नदियों-झीलों के किनारे अतिक्रमण होगा खत्म

3 Nov 2018
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रिस्पना नदी के किनारे बसी अवैध कॉलोनियाँ (फोटो साभार: हिन्दुस्तान टाइम्स)
रिस्पना नदी के किनारे बसी अवैध कॉलोनियाँ (फोटो साभार: हिन्दुस्तान टाइम्स)


रिस्पना नदी के किनारे बसी अवैध कॉलोनियाँ (फोटो साभार: हिन्दुस्तान टाइम्स)नैनीतालः हाईकोर्ट ने प्रदेश की सभी नदियों, झीलों और गदेरों के किनारे हुए अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया है। प्रदेश सरकार को इसके लिये तीन माह का समय दिया गया है। कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिये कहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की संयुक्त खंडपीठ ने यह आदेश दिया। अदालत ने नदियों के किनारे पार्किंग बनाने पर भी रोक लगाने को कहा है।

लक्सर के राजपाल की याचिका का फैसला

हरिद्वार जिले के लक्सर निवासी राजपाल सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया कि लक्सर तहसील के ग्राम सभा अब्दीपुर सिकन्दर में ग्राम पंचायत की करीब पाँच सौ बीघा जमीन पर लोगों के अवैध कब्जे हैं। वहाँ सोलानी नदी की भी इतनी ही जमीन पर लोग अतिक्रमण कर फसल उगा रहे हैं। चार साल पहले लक्सर के संयुक्त मजिस्ट्रेट ने पूरे रकबे की पैमाइश कर जमीन कब्जा मुक्त कराकर ग्राम सभा के सुपुर्द की थी, परन्तु बाद में इस पर फिर कब्जे हो गए और प्रशासन ने कब्जे नहीं हटाए। सुनवाई के बाद संयुक्त खंडपीठ ने डीएम हरिद्वार को सोलानी नदी में हुए अतिक्रमण को तीन माह के भीतर नियमानुसार हटाने का आदेश दिया।

दून की 129 बस्तियाँ हाईकोर्ट के फैसले की जद में

उत्तराखण्ड सरकार की ओर से बस्तियों के लिये लाए गए अध्यादेश से राहत के बाद एक बार फिर से बस्तियों पर संकट आन पड़ा है। नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून में नदी किनारे बसी बस्तियों को तीन माह के भीतर हटाने के आदेश दे दिये हैं। देहरादून में रिस्पना और बिंदाल नदी किनारे 129 बस्तियाँ है। नगर निगम के सर्वे के मुताबिक, यहाँ करीब चालीस हजार भवन हैं। जानकारी के मुताबिक, 129 बस्तियों में दो लाख की आबादी है।

कुछ माह पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने मनमोहन लखेड़ा की याचिका पर देहरादून में सड़क किनारे अतिक्रमण हटाने के साथ ही रिस्पना किनारे अतिक्रमण को भी हटाने के आदेश दिये थे। इस बीच कुछ लोग अतिक्रमण हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सड़कों पर अतिक्रमण हटाने का काम जारी रहे, जबकि बाकी अतिक्रमण को लेकर सम्बन्धित लोगों को नोटिस देकर उनका पक्ष सुना जाए। ऐसे में नगर निगम ने नदी किनारे की बस्तियों को नोटिस भेज दिये। इसी बीच राज्य सरकार बस्तियों को बचाने के लिये तीन साल का अध्यादेश लेकर आ गई और बस्तियों को हटाने की कार्रवाई रोक दी गई। लेकिन, एक बार फिर नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून में नदी किनारे बस्तियों को तीन माह में हटाने के आदेश दे दिये हैं।

आदेश

1. हाईकोर्ट ने सभी डीएम को आदेश का पालन करने को कहा
2. नदियों के किनारे वाहनों की पार्किंग बनाने पर भी रोक लगाई
3. अतिक्रमण को तीन माह के भीतर हटाने का भी आदेश दिया
4. लक्सर निवासी राजपाल सिंह ने दायर की है जनहित याचिका
5. आसन नदी की भूमि पर एक बड़ी आवासीय परियोजना का किया गया है निर्माण
6. हाईकोर्ट ने नदी श्रेणी की सभी भूमि के आवंटन को निरस्त करने के दिये हैं आदेश

