मनरेगा में लोकपाल की जरूरत

31 Aug 2012
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छत्तीसगढ़ में प्रचलित शिकायत करने एवं उसके निवारण की प्रक्रिया के तहत कोई भी व्यक्ति जिसे मनरेगा से संबंधित अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ शिकायत है, स्वयं या अपने अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा लोकापाल को लिखित शिकायत कर सकता है। शिकायतकर्ता अथवा उसके अधिकृत प्रतिनिधि, यदि कोई हो, द्वारा शिकायत हस्ताक्षरित होनी चाहिए और उसमें शिकायतकर्ता का पूरा नाम, पता स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत योजना के क्रियान्वयन में कई खामियां देखने को मिल रही है। शिकायतों का पुलिंदा बड़ा होता जा रहा है, पर इसका समाधान समय पर नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इस योजना का लाभ मजदूरों को कम मिल रहा है एवं करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। मनरेगा की शिकायतों की जांच के लिए लोकपाल की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है, जिस पर कई राज्यों ने अमल करते हुए अपने-अपने राज्यों में जिला स्तर पर लोकपाल की नियुक्ति कर दी है। मध्यप्रदेश सरकार लोकपाल की नियुक्ति को लंबे अरसे से टाल रही थी, पर आखिरकार केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के स्पष्ट निर्देश के बाद मध्यप्रदेश में लोकपाल की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में लोकपाल की नियुक्ति की जरूरत ज्यादा है, जहां मनरेगा में अनियमितताओं की शिकायत बहुत ज्यादा है एवं सैकड़ों करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो चुके हैं। लोकपाल की नियुक्ति को टालने के लिए सरकार यह तर्क दे रही थी कि प्रदेश में पहले से ही लोकायुक्त एवं ईओडब्ल्यू जैसी संस्थाएं काम कर रही हैं, जहां भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता की शिकायत की जा सकती है और जांच होती है, तो लोकपाल की क्या जरूरत है?

मनरेगा में लोकपाल की नियुक्ति के पीछे यह मंशा है कि रोजगार गारंटी कानून में जो गारंटी दी गई है, उसे पारदर्शी तरीके से कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार क्रियान्वयन कराया जा सके। इसके क्रियान्वयन संबंधी जो भी शिकायतें हैं, उसका निराकरण मनरेगा के तहत नियुक्त लोकपाल करेंगे। योजना के क्रियान्वयन को लेकर कई शिकायतें ऐसी हैं, जिनका निराकरण नहीं होने से न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि मजदूरों को योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा है। काम मांगने पर समय पर काम नहीं मिलना, आवेदन का पावती नहीं देना, मौखिक काम मांगने पर उसका रिकॉर्ड नहीं रखना, बेरोजगारी भत्ता नहीं देना, समय पर भुगतान नहीं करना, कार्यस्थल पर सुविधाएं नहीं देना, मस्टररोल नहीं रखना, सामाजिक अंकेक्षण नहीं करना, खरीदी की रसीदों को सार्वजनिक नहीं करना जैसी कई समस्याएं देखने को मिल रही है। इन सबके पीछे सिर्फ एक ही कारण है कि नियमों को ताक पर रखकर लाखों का भ्रष्टाचार करना। यदि मनरेगा का क्रियान्वयन विधिपूर्ण तरीके से हो, तो इस पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है। विधिपूर्ण तरीके से काम नहीं होने एवं नियमों की अवहेलना की हजारों शिकायतें क्रियान्वयन एजेंसी के पास लंबित हैं। प्रशासकीय सांठ-गांठ एवं समयाभाव के कारण बार-बार चक्कर लगाने के बावजूद शिकायतों का निपटारा निष्पक्ष एवं जल्द नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में लोकपाल की नियुक्ति बहुत ही अहम है, जो ऐसी सभी शिकायतों का स्वतंत्र रूप से सुनवाई करेगा एवं क्रियान्वयन एजेंसी से मुक्त होने के कारण निष्पक्ष न्याय एवं फैसले कर पाने में सक्षम होगा। मनरेगा के तहत लोकपाल के रूप में सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अधिकारी, वरिष्ठ वकील, समाज सेवा से जुड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति की नियुक्ति की जा सकती है।

