नर्मदा के पानी से मिलेगा क्षिप्रा को नया जीवन

13 May 2013
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क्षिप्रा अब साल भर भी नहीं बहती है। इस नदी के तट पर जगह-जगह अतिक्रमण हो गया है। इसके मार्ग पर खेतीबाड़ी के चलते यह अपने उद्गम स्थल से सटे इलाकों में ही नदी की शक्ल में नजर नहीं आती। भूमिगत अवनालिकाओं के जरिए क्षिप्रा का थोड़ा-बहुत प्रवाह किसी तरह कायम है। सूत्रों के मुताबिक हिंदू मान्यताओं की यह ‘मोक्षदायिनी’ नदी धार्मिक नगरी उज्जैन में भारी प्रदूषण और जल प्रवाह रुकने की वजह से किसी नाले जैसी नजर आती है। इसका पानी श्रद्धालुओं के आचमन के काबिल तक नहीं रह गया है। अपने उद्गम स्थल से लुप्त क्षिप्रा नदी की पुरानी रवानी लौटाने के मकसद से मध्य प्रदेश सरकार ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ के तहत इस नर्मदा से जोड़ने जा रही है। करीब 432 करोड़ रुपए की शुरुआती लागत वाली इस महत्वाकांक्षी परियोजना की कामयाबी से न केवल क्षिप्रा को नया जीवन मिलेगा, बल्कि सूबे के पश्चिमी हिस्से के मालवा अंचल को गंभीर जल संकट से स्थाई निजात मिलने की भी उम्मीद है। क्षिप्रा नदी का प्राचीन उद्गम स्थल यहां से करीब 25 किलोमीटर दूर उज्जैनी की एक पहाड़ी में है। लेकिन इसे कुदरत का भयानक बदलाव कह लीजिए या प्रकृति से अंधाधुंध मानवीय छेड़छाड़ का नतीजा कि अपने प्राचीन उद्गम स्थल से लेकर कई किलोमीटर दूर तक क्षिप्रा का नामो-निशान नहीं दिखाई देता है। सूत्रों के मुताबिक मध्य भारत की यह प्राचीन नदी अपने उद्गम स्थल से 13 किलोमीटर दूर अरण्याकुंड गांव तक गायब हो चुकी है।

सूत्रों ने बताया कि क्षिप्रा अब साल भर भी नहीं बहती है। इस नदी के तट पर जगह-जगह अतिक्रमण हो गया है। इसके मार्ग पर खेतीबाड़ी के चलते यह अपने उद्गम स्थल से सटे इलाकों में ही नदी की शक्ल में नजर नहीं आती। भूमिगत अवनालिकाओं के जरिए क्षिप्रा का थोड़ा-बहुत प्रवाह किसी तरह कायम है। सूत्रों के मुताबिक हिंदू मान्यताओं की यह ‘मोक्षदायिनी’ नदी धार्मिक नगरी उज्जैन में भारी प्रदूषण और जल प्रवाह रुकने की वजह से किसी नाले जैसी नजर आती है। इसका पानी श्रद्धालुओं के आचमन के काबिल तक नहीं रह गया है।

उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है, जहां क्षिप्रा के तट पर 2016 में सिंहस्थ का मेला लगेगा। हर बारह साल में लगने वाले इस धार्मिक मेले में पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालुओं को क्षिप्रा का शुद्ध जल मुहैया कराना प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में है। यही वजह है कि प्रदेश सरकार ‘नर्मदा- क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ को जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है। इस परियोजना की बुनियाद 29 नवंबर 2012 को रखी गई थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 11 मई को नज़दीकी सांवेर में एक कार्यक्रम में कहा, ‘हमने मालवा को रेगिस्तान बनने से बचाने के लिए इस परियोजना को तेजी से अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। इस परियोजना के पहले चरण का काम हमारे लक्ष्य के मुताबिक इस साल के आख़िर में पूरा हो जाएगा। हम नर्मदा के पानी को क्षिप्रा में मिला देंगे।’

उन्होंने कहा कि ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ का पहला चरण पूरा होने के बाद प्रदेश की ‘जीवन रेखा’ कही जाने वाली नर्मदा का जल क्षिप्रा के साथ गंभीर, पार्वती और कालीरिंध नदियों में भी प्रवाहित किया जाएगा। इससे इन सूखती नदियों में पूरे साल पानी बना रहेगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि इस परियोजना के तीनों चरण पूरे होने के बाद मालवा अंचल के लगभग 16 लाख एकड़ क्षेत्र में सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा विकसित की जाएगी। अधिकारियों के मुताबिक ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ के पहले चरण में नर्मदा नदी की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना के सिसलिया तालाब से पांच क्यूसेक पानी लाकर क्षिप्रा के उद्गम स्थल पर छोड़ा जाएगा। इस जगह से नर्मदा का जल क्षिप्रा में प्रवाहित होकर प्रदेश की प्रमुख धार्मिक नगरी उज्जैन तक पहुंचेगा।

उन्होंने शुरूआती अनुमान के हवाले से बताया कि इस योजना के तहत तकरीबन 49 किलोमीटर की दूरी और 348 मीटर की ऊंचाई तक पानी को लिफ्ट कर बहाया जाएगा। इसके लिए चार स्थानों पर बिजली के ताकतवर पंप लगाए जाएंगे। अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के सभी चरण पूरा होने के बाद मालवा अंचल के करीब तीन हजार गाँवों और 70 कस्बों को प्रचुर मात्रा में पीने का पानी भी मुहैया कराया जा सकेगा।

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