मनरेगा के दस साल


दरअसल, अपने आप में मनरेगा एक बहुत ही सकारात्मक योजना रही है, लेकिन इसके अमल में लाए जाने के दौरान हुए व्यापक भ्रष्टाचार ने इसकी आलोचना का अवसर प्रदान किया। खैर, अपने बयान में वर्तमान मोदी सरकार ने दावा किया है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह कार्यक्रम पटरी पर लौट आया है और अब आने वाले वर्षों में इस कार्यक्रम से जुड़ी प्रक्रियाओं को और सरल व मजबूत बनाने के साथ ही इसके द्वारा गरीबों के लाभ के मकसद से सतत परिसंपत्ति के रूप में विकसित करने पर जोर दिया जाएगा...

पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों के लिये लाई गई महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना यानी मनरेगा के मंगलवार को दस वर्ष पूरे हो रहे हैं और अच्छी बात यह है कि वर्तमान राजग सरकार ने अपनी पूर्व धारणा को बदलते हुए इसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का इजहार किया है। शुरू-शुरू में मनरेगा की कड़ी आलोचक रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र की राजग सरकार ने अब इसका स्वागत करते हुए कहा है कि एक दशक में मनरेगा की उपलब्धियाँ राष्ट्रीय गर्व और उत्सव का विषय है। याद किया जा सकता है कि स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले वर्ष मनरेगा को कांग्रेस की विफलताओं का जीता जागता स्मारक बताते हुए कहा था कि क्या आप सोचते हैं कि मैं इस योजना को बंद करूँगा। मेरी राजनीतिक समझ मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं देती।

यह पिछले 60 बरसों में गरीबी से निपटने की दिशा में विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इसे जारी रखूँगा। बहरहाल इसमें तो कोई दोराय नहीं कि सारे देश में जमीनी स्तर पर इस योजना के लागू होने में खूब मनमानियाँ हुई और यह योजना बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से संक्रमित होकर सरकारी तंत्र की लूट का शिकार भी हुई, फिर भी ग्रामीणों को किसी हद तक रोजगार देकर उनके लिये यह एक आसरा भी बनी। यहाँ तक कि मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी ने पारिश्रमिक का एक मानक बनाया, जिससे आम तौर पर ग्रामीण श्रम का मूल्य बढ़ा। बेगारी पर भी बहुत हदतक रोक लगी।

दरअसल, अपने आप में मनरेगा एक बहुत ही सकारात्मक योजना रही है, लेकिन इसके अमल में लाए जाने के दौरान हुए व्यापक भ्रष्टाचार ने इसकी आलोचना का अवसर प्रदान किया। खैर, अपने बयान में वर्तमान मोदी सरकार ने दावा किया है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह कार्यक्रम पटरी पर लौट आया है और अब आने वाले वर्षों में इस कार्यक्रम से जुड़ी प्रक्रियाओं को और सरल व मजबूत बनाने के साथ ही इसके द्वारा गरीबों के लाभ के मकसद से सतत परिसंपत्ति के रूप में विकसित करने पर जोर दिया जाएगा।

इससे यह संकेत मिलता है कि मनरेगा सम्मेलन-2016 के दौरान अपने संबोधन में मंगलवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली कुछ अहम घोषणाएँ कर सकते हैं। बताया गया है कि दूसरी और तीसरी तिमाही में सबसे अधिक यानी 45.88 करोड़ और 46.10 करोड़ व्यक्ति दिवस इस योजना के जरिए सृजित हुए, जो पिछले पाँच वर्ष में सर्वाधिक हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि पिछले एक दशक में मनरेगा की उपलब्धियाँ राष्ट्रीय गर्व का विषय है। मसलन, इस कार्यक्रम के शुरू होने के बाद से इस पर 313844 करोड़ रुपए खर्च हुए, जिसमें से 71 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान किया गया है।

इसके तहत 20 प्रतिशत काम अनुसूचित जाति के मजदूरों और 17 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के मजदूरों को प्रदान किया गया। गौरतलब है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दौरान 2006 की फरवरी में मनरेगा योजना की घोषणा की गई थी और इसे सबसे पहले आंध्र प्रदेश में अनंतपुर जिले के बंदलापल्ली गाँव में पेश किया गया था। कुछेक चरणों में मनरेगा को पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किया गया। जिन राज्यों में जिस हद तक यह योजना अमल में लाई गई, वहाँ-वहाँ उसी स्तर पर इसका फल भी मिला है। असल में जरूरत इस बात की है कि मनरेगा को बहुत पारदर्शी और परिणामदायी ढंग से लागू किया जाए।

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