लोकपाल की नियुक्ति के बाद कोई भी व्यक्ति लोकपाल कार्यालय में निःशुल्क शिकायत दर्ज करा सकेगा। शिकायतों का निराकरण करने के लिए सरकार समय सीमा निर्धारित करेगी एवं उस समय सीमा में शिकायतों का निराकरण किया जाएगा। लोकपाल को शिकायत पर प्रत्यक्ष निराकरण, अनुशासनात्मक एवं दंडात्मक कार्रवाई, दोषी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने जैसे अधिकार दिए जा सकते हैं। दोषियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई के लिए उसे अपना प्रतिवेदन राज्य के मुख्य सचिव एवं क्रियान्वयन करने वाले विभाग के सक्षम अधिकारियों को भेजने का दायित्व दिया जाएगा।

मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ में क्रियान्वित लोकपाल मॉडल के समान व्यवस्था लागू किए जाने की संभावना है। छत्तीसगढ़ मॉडल को देखते हुए लोकपाल के समक्ष जिन बिंदुओं पर शिकायत किए जाने का अधिकार आमजन को मिल सकता है, उसमें से मनरेगा को लेकर ग्राम सभा स्तर पर हुई खामियां, परिवारों का पंजीकरण और जॉब कार्ड जारी करने में परेशानी आना, जॉब कार्ड की अभिरक्षा, रोजगार के लिए कार्य की मांग, कार्य की मांग का आवेदन प्रस्तुत करने पर उस दिनांक की पावती रसीद जारी करना, मजदूरी भुगतान, बेरोजगारी भत्ता का भुगतान, लिंग के आधार पर भेदभाव, कार्यस्थल पर सुविधाएं, कार्य की माप, कार्य की गुणवत्ता, मशीनों का उपयोग, ठेकेदारों को निर्माण कार्य में लगाना, बैंक या डाकघरों में खातों का संचालन, शिकायतों का पंजीकरण और निपटारा, मस्टर रोल का सत्यापन, दस्तावेजों का सत्यापन, धनराशि का दुरुपयोग, धनराशि का आबंटन, सामाजिक अंकेक्षण, रिकॉर्ड के रख-रखाव के संबंध में संबंधित अधिकारी-कर्मचारी के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराना सहित कई बिंदुओं को शामिल किया जा सकता है।

छत्तीसगढ़ में प्रचलित शिकायत करने एवं उसके निवारण की प्रक्रिया के तहत कोई भी व्यक्ति जिसे मनरेगा से संबंधित अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ शिकायत है, स्वयं या अपने अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा लोकापाल को लिखित शिकायत कर सकता है। शिकायतकर्ता अथवा उसके अधिकृत प्रतिनिधि, यदि कोई हो, द्वारा शिकायत हस्ताक्षरित होनी चाहिए और उसमें शिकायतकर्ता का पूरा नाम, पता (पत्र व्यवहार के लिए), टेलीफोन या मोबाईल नंबर एवं ई-मेल (यदि हो) पते का स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए। जिसके खिलाफ शिकायत की जाए उसके कार्यालय अथवा विभाग के अधिकारी का नाम, पता का भी उल्लेख किया जाए। शिकायत के तथ्य और उनसे संबंधित दस्तावेज भी दिए जा सकते हैं। शिकायतकर्ता उसे हुई परेशानी या हानि की प्रकृति एवं सीमा और लोकपाल से मांगी गई राहत का उल्लेख भी आवेदन में कर सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यम से की गई शिकायत भी लोकपाल द्वारा स्वीकार की जाएगी। ऐसी शिकायत के प्रिंट-आउट लेकर रिकॉर्ड में रखा जाएगा। लोकपाल द्वारा शिकायत पर कार्रवाई के लिए कदम उठाने से पूर्व इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से की गई शिकायत के प्रिंट-आउट पर शिकायतकर्ता को जल्द से जल्द हस्ताक्षर करने होंगे। हस्ताक्षर किए गए प्रिंट-आउट को शिकायत माना जाएगा और उसके पंजीयन की तिथि वही मानी जाएगी, जिस तिथि को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से शिकायत की गई थी। लोकपाल के स्तर पर ऐसी शिकायत नहीं की जाए, जिसके विषय में पूर्व में लोकपाल कार्यालय द्वारा निराकरण की कार्रवाई की जा चुकी है। लोकपाल को ऐसे किसी भी मुद्दे में शिकायत नहीं की जा सकेगी जिसके संबंध में अपील, संशोधन, संदर्भ अथवा रिट याचिका किसी ट्रिब्यूनल या न्यायालय में विचाराधीन हो।

लोकपाल की महत्ता को देखते हुए यह जरूरी है कि एक बेहतर एवं प्रभावी मॉडल के साथ लोकपाल की नियुक्ति प्रदेश के सभी जिलों में यथाशीघ्र की जाए, ताकि रोजगारी गारंटी कानून में दी गई गारंटी का लाभ ग्रामीण समुदाय को मिल सके, जिसका वे हकदार हैं।

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