नरेगा : मथुरा के पांच ब्लॉकों में भू जल संकट होगा दूर

10 Aug 2009
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मथुरा। राज्य सरकार ने भू-गर्भ जल संकट का शिकार बने ब्लॉकों को पांच साल के अंदर सुरक्षित श्रेणी में लाने की पहल की है। इसके लिए सूबे के लघु सिंचाई एवं भू-गर्भ जल विभाग से प्रोजेक्ट तैयार करवाया गया है। प्रभावित जिलों के डीएम इसके आधार पर कार्य योजना बनवाकर उसे मिशन की भांति क्रियान्वित करेंगे। कार्य योजना का वित्त पोषण विभागीय बजट एवं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के संसाधनों से किया जायेगा।

सूबे के कुल 820 ब्लॉकों में मथुरा जिले के नौहझील ब्लॉक समेत 37 ब्लॉक अति दोहित श्रेणी में रखे गये हैं। तेरह ब्लॉक क्रिटिकल तथा 88 ब्लॉक सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं, जिनमें स्थानीय जिले के मथुरा, छाता, मांट, राया और बलदेव ब्लॉक भी शामिल हैं। हाल के वर्षो में भू-गर्भ जल के अनियंत्रित एवं अंधाधुंध दोहन के चलते इन ब्लॉकों में अब यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं है। इससे सिंचाई के लिए किसानों को जमीन के अंदर से पानी नहीं मिल पा रहा। यही स्थिति रही तो भविष्य में लोगों के साथ-साथ पशुओं के लिए भी पीने के पानी का संकट हो सकता है। भू-गर्भ जल कम होने से पेड़-पौधों के जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है।

इस संकट से उबरने के लिए राज्य सरकार ने इन ब्लॉकों में वर्षा जल संचयन के उपयोग पर आधारित प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन की पहल की है। लघु सिंचाई एवं भू-गर्भ जल विभाग द्वारा यह प्रोजेक्ट सूबे की राजधानी लखनऊ के अति दोहित माल ब्लॉक के लिए तैयार किया गया था। मथुरा समेत सभी प्रभावित जिलों के डीएम को मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता के हस्ताक्षर से जारी शासनादेश में उम्मीद जताई गई है कि उक्त प्रोजेक्ट से भू जल संकट का सामना कर रहे अन्य ब्लॉक भी पांच साल में सुरक्षित श्रेणी में आ जायेंगे। लिहाजा इस प्रोजेक्ट के आधार पर तीन महीने में कार्ययोजना तैयार कर ली जाए।

उक्त कार्ययोजना का वित्त पोषण दोनों विभागों के बजट के अलावा नरेगा के संसाधनों की डबटेलिंग करते हुए किया जायेगा। कार्ययोजना का अनुमोदन नरेगा के मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुरूप सक्षम प्राधिकारियों से कराया जाना अनिवार्य किया गया है। ब्लॉकों में वर्षा जल संचयन के काम सिर्फ जॉब कार्ड धारकों से कराये जायेंगे। उनका भुगतान बैंक से ही हो सकेगा। नरेगा की धनराशि का उपयोग करते समय परियोजना में ठेकेदारों से कोई काम नहीं कराया जायेगा। इसमें मशीनों का इस्तेमाल भी उस हद तक ही किया जा सकेगा जिससे मजदूरों के रोजगार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पडे़। प्रोजेक्ट गठन में कठिनाई पेश आने की हालत में लघु सिंचाई एवं भू-गर्भ जल विभाग के प्रमुख सचिव से मदद लेने की बात भी शासनादेश में कही गई है।

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