नमामि गंगे का दिखने लगा है रंग


पुण्य सलिला गंगा की सफाई को लेकर केंद्र सरकार न केवल गंभीर है बल्कि कई ऐसे कदम उठाए गए हैं कि लगने लगा है कि नमामि गंगे परियोजना सही दिशा में आगे बढ़ रही है। कई बड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी जा चुकी है। गंगा में कई जगह ऊपरी सतह से गंदगी निकालने का काम चल रहा है। ऐसा ही गंगा की सहायक नदियों और यमुना के लिये किया जा रहा है। गंगा को प्रदूषित करने वाली यूनिट्स को बंद करने या हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसी क्रम में कानपुर की तमाम टेनरीज को कुछ महीनों में वहाँ से हटाकर अन्यत्र भेजा जा रहा है।

गंगा में मिलते कचरा एवं गंदे नाले 2525 किलोमीटर लंबी गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक बहती है। गंगा हमेशा से जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी मानी गई है। लगातार प्रदूषण ने इसे खासा नुकसान पहुँचाया है। जो गंगा कभी एकदम साफ थी, वो अब शहरों की गंदगी ढोते-ढोते थकी लगने लगी है। इसे फिर से पावन और निर्मल करने के प्रति केंद्र की एनडीए सरकार खासी गंभीर है, इसीलिये पुण्यसलिला की सफाई के लिये अलग मंत्रालय ही बनाया हुआ है। सरकार का दावा है कि जो काम बीते तीस सालों में नहीं हो सका, ‘नमामि गंगे’ परियोजना उसे वर्ष 2020 तक करके दिखाएगी।

मार्च के पहले सप्ताह ही राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत (एनएमसीजी) दो हजार करोड़ रुपये की 26 परियोजनाओं को मंजूरी दी। इससे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और झारखंड में नये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाने में मदद मिलेगी। जिन परियोजनाओं को मंजूरी मिली है, उसमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट शामिल है। इस प्लांट के लगने से 50 एमएलडी दूषित जल साफ किया जा सकेगा। इसके अलावा हरिद्वार, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, बद्रीनाथ, ऋषीकेश मे नये एसटीपी लगाने की अनुमति दी गई है। इन एसटीपी के लिये धन केंद्र सरकार देगी। ये मंजूरी मार्च के पहले हफ्ते में दी गई है। खास बात ये भी है कि एनएमसीजी की कार्यकारी समिति की बैठक में जिन 20 परियोजनाओं को मंजूर किया गया, उसमें 13 उत्तराखंड की ही हैं।

इन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी भी उत्तराखंड जल निगम को मिली है। जिन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है उनमें हरिद्वार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के अलावा जगजीतपुर सीवेज शोधन संयंत्र, जगजीतपुर फेज-दो 27 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, तपोवन ऋषीकेश सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट उच्चीकरण, हरिद्वार सराय 14 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट शामिल हैं। साथ ही जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, उत्तरकाशी, कीर्तिनगर, ऋषीकेश लक्कड़ घाट के लिये छह एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की क्षमता को बढ़ाने कि लिये हरी झंडी मिल गई है। गंगा में गंगोत्री से ही जिस तरह गंदगी शुरू होती है, उसमें ये नई परियोजनाएँ बहुत माकूल साबित होंगी। इन परियोजनाओं को हरी झंडी देते समय ध्यान रखा गया कि उन शहरों की सफाई पर खास ध्यान दिया जाए जो गंगा के किनारे बसे हैं, जहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। हरिद्वार में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस पवित्र स्थान की यात्रा करने वालों के उत्सर्जित मल-जल का उपचार भी कोई कम बड़ी चुनौती नहीं। वाराणसी में भी सालभर में लाखों तीर्थ यात्री आते हैं, यहाँ प्रदूषण रोकने के लिये सार्वजनिक-निजी-भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल वाली 151 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू होगी।