सरकार जुलाई में लाई थी अध्यादेश

मलिन बस्तियों को हटाने से पहले नोटिस भेजने के चलते लोगों में खलबली मच गई थी। सत्ताधारी पार्टी के विधायक भी मलिन बस्तियों को हटाने के खिलाफ आ गए। विपक्षी दलों के नेता भी बस्तियों को बचाने की मुहिम छेड़ने लगे। ऐसे में भारी दबाव के चलते राज्य सरकार जुलाई माह में बस्तियों को बचाने का अध्यादेश ले आई। इसके तहत बस्तियों को हटाने में तीन साल की रोक रहेगी। अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार का रुख देखना होगा।

10,700 अतिक्रमण चिन्हित

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 में कुछ विभागों की ओर से किये गये सर्वे में 10,700 अतिक्रमण चिन्हित किये गये थे। राज्य सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश से पहले देहरादून नगर निगम ने सैकड़ों लोगों को नोटिस भेज दिये थे। बताते चलें कि वर्ष 2005 में नगर निगम, सिंचाई विभाग और प्रशासन ने रिस्पना और बिंदाल नदी का सर्वे किया था।

रिस्पना टैक्सी स्टैंड पर भी मंडराया संकट

हाईकोर्ट ने नदी किनारे वाहन पार्किंग हटाने का आदेश दिया है। शहर की कई पार्किंग इस आदेश की जद में आ रही हैं। रिस्पना नदी किनारे दून गढ़वाल टैक्सी यूनियन की सालों पुरानी पार्किंग है। यहाँ से कुमाऊँ के साथ ही गढ़वाल उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार और कोटद्वार के लिये टैक्सियों का संचालन होता है। इसके अलावा सहस्रधारा रोड पर पर्यटन विभाग बड़ी पार्किंग बना रहा है, जो नदी किनारे बन रही है। इस पार्किंग स्थल का आधा काम पूरा हो चुका है। गुच्चूपानी की पार्किंग भी नदी किनारे है। यदि हाईकोर्ट के आदेश पर अमल हुआ तो शहर के कई प्राइवेट पार्किंग स्थल साफ हो जाएँगे।

पूर्व में भेजे नोटिस में यह लिखा गया था

राज्य सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश से पहले नगर निगम ने बस्तियों में बने भवनों को जो नोटिस भेजे थे, उसमें यह पूछा जा रहा था कि कब से कब्जा है। सम्बन्धित भवन स्वामी से भूमि के अभिलेख की सूचना माँगी थी।

नदी की चौड़ाई तय नहीं

रिस्पना और बिंदाल नदी क्षेत्र में हुए अतिक्रमण को लेकर अभी तक नदी की चौड़ाई तय नहीं हुई है। नगर निगम की बोर्ड बैठक में कई बार तय हुआ था कि सरकार पहले नदियों की चौड़ाई तय करे, लेकिन आज तक यह साफ नहीं हुआ है कि रिस्पना और बिंदाल की वास्तविक चौड़ाई कितनी है।

अभी बस्तियों के सात हजार भवनों पर ही लगा है टैक्स

नगर निगम क्षेत्र के तहत 129 मलिन बस्तियों में कुल चालीस हजार भवनों में से अभी तक सात हजार मकानों पर ही हाउस टैक्स लगा है। बीते कुछ माह से बस्तियों पर टैक्स लगाने का काम बन्द है। हाईकोर्ट के आदेश के चलते एक बार फिर से बस्तियों पर हाउस टैक्स लगाने का मामला अधर में लटक सकता है।

देहरादून में खुद अतिक्रमण हटाएँगे सरकारी महकमे

नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से बस्तियों को नोटिस देकर उनका पक्ष जानने के बाद तीन सप्ताह में कार्रवाई करने को कहा गया था। राज्य सरकार की ओर से अध्यादेश लाने से पहले नगर निगम सुप्रीम कोर्ट गया था। यहाँ कोर्ट ने आदेश दिया कि जिस विभाग की जमीन पर अतिक्रमण होंगे, वही विभाग अवैध कब्जे हटवाएँगे।

