नदी जोड़ परियोजना : किसान खुशहाल होंगे

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प्रतिमत

मानसून आने के साथ ही देश में भारी बारिश और बाढ़ की खबरें भी आने लगती हैं। ऐसा कोई मानसून अब तक खाली नहीं गया जब उस दौरान देश के किसी भाग में बाढ़ न आई हो। बाढ़ आती है तो भारी तबाही मचाती है। खेत-खलिहानों को तबाह करने के साथ ही करोड़ों रुपये की सार्वजनिक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाती है। हजारों लोगों को बेघर कर देती है। सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है। इसके अलावा पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है और कई संक्रामक बीमारियां फैलती हैं। वहीं दूसरी तरफ बारिश न होने से देश के कुछ हिस्सों में सूखे या अकाल जैसे हालात बन जाते हैं। लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता और खेतों में फसलें सिंचाई के बिना सूख जाती हैं। इन सबके बीच अरबों घनफुट पानी बेकार चला जाता है, क्योंकि हमारे यहां पानी संग्रहण की समुचित व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है। यह दृश्य महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में भी हर साल दिखाई देता है।

यदि बाढ़ के पानी को संग्रहित किया जाए तो न ही पेयजल का संकट खड़ा होगा और न ही खेतों में लगी फसलें पानी के बिना सूखेंगी। इसके अलावा तेजी से नीचे जा रहे जलस्तर के गिरावट में कमी आएगी, लेकिन यह तभी संभव है जब नदियों को आपस में जोड़ने की योजना पर गंभीरता से अमल किया जाए। अगर यह परियोजना तैयार हो जाए तो बाढ़ से होने वाली भारी तबाही पर रोक लगाई जा सकती है। इस लिहाज से देखें तो नदी जोड़ योजना मौजूदा समय की जरूरत है। खासकर महाराष्ट्र व विदर्भ क्षेत्र के लिए यह योजना काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। महाराष्ट्र का कुल क्षेत्रफल 30,7713 किलोमीटर है। सामान्य तौर पर यहां के खोर्यों को पांच विभागों में बांटा गया है। 1. गोदावरी, 2. कृष्णा, 3. तापी, 4. नर्मदा, 5. कोंकण की पश्चिमी दिशा में बहने वाली नदियां। इन खोर्यों में कुल पानी की उपलब्धता 4,646 अरब घनफुट (1,31,562 दलघमी) है। हालांकि, कई विवादों के चलते महाराष्ट्र के उपयोग में कुल 4,463 अरब घनफुट (126377 दलघमी) आता है।

महाराष्ट्र में अमूमन मानसूनी बारिश 1300 मि.मी. है। राज्य में 555.75 लाख एकड़ कृषि योग्य क्षेत्र है। इसी तरह 158.90 लाख एकड़ वनक्षेत्र है। यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.91 प्रतिशत है। विदर्भ के लिहाज से देखें तो यहां का भौगोलिक क्षेत्रफल 97,400 चौरस किलोमीटर है। हालांकि, कई जल विवादों के बाद भी विदर्भ के हिस्से में कुल 774 अरब घनफुट (21917 दलघमी) जलसंपत्ति मौजूद है। विदर्भ में अमूमन मानसूनी बरसात 550 से 1700 मि.मी. दर्ज की जाती है। विदर्भ में 140.87 लाख एकड़ कृषि योग्य भूमि है और 93.13 लाख एकड़ वन क्षेत्र है। राज्य के कुल वन क्षेत्र में 58 फीसदी वन परिक्षेत्र विदर्भ में ही है। पूर्व व पश्चिम विदर्भ का मौसम, खेती की जमीन और वहां उगाई जाने वाली अलग-अलग फसलों के अलावा यहां की संस्कृति में भी काफी अंतर है। इसी तरह पूर्व विदर्भ में वनों का क्षेत्रफल अधिक है। यहां कृषि योग्य भूमि पश्चिम विदर्भ की अपेक्षा कम है, लेकिन इस इलाके में जलसंपदा अधिक है। इसके उलट पश्चिम विदर्भ में सिंचाई क्षेत्र कम है।