उत्तराखंड के लिये मंजूर की गई अन्य परियोजना में चार अलकनंदा नदी का प्रदूषण दूर करने से संबंधित हैं, ताकि नीचे की तरफ नदी की धार का स्वच्छ प्रवाह बना रहे। चूँकि यहाँ गंगा नदी की राह में जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग और कीर्तिनगर जैसे शहर पड़ते हैं, ऐसे में यहाँ भी पुण्यसलिला को साफ रखने के लिये नये छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएंगे जिन पर करीब 78 करोड़ रुपये की लागत आएगी। ऋषीकेश में भी 158 करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली बड़ी परियोजना का अनुमोदन किया गया है। गंगा जैसे ही पर्वत से उतरकर मैदानी भाग में प्रवेश करती है, तो ऋषीकेश से नगरीय प्रदूषण गंगा में मिलना शुरू हो जाते हैं। गंगा को इनसे छुटकारा दिलाने के लिये ऋषीकेश की परियोजना वाकई काफी उपयोगी होगी। इसमें न केवल सभी शहरी नालों को ऋषीकेश में गंगा में जाने से रोका जा सकेगा बल्कि उत्सर्जित जल को उपचार के बाद फिर इस्तेमाल लायक बनाया जाएगा।

यमुना साफ रहे और उसमें गंदगी जाने से रोकी जा सके, इस क्रम में 564 एमएलडी छमता के अत्याधुनिक खोखला जल-मल उपचार संयंत्र के निर्माण को मंजूर कर लिया गया है। इसके अलावा पीतमपुरा और कोंडली में 100 करोड़ रुपये से अधिक अनुमानित लागत वाली नई मल-जल पाइपलाइनें बिछाने की दो परियोजनाएँ स्वीकृत की गईं ताकि रिसाव रोका जा सके। इसी तरह पटना में कर्मालिचक और झारखंड में राजमहल में 335 करोड़ रुपये से अधिक लागत से मल-जल निकास संबंधी कार्यों का भी कार्यसमिति की बैठक में अनुमोदन किया गया।

इससे पहले ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के तहत सात जुलाई 2016 को लघु अवधि एवं मध्यम अवधि की 231 परियोजनाएँ शुुरू की गई। ये गंगा तथा इसकी सहायक नदियों के पास स्थित विभिन्न नगरों के घाटों, शवदाह गृहों के आधुनिकीकरण और विकास, जैव विविधता केंद्र स्थापित करने, नदी तल की सफाई के लिये ट्रेश स्टीमर के उपयोग करने, सीवेज शोधन संयंत्र स्थापित करने, सीवेज पंपिंग स्टेशन, मछली पालन केंद्र, नालों के अपशिष्ट जल के परिशोधन के लिये प्रायोगिक परियोजनाओं और वनीकरण से संबंधित हैं। तब कुल 123 घाट, 65 शवदाह गृह, 8 जलमल अवसंरचना और 35 अन्य परियोजनाएँ शुरू की गई थीं।

नमामि गंगे परियोजना के पहले चरण में स्टीमर से इलाहाबाद समेत चार जिलों में गंदगी साफ की जा रही है। गंगा की ऊपरी सतह की गंदगी छानने के लिये ऐसी स्टीमर वाराणसी, गढ़ मुक्तेश्वर और कानपुर को भी दी गई हैं। मथुरा में भी स्टीमर यमुना की सफाई करेगी।

48 माह तक पूरा करने का लक्ष्य



केंद्रीय मंत्री श्री उमा भारती का कहना है कि इन परियोजनाओं को 18 माह से 48 माह के बीच पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। संपूर्ण कार्यक्रम को वर्ष 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य है। नमामि गंगे कार्यक्रम की 20,000 करोड़ रुपये की लागत में 7,272 करोड़ रुपये मौजूदा एवं नये कार्यक्रमों के लिये हैं। सरकार ने 110 शहरों की पहचान की है जहाँ नदी-झीलों में अशोधित जल-मल बहाया जाता है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में 114 नालों की पहचान की गई है। वे प्रतिदिन औसतन 661.4 करोड़ लीटर जल-मल और उद्योगों ने निकलने वाला पानी बहा रहे हैं। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 30 जून 2016 को 53 शहरों में 97 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई।

केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले ही राज्यसभा में जानकारी दी थी कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गंगा नदी की सफाई के लिये वर्ष 2016-17 तक 1,627.90 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्यमंत्री श्री विजय गोयल ने बताया कि नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत ‘गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना 2015’ (जीआरबीएमपी) की सिफारिशों के अनुसार परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। उन्होंने ये भी बताया था कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा की मुख्यधारा पर स्थित पाँच राज्यों में समग्र रूप से प्रदूषण फैलाने वाले 764 उद्योगों को सूचीबद्ध किया है जो गंगा नदी में लगभग 500 एमएलडी अपशिष्ट जल छोड़ते हैं। गंगा की मुख्यधारा पर स्थित 144 नालों से लगभग 6600 एमएलडी अपशिष्ट छोड़ा जाता है।

