं, वहीं आइपीएल के मैचों के लिये सरकार ने पच्चीस लाख लीटर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की है। मुंबई के आजाद मैदान में सूखा प्रभावित इलाके का एक किसान दो महीने से उपवास पर बैठा है।

राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने तमाम मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए उसके उपवास पर बेशर्मी भरी टिप्पणी की कि ‘जब बाँध में पानी नहीं है तो क्या हम वहाँ जाकर पेशाब करें’। राज्य के उपमुख्यमंत्री जब सूखे के प्रति ऐसा रवैया रखते हैं तो उन जिम्मेदार अधिकारियों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है जो सूखे के नाम पर राहत राशि पर डाका डाल रहे हैं।

मुंबई के एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पाटकर कहते हैं, ‘मुंबई में इस वक्त देह व्यापार में सत्तर फीसदी महिलाएँ मराठवाड़ा की हैं, जो इस धंधे से पैसा जुटा कर अपने परिवार को भेज रही हैं। सूखे की वजह से उस्मानाबाद, अहमदनगर, बीड़ और जालना जिलों में गाँववालों ने अपने पशुओं को कसाईखानों को बेचना शुरू कर दिया है। ‘विदर्भ जन आंदोलन समिति’ के अध्यक्ष किशोर तिवारी ‘शुक्रवार’ से कहते हैं कि बीड़ जिले में गोपीनाथ मुंडे, विनोद तावड़े और शरद पवार की चीनी मिलें और बिजली उत्पादन केंद्र हैं, जिन्हें पानी की आपूर्ति की कोई कमी नहीं है जबकि गाँवों में पशु और किसान प्यास से मर रहे हैं।

उस्मानाबाद जिले में तो जिलाधिकारी ने आदेश जारी कर किसानों से कहा था कि गन्ने की फसल इस साल पैदा न करें लेकिन नेताओं के प्रभाव की वजह से उक्त आदेश धरा का धरा रह गया और चीनी मिल स्वामी नेताओं ने गन्ने की फसल पैदा करवाई ताकि उनके कारखाने अबाध चलते रहें। पीने के पानी से गन्ने की फसल की सिंचाई की मिसाल सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खूब देखने को मिल रही है। किशोर तिवारी बताते हैं कि महाराष्ट्र सिंचाई विभाग ने कारखाना मालिकों के साथ पानी की आपूर्ति का करार कर रखा है। उसे सूखे-चौपट पड़े खेतों की कोई परवाह नहीं है।

गोदावरी नदी को कभी मराठवाड़ा की जीवनरेखा कहा जाता था। इसके साथ ही कई छोटी नदियाँ भी बहती थीं। खेतों में सिंचाई के लिये गोदावरी पर जायकवाड़ी में एक बड़े बाँध का निर्माण किया गया था लेकिन आज बाँध में केवल चार फीसदी पानी बचा है। इस क्षेत्र के गाँवों में जब पीने के पानी के टैंकर पहुँचते हैं तो लोगों का गला तर होता है। सोलापुर में दो दर्जन से ज्यादा चीनी मिलें हैं, जिन्हें पानी की कोई कमी आने नहीं दी जा रही है। बताने की जरूरत नहीं कि सभी चीनी मिलें विपक्ष और सत्ता पक्ष के नेताओं की हैं, लिहाजा सूखे पर कोई कुछ नहीं बोल रहा।

दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल 2011 में विधानसभा में एक प्रस्ताव पास करके पानी के उपयोग की प्राथमिकता को बदल दिया था। पहले पानी का बंदोबस्त उद्योगों के लिये होगा फिर सिंचाई के लिये और अंत में पीने के लिये लोगों को पानी मिलेगा। महाराष्ट्र देश का ऐसा पहला राज्य है, जहाँ जल आवंटन के मामले में उद्योगों को कृषि से पहले प्राथमिकता दी जा रही है। ‘किसान स्वाभिमानी शेतकारी संगठन’ के अध्यक्ष और राज्य से निर्दलीय सांसद राजू शेट्टी कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने किसानों की आत्महत्या का बंदोबस्त कर रखा है। कांग्रेसी नेता सूखा राहत का पैसा उड़ा रहे हैं और टैंकर तथा चारा केंद्रों पर उन्हीं का कब्जा है। ऐसे में गरीब किसान को कहीं से भी राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही।’

