मुलायम सोनिया की तल्खी में फंसी लायन सफारी

26 Apr 2013
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इटावा में बनने वाली लायन सफारी में वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन भूमि इस्तेमाल करने की अनुमति प्रदान नहीं की जा रही है जब कि देश में अब तक बनी दूसरी सफारियो और चिड़ियाघरों में इस तरह की आपत्तियां नहीं लगाई गई हैं। भले ही पर्यावरण मंत्रालय की ओर से लायन सफारी पर रोक लगाई गई लेकिन इसे मुलायम और सोनिया के बीच के तल्खी से जोड़ कर ही देखा जा रहा है। इसे पहले सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की ओर से अनुमति प्रदान की जा चुकी है फिर इस तरह की आपत्तियों का कोई औचित्य ही नहीं बनता है। मुलायम सिंह यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट लायन सफारी अब आखिरी स्वीकृति के इंतजार में अटका है। मुलायम सिंह यादव और सोनिया गांधी के बीच जारी तल्खी का असर मुलायम के सपने लायन सफारी पर पड़ने लगा है। इटावा में बनने वाली लायन सफारी पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जो रोक लगाई गई थी उसके दूर होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि लायन सफारी पर रोक मुलायम और सोनिया के रिश्ते में आ रही खटास का ही नतीजा माना जा रहा है। मुलायम सिंह यादव के सपने लायन सफारी पर यूपीए सरकार ने अंड़गा लगा दिया है। कभी डाकुओं के प्रभाव में रहे इटावा में लायन सफारी का निर्माण होना है लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की रोक के बाद नई-नई मुसीबतें लायन सफारी के निर्माण के लिए माँगे जाने के बाद खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव परेशान हो गए हैं। लायन सफारी पर रोक लगने से परेशान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खुद पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को अनुमति दिए जाने के संबंध में खत लिखा है। होली के बाद लिखे गए खत पर अभी तक कोई असर नहीं हुआ है उल्टे लगातार बैठक दर बैठकों में चंबल सेंचुरी के अफ़सर दस्तक देने में लगे हुए लेकिन उनको अभी तक निराशा ही हाथ लगी है।

इटावा में बनने वाली लायन सफारी में वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन भूमि इस्तेमाल करने की अनुमति प्रदान नहीं की जा रही है जब कि देश में अब तक बनी दूसरी सफारियो और चिड़ियाघरों में इस तरह की आपत्तियां नहीं लगाई गई हैं। भले ही पर्यावरण मंत्रालय की ओर से लायन सफारी पर रोक लगाई गई लेकिन इसे मुलायम और सोनिया के बीच के तल्खी से जोड़ कर ही देखा जा रहा है। इसे पहले सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की ओर से अनुमति प्रदान की जा चुकी है फिर इस तरह की आपत्तियों का कोई औचित्य ही नहीं बनता है। मुलायम सिंह यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट लायन सफारी अब आखिरी स्वीकृति के इंतजार में अटका है। 45 करोड़ की इस परियोजना के लिए 5 करोड़ रुपया 2012-13 में और 20 करोड़ रुपया चालू वर्ष के बजट में दिया जा चुका है। फिलवक्त दो बब्बर शेर गुजरात से लखनऊ चिड़ियाघर में व दो शेर हैदराबाद से कानपुर चिड़ियाघर आ चुके हैं।

जब तक लॉयन सफारी तैयार नहीं हो जाती तब तक इनको लखनऊ व कानपुर चिड़ियाघर में रखा जाएगा। ताकि यहां की जलवायु के परिपेक्ष्य में अभ्यस्त बनाया जाएगा। वे लॉयन सफारी में खुले में रहेंगे जबकि इन्हें देखने के लिए जाने वालों को बख्तरबंद गाड़ियों में घुमाया जाएगा। जो शेर आए हैं वे चिड़ियाघर में रहते हैं और उन्हें खुले में रहने का अभ्यस्त बनाया जाएगा। चंबल सेंचुरी के डीएफओ सुजाय बनर्जी बताते हैं कि मार्च 2016 तक सफारी बनकर तैयार हो जाएगी। इसके लिए पूरी कार्ययोजना तैयार कर ली गई है। फिलहाल केंद्रीय वन पर्यावरण विभाग की अनुमति मिलने का इंतजार है। दरअसल यह परियोजना गैर वानिकी कामों में आती है, इसलिए फिशर वन में इसे विकसित करने से पहले वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत क्लेरीफिकेशन होना आवश्यक है। हालांकि इसके मास्टर प्लान व अन्य जरूरी स्वीकृतियों पर केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण पहले ही मंजूरी दे चुका है।

उन्होंने बताया कि सफारी को सैद्धांतिक सहमति देते हुए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) ने यह शर्त रखी थी कि सफारी के लिए पहले बब्बर शेरों का प्रजनन केंद्र स्थापित की जाए। इस केंद्र में वयस्क शेरों का प्रजनन कराया जाए। प्रजनन से उत्पन्न शावकों को ही सफारी में छोड़ा जाए जिससे कि वे यहां की पर्यावरणीय स्थितियों में बचपन से ही खुद को ढाल सकें।उधर प्रमुख वन संरक्षक रूपक डे बताते हैं कि लायन सफारी के निर्माण के लिए सभी तैयारी पूरी कर ली गई है लेकिन महीनों बाद भी केंद्र ने इसके निर्माण की मंजूरी नहीं दी है। डे का कहना है कि मंजूरी मिलने के अगले दिन से इसका निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि शासन ने इस परियोजना के पहले चरण को पूरा करने के लिए 31 मार्च 2016 तक का समय निर्धारित किया है।

लायन सफारी के स्थल चयन के लिए इटावा के फिशर वन को मुफीद पाया गया था। इसी फॉरेस्ट में वन विभाग ने 150 हेक्टेयर पर लायन सफारी बनाने का प्रस्ताव तैयार किया था। इसमें जौली फ्लोरा (विलायती बबूल) को साफ किया गया है। बाद में 150 हेक्टेयर में से 135.70 हेक्टेयर में 50 हेक्टेयर पर सफारी विकसित की जा रही है और बाकी क्षेत्रफल बफर जोन होगा। लायन सफारी की स्थापना के लिए बबूल के पेड़ों से भरे इस जंगल को साफ करने में काफी समय लग गया। इस पूरे क्षेत्र की सिर्फ 50 हेक्टेयर भूमि को शेरों के संरक्षण के लिए मुख्य रूप से तैयार किया गया है।

लॉयन सफारी का लुत्फ उठाने का इंतजार कर रहे लोगों के लिए अच्छी खबर मानी रही है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से आपत्ति जताने से इसमें विलंब को लेकर लग रही तमाम अटकलों पर विराम लग गया है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट लॉयन सफारी का निर्माण कार्य अप्रैल माह में विधिवत शुरू हो जाएगा। कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद ने कागजी खाका तैयार कर लिया है। इसमें अनुमानित साठ करोड़ के खर्च का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इस बीच सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो अप्रैल में किसी भी रोज भूमि पूजन कर निर्माण कार्य का श्रीगणेश हो जाएगा। इसके ठीक दो साल बाद अप्रैल 2015 में यहां बब्बर शेर छोड़े जाने की योजना है। नए मास्टर प्लान के मुताबिक 135 हेक्टेयर लायन सफारी क्षेत्र में जंगल के राजा शेर और उसके परिवार को छांव देने के लिए डेढ़ लाख पेड़ लगाए जाएंगे।

लॉयन सफारी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट है। उनके बीते मुख्यमंत्रित्वकाल में इसकी कवायद शुरू हुई थी। इसके बाद सरकारों की आवाजाही में यह लटक गया था। सूबे में सपा सरकार के सत्तारूढ़ होने पर फिर कार्य ने जोर पकड़ा। प्रस्तावित लॉयन सफारी क्षेत्र में स्थित फिशर वन में विलायती बबूल के पेड़ काटे जाने पर जुलाई 2012 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से आपत्ति जताने और राज्य सरकार को शो-कॉज नोटिस भेजने के बाद प्रोजेक्ट में देरी को लेकर अटकलें लगने लगी थीं। लेकिन सपा सुप्रीमो की केंद्रीय सत्ता में धमक के चलते यह बाधा खत्म हो गई। नवंबर 2012 में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कुछ सुझावों के बाद इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी गई। इसके बाद अफसरों ने कार्य में तेजी दिखानी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद इस प्रोजेक्ट की हर गतिविधि पर निगाह रखे हुए हैं। कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद को निर्माण कार्य की ज़िम्मेदारी सौंपने के बाद बजट उपलब्ध कराने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद की ओर से निर्माण कार्य में 60 करोड़ रुपए खर्च होने की अनुमानित लागत का प्रस्ताव शासन को भेज दिया गया है। मार्च अंत में या फिर अप्रैल शुरुआत में इसका निर्माण शुरू करा दिया जाएगा।

चंबल सेंचुरी के डीएफओ सुजाय बनर्जी का कहना है कि लायन सफारी प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। आवास विकास परिषद ही यहां निर्माण कार्य शुरू कराएगा। प्रोजेक्ट के ले आउट प्लान को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने मंजूरी दे दी है। एशियाटिक लॉयन के संरक्षण के लिए इटावा में बनाए जा रहे लॉयन सफारी प्रोजेक्ट का ले आउट केंद्रीय चिड़ियाघर कमेटी की एक्सपर्ट कमेटी ने पास कर दिया है। अब ये ले आउट टेक्निकल कमेटी के पास है। इसे जल्द ही स्वीकृति मिलने की उम्मीद है। इस ले आउट को कई संशोधन के बाद अंतिम रूप दिया गया है। इस लायन सफारी प्रोजेक्ट का ले आउट लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विभूति नारायण और उनकी टीम ने तैयार किया है जबकि मास्टर प्लान चंबल सेंचुरी क्षेत्र के डीएफओ सुजाय बनर्जी ने बनाया है।

चंबल सेंचुरी क्षेत्र के डीएफओ सुजॉय बनर्जी ने बताया कि बीहड़ की बजरी युक्त ज़मीन को हरा भरा करने के लिए झांसी के ग्रास रिसर्च इंस्टीट्यूट से मंगाई गई घास को रोपा जा चुका है। यह घास धीरे धीरे यहां के पर्यावरण के मुताबिक विकसित हो रही है। इसके फैलाव में विलायती बबूल का विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है जो कि अच्छा संकेत है। माना जाता है कि बिलायती बबूल की वजह से यहां कोई भी पौधा टिक नहीं पाता। जल्द ही यहां झांसी की घास की हरियाली देखने को मिलेगी।

उत्तर प्रदेश वन विभाग ने इटावा में प्रस्तावित लायन सफारी का लेआउट प्लान और मास्टर प्लान केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) को मंजूरी के लिए भेजा था। मास्टर प्लान में लायन सफारी के निर्माण कार्यों और परियोजना पर दस वर्षों के दौरान होने वाले आवर्ती व्यय को शामिल करते हुए कुल 90 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया है।

चंबल सेंचुरी के डीएफओ का कहना है कि पांच दिसंबर को नई दिल्ली में हुई बैठक में सीजेडए की टेक्निकल कमेटी ने लायन सफारी के लेआउट प्लान को स्वीकृति दे दी। वहीं छह दिसंबर को सीजेडए की डिजाइन कमेटी ने परियोजना के मास्टर प्लान को भी हरी झंडी दिखा दी है। परियोजना का मास्टर प्लान अब सीजेडए की टेक्निकल कमेटी के समक्ष अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। टेक्निकल कमेटी की मुहर लगने के बाद परियोजना का मास्टर प्लान सीजेडए से मंजूर माना जाएगा।लायन सफारी परियोजना के तहत एशियाई प्रजाति के बब्बर शेरों को इटावा के फिशर वन में उनका प्राकृतिक पर्यावास मुहैया कराने की मंशा है ताकि पर्यटक उन्हें उनके नैसर्गिक रूप में देख सकें। परियोजना में बब्बर शेरों के विचरण के लिए 50 हेक्टेयर क्षेत्र चिन्हित किया गया है। विचरण क्षेत्र के इर्द-गिर्द 300 हेक्टेयर में बफर जोन विकसित करने का प्रस्ताव है। बफर जोन में एशियाई प्रजाति के बब्बर शेरों के प्रजनन के लिए संरक्षण प्रजनन केंद्र, एनिमल हाउस और पशु चिकित्सालय भी होगा। यहां आने वाले आगंतुकों को शेरों के बारे में जानकारी देने के लिए एक इंटरप्रेटेशन सेंटर भी स्थापित किया जाएगा।

पर्यावरणीय पर्यटन की अगुआ रही राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में अब शेरों की दहाड़ भी गूंजेगी। सेंचुरी में प्रस्तावित लायन सफारी को सेंट्रल जू अथॉरिटी ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही प्रदेश सरकार ने बजट के रूप में सेंचुरी के लिए 90 करोड़ की राशि स्वीकृति की है। लायन सफारी प्रोजेक्ट के लिए शुरुआत में सात शेर लाये जायेंगे। इनमें दो नर तथा पांच मादा होंगे। हैदराबाद जू से भी शेरों के लिए संपर्क किया गया है, किंतु सफारी में गुजरात के गिर के शेर अधिक संख्या में होंगे। शर्त यह है कि लायन सफारी के लिए पहले बब्बर शेरों के लिए प्रजनन केंद्र स्थापित किया जाए। बाहर से लाए गए वयस्क शेरों के प्रजनन से उत्पन्न शावकों को ही सफारी में छोड़ा जाए जिससे कि वे यहां पर्यावरणीय स्थितियों में बचपन से ही खुद को ढाल सकें। परियोजना के लिए एशियाई प्रजाति के बब्बर शेरों के जोड़े मुहैया कराने के लिए हैदराबाद और राजकोट के चिड़ियाघरों ने वन विभाग को रजामंदी दे दी है। बफर जोन में एनिमल हाउस भी होगा जहां बब्बर शेरों को रात में रखा जाएगा। शेरों के इलाज के लिए यहां अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त पशु चिकित्सालय भी होगा। बीमार शेरों को स्वस्थ्य शेरों से अलग करने के लिए श्क्वारंटाइनश बनाने की भी योजना है।

बफर जोन के दूसरे छोर पर विजिटर्स एरिया होगा जहां पर्यटक आएंगे। पर्यटकों के लिए यहां रेस्टोरेंट और बच्चों के खेलने के लिए पार्क होगा। यहां आने वाले आगंतुकों को प्रदर्शों और आडियो-विजुअल तकनीक के जरिए शेरों के पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीवों के रहन-सहन की जानकारी देने के लिए एक इंटरप्रेटेशन सेंटर भी स्थापित किया जाएगा। विचरण क्षेत्र के अंदर दाखिल होने से पहले पर्यटक इंटरप्रेटेशन सेंटर से होकर गुजरेंगे। उप्र आवास एवं विकास परिषद को परियोजना के लिए कार्यदायी संस्था नामित किया गया है। परियोजना के निर्माण कार्यों पर 55 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

लायन सफारी की स्थापना जहां पर की जा रही है वो इटावा मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित फिशर वन इटावा में आज़ादी से पहले तैनात रहे अग्रेज अफसरों के लिए मनोरजंन का खासा स्थान बना रहा है। पहले इस इलाके में पानी को रोकने के लिए एक बड़ा बांध बनाया गया था लेकिन वक्त की मार के चलते यह बांध अब पूरी तरह से टूट चुका है।

फिशरवन अग्रेंज अफसरों की यह शिकारगाह रही है यहां पर इटावा के महाजन लोग अग्रेंज अफ़सरों के लिए हिरन,सांभर,चीतल और तेदुओं को पहले शिकारियों के जरिए पकड़वा कर अग्रेंज हुक्मरानो के सामने पकड़वा कर उनके शिकार के लिए पेश किए जाते थे फिर अग्रेंज गोली से उनका शिकार करके खुश हुआ करते थे। जानवरो के मरने के बाद उसके मांस को वही पर पका कर के खाने का क्रम भी अग्रेंज अफ़सर अपने परिवार के साथ किया करते थे। फिशर वन इलाक़ा उस समय शीशम के पेड़ों से हरा भरा हुआ करता था खासी तादाद में इस इलाके में शीशम के पेड़ हुआ करते थे लेकिन अब वन माफियाओं ने इस इलाके पर अपनी नजर गड़ा रखी है इस वजह से इस इलाके में शीशम को कोई पेड़ नहीं रह गया है।

इटावा के तत्कालीन ज़िलाधीश जे.एफ. फिशर के सन् 1884 में अपने प्रारंभिक प्रयासों से उन उम्मीदों को जिसके पास इटावा शहर के पश्चिम की दिशा में बीहड़ ज़मीन थी, को अपनी इच्छानुसार 1146.07 हे. ज़मीन ज़िलाधीश को सौंप देने के लिए राजी किया ताकि भूमि को क्षरण व अधिक ह्रास से बचाया जा सके तथा ईंधन व चारे के आरक्षित वन बनाए जा सकें। जमीदारों को ही इस कार्य के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराना था तथा इससे जो भी लाभ होता उसको दिए गए धन तथा अर्जित की हुई भूमि के अनुसार विभाजित करके चुकाना था। कार्य उसी वर्ष प्रारम्भ हो गए, क्षेत्र चरान के लिए बंद कर दिया गया और उसकी साधारण हल से जुताई कर इसमें बबूल, शीशम तथा नीम के बीजों को बोया गया। बीहड़ में जगह-जगह पर बंधे बनाए गए ताकि जल व नमी का संरक्षण किया जा सके तथा जल स्तर ऊपर आ सके। बबूल की बढ़त इतनी उत्साहवर्द्धक थी कि कानपुर के कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1902 में पूरा जंगल बबूल की छाल निकालने हेतु 2.50 रु. प्रति है. पर 50 वर्ष के पट्टे पर लेने को आकर्षित हुई।

कानपुर के चमड़े के कारख़ानों में बबूल की छाल की आपूर्ति बढ़ाने तथा इतन कारख़ानों के निकट बबूल के भंडार स्थापित करने के उद्देश्य से कालपी बीहड़ों में तथा आटा रेलवे स्टेशन के दक्षिण में स्थित पिपरायां में खेती योग्य ज़मीन जुताई कर बनाई गई। वनीकरण कार्य बीहड़ों में बंधे बनाने के कार्य के साथ प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में परिणाम आशाजनक प्रतीत हुए परन्तु अंतिम सफलता दूर ही रही। आर्थिक दृष्टि से यह रोपवन असफल रहा। सन् 1912 के प्रारम्भ में सरकार के सम्मुख नए जंगलों को लगाने की विशेष तथा उन जंगलों जिनकी आवश्यकता कृषि जनक मांगों को पूरा करने के लिए थी, को एक निश्चित नीति निर्धारित करने की थी, परिणामस्वरूप उपलब्ध क्षेत्रों के साथ विभिन्न वर्गों की बंजर भूमि में वनीकरण के उपयोग के लिए आदेश दिए गए।

कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1914 तक फिशर वन का व्यवहारिक रूप से विस्तार कर लिया था जो कि उन्होंने 1902 में बबूल की छाल के लिए पट्टे पर लिया था। वन विभाग की निगाहें इस क्षेत्र पर पहले से थी, जिसमें कुछ सफलता दृष्टिगोचर हुई थी। अन्य क्षेत्रों में किए गए प्रथम वर्ष के वृक्षारोपण के उत्साहजनक परिणामों से वन विभाग अपने अधीन क्षेत्रों का विस्तार करने को इच्छुक था। कम्पनी ने रु. 2500.00 पट्टे की कीमत तथा रु. 2,382.00 जमीदारों के वार्षिक किराए सहित इस क्षेत्र के पट्टे को वन विभाग को स्थानान्तरित कर दिया। इस प्रकार फिशर वन 1914 से ही वन विभाग के नियंत्रण में है।

वनीकरण कार्य वर्ष 1913 के पश्चात मुख्यतः दो प्रकार से किए गए, पहला नालों या अन्य उपयुक्त स्थलों पर बंधें बनाकर बढ़ते हुये भू- क्षरण को रोकना, दूसरा उपयुक्त प्रजातियों का पौधा रोपण या बीजारोपण कर भूतल को एक वानस्पतिक आवरण प्रदान करना जो प्रारम्भ में भूमि को अपक्षरित होने से बचाए तथा भविष्य में एक ईंधन का भंडार भी बने।

बीजारोपण तथा पौधारोपण की विधि के अंतर्गत ऊँची समतल भूमि पर 20 से.मी. गहरा हल चलाया गया, 3-3 मीटर की दूरी पर 30 से.मी. ऊँची तथा 60 से.मी. चौथी आधार वाली समानान्तर कूट बनाई गई जिनके ऊपर और एक उथली बनाई गई, जिसमें शीशम, नीम, कंजी आदि के पौधों का रोपण किया गया तथा बबूल, नीम, पापड़ी के बीजों का कूटों में बुहान किया गया। जगह-जगह पर जल व मृदा संरक्षण हेतु नालों में बंधे बनाए गए तथा सही विधि बीहड़ों के तल के मैदानी भागों के लिए भी अपनाई गई।

फिशर फारेस्ट (प्रतावित लॉयन सफारी पार्क) क्षेत्र में कालान्तर में चौड़ी पत्ती का अच्छा वन स्थापित हो गया था, जिसकी मुख्य प्रजातियाँ शीशम, सेमल, नीम, कंजी तथा बॉस थीं। जैविक दबाव के कारण चौड़ी पत्तियों की प्रजातियों के वृक्षों में निरंतर ह्रास होता गया, इन परिस्थितियों में भूमि को क्षरण से बचाने तथा ईंधन, चारे की निरंतर बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विलायती बबूल के बीजों का छिड़काव सन् 1985 तथा उसके बाद कई वर्षों में किया जाता रहा, क्योंकि यह एक ऐसी प्रजाति थी जो अत्यंत ही अवनत भूमि पर कम से कम पानी की आवश्यकता के साथ शीघ्रता से बढ़ सकती थी। परिणामस्वरूप उक्त वन क्षेत्र में प्रोसोपिस (विलायती बबूल) का घनत्व बढ़ता गया एवं वर्तमान में इस खेत्र ने प्रोसोपिस वन का रूप ले लिया है, फिर भी बीच-बीच में वनस्पतियों की अन्य प्रजातियाँ भी हैं एवं उन प्रजातियों के रूट स्टॉक भी पर्याप्त मात्रा में फिशर फारेस्ट क्षेत्र में विद्यमान हैं।

इटावा में बन रही लायन सफारी में शेरों को देखने के लिए कम से कम चार साल का इंतजार करना पड़ेगा। फिलहाल लायन सफारी के लिए दो जोड़े शेर यूपी को मिल गए हैं। ये गुजरात के गिर जंगल से नहीं, बल्कि राजकोट और हैदराबाद के चिड़ियाघर से महीने भर में लाए जाएंगे। औपचारिकता पूरी हो चुकी हैं। इन्हें कानपुर और लखनऊ के चिड़ियाघर में प्रजनन के लिए रखा जाएगा। इससे पैदा हुए बच्चों की दो साल बाद फिर ब्रिडिंग करवाई जाएगी। तब लायन सफारी के लायक शेरों की संख्या हो पाएगी।

पूरी प्रक्रिया में कम से कम चार साल लग जाएंगे। दरअसल, गुजरात के गिर जंगल में करीब तीन सौ शेर बच्चे हैं। ऐसे में केंद्रीय जू अथॉरिटी ने चंबल के बीहड़ में शेर पहुंचाने को तैयार नहीं था। आपत्ति थी कि यदि बीहड़ का वातावरण शेरों को रास न आया तो उनकी संख्या में गिरावट हो सकती है।

अथॉरिटी ने इसी शर्त में अनुमति दी कि पहले प्रजनन केंद्र बनाए जाएं, ताकि शेरों को बचपन से बीहड़ का वातावरण दिया जा सके। इसके लिए जंगली बबूल भी हटाए जाएंगे। शेरों को दूसरे राज्यों के जंगल से लाने में दिक्कत थी। इसलिए जानवरों के आदान प्रदान के तहत दूसरे राज्यों के चिड़ियाघर से शेर मंगवाए जा रहे हैं। इन्हें ब्रीड करवाकर लायन सफारी में रखा जाएगा। कुछ वर्ष बाद लायन सफारी को डेढ़ सौ एकड़ में फैलाया जाएगा। हालांकि विलायती बबूल (ज्यूली फ्लोरा) के स्थान पर चौड़ी पत्ती के छोटे पेड़ों को लगाने का काम भी इसमें मुश्किल बना हुआ है। छोटे पेड़ लगाने की वजह भी है, ताकि लोग कार व जीप में बैठकर शेर की मटरगश्ती आसानी से देख सकें। वन विभाग की योजना में मिट्टी के टीलों को समतल करने की भी है। प्रस्तावित लायन सफारी आगरा से 120 किलोमीटर दूर इटावा में है। हालांकि चंबल सेंचुरी से जुड़े रहने के कारण यह आगरा के लिए आकर्षण माना जा रहा है।

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