राज्य सरकारों का सहयोग भी जरूरी



नमामि गंगे की सफलता के लिये राज्य सरकारों का सहयोग भी उतना ही आवश्यक है। उत्तर प्रदेश में नई सरकार के आते ही इस काम में तेजी देखने को मिल रही है। मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी ने गोमती नदी में 15 मई तक साफ पानी प्रवाहित करने के निर्देश दिये हैं। हालाँकि ये काम इतना आसान तो नहीं लगता क्योंकि गोमती आमतौर पर गंदे नाले में तब्दील हो गई लगती है। पीलीभीत के गोमद ताल, माधवटांडा से लेकर सीतापुर, हरदोई, लखनऊ, बहराइच, जौनपुर व बनारस से पहले कैथीधार पर जाकर गंगा से मिलने वाली गोमती अपने 325 किमी लम्बे मार्ग में कहीं भी साफ नहीं है। इसकी सफाई के लिये गोमती रिवरफ्रण्ट डवलपमेंट परियोजना शुरू की गई है लेकिन अब तक इसका काम बहुत धीमा रहा है।

हटेंगी टेनरीज



गंगा सफाई अभियान को सफल बनाने के लिये उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कानपुर, उन्नाव और कन्नौज के चमड़ा कारखानों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने जा रही है। जुलाई तक इन्हें स्थानांतरित कर दिया जाएगा। गंगा किनारे बसे शहर कानपुर, कन्नौज और उन्नाव में बड़ी तादाद में टेनरियाँ हैं, जहाँ चमड़े की सफाई से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदी में बहाये जाते हैं। उत्तर प्रदेश की भूमिका ‘नमामि गंगे’ परियोजना में सबसे अहम है। यहाँ इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी, गढ़मुक्तेश्वर, मुरादाबाद, कन्नौज, बुलन्दशहर और वृंदावन में 2900 करोड़ रुपये की कुल 19 परियोजनाएँ चल रही हैं।

हिण्डन और उत्तर प्रदेश की नदियाँ



जब हम गंगा पर टेनरीज की बात कर रहे हैं तो दिल्ली के करीब यमुना में मिलने वाली हिण्डन की स्थिति को भी देखना चाहिये। ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वाली महत्त्वपूर्ण नदी है। यह उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के ऊपरी शिवालिक क्षेत्र से निकलती है और सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जिलों से गुजरती हुई, दिल्ली के नीचे यमुना नदी में मिल जाती है। हिण्डन की लंबाई लगभग 400 किमी है। इसका जलागम क्षेत्र 7083 वर्ग किमी है। यह गंगा और यमुना के बीच के क्षेत्र में बहती है। यमुना में मिलकर गंगा के जल को प्रभावित करती है। हिण्डन एक बड़े जलागम क्षेत्र और घनी आबादी वाले औद्योगिक नगरों को जल निकास व्यवस्था प्रदान करती है। पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण के कारण ये नदी भी चर्चा में है। बड़े पैमाने पर गाजियाबाद के ऊपरी क्षेत्रों में लगे स्टोन क्रशरों (वैध-अवैध) के चलते हिण्डन का पानी लाल हो गया है। साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पेपर मिलें, शुगर मिलें, बूचड़खाने, अल्कोहल बनाने की इकाइयाँ और रासायनिक इकाइयाँ भी अपना अवशिष्ट सीधे इसमें डालती हैं।

नर्मदा की दुर्दशा



गंगा के बाद देश की दूसरी पवित्र नदी नर्मदा कही जाती है। नर्मदा को उसी तरह पूजा जाता है जिस तरह गंगा को। अमरकंटक से शुरू होकर विंध्य व सतपुड़ा की पहाड़ियों से गुजरकर अरब सागर में मिलने वाली नर्मदा की कुल 1289 किमी की यात्रा में अथाह दोहन हुआ है। यही दुर्दशा बैतूल जिले के मुलताई से निकल सूरत तक जाकर अरब सागर में मिलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती की हुई है। तमसा बहुत पहले विलुप्त हो गई थी।

एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार नर्मदा नदी के तट पर बसे नगरों और बड़े गाँवों के पास के लगभग 100 नाले नर्मदा नदी में मिलते हैं। इन नालों में प्रदूषित जल के साथ-साथ शहर का गंदा पानी भी बहकर नदी में मिल जाता है। और तो और ये अपने उद्गम इलाके अमरकंटक में ही खासी प्रदूषित दिखती है। कई स्थानों पर इसकी गंदगी खतरनाक स्तर को पार कर रही है। राज्य सरकार का कहना है कि वह 4000 करोड़ रुपये के बजट से नर्मदा की सफाई को लेकर अभियान चला रही है। इसका असर दिखने भी लगा है।

एक अच्छी बात ये भी हुई है कि पिछले दिनों अदालत ने गंगा और यमुना नदी को जीवित मानने को लेकर जिस तरह फैसला दिया है, वो भी सराहनीय है। शायद ऐसी ही नीति दूसरी नदियों को लेकर बनानी चाहिये। वही समय की जरूरत भी है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में देश की दो पवित्र नदियों, गंगा और यमुना को ‘जीवित’ होने का आदेश दिया है। अदालत ने इस संबंध में न्यूजीलैंड की वानकुई नदी का भी उदाहरण दिया जिसे इस तरह का दर्जा दिया गया।

सरकार अपनी ओर से जितना कर सकती है, कर रही है। नदियों के सफाई के प्रति हमारे अपने भी कर्तव्य हैं। कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि न तो नदियों में ऐसा कुछ प्रवाहित करें जिससे उसमें गंदगी बढ़ सकती है बल्कि उसकी सफाई के लिये लोगों में जागरुकता फैलाएँ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यनल एनजीटी ने यमुना में पूजा और निर्माण सामग्री तथा अन्य कचरा डाले जाने पर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया है।

क्या हो सार्थक हल

इन नदियों को यदि जल्द से जल्द स्वच्छ न किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब ये नदियाँ सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएंगी। प्रदूषण का मुख्य कारण है इसमें प्रवाहित किया जाने वाला कचरा और दूसरा सबसे बड़ा कारण है धार्मिक कारण। प्रतिदिन पूजा के बाद के अवशेष इसमें बहाये जाते हैं। साथ ही स्नान, कपड़े धोना, जानवरों को नहलाना, शवों को जलाकर राख प्रवाहित करने से भी गंदगी लगातार बढ़ रही है। यदि नदियों में कचरा प्रवाहित होना बंद हो जाए तो इनका पानी खुद साफ हो सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक नदियों में एक प्रकार का जीव पाया जात है जो पत्थरों को जोड़ता है पानी को फिल्टर करता है। यह प्रकृति का ही एक स्वरूप है जिससे नदियाँ स्वयं को स्वच्छ रखती हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें कमी के चलते नदियों में स्वयं को स्वच्छ करने की क्षमता में भी कमी आई है।

नदी के बेसिन का भी कम महत्व नहीं



नदी के प्रवाह को जीवन देने का असल काम नदी बेसिन की छोटी-बड़ी वनस्पतियाँ और उससे जुड़ने वाली नदियाँ, झरने, लाखों तालाब और बरसाती नाले करते हैं। इन सभी को समृद्ध रखने की योजना बननी चाहिये। हर नदी बेसिन की अपनी एक अनूठी जैव विविधता और भौतिक स्वरूप होता है। ये दोनों ही मिलकर नदी विशेष की पानी की गुणवत्ता तय करते हैं। नदी का ढाल, तल का स्वरूप, उसके कटाव, मौजूद पत्थर, रेत, जलीय जीव-वनस्पतियाँ मिल कर तय करते हैं कि नदी का जल कैसा होगा। नदी प्रवाह में स्वयं को साफ कर लेने की क्षमता का निर्धारण भी ये तत्व ही करते हैं। पर्यावरणविद कहते हैं गाद-सफाई के नाम पर नदियों के तल को जेसीबी लगा कर छीलने, प्रवाह की तीव्रता के कारण मोड़ों पर स्वाभाविक रूप से बने आठ-आठ फुट गहरे कुंडों को खत्म करने, वनस्पतियों को नष्ट करने से बचना चाहिये। इसका नदियों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। नदी जलग्रहण क्षेत्र में रोजगार के कुटीर और अन्य वैकल्पिक साधनों को लेकर पुख्ता कार्ययोजना चाहिये।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।), ई-मेल: ratana.srivastava74@gmail.com

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