विदर्भ में जलसंपत्ति का नियोजन

विदर्भ के नदी जोड़ प्रकल्प

1.गोदावरी पानी विवाद और मध्यप्रदेश से विदर्भ को मिलने वाला पानी।

अ. कन्हान प्रकल्प


वैनगंगा की उप नदी है कन्हान। यह नदी मध्यप्रदेश से महाराष्ट्र में प्रवेश करती है। महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश की सीमारेखा तक उपलब्ध जलसंपत्ति 15 अरब घनफुट पानी मानसून के जाने के बाद विदर्भ को मिलता है। इसके लिए जरूरी जलसाठे का निर्माण मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र को कराना चाहिए। कन्हान नदी पर मध्यप्रदेश के जामघाट में जलसाठे का निर्माण कर उसके द्वारा 10 अरब घनफुट पानी नागपुर शहर और इस क्षेत्र के सिंचाई के लिए उपलब्ध हो सकता है। इसी तरह 5 अरब घनफुट पानी महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश सीमा पर निर्माणाधीन कोची प्रकल्प से उपसा पद्धति से उमरी व केलवद में संग्रहित कर सकते हैं और यह पानी कन्हान उपखोरा व वर्धा उपखोरे में पानी की अत्यंत कमी होने से इसका उपयोग काटोल-नरखेड़ भाग में किया जाना चाहिए। इसी माध्यम से कन्हान नदी पर जामघाट से वैनगंगा उपखोरे का पानी वर्धा उपखोरे होते हुए वेणा प्रकल्प तक ले जाया जा सकता है। इसके द्वारा नागपुर शहर की प्यास बुझाई जा सकती है। इसी तरह कोची प्रकल्प से वैनगंगा उपखोरे से पानी वर्धा उपखोरे में लाया जा सकता है।

ब. सोन नदी व देव नदी


सोन व देव ये दोनों नदियां बाघ वैनगंगा की उपनदियां हैं। ये दोनों नदियां मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ से आकर बाघ नदी में मिलती हैं और आगे बाघ नदी वैनगंगा नदी में आकर समाहित हो जाती है। इन दोनों नदियों पर महाराष्ट्र सरकार जलसाठा निर्माण कर मानसून के दरम्यान 15 अरब घन फुट पानी वैनगंगा से धापेवाड़ा बैराज में लाया जा सकेगा। धापेवाड़ा बैरेज से उपसा पद्धति द्वारा भंडारा व गोंदिया जिले के करीब 1,87,720 एकड़ क्षेत्र को पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। इस योजना से संपूर्ण भंडारा व गोंदिया जिले के सभी भागों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना जरूरी है।

स. उर्ध्वतापी टप्पा-1


महाराष्ट्र के अमरावती व मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले की सीमा पर प्रवाहित होने वाली तापी नदी पर धारणी के पास खाटियाधुटी घाट पर जलसाठा निर्माण करने और उसमें संग्रहित होने वाले पानी का दोनों राज्यों द्वारा उपयोग किए जाने की योजना है, लेकिन इस योजना के डूबित क्षेत्र में मेलघाट बाघ प्रकल्प के आने से अब बांध स्थल को और नीचे ले जाने की योजना है। पहले के प्रस्ताव में पूरा पानी विदर्भ व मध्यप्रदेश के मध्य बंटना था, लेकिन इस योजना से विदर्भ को खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। इस योजना से सबसे अधिक लाभ खानदेश को मिलेगा। हालांकि डूबित क्षेत्र के लोग इस योजना का विरोध कर रहे हैं। इस दौरान तापी नदी का पानी पूर्णा उपखोरे में लाने का अध्ययन किया जा रहा है। मगर इस खोरे से महाराष्ट्र के हिस्से में जरूरत से कम पानी मिलने की संभावना है।

2. वैनगंगा/इंद्रावती का पानी वर्धा, पैनगंगा और गोदावरी व पूर्णा का पानी तापी खोरा से मिलाना

