नदी शीर्ष वन संरक्षण एवं प्रबंध

नदियों का उद्गम क्षेत्र एक विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करता है। किसी नदी के प्रारम्भ होने के स्थान से लेकर थोड़ा आगे तक के क्षेत्र में छोटी-छोटी सहायक सरिताओं और नालों के आकार मिलते रहने से नदी की मूल धारा शनै:-शनै: चौड़ी होती जाती है। अनेक छोटे नालों और सहायक सरिताओं के काफी कम दूरी में ही मुख्य नदी में मिलने से गुच्छे जैसी जिस प्राकृतिक संरचना का निर्माण होता है उसे नदी शीर्ष कहा जाता है। नदी शीर्ष अत्यंत नाजुक और संवेदनशील क्षेत्र होता है और केवल मानसूनी वर्षा से पोषित नदियों के मामले में तो यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे क्षेत्र में वनों की मौजूदगी और उनकी दशा नदी में जल प्रवाह की निरन्तरता बनाए रखने में विशेष भूमिका निभाती है अत: नदी शीर्ष क्षेत्रों में वन प्रबंध की प्राथमिकता वन उपज का उत्पादन न होकर स्थानीय प्राकृतिक तंत्र का बनाए रखने का होना चाहिए। नदी शीर्ष क्षेत्रों द्वारा प्राकृतिक रूप से जो पर्यावरणीय भूमिका निभाई जाती है उसे कृत्रिम संरचनाओं से पैदा करने का कोई उपाय ही नहीं है, इस बात का महत्त्व समझते हुए अनेक देशों में अब नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण और उचित प्रबंधन पर काफी ध्यान दिया जाने लगा है मध्य और प्रायद्वीपीय भारत में उत्पन्न होने वाली नदियों के संदर्भ में नदी शीर्ष क्षेत्रों का बड़ा महत्त्व है क्योंकि यहाँ हिमालय की नदियों की तरह ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों को पानी नहीं मिलता और नदी शीर्ष में एकत्रित जल ही नदी के उद्गम और मुख्य धारा का निर्माण करता है।

नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण और उचित प्रबंधन की दिशा में सबसे पहला कदम है ऐसे क्षेत्रों को मानचित्रों में अंकित करना तथा मौके पर चिन्हांकित किया जाना। अमरकण्टक में नर्मदा उद्गम स्थल के निकट सम्भावित नदी शीर्ष संरक्षण क्षेत्र की एक अनुमानित सीमा मानचित्र पर दिखाने का प्रयास किया गया है। यह नदी शीर्ष क्षेत्र की सीमा रेखा को विधिवत सर्वेक्षण के बाद पक्के मुनारे बनाकर मौके पर भी चिन्हांकित किया जा सकता है।

नदी शीर्ष क्षेत्र की पहचान व सीमांकन के पश्चात निम्नानुसार कदम उठाए जा सकते हैं:-

1. नदी शीर्ष प्रबंधन के कार्य को व्यवस्थित रूप से निरन्तरता में जारी रखने के लिए प्रदेश की मुख्य नदियों के लिए दीर्घकालिक नदी शीर्ष प्रबंधन योजना बनाई जानी चाहिए जिसमें उक्त क्षेत्र की स्थानीय भौगोलिक बनावट, मिट्टी, पेड़-पौधों, समस्याओं और सम्भावनाओं के आधार पर सर्वाेत्तम रणनीति विकसित करके उस पर अमल किया जा सके।

2. वन विदोहन की प्राथमिकताओं का पानी की दृष्टि से पुनर्निर्धारण ताकि उक्त क्षेत्र का अतिरिक्त संरक्षण व बेहतर प्रबंधन किया जा सके जिससे जल उत्पादन की निरन्तरता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

3. जैविक दबाव के कारण बिगड़ गए वनक्षेत्रों में निम्न वितान तथा वन धरातलीय वनस्पति के सुधार हेतु कदम उठाए जाने चाहिए तथा आवश्यकतानुसार स्थानीय, मिश्रित प्रजातियों का रोपण करके उसका अच्छा रख-रखाव किया जाना चाहिए।

4. नदी शीर्ष में वृक्षों की अवैध कटाई, अनियंत्रित चराई और वन अग्नि पर नियंत्रण पक्की तौर पर सुनिश्चित करने की व्यवस्था हर हालत में करनी चाहिए।

5. रासायनिक उर्वरकों व विषैले कीटनाशकों के प्रभाव से नदी उद्गम को मुक्त रखने के लिए प्रतिबन्धात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

6. नदी शीर्ष क्षेत्र में मौजूद स्थलीय व जलीय जैव विविधता का विशेष संरक्षण किया जाना चाहिए।

7. जन जागरण तथा जन भागीदारी नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण के लिए अपरिहार्य है। ग्राम सभाएँ तथा वन समितियाँ इस काम में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस काम में स्थानीय जन समुदाय को जोड़ने के लिए क्षेत्र के गाँवों में चिन्तर-गोष्ठियाँ, जनजागरण शिविर तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए तथा विद्यालयों/महाविद्यालयों में इस विषय पर अनौपचारिक रूप से शिक्षण व अध्ययन प्रवास जैसे कार्यक्रम आयोजित कराना चाहिए।

8. नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण व प्रबंध की सतत मॉनीटरिंग के लिए मापदण्ड व सूचक विकसित किए जाने चाहिए और सम्बन्धित ग्राम पंचायतों के सहयोग से इन क्षेत्रों पर सतर्क नजर रखनी चाहिए।

उपरोक्तानुसार कदम उठाते हुए प्रदेश की प्रमुख नदियोंं के नदी शीर्ष क्षेत्रों की पहचान व सीमांकन करके उनके संरक्षण तथा विकास का कार्य किया जा सकता है। वैसे तो यह कार्य लगभग सभी प्रमुख नदियों और उनकी मुख्य सहायिकाओं के नदी शीर्ष क्षेत्रों में अविलम्ब किए जाने की जरूरत है परन्तु प्रथम चरण में नर्मदा, सोन, महानदी, चम्बल,जोहिला जैसी प्रमुख नदियों तथा उनकी मुख्य सहायक नदियों के लिए तो यह कार्य तत्काल शुरू किया जा सके तो उत्तम होगा।

नदी तटीय वन बफर
नदी तटीय वन बफर वृक्षों, झाड़ियों, शाकीय पौधों, बाँस और घास से आच्छादित एक हरित पट्टी के रूप में होते हैं। यह हरित बफर पट्टी मिट्टी के क्षरण से पैदा अवसाद के कणों, खेतों में प्रयोग होने वाले रासायनिक उर्वरकों तथा विषैले कीटनाशकों जैसे हानिकारक पदार्थों को जलधारा में मिलने से पहले ही छान कर रोक लेती है और इनका प्रयोग पौधों के ऊतकों में करके उन्हें अहानिकारक तत्वों में बदल देती है। ऐसे वन बफर नदी के कगारों के कटाव पर प्रभावी नियंत्रण रखने में भी मददगार होते हैं। सघन प्राकृतिक वनों में तो ये बफर कुदरती ढंग से अपना काम करते ही हैं, परन्तु जिन क्षेत्रों में ये न हों वहाँ वृक्षारोपण करके ऐसी हरित बफर पट्टी विकसित भी की जा सकती है।

- वन संरक्षक, खण्डवा (म.प्र.), मो. 09425174773

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