नरेगा से अब फौरी नहीं स्थायी आजीविका संभव होगी

27 Aug 2009
0 mins read
योजना आयोग के सदस्य डॉक्टर मिहिर शाह ने ईटी से खास बातचीत में कहा, 'नरेगा की सफलता को अब इस बात की कसौटी पर कसा जाएगा कि गांवों से पलायन की दर में कितनी कमी आई है। नरेगा के स्वरूप में इस तरह बदलाव करने का प्रस्ताव है कि 2 हेक्टेयर तक जमीन रखने वाले किसानों के खेत में कुएं, मेढ़ और जलाशय का काम इस योजना के दायरे में लाया जाए। सभी वर्गों के गरीब किसानों को योजना के दायरे में लाते समय इस बात की व्यवस्था की जाएगी कि दलित और आदिवासियों के हितों से किसी तरह का समझौता ना हो।'नई दिल्ली- यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू की गई ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) को दूसरे कार्यकाल में नया ढांचा देने की तैयारी जोरों पर है। योजना आयोग की कोशिश है कि नरेगा के अंतर्गत दलित और आदिवासियों को तो रोजगार मिले ही साथ ही 2 हेक्टेयर से कम जोत वाले सभी किसानों को इसके दायरे में लाया जाए।

यही नहीं सार्वजनिक क्षेत्रों के काम के साथ ही किसानों के खेत में कुआं खोदने, मेढ़ बांधने और इसी तरह के दूसरे काम को भी नरेगा के दायरे में लाया जाए। देश में सूखे की स्थिति को देखते हुए आयोग चाहता है कि नरेगा के जरिए गांवों में जल आपूतिर् की स्थायी व्यवस्था हो ताकि गांवों में आजीविका की दूरगामी और स्थायी व्यवस्था बन सके। इस काम के लिए नरेगा में सिविल सोसायटी की भूमिका बढ़ाने की भी तैयारी है। योजना आयोग के सदस्य डॉक्टर मिहिर शाह ने ईटी से खास बातचीत में कहा, 'नरेगा की सफलता को अब इस बात की कसौटी पर कसा जाएगा कि गांवों से पलायन की दर में कितनी कमी आई है। नरेगा के स्वरूप में इस तरह बदलाव करने का प्रस्ताव है कि 2 हेक्टेयर तक जमीन रखने वाले किसानों के खेत में कुएं, मेढ़ और जलाशय का काम इस योजना के दायरे में लाया जाए। सभी वर्गों के गरीब किसानों को योजना के दायरे में लाते समय इस बात की व्यवस्था की जाएगी कि दलित और आदिवासियों के हितों से किसी तरह का समझौता ना हो।'

गौरतलब है कि अब तक किसी तरह का निजी काम नरेगा के तहत नहीं आता। जल और खाद्य सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से प्रकाशित किताब 'इंडियाज ड्राइलैंड' के सहलेखक शाह ने कहा, 'पहली बार काउंसिल फॉर एडवांसमेंट ऑफ पीपुल्स एक्शन एंड रूरल टेक्नोलॉजी (कपार्ट) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट (एनआईआरडी) हैदराबाद जैसे सिविल सोसायटी संस्थानों को नरेगा से जोड़ा जा रहा है। जमीनी स्तर पर योजनाएं बनाने के विशेषज्ञ संस्थानों के सहयोग से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि नरेगा की योजनाएं दिल्ली की अफसरशाही की बजाय गांवों की जरूरत के हिसाब से तय हों। नरेगा में सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी को बढ़ाया जाएगा और उनके लिए मेहनताने की व्यवस्था भी की जाएगी।'

गैर सरकारी संगठन 'समाज प्रगति सहयोग' (एसपीएस) की स्थापना के जरिए देश के 12 राज्यों में जल और खाद्य सुरक्षा पर काम कर रहे अर्थशास्त्री ने कहा, 'अब तक देखने में आया है कि सूखा राहत योजनाएं बहुत कारगर नहीं हो पातीं। ऐसे में विभिन्न तरह की सूखा राहत योजनाओं को नरेगा के तहत लाया जा सकेगा। इससे होगा यह कि राहत सामग्री तो जरूरतमंद तक पहुंचेगी ही, साथ ही भविष्य की स्थितियों से निपटने की तैयारी भी हो जाएगी।'

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading