मूर्ति विसर्जन से पानी में ऑक्सीजन हुई कम

statue immersion
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नवरात्र विशेष


मुर्ति विसर्जनधार। गणपति प्रतिमा विसर्जन को लेकर जिस तरह से जनजागरुकता अपनाई गई, उस तरह से माँ दुर्गा की प्रतिमाओं के लिये भी जनजागरण की बेहद जरूरत है। इसकी वजह यह है कि आमतौर पर गणेश प्रतिमाएँ औसत आकार की होती है, लेकिन माँ दुर्गा की प्रतिमाएँ बड़े आकार की ही होती हैं और सभी प्लास्टर आफ पेरिस की ही बनी होती हैं।

मिट्टी से गणेश प्रतिमा बनाना आसान होता है, इसलिये कहीं-न-कहीं गणेश प्रतिमाओं के मामले में प्लास्टर आफ पेरिस का उपयोग कम होता है, लेकिन यह प्रामाणिक तथ्य है कि माताजी की प्रतिमाएँ बनाने में शत-प्रतिशत रूप से प्लास्टर आफ पेरिस का ही इस्तेमाल हो रहा है। इनके विसर्जन के बाद तालाब के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हुई है। साथ ही जलीय जैव विविधता को भी गम्भीर नुकसान हुआ है।

वैसे तो प्रकृति के लिये पानी को दूषित करना घातक है ही, लेकिन अब हम दो पर्वों पर बनने वाली प्रतिमाओं और विसर्जन के हालात देखें तो क्षेत्र की व्यवस्था अनुसार शायद बड़ी प्रतिमाओं के निर्माण से ज्यादा दिक्कत हो रही है। 13 अक्टूबर से एक बार फिर शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होनेे जा रही है। इसके लिये बड़े-बड़े पंडाल और बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं की कवायद शुरू हो चुकी है।

प्रतिस्पर्धा ऐसी है कि हर कोई मूर्ति के बड़े आकार को प्राथमिकता दे रहा है। जबकि पर्यावरण के प्रति यदि सचेत रहे तो यह एक चिन्ता का विषय है। बहरहाल, अब क्या किया जाये, यह सबसे अहम बात है। इसी के चलते मूर्ति के विसर्जन और उनके आकार को लेकर बहुत ही जरूरी बहस होना चाहिए।

 

ये है तुलनात्मक अध्ययन


आमतौर पर यह देखने में आया है कि गणेश जी की प्रतिमाओं में करीब 40 फीसदी तक मूर्तियाँ मिट्टी की बनी होती हैं। इसकी वजह यह है कि लोग परम्परा के लिये भी मिट्टी से बने हुए गणेश जी की प्रतिमा का पूजन करते हैं। दूसरी ओर लगातार जनजागरण का परिणाम रहा है कि वे ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएँ ही इस्तेमाल करते हैं। इसके विपरीत माताजी की प्रतिमाओं को लेकर अलग ही स्थिति है।

एक और चिन्ता का विषय यह है कि मिट्टी से आसान से ये प्रतिमाएँ बन भी नहीं सकती है। इसलिये मूर्ति निर्माता व कलाकार साँचे से और प्लास्टर आफ पेरिस से ही आकर्षक मूर्तियाँ बना पाता है। इस तरह की मजबूरियों में कहाँ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, यह देखने की आवश्यकता है। माना जा रहा है कि अब गणेश प्रतिमाओं की तरह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

 

 

सफलता पर हमेशा प्रश्न


प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि हमने छोटे-छोटे जिले से लेकर तहसील स्तर के तालाबों का जल जाँचा। हमने यह पाया कि तालाब में जब भी गणेश प्रतिमाओं और दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है, तो उसके बाद में तालाब में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। दूसरी ओर जलीय जैव विविधता व जीवों को नुकसान हुआ है। इसकी वजह यह है कि ऑक्सीजन की मात्रा कम हुई है।

हमने तमाम प्रतिबन्ध लगाए, उसके बावजूद सफलता मिली। लेकिन उस सफलता का प्रतिशत शत-प्रतिशत नहीं रहा है। आगामी दिनों में भी हम पूरे प्रदेश में यही अपेक्षा कर रहे हैं कि नगरीय निकाय व अन्य जिम्मेदार लोग व एजेंसी इस ओर विशेष ध्यान दे कि किसी भी सूरत में पर्यावरण को नुकसान न हो और तालाबों में मूर्तियों का विसर्जन नहीं किया जाये। उल्लेखनीय है कि आगामी दिनों में शहर के प्रमुख तालाबों में माताजी की प्रतिमाओं का विसर्जन होगा। ऐसे में जरूरी है कि कृत्रिम पोखर बनाकर इस तरह की व्यवस्था से निपटा जाये।

 

 

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