मौसम की भविष्यवाणी के फायदे

पहले मौसम के पुर्वानुमान के लिए बड़े-बड़े बैलूनों को आकाश में छोड़ जाता था। कृत्रिम उपग्रहों को मौसम की भविष्यवाणी के लिए उपयोग किया जाने लगा। इसके अलावा आज पूरे विश्व में करीब एक हजार जहाज़ या नावें मौसम की निगरानी के लिए समुद्रों में तैरती रहती हैं। इनमें सुदूर संवेदन प्रणाली एवं उन्नत राडार के साथ ही अन्य आधुनिक उपकरण मौसम की निगरानी में सहायक होते हैं। अब ध्रुवीय उपग्रह दिन में दो बार पृथ्वी के प्रत्येक हिस्से पर निगरानी रखते हैं। प्रत्येक दिन हम समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर समाचारों में मौसम के बारे में जानते हैं। इससे मौसम की महत्ता समझी जा सकती है। असल में मौसम और जलवायु को किसी सीमा से नहीं बांधा जा सकता है। इसलिए मौसम पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीवों को प्रभावित करता है। इसी बात को ध्यान में रखकर प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को विश्व मौसम दिवस मनाया जाता है। विश्व मौसम संघ द्वारा विश्व मौसम दिवस की अवधारणा रखी गई थी। आज विश्व मौसम संघ के 191 देश सदस्य हैं। इस वर्ष विश्व मौसम दिवस का विषय ‘मौसम को निहारो और जीवन व संपत्ति की सुरक्षा करो’ है। असल में यह वर्ष विश्व मौसम संघ द्वारा सन् 1963 में स्थापित ‘विश्व मौसम निगरानी’ विभाग का 50वां वर्ष भी है। इसलिए इस वर्ष मौसम में होने वाले बदलावों के प्रति सजग और सचेत रहने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।

सन् 1980 से 2007 के दौरान करीब साढे सात हजार प्राकृति आपदाओं से 20 लाख लोगों की जान चली गई। इन आपदाओं से करीब 1.2 खरब की संपत्ति की हानि हुई। जान-माल की हानि में 70 से 80 प्रतिशत घटनाएँ मौसम और जलवायु से संबंधित रही है। ऐसी घटनाओं में चक्रवात, सूखा, बाढ़ और इनसे उत्पन्न महामारियां आदि शामिल हैं। वैश्विक सहयोग के द्वारा मौसम और जलवायु के सटीक पूर्वानुमान के प्रयासों से हम जान-माल को होने वाले नुकसान में कमी ला सकते हैं। वैसे सदियों से हमारे देश में मौसम के पूर्वानुमान के संबंध में अनेक कहावतें मौजूद हैं। गर्मियों के दिनों में चीटियों का अपने बिल से अंडे लेकर निकलने से बारिश की संभावना बनी रहती थी। इसी तरह के अनेक क़िस्से हमारे साहित्य में मिलते हैं। 17वीं सदी में तापमानी एवं दाबमापी और अन्य उपकरणों का विकास हुआ। इसके बाद सन् 1964 में पूरे विश्व में 11 स्टेशनों की स्थापना की गई ।

आस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, इटली और पोलैंड आदि में इन स्टेशनों को स्थापित किया गया। 1780 तक यूरोप और उत्तर अमेरिका सहित पूरे विश्व में 37 मौसम स्टेशन स्थापित हो चुके थे। इसके बाद सैम्यूल मार्स के द्वारा टेलीग्राफ़ के विकास से सन् 1849 में मौसम संबंधी रिपोर्टों के शीघ्र ही विश्व के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुंचाने में काफी मदद मिली। धीरे-धीरे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से मौसम विज्ञान की समझ बढ़ने लगी। सन् 1980 तक वैज्ञानिकों ने मौसम पर महासागरों और वायुमंडल के निचले आवरण यानी क्षोभमंडल के प्रभाव को समझ लिया। अब यह पता लगा गया था कि महासागर काफी मात्रा में ऊष्मा को लंबे समय तक अपने में भंडारित रखते हैं। और यही ऊष्मा बाद में वायुमंडल में मुक्त होती है। इस तथ्य को समझ कर वैज्ञानिकों ने तीन-चार तीन बाद के मौसम का पूर्वानुमान लगाना आरंभ कर दिया।

पहले मौसम के पुर्वानुमान के लिए बड़े-बड़े बैलूनों को आकाश में छोड़ जाता था। कृत्रिम उपग्रहों को मौसम की भविष्यवाणी के लिए उपयोग किया जाने लगा। इसके अलावा आज पूरे विश्व में करीब एक हजार जहाज़ या नावें मौसम की निगरानी के लिए समुद्रों में तैरती रहती हैं। इनमें सुदूर संवेदन प्रणाली एवं उन्नत राडार के साथ ही अन्य आधुनिक उपकरण मौसम की निगरानी में सहायक होते हैं। अब ध्रुवीय उपग्रह दिन में दो बार पृथ्वी के प्रत्येक हिस्से पर निगरानी रखते हैं। इनसे वैश्विक बादलों की स्थिति, तापमान, आर्द्रता सहित वायुदाब सहित मौसम को प्रभावित करने वाले अनेक कारकों की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।

इस प्रकार मौसम को भूमि, वायुमंडल एवं वायुमंडल की संयुक्त प्रणाली प्रभावित करती हैं। इसके अलावा सुपरकम्प्यूटर के विकास ने वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर मौसम पैरामीटरों का अवलोकन करना सुगम बना दिया है। आज अल-नीनो और ला-नीनो की परिघटनाओं को भी समझ लिया गया है। ये घटनाएँ प्रशांत महासागर और वायुमंडल की अंतःक्रिया का परिणाम होती है। आज हमारे देश में पृथ्वी मंत्रालय के अंतर्गत अनेक मौसम अनुसंधान केंद्र कार्यरत हैं जो मौसम के पूर्वानुमान लगाते हैं। सुनामी, चक्रवात, सूखे की स्थिति से बचने के लिए मौसम की भविष्यवाणी काफी हद तक सहायक हो सकती है। हमारे देश के किसी न किसी भाग में प्रत्येक साल कहीं सूखा पढ़ता हैं तो कहीं बाढ़ आती है। ऐसे में मौसम की सटीक भविष्यवाणी हमारे देश के किसानों के साथ ही आम जनता के लिए भी कल्याणकारी साबित होगी।

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