अमरावती जिले में नंदगाँवपेठ के पास ‘इंडिया बुल्स’ ने पॉवर प्लांट लगाना शुरू किया है, जिसे सिंचाई विभाग के वर्धा बाँध से पानी की आपूर्ति की जा रही है। इस संयंत्र को हर साल 8 करोड़ 76 लाख क्यूबिक मीटर पानी देने का करार हुआ है। समूचे मराठवाड़ा में सूखे की भयंकर तस्वीर को इस बात से समझा जा सकता है कि जहाँ एक तरफ लोग पीने के पानी को तरस रहे हैं, वहीं औरंगाबाद में बीयर बनाने की 16 कंपनियों को जायकवाड़ी बाँध से पानी की आपूर्ति की जा रही है। बीड़ जिले में पारली ताप विद्युत केंद्र को पानी की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आई है। राज्य में पिछले दो दशकों से औद्योगिक इकाइयों ने बेलगाम ढंग से पानी का दोहन किया है, नेताओं ने पानी का व्यवसायीकरण कर दिया है, सिंचाई और बुनियादी जरूरतों के लिये पानी की आपूर्ति पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, लिहाजा हालात बद से बदतर होते चले गए हैं।

2005 में जब विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के मामलों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, उस वक्त केंद्र सरकार ने राज्य की सिंचाई परियोजनाओं के लिये धन देना शुरू किया था। विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं पर बारह हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन किसी भी परियोजना का लाभ किसानों को नहीं मिला है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख है कि किस तरह सरकार ने सिंचाई परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की तरफ से आँखें बंद कर रखी हैं। राज्य में हेटावणे, अंबा, सूर्या, अपर वर्धा, गंगापुर और उजणी सहित 38 सिंचाई परियोजनाओं का 1500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी कृषि को भाग्य भरोसे छोड़ कर उद्योगों को दे दिया गया है, जबकि इस पानी से सात लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती थी।

2005 में महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा में कानून बना कर ‘महाराष्ट्र जल संप्रदाय नियमन प्राधिकरण’ की स्थापना की थी।

प्राधिकरण का उद्देश्य पानी का समान वितरण, पानी की बर्बादी रोकना, पानी को प्रदूषण से मुक्त रखना, पानी के लिये जनसुनवाई करना और जनभागीदारी को पानी संरक्षण से जोड़ना था। 11 जनवरी 2011 को सरकार ने एकाएक अध्यादेश जारी करके जल आवंटन का अधिकार प्राधिकरण से छीनकर एक उच्चाधिकार समिति को सौंप दिया, जिसके बाद उद्योगपतियों ने पानी पर डाका डालना शुरू कर दिया। इसके बाद गोसीखुर्द, अपर वर्धा, निम्न वर्धा, दिंजोरा बैराज, चारगाँव प्रकल्प, पेंच प्रकल्प, कोची बैराज, धापेवाड़ा चरण, बेंबला जलाशय, निम्न पैनगंगा परियोजना, वर्धा परियोजना, वैनगंगा हुमन, कन्हाम, धाम और वेणा नदी से उद्योगों को भरपूर पानी दिया गया। दूसरी तरफ जीगाँव, लानी, भिवापुर, बावनथड़ी, बेंबला, खड़कपूणा, तुलतुली और एकबुर्जी सिंचाई परियोजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हुआ और किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुँचा। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष ने आरोप लगाया कि उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की देखरेख में राज्य में 28 हजार करोड़ रुपयों का सिंचाई घोटाला हुआ है, जिसे सरकार ने फिलहाल दबा दिया है और घोटाले पर श्वेतपत्र जारी करके अजीत पवार को ‘पाक साफ’ भी बता दिया है।

पर्यावरणविद कहते हैं कि महाराष्ट्र का जो इलाका इस वक्त भयंकर सूखे का सामना कर रहा है, वह कभी प्राकृतिक जलस्रोतों से भरपूर था। नदियाँ, जलाशय, झीलें, कोयला आदि यहाँ भरपूर था। सरकार ने इस इलाके में 60 विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिन्होंने खनन, वनों की कटाई, जलाशयों का दोहन और बाँधों के पानी पर कब्जा करना शुरू कर दिया। इस इलाके में बहने वाली छोटी-बड़ी नदियों में बेदर्दी से खनन किया गया, जिस वजह से नदियाँ सूख गर्इं और वनों के कटान की वजह से बरसात भी कम होने लगी। सांसद राजू शेट्टी बताते हैं,‘यह सूखा सरकार की नीतियों से पैदा हुआ है, यह प्रकृति का अन्याय नहीं है। लोग 1972 में पड़े सूखे को याद करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री बसंत राव नाइक को याद करते हैं, जिन्होंने प्रभावित गाँवों का लगातार दौरा कर राहत कार्य शुरू करवाए थे। आज इस इलाके में लोगों को जिन थोड़ी-बहुत सिंचाई परियोजनाओं का लाभ मिल रहा है, वे बसंत राव नाइक की ही देन है। वर्तमान सरकार के मंत्रियों को सूखा प्रभावित इलाकों की मात्र इसलिये फिक्र है, ताकि उस इलाके में चलने वाले उनके कारखाने सूखे से प्रभावित न हों।

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