अ. वैनगंगा-नलगंगा टर्निंग योजना


वैनगंगा नदी पर गोसीखुर्द प्रकल्प का निर्माण कार्य शुरू है। नहरों और पुनर्वास का काम करीब-करीब पूरा हो गया है। इस प्रकल्प से उपलब्ध होने वाली कुल जलसंपत्ति में करीब 2721 दलघमी पानी बकाया है। अगर इस पानी को सीधे नदी में छोड़ें तो उस पर महाराष्ट्र-विदर्भ का हक पूरी तरह खत्म हो जाएगा। इन हालात में यहां बचे पानी को उपसा पद्धति से लेकर गोदावरी खोरा से वर्धा उपखोरे व तापी खोरे से पूर्णा उपखोरे में पहुंचाना चाहिए। इसके मद्देनजर यह पानी वैनगंगा से लेकर 478 किमी दूर बुलढाणा जिले की नलगंगा तक पहुंचेगी। इससे करीब 10 लाख 21 हजार 962 एकड़ कृषि क्षेत्र को लाभ मिलेगा। यह प्रकल्प कार्यान्वित होने पर महाराष्ट्र में सबसे अधिक सिंचन क्षेत्र वाला प्रकल्प हो जाएगा यानी पश्चिम विदर्भ में सिंचाई का अनुशेष दूर करने में बड़ी मदद मिलेगी। यह संभव है, पर इसके लिए राजनीतिक व प्रशासकीय इच्छाशक्ति की जरूरत है।

ब. इंद्रावती टर्निंग योजना


गोदावरी खोरा व इंद्रावती उपखोरे से विदर्भ के हिस्से में 41 अरब घनफुट जलसंपदा उपलब्ध है, लेकिन इस उपखोरे के अंतरराज्यीय होने से भोपालपट्टम के साथ अन्य जलविद्युत परियोजनाओं के इस भाग (गढ़चिरोली जिला) में वनसंपदा, अभ्यारण्य आदि होने के कारण इसका कार्य हाथ में लेना मुश्किल है। जिस खोरे में ज्यादा पानी है, उसका पानी कम जलसंपदा वाले खोरे में लाकर किसानों को उपलब्ध कराया जा सकेगा।

नामंजूर प्रकल्पों की जलसंपत्ति का उपयोग

विदर्भ में ये उपाय उपयोगी साबित हो सकते हैं

महाराष्ट्र व विदर्भ की तुलना

अनु क्र.

विवरण का प्रतिशत

महाराष्ट्र

विदर्भ

महाराष्ट्र से विदर्भ

1 भौगोलिक क्षेत्र लाख हेक्टेयर 307.713 97.400 31.65
2 खेती योग्य क्षेत्र लाख हेक्टेयर 225.000 57.034 25.35
3 वन क्षेत्र लाख हेक्टेयर 64.335 37.300 57.98
4 जनसंख्या (2001) करोड़ 9.69 2.06 21.26
5 मानसूनी बारिश 500 से 3000 550 से 1700
6 पानी की उपलब्धता अ.ध.फू.
गोदावरी 1317.25 677.75 51.45
कृष्णा 1001.92 - -
तापी 246.39 96.00 38.96
नर्मदा 11.12 - -
कोंकण की पश्चिमी नदियां 2069.42 - -
कुल पानी की उपलब्धता अ.ध.फू. 4646.10 773.75 16.65
7 जनसंख्या के प्रमाण मे हर दिन पानी की खपत घ.मी./व्यक्ति 1357.7 घ.मी. 1063.9 घ.मी. 78.36
8 निर्माण हुआ जलसाठा अ.ध.फू. 1172.85 267.79 22.83
9 निर्माण सिचाई क्षमता लाख हेक्टेयर (स्थानीय स्तर छोड़कर) 46.30 10.60 22.89
10 प्रत्यक्ष निर्माण हुआ सिंचाई (लाख हेक्टेयर) जून 2009 अखेर    25.42 4.31 16.96
11 प्रत्यक्ष सिंचाई की निर्मित सिंचाई क्षमता प्रतिशत में 54.90 40.66
12 सभी प्रकल्प द्वारा (भविष्य में) निर्माण होने वाली सिंचाई क्षमता (लाख हेक्टर में) 126.00 36.73 29.15
13 प्रति हेक्टर पानी की उपलब्धता घ.मी./हेक्टर 4275 घ.मी. 2250 घ.मी. 52.64

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