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नदी पुनर्जीवन की राह आसान करता नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल

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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 20 अगस्त, 2014 के अपने अंतरिम फैसले में मध्य प्रदेश सरकार को निर्देशित किया है कि वह बेतवा की सहायक नदी कलियासोत नदी के दोनों ओर 33 मीटर के क्षेत्र को नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित करे और नदी के दोनों ओर 33 मीटर के दायरे में आने वाले क्षेत्र को ग्रीन बेल्ट घोषित कर, सभी अवैध निर्माण कार्यों को तुड़वाए और निर्माण कार्यों के तुड़वाने से जो जमीन खाली होगी उसमें मौजूदा सीजन में ही फेंसिंग करा कर सघन वृक्षारोपण कराए ताकि अतिक्रमण के कारण मर रही नदी को संजीवनी मिल सके।

कोर्ट ने सरकार से 24 नवंबर, 2014 तक की गई कार्यवाही से अवगत कराने के लिए भी कहा है। कोर्ट में यह फैसला कलियासोत नदी के दोनों ओर हो रहे अतिक्रमण पर दायर जनहित याचिका पर सुनाया गया है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने संविधान के अनुच्छेद 48 ए और 51 ए (जी) का हवाला देते हुए सामान्य नागरिकों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाई है। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार तथा आम नागरिक का दायित्व है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा तथा संवर्धन करे। इस कार्य में वन्य जीवों, नदी, झील और जंगल सम्मिलित हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कोलार नगरपालिका को निर्देश दिया है कि कालोनियों का अनुपचारित सीवर, कलियासोत नदी में डाला जा रहा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि नगरपालिका एक माह के भीतर सभी संबंधित कालोनियों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट या कामन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने संबंधी रिपोर्ट पेश करे।

कोर्ट ने सुझाव दिया है कि नगरपालिका इस हेतु बिल्डर्स या कालोनाइजर्स द्वारा अमानत राशि के रूप में जमा कराई 25 प्रतिशत राशि का उपयोग कर सकती है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने टाउन और कन्ट्री प्लानिंग विभाग, मध्य प्रदेश से चार सप्ताह में उन 18 अतिक्रमणकारियों के विरूद्ध की गई कार्यवाही की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है जिन्हें उसने पूर्व में नोटिस जारी किया था।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का उपर्युक्त अंतरिम आदेश कलियासोत नदी ही नहीं वरन मध्य प्रदेश की सभी नदियों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। गौरतलब है कि यह फैसला उस समय आया है जब देश आशा भरी निगाहों से अविरल गंगा: निर्मल गंगा अभियान की सफलता के लिए दुआ मांग रहा है।

सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का पिछला अनुभव बहुत उम्मीदें नहीं जगाता। वह अनवरत मानीटरिंग, नियमों की सुनिश्चित पालना और कठोर कार्यवाही चाहता है। वह उपचारित पानी को जलस्रोतों में डालने की अनुशंशा करता है। उपचारित पानी की गुणवत्ता को निरापद बनाने के लिए मानीटरिंग, नियमों की पालन और कठोर कार्यवाही के स्थान पर उपचारित पानी के उपयोग का पहला अधिकार प्रदूषण करने वाले संस्थान का हो।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का उपर्युक्त अंतरिम आदेश कलियासोत नदी ही नहीं वरन मध्य प्रदेश की सभी नदियों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। गौरतलब है कि यह फैसला उस समय आया है जब देश आशा भरी निगाहों से अविरल गंगा: निर्मल गंगा अभियान की सफलता के लिए दुआ मांग रहा है। सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का पिछला अनुभव बहुत उम्मीदें नहीं जगाता। वह अनवरत मानीटरिंग, नियमों की सुनिश्चित पालना और कठोर कार्यवाही चाहता है। ट्रीटमेंट प्लांट का विद्युत कनेक्शन पृथक हो और उपयोग के बाद बचे पानी को गुणवत्ता के अनुसार कछार में काम में लाया जाए। इस व्यवस्था से उपचारित पानी सही तरीके से री-साईकिल होगा। गुणवत्ता सुधरेगी तथा उपचार करने वाली संस्था को पानी को बेचने से लागत की भरपाई होगी।

बांधों के मामले में भारत बहुत समृद्ध देश है। लगभग हर बड़ी या मंझोली नदी पर बांध बन चुके हैं या निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। इन सभी बांधों में प्राथमिकता के आधार पर पेयजल का प्रावधान है। नदियों को अविरल बनाने के लिए नदियों से सीधे पानी उठाने के स्थान पर बांधों से निर्धारित मात्रा में पानी उठाने से नदी के जल प्रवाह के अविरल होने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, गंदगी घटाने में मदद मिलेगी और नदी के प्राकृतिक दायित्व कम-से-कम प्रभावित होंगे। यह नीतिगत निर्णय का मामला है।

अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए अभी केवल सीवर के उपचारित जल को पर्याप्त माना जा रहा है और मौजूदा सोच में सहायक नदियों पर अपेक्षाकृत बहुत कम ध्यान है। अविरल प्रवाह के लिए उपयुक्त तकनीक या अवधारणा की कमी है।

अवधारणा की कमी के कारण उस जानकारी का अभाव है जो किसी भी नदी तंत्र को जीवित करने तथा उसके प्रवाह को स्थाई रूप से निर्मल बनाने के लिए आवश्यक होता है। प्रवाह के लिए पूरे नदी तंत्र पर ध्यान देना होगा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का फैसला हमारी प्रज्ञा को चुनौति है और पूरे मामले पर नए सिरे से विचार करने का अवसर देता है।

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