नैनीताल झील के संरक्षण के लिये अनुशंसाएँ (भाग 5)


नैनीताल झील के क्षरण के लिये संभावित व्यापक कारण, चिंता के विषयों तथा विज्ञान और तकनीकी हस्तक्षेप पर चर्चा करने के लिये राज्यपाल महोदय की अध्यक्षता में दिनांक 20 फरवरी, 2017 को राज भवन, देहरादून में एक सत्र (brainstorming session) का आयोजन के दौरान नैनीताल झील की बुनियादी जानकारी, नैनीताल झील की वर्तमान स्थिति तथा सभी तकनीकी और वैज्ञानिक तथ्यों पर चर्चा हुई थी जिसके उपरांत निम्नानुसार अनुसंशाएँ प्रस्तुत हैं -

नैनीताल झील

अनुशंसाएँ :


• बारिश जल निकासी / नाली का रख-रखाव उचित रूप से किया जाना चाहिए। नालीयों की निरंतर सफाई और संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता है। अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग किया जाना चाहिए।

• वन पारिस्थितिकी को बचाने के प्रयास किए जाने चाहिए।

• झील की जल धारण क्षमता बढ़ाने के लिये हर साल वर्षा की शुरुआत से पहले गाद (silt) हटाया जाना चाहिए।

• स्थानीय लोगों द्वारा जल संचयन, झील से प्रवाह की निगरानी, स्प्रिंग सेट द्वारा झील का पुनर्भरण और छोटे गड्ढे और कुँओं की रिचार्जिंग की आवश्यकता है।

• सूखाताल झील को रिचार्ज किया जाना चाहिए और झील में जल प्रतिधारण को बढ़ाने के लिये बचाया जाना चाहिए। पास के स्प्रिंग्स से झील को रिचार्ज करने के लिये neo-tectonic अध्ययन पर जोर देने की आवश्यकता है।

• नैनी झील के एक उच्च गुणवत्ता वाले bathymetric सर्वेक्षण को पूरा करने की जरूरत है।

• झील जल पम्पिंग नीति की समीक्षा करने जिसमें जल संचरण में नुकसान शामिल है और पानी के संरक्षण के उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।

• झील के जल प्रबंधन के लिये तर्तरीय उपचार जैसे डल झील में अभ्यास किया जा रहा था, का अनुपालन करने का सुझाव दिया गया।

• झील के जलग्रहण में मिट्टी के क्षरण को कम करने के लिये उपयुक्त उपाय करने आवश्यक हैं और झील में जाने के लिये भवन निर्माण सामग्री को प्रतिबंधित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

• 1927 में बनाई गई पहाड़ी सुरक्षा समिति (Hill Side Safety Committee) को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए जिसके लिये वैज्ञानिकों के साथ झील विकास प्राधिकरण के तहत एक संयुक्त कार्य समूह, कनेक्शन विकसित किया जाना चाहिए, जिसका संचालन कुमाऊँ आयुक्त द्वारा किया जाना चाहिए।

• वर्षाजल सीवेज में प्रवेश नहीं करना चाहिए। वर्षाजल संचयन विधियों के लिये स्कूलों और कार्यालयों के लिये नियमों की स्थापना होनी चाहिए, जिसके लिये एलडीए को कुछ तत्काल प्रयास करने चाहिए।

• निर्माण मलबे को एकत्र किया जाना चाहिए और डंप किया जाना चाहिए।

• नैनीताल में पर्यटन की गुणवत्ता में सुधार करना आवश्यक है। स्थानीय लोगों के बीच जागरुकता पैदा करने, बेहतर पर्यटन के लिये प्रोत्साहित करने नैनीताल और आस-पास के क्षेत्रों को बेहतर पर्यटन स्थल बनाने के लिये प्रयास किए जाने चाहिए।

• पानी की लागत में कटौती करने के लिये पानी के टैरिफ और उपयोगकर्ता शुल्क की शुरुआत की जा सकती है।

झील के संरक्षण और बहाली के लिये कार्य में सक्रिय महत्त्वपूर्ण संस्थान -

- राष्ट्रीय झील क्षेत्र विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एनएलआरएसएडीए), नैनीताल, उत्तराखंड
- सिंचाई विभाग, नैनीताल, उत्तराखंड
- लोक निर्माण विभाग, नैनीताल, उत्तराखंड
- नैनीताल नगर पालिका परिषद (एनएनपीपी),
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच), रुड़की, उत्तराखंड
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की, उत्तराखंड
- उत्तराखंड विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद, देहरादून, उत्तराखंड
- वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी)
- उत्तराखंड जल संस्थान (यूजेएस),
- उत्तराखंड पेयजल निगम (यूपीजेएन),
- मत्स्य पालन विभाग, उत्तराखंड,
- शीत जल मत्स्य पालन अनुसंधान निदेशालय, नैनीताल
- कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल,
- जीबी पंत संस्थान हिमालयी पर्यावरण विकास, उत्तराखंड
- जी.बी. कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड
- उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी)- महसीर कंजर्वेंसी फोरम,
- वन अनुसंधान केंद्र, देहरादून
- कुमामंड मंडल विकास निगम (केएमवीएन)
- गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन),
- उत्तरांचल पर्यटन बोर्ड,
- भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण, देहरादून
- सेंटर फॉर इकोलॉजी डवलपमेंट एंड रिसर्च(सीईडीएआर), देहरादून
- केंद्रीय हिमालयी पर्यावरण एसोसिएशन (चीआ), नैनीताल
- सतत विकास मंच उत्तरांचल (एसडीएफयू), इत्यादि नैनीताल में सक्रिय महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं।