नदी किनारे पार्किंग पर रोक

अदालत ने प्रदेश के मुख्य सचिव को भी उत्तराखण्ड के सभी जलाशयों और नदियों-गदेरों के किनारे नियमों के खिलाफ हुए निर्माण यानी अतिक्रमण को तीन माह के भीतर हटाने का भी आदेश दिया। नदियों के किनारे पार्किंग निर्माण पर रोक लगाने को भी कहा गया, ताकि नदियों में प्रदूषण पर रोक लगाई जा सके। इस आदेश के साथ ही संयुक्त खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया।

नदी भूमि में निवेश न करें
दून में तमाम बिल्डर दीपावली पर अपने सपनों का आशियाना बुक कराने के लिये लुभावने ऑफर दे रहे हैं। इसमें कोई बुराई भी नही है, मगर फ्लैट बुक कराने को अपनी जीवनभर की कमाई लगाने से पहले सम्बन्धित आवासीय परियोजना की भली-भाँति पड़ताल जरूर कर लें। कहीं ऐसा न हो कि बिल्डर के लुभावने ऑफर में फंसकर आप खून-पसीने की कमाई लुटा बैठें। क्योंकि दून में कई आवासीय परियोजनाओं का निर्माण नदी श्रेणी की भूमि पर किया गया है और हाईकोर्ट ऐसी भूमि के आवंटन को निरस्त करने का आदेश दे चुका है।

हाईकोर्ट के 10 अगस्त, 2018 को जारी आदेश में स्पष्ट किया है कि नदी श्रेणी की भूमि का आवंटन किसी भी दशा में नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसी भूमि पर भूमिधरी अधिकार सरकार ने दे भी दिये हैं, तो उन्हें खारिज करने के लिये कहा है।

जिसके क्रम में प्रदेश भर में ऐसी भूमि का सर्वे भी चल रहा है। दून में ऐसी भूमि की भरमार है और इन पर बिल्डरों ने फ्लैट भी खड़े कर दिये हैं। खासकर दून क्षेत्र की आसन नदी खाते की भूमि पर एक बड़ी आवासीय परियोजना में फ्लैट खड़े कर दिये हैं।

इन दिनों बिल्डर यहाँ जोर-शोर से फ्लैट की बुकिंग भी कर रहे हैं। लिहाजा ऐसी किसी भी परियोजना में निवेश करने से पहले उसके खसरा नम्बर की पड़ताल सम्बन्धित तहसील कार्यालय से अवश्य कर लें।

बिल्डरों के आगे ठिठके प्रशासन के कदम

हाई कोर्ट के आदेश के क्रम में सचिव राजस्व विनोद रतूड़ी ने जिलाधिकारियों को नदी श्रेणी की भूमि पर किये गये आवंटन व कब्जों पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। ताकि ऐसे आवंटन को निरस्त कर अवैध कब्जों को हटाया जा सके। ऐसे आवंटन बिल्डरों के पक्ष में ही अधिक देखते हुए शुरू से ही अधिकारियों की चाल धीमी हो गई। इसे देखते हुए जिलाधिकारी एसए मुरुगेशन ने 15 सितम्बर को उप जिलाधिकारियों को रिमाइंडर भेजा था और 15 दिन के भीतर कार्रवाई करने के निर्देश दिये गये थे। गम्भीर यह है कि अधिकारियों ने इसके बाद भी सर्वे की गति नही बढ़ाई। सुस्त रफ्तार को देखते हुए अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) अरविन्द कुमार पांडेय ने 10 अक्टूबर को रिमाइंडर भेजा। उन्होंने भी 15 दिन के भीतर कार्रवाई पूरी करने के आदेश जारी किये थे। यह अवधि भी अब बीत चुकी है, लेकिन अब तक नदी श्रेणी की भूमि पर किये गये आवंटन निरस्त करने को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है।

“नदी श्रेणी की कोई भी भूमि चाहे वह जलमग्न हो या न हो, उस पर किया गया आवंटन निरस्त किया जाएगा। इस श्रेणी में बरसाती नदी को भी माना जाएगा और तालाब, जोहड़, नाले-खाले भी इसके दायरे में आएँगे” -विनोद रतूड़ी, सचिव राजस्व
 

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