मानव विकास रिपोर्ट 2011 एवं आपदा प्रबन्धन
प्राकृतिक आपदा के बाद तत्काल प्रभावी व सम्मानजनक पुनर्वास मानवीय जीवन की महत्वपूर्ण जरूरत है। समाज और सरकार को समझना चाहिए कि आपदा प्रबन्धन का मतलब केवल राहत पहुँचाना ही नहीं है बल्कि आपदा से प्रभावित लोगों का सार्थक व मानवीय पुनर्वास एक अहम जरूरत होता है।हम आपदाओं के दौर में जी रहे हैं। यह सच है कि इन आपदाओं को रोक पाना न तो इंसान के बस में है न ही मशीनों के। आपदाएँ मानव निर्मित हों या प्राकृतिक, जिन्दगी में गहरा दर्द छोड़ जाती हैं। ज्यादातर आपदाएँ भौतिक नुकसान (अर्थव्यवस्था, भवन, सम्पत्ति, सामाजिक व सांस्कृतिक) तो पहुँचाती ही हैं, लाखों जानें ले लेती हैं। प्रचलित प्राकृतिक आपदाओं में तूफान, बाढ़, बादल का फटना, भूकम्प, सुनामी, आग लगना, आदि हैं जो मिनटों में मनुष्य के जीवन और सम्पत्ति को तबाह कर देते हैं। जाहिर है आपदाएँ तो आती रहेंगी लेकिन यदि हमने इन आपदाओं का समुचित प्रबन्धन या नियन्त्रण नहीं किया तो स्थिति भयावह होगी।
भारतीय सन्दर्भ में यदि हम प्राकृतिक आपदाओं की बात करें तो आपदाओं से ज्यादा इसके समुचित प्रबन्धन पर चर्चा करना जरूरी है। वर्ष 2001 में जब भीषण भूकम्प आया था तब सरकार ने घोषणा की थी कि देश में आपदा प्रबन्धन को विश्वस्तरीय बनाया जाएगा। आज 11 वर्षों बाद भी यदि यहाँ के आपदा प्रबन्धन की तैयारियों को देखें तो कोई खास बदलाव नहीं दिखेगा। जैसे सन् 2005 में जब भारत के दक्षिण-पश्चिमी तटबन्धीय इलाके में सुनामी लहरों ने कहर बरपाया था तब आपदा के बाद स्थिति को सम्भालने में हुए विलम्ब और लम्बे समय तक आपदा-ग्रस्त लोगों की सार्वजनिक परेशानी से यह समझा जा सकता है कि हमारा आपदा प्रबन्धन कितना मजबूत है।
1991 में उत्तरकाशी में आए भूकम्प के बाद से ही देश में एक मुकम्मल आपदा प्रबन्धन नीति की माँग होती रही है। इस दिशा में यदि सरकार और स्वयंसेवी संगठनों की ओर से संयुक्त प्रयास हो तो गति आ सकती है, और जापान तथा अमरीका की तर्ज पर भारत में भी एक मुकम्मल और प्रभावी आपदा प्रबन्धन व्यवस्था बनाई जा सकती है।
बेहतर आपदा प्रबन्धन के लिए हमें दो शब्दों को बराबर ध्यान में रखना चाहिए। ये हैं— जानकारी और बचाव। किसी भी आपदा या आकस्मिकता (जिसका पहले से घटित होना निर्धारित नहीं है) से बचाव में ‘जानकारी’ अहम भूमिका निभा सकती है। जानकारी यानी आपदाएँ क्या हैं, कितने प्रकार की होती हैं, कैसे आती हैं, कब आती हैं, किस तरह का नुकसान करती हैं आदि। जाहिर है विज्ञान के एक सामान्य विद्यार्थी की तरह यदि हम आपदाओं के सम्बन्ध में क्या, क्यों, कब, कैसे आदि सवाल और उसके उत्तर जान लें तो आपदा का प्रबन्धन सहज हो जाएगा। हम यहाँ विशेष तौर पर आपदा और उसके प्रबन्धन की बात कर रहे हैं। इसलिए आपदा से जुड़े क्या, क्यों, कब और कैसे की जानकारी ज्यादा लाभकर रहेगी। इन जानकारियों के लिए आपदा से जुड़े अनेक प्रचार सामग्री तथा मैनुअल या वेबसाइट (www.ndmindia.nic. in, www.pdc.org) पर काफी कुछ पढ़ा जा सकता है।
एक प्रभावी आपदा प्रबन्धन नीति और व्यवस्था के लिए जरूरी है कि वैश्विक एवं देश के स्तर पर आपदा सम्बन्धी स्थिति, सूचनाएँ एवं भविष्यवाणियों की पहले समीक्षा कर ली जाए। इस कड़ी में सबसे बेहतर और जरूरी होगा यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) की वार्षिक रिपोर्ट 2011 पर गौर करना। वर्ष 2011 की मानव विकास रिपोर्ट कथित तौर पर टिकाऊ एवं न्यायसंगत विकास पर केन्द्रित है। इस रिपोर्ट में इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया गया है कि नित्य हो रहे पर्यावरणीय नुकसान से दुनिया के वंचित एवं निर्धन लोगों की परेशानियाँ और बढ़ी हैं।
