मानसून की आफत (Monsoon)


उत्तराखण्ड के पिथौरागढ, चमोली, गोपेश्वर, टिहरी, चंपावत जिलों में मानसून के साथ ही आफत भी बरसी है। पिछले दिनों की बारिश से हुई जमकर तबाही का दौर दुखदायक है। इसमें कई दर्जन की मौत हुई है। 100 से ज्यादा घर नष्ट हुए। कई गाँव में हुई तबाही का मंजर अभी भी खौफनाक नजर आता है। बादल फटने की वजह से आसमान से जब अचानक तबाही बरसने लगे तो लोग हक्का-बक्का रह गए। जब तक वे संभलने या सुरक्षित स्थानों में जाने का प्रयास करते, तब तक मूसलाधार बारिश का कहर अपनी चरम पर पहुँच चुका था। सिर्फ 2 घंटे में हुई 100 मीटर बारिश अपने साथ भूस्खलन व भारी बारिश लेकर आई जिसमें घरों के नष्ट हो जाने से मलबे में कई जिंदा दफन हो गए।

उत्तराखण्ड की तबाही बादल फटने से हुई। उत्तराखण्ड के 100 साल के इतिहास में बादल फटने की घटना पहली बार हुई थी, हालाँकि कुछ इस तरह का मंजर जून 2013 में राज्य के केदारनाथ में पेश आया था। तब हालाँकि मौसम वैज्ञानिकों के एक दल ने इसे भी बादल फटने की घटना माना था, जिस से मूसलाधार बारिश हुई। दुष्परिणाम भूस्खलन से तकरीबन 5000 लोग मौत के मुँह में समा गए। इनमें अधिकांश संख्या चार धाम की यात्रा पर निकले तीर्थ यात्रियों की थी।

आखिर क्यों बादल फटता है? इसे हम ग्लोबल वार्मिंग का दुष्परिणाम माने या फिर क्लाइमेट चेंज से उपजे एक घातक प्रक्रिया! पर इतना तो तय माना जाए की प्रकृति के आगे किसी का बस नहीं चलता। प्रकृति का कहर कोई रोक नहीं सकता। प्राकृतिक आपदाओं को हम रोक नहीं सकते, पर सुरक्षात्मक उपाय कर उनकी त्रासदी तो कम कर ही सकते हैं। पर इतना सुरक्षात्मक उपायों की भी एक सीमा है। तबाही के बाद उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति राहत एवं बचाव कार्य में अवरोध बनकर सामने आई है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, एसएसवी, आईटीबीपी तथा सेना की टीमों को बचाव कार्य में तथा राहत सामग्री पहुँचाने में काफी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है दूसरी ओर लगातार जारी बारिश की वजह से अलकनंदा, सरयू, मंदाकिनी समेत राज्य की 12 में से 10 नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। नेशनल हाईवे में अवरोध है तथा चार धाम यात्रा बाधित है।

बादल फटना यानि मेघस्फोट, मूसलाधार वृष्टि प्रकृति का कहर है। सामान्यतः बादल फटने की वजह से (जहाँ बादल फटता है) उस इलाके में सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है। पर यह बारिश अत्यधिक तेज होती है। इस दौरान इतना पानी बरस जाता है की बाढ़ के हालात उत्पन्न हो जाते हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने की घटना ज्यादा ऊँचाई पर नहीं होती यह अमूमन धरती से 15 किलो मीटर की ऊँचाई पर घटती है। आमतौर पर बादल एक दूसरे से, गर्म हवा से या फिर किसी पहाड़ी से टकराकर फट जाते हैं तब एक छोटे से दायरे में अचानक काफी बड़ी मात्रा में पानी बरसता है। इसमें 100 मिलीमीटर प्रति घंटा या उससे तेज रफ्तार में बारिश होती है कुछ ही मिनट में वहाँ 2 सेंटीमीटर से भी ज्यादा बारिश हो जाने से बाढ़ आ जाती है। जब बादल भारी मात्रा में आर्द्रता यानी पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है तो वे अचानक फट पड़ते हैं। यानी नमी से लदी हवा अपने रास्ते में जब पहाड़ियों से टकराती है तो बादल फटने की घटनाएँ होती हैं। ऐसी घटनाएँ अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में ही होती है मसलन हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा जम्मू-कश्मीर। उत्तराखण्ड में दरअसल, मानसून में जब नमी लिये हुए बादल उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हैं तो उनके सामने हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में सामने आता है।

पिछले हफ्ते की उत्तराखण्ड त्रासदी की मूल वजह यही रही। इससे पहले 29 मार्च को उत्तराखण्ड में बादल फटने से 4 की मौत हुई थी। 11 मई को शिमला के पास सुन्नी में बादल फटने से भारी बारिश हुई। तब बादल फटने से गरज और बिजली चमकने के साथ भारी मात्रा में पानी गिरने से धरती उसे सोख नहीं पाई और बाढ़ आ जाने से चारों ओर तबाही मच गई थी। पिछले साल 8 अगस्त को हिमाचल प्रदेश के मंडी में बादल फटने से 5 लोगों की मौत हो गई थी। उस समय भारी बारिश के बीच हवा बंद हो गई लिहाजा बारिश का समूचा पानी एक छोटे से इलाके में अचानक जमा होकर फैल गया।

हम मुंबईकरों को भी बादल फटने का अनुभव है। 26 जुलाई 2005 को भी मुंबई में बादल फटे थे, वैसे तब के बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराकर फट गए थे और मुंबई में धन जन की काफी हानि हुई थी। 6 अगस्त 2010 को जम्मू-कश्मीर के लेह (लद्दाख) में बादल फटे थे उस समय 1 मिनट के बारिश में 1.9 इंच पानी बरस गया था इस बारिश ने तकरीबन सारा पुराना लेह शहर तबाह कर दिया इस हादसे में 115 की मौत हुई तथा 300 से ज्यादा घायल हुए थे 26 नवंबर 1970 को हिमाचल प्रदेश (बादल फटने की सबसे ज्यादा घटनाएँ हिमाचल प्रदेश में ही होती हैं) के बरोत में बादल फटे थे। उस दौरान हुई 1 मिनट की तेज बारिश में 1.5 इंच पानी बरस गया था।

तो ऐसी त्रासदी को रोकने के लिये क्या उपाय किया जाना चाहिए? हकीकत में यह प्राकृतिक कहर, आपदा या त्रासदी है इसे रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं है। बादल फटना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन इतना तो तय है कि पानी की सही निकासी व्यवस्था मकानों की दुरुस्त व मजबूत बनावट वनक्षेत्र की मौजूदगी तथा प्रकृति से सामंजस्य बना कर चलने पर इस से होने वाले नुकसान ज़रूर कम किया जा सकता है।

 

 

 

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