इस बैठक के दौरान निम्न विशेषज्ञ उपस्थित थे-
श्री चंद्र शेखर भट्ट, (आईएएस); श्री दीपेंद्र कुमार चौधरी, जिला मजिस्ट्रेट, आयुक्त कुमाऊँ मंडल, नैनीताल; डॉ सुधीर कुमार, वैज्ञानिक-जी, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान; डॉ अरुण कुमार, आईआईटी रुड़की, प्रो. एम.पी.शर्मा, वैकल्पिक जल ऊर्जा केंद्र (एएचईसी), आईआईटी रुड़की; डा. इंदु कुमार पांडे, सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा; श्रीमती विभा पुरी दास, पूर्व सचिव, भारत सरकार; डॉ राजेंद्र डोभाल, महानिदेशक, उत्तराखंड विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद (यूकोस्ट); डॉ बी. के. जोशी, पूर्व कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय; प्रो. ए. एन. पुरोहित, पूर्व कुलपति, एच. एन. बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय; प्रो. एस. पी. सिंह, पूर्व कुलपति, एच. एन. बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय; श्री एस. एस. पांगती, सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा; श्री शिरीष कुमार, सचिव, झील विकास प्राधिकरण, नैनीताल; डॉ. भाकूनी, समूह प्रमुख / वैज्ञानिक डी, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून, डॉ. पी. के. चंपती रे, वैज्ञानिक / इंजीनियर- एसजी, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस) देहरादून, श्री जे. एस. सुहाग, (आईएफएस), प्रो जी. एल. शाह, सेवानिवृत्त, कुमाऊँ विश्वविद्यालय; प्रो. जे. एस. रावत, कुमाऊँ विश्वविद्यालय; श्री राजीव लोचन साह, नैनीताल समाचार; श्रीमती बिनीता शाह, सचिव, सतत विकास मंच उत्तरांचल , (एसडीएफयू); श्री कृष्ण सिंह रौतेला, सतत विकास मंच उत्तरांचल, (एसडीएफयू); डॉ. चारु सी पंत, भूविज्ञान विभाग, कुमाऊँ विश्वविद्यालय; श्री एस. टी. एस. लेपचा, प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड वन विकास निगम (यूएएफडीसी); श्री एच पी यूनियाल, उत्तराखंड राज्य योजना आयोग; डॉ. अंबरीश के तिवारी, भारतीय जल एवं जल संरक्षण संस्थान; डॉ. उदय मंडल, भारतीय जल एवं जल संरक्षण संस्थान, श्री डी.सी.सिंह, मुख्य अभियंता, सिंचाई विभाग, हल्द्वानी; श्री सी.एस. नेगी, पीडब्ल्यूडी, नैनीताल; श्री जगदीश चौधरी, जल संस्थान, नैनीताल; श्री रोहित शर्मा, कार्यकारी अधिकारी, नैनीताल नगर पालिका, डॉ. अवक्षेश कुमार, प्रिंसिपल वैज्ञानिक, भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान, देहरादून; डॉ. राजीव गुप्ता, प्रिंसिपल सहायक, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की; डॉ राजेश शर्मा, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून; श्री रॉबिन आर्य, जल संस्थान; डॉ. विशाल सिंह, पारिस्थितिकी विकास और अनुसंधान केंद्र (सीडीआर); डॉ. बी.पी. पुरोहित, संयुक्त निदेशक, (यूकोस्ट), डॉ. डी.पी. उनियाल वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), डॉ. आशुतोष मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), डॉ. पीयूष जोशी, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), डॉ. कीर्ति जोशी, वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), श्री अमित पोखरीयाल, प्रबंधक जनसंपर्क, (यूकोस्ट), डॉ. गोविंद कुमार, वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), डॉ. प्रवीण ओनियाल, वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), श्री जितेंद्र कुमार, वैज्ञानिक अधिकारी (यूकोस्ट), श्री विकास नौटियाल, जूनियर वैज्ञानिक सहायक, (यूकोस्ट)।

नैनी झील पर विस्तृत विवरण एक डॉक्यूमेंट के रूप में प्रकाशित कराकर आम जन हेतु उपलब्ध कराया जायेगा।

 

 

 

​नैनी झील के कम होते जलस्तर

 

(इसके अन्य भागों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

नैनीताल झील पर वैज्ञानिक विश्लेषण – (भाग-1)

2

नैनी झील के जल की विशेषता, वनस्पति एवं जीव के वैज्ञानिक विश्लेषण (भाग-2)

3

नैनी झील के घटते जलस्तर एवं उस पर किये गए वैज्ञानिक अध्ययन क्या कहते हैं (भाग 3)

4

​नैनी झील के कम होते जलस्तर के संरक्षण और बहाली के कोशिशों का लेखा-जोखा (भाग 4)

5

नैनीताल झील के संरक्षण के लिये अनुशंसाएँ (भाग 5)

 

डॉ. राजेंद्र डोभाल
महानिदेशक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उत्तराखंड।
 

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