मानव विकास रिपोर्ट, 2011 का सांख्यिकीय पूर्वानुमान बताता है कि ‘पर्यावरणीय चुनौती’ के परिप्रेक्ष्य तथा सन्दर्भ रेखा की तुलना में वर्ष 2050 तक मानव विकास संकेतक (एचडीआई) 8 प्रतिशत कम हो जाएँगे। यह एक ऐसे पर्यावरणीय चुनौती के परिदृश्य में होगा, जिसमें वैश्विक तपन की वजह से कृषि उत्पादन, साफ पेयजल आदि में कमी आएगी और प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ेंगी। मानव विकास रिपोर्ट, 2011 मानता है कि गैर-बराबरी बढ़ाने वाली प्रक्रियाएँ अन्यायपूर्ण हैं। रिपोर्ट कहता है कि लोगों के लिए बेहतर जिन्दगी के अवसर किसी ऐसे कारक से बाधित नहीं होने चाहिए जो उसके नियन्त्रण से बाहर हैं। असमानताएँ खासतौर पर तब अधिक अन्यायपूर्ण होती हैं जब एक समूह विशेष को लिंग, नस्ल या जन्म स्थान के आधार पर सुनियोजित ढंग से वंचित रखा जाता है। इस रिपोर्ट का सांख्यिकीय पूर्वानुमान बताता है कि ‘पर्यावरणीय चुनौती’ के परिप्रेक्ष्य तथा सन्दर्भ रेखा की तुलना में वर्ष 2050 तक मानव विकास संकेतक (एचडीआई) 8 प्रतिशत (दक्षिण एशिया तथा सब सहारा अफ्रीकी देशों में 12 प्रतिशत) कम हो जाएँगे। यह एक ऐसे पर्यावरणीय चुनौती के परिदृश्य में होगा, जिसमें वैश्विक तपन की वजह से कृषि उत्पादन, साफ पेयजल आदि में कमी आएगी और प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ेंगी। इस दौरान प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि की वजह से वैश्विक एचडीआई अनुमानित सन्दर्भ रेखा से घटकर 15 प्रतिशत तक नीचे गिर जाएगा। रिपोर्ट कहती है कि इन आपदाओं से दुनिया की डेढ़ अरब आबादी प्रभावित होगी और इनमें सबसे ज्यादा बुरी हालत भारत सहित अन्य दक्षिण एशिया के देशों के लोगों की होगी।
मानव विकास रिपोर्ट, 2011 मौजूदा अन्धाधुन्ध विकास को धरती से खिलवाड़ बताती है। रिपोर्ट खुलासा करती है कि आपदाओं की सम्भावना को बढ़ाने वाले कथित विकास के प्रवर्तक कुछ अमीर देश पूरी पृथ्वी के साथ जुआ खेल रहे हैं। इसमें निजी कम्पनियाँ मुनाफा कमा रही हैं और पूरी मानवता कीमत चुका रही है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में आए सुनामी में क्षतिग्रस्त जापानी परमाणु संयन्त्र के मामले को परमाणु क्षतिपूर्ति अधिनियम की जद से बाहर रखा गया है। स्पष्ट है कि इससे होने वाले मानवीय व अन्य नुकसान की जिम्मेदारी सम्बन्धित ब्रिटिश कम्पनी पर नहीं होगी। ऐसे ही अमरीका में वर्ष 2010 में ब्रिटिश पेट्रोलियम कम्पनी के तेल के समुद्र में रिसाव के मामले में लागत 75 लाख डॉलर की जवाबदेही की सीमा को पार कर जाने के बाद भी कम्पनी को क्षतिपूर्ति की कानूनी बाध्यता नहीं थी। निष्क्रियता के जोखिम बहुत बड़े होते हैं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री जोसफ स्टिगलिट कहते हैं— ‘‘काश कि कुछ ऐसे ग्रह होते जहाँ हम अल्प लागत में ही जा सकते, खासकर उन हालात में जिसके बारे में वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि हम मानव निर्मित विनाश के कगार पर खड़े हैं। सच तो यह है कि ऐसा कोई ग्रह नहीं है। तो फिर हम जल्दी समझ क्यों नहीं रहे?’’
तालिका : आपदा की वजह से हुई मोतें और सन्बद्ध कीमतें, एचडीआई समूह के अनुसार वाषिर्क माध्य मान्य, 1971-1990 और 1991-2010 | ||||||
देशों का समूह | मौतें (प्रति 10 लाख व्यक्ति) | प्रभावित जनसंख्या (प्रति 10 लाख व्यक्ति) | कीमत (सकल घरेलू आय का प्रतिशत) | |||
1971-1990 | 1991-2010 | 1971-1990 | 1991-2010 | 1971-1990 | 1991-2010 | |
मानव विकास सूचकांक समूह | ||||||
अति उच्च | 0.9 | 0.5 | 196 | 145 | 1.0 | 0.7 |
उच्च | 2.1 | 1.1 | 1,437 | 1,157 | 1.3 | 0.7 |
मध्यम | 2.7 | 2.1 | 11,700 | 7,813 | 3.3 | 2.1 |
निम्न | 6.9 | 1.9 | 12,385 | 4,102 | 7.6 2.8 | |
विश्व | 2.1 | 1.3 | 3,232 | 1,822 | 1.7 | 1.0 |
नोट: सभी मान जलवायु सम्बन्धी, जल एवं मौसम सम्बन्धी प्राकृतिक आपदाओं के माध्य प्रभावों को इंगित करते हैं। स्रोत : एचडीआरओ की गणनाएं सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एपीडेमिओलॉजी ऑफ डिजास्टर्स इमरजेंसी इवेण्ट्स, डाटाबे इण्टरनेशनल डिजास्टर डाटाबेस पर आधारित हैं। |