न्यायिक संघर्ष से राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून-2013 तक


भारत के लिए 26 अगस्त 2013 का दिन कुछ मायनों में महत्वपूर्ण लगता है। लोकसभा में राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा विधेयक इसी दिन पारित हुआ। कुछ दिन बाद यह राज्यसभा से भी पारित हो गया।

कानून बनने के बाद यह देश की 67 प्रतिशत जनसंख्या को अनाज की सीमित सुरक्षा प्रदान करेगा। इस कानून को प्रभावी बनाने के लिए 318 संशोधन प्रस्तुत किए गए थे। एक दिन में साढ़े नौ घंटे की बहस को देखें तो पता चलता है कि खाद्य-सुरक्षा के अन्तर्निहित पहलुओं को आर्थिक मजबूरियों का नाम देकर खारिज किया गया है।

यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आखिरकार यह साबित हो गया कि 22 साल तक अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण और संसाधनों की लूट की नीतियों ने बुनियादी रूप से देश का भला नहीं किया है और आज भी हमें भुखमरी से निपटने के लिए एक करूणामयी कानून बनाने की जरूरत महसूस हुई। नए कानून में एक हद तक राज्य सरकारें केन्द्र के अधीन होंगी, क्योंकि उन्हें केवल क्रियान्वयन का काम करना है। नीति और व्यवस्थागत निर्णय का अधिकार केन्द्र के पास रहेगा। 359 में से 250 सांसद राज्य सरकारों के अधिकार सीमित रखने के पक्ष में थे। राज्यसभा में तो विपक्ष ज्यादा ताकतवर था, परन्तु वहां भी उसने रणनीतिक विरोध ही दर्ज करवाया। यदि वह चाहता तो कानून का स्वरूप कुछ बेहतर हो सकता था। इसमें अभी बहुत सुधार की जरूरत है, इसके बावजूद इसे महज खारिज नहीं किया जा सकता है। यह जनसंघर्ष यानी भारत के लोगों की मांग पर बना कानून है, इसलिए इसे महज एक सतही राजनीतिक लाभ के लिए की गयी पहल मानना सही नहीं है।

भारत की संसद ने खाद्य-सुरक्षा को एक अधिकार के रूप में मान्यता देकर एक ऐतिहासिक काम किया है। राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून (2013) बनने का मतलब है सरकार का भुखमरी, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा की स्थिति में जवाबदेह बन जाना। हालांकि हमें यह स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि अब भी खाद्य-सुरक्षा या भुखमरी से मुक्ति भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए दूर की ही सही पर यह आशंका बनी रहेगी कि इस कानून को कभी खत्म भी किया जा सकता है।

इस कानून पर चली बहसों में जो पक्ष उभरे उन्हें तीन वर्गों में रखा जा सकता है -

एक वर्ग जो यह मानता है कि सरकार ने बहुत लम्बे समय के बाद एक अच्छा कानून बना दिया है और इसमें अनाजों के अधिकार के जो प्रावधान किए गए हैं उनसे भुखमरी मिट जायेगी।

दूसरा वर्ग यह मानता है कि कानून बहुत जरूरी कदम था और है, परन्तु इसके किए प्रावधान भुखमरी और खाद्य असुरक्षा के मूल कारणों से लड़ने के मामले में कमजोर है। यानी किसानों, प्राकृतिक संसाधनों, उन आर्थिक नीतियों की आलोचनात्मक समीक्षा न होना, जो असमानता बढ़ा रही हैं, के बारे ईमानदार पहल नहीं करता है।वे यह भी मानते हैं कि इस कानून में जिस खाद्य-सुरक्षा की बात की गई है, उसमें पोषण की सुरक्षा का कोई स्थान नहीं है।

तीसरा वर्ग कहता है कि सरकार राजनीतिक लाभ के लिए 1.25 लाख करोड़ रूपए रियायत (सब्सिडी) के रूप में बर्बाद कर रही है। इस कदम से आर्थिक विकास के लिए जरूरी सुधार (जिसमें जनकल्याणकारी कार्यक्रमों पर सरकारी खर्चा और सब्सिडी कम करने के कदम उठाये जाते हैं) की प्रक्रिया को आघात पहुँचेगा। वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि देश में मौजूदा कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के कारण हो रहा आर्थिक विकास खोखला है।

1000 से ज्यादा संस्थाओं और जनसमूहों ने वर्ष 2009 से शुरू करके आखिर तक 50 से ज्यादा धरने किये, 100 सांसदों से 3-3 बार संवाद किये। जरा इस पर ध्यान दीजिए, संसद की स्थायी समिति को इस विधेयक पर डेढ़ लाख पत्र मिले, जिनमें यह कहा गया था कि पोषणयुक्त भोजन जीवन जीने के अधिकार का हिस्सा है, इसलिए यह अधिकार देश में रहने वाले हर व्यक्ति को मिलना चाहिए। फिर जिसे यह हक न लेना हो वह बाजार से अपनी पसंद का अनाज ले सकता है। पर सरकार ने तय किया कि वह 33 प्रतिशत जनसंख्या को इस कानून के दायरे से बाहर रखेगी। इससे गरीबों के चयन की विसंगतियां बरकरार रहेंगी। सभी राज्यों में एक समान 67 प्रतिशत जनसंख्या को ही गरीब माना जायेगा। फोर्टीफिकेशन के नाम पर बच्चों के भोजन में रसायन मिलाने के लिए भी प्रावधान किए गए हैं, जिसमें कुपोषण का संकट जटिल होता जाएगा। हम सब लोग कुछ भूल गए हैं।

यह कहना भी असंगत है कि कानून पर होने वाले व्यय से कोई रचनात्मक लाभ नहीं होगा। लोगों को देने के लिए अनाज तो किसानों से ही खरीदा जाएगा। इससे किसानों को साल भर में 80 हजार करोड़ रूपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा। हमें इस तरह की कई सच्चाइयों को भी समझना होगा कि अभी जो न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को मिलता है, वह लागत से भी कम है। इससे किसानों को कोई सम्मानजनक आय नहीं होती है। खाद्य-सुरक्षा अब भी एक कानूनी हक है, संवैधानिक हक नहीं। मतलब यह कि इस हक के अस्तित्व पर राजनीतिक बेईमानी की तलवार हमेशा लटकती रहेगी।

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून का आधार


राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून की प्रस्तावना में लिखा गया है कि ‘‘खाद्य-सुरक्षा कानून मानव जीवन चक्र पर आधारित है। इसका उद्देश्य लोगों को जीवन जीने के लिए उस कीमत पर, जो उनके सामर्थ्य में हो, पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन व पोषण सुरक्षा देना है, ताकि लोग सम्मान एवं गरिमा के साथ जीवनयापन कर सकें।’’

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून 2013 के मुख्य प्रावधान


देश के विभिन्न प्रदेशों में लगातार पड़ रहे अकाल एवं भूख से हो रही मौतों ने देश के संवेदनशील व्यक्तियों, जनसंगठनों, संस्थाओं को झकझोर दिया और एक मुहिम की शुरूआत हुई। अनेक दबावों और संघर्षों के बाद आखिरकार 10 सितम्बर 2013 से भारत में ‘‘राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून’’ लागू हुआ। कानून के मुख्य प्रावधान बताए जा रहे हैं :-

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून का दायरा


इस कानून के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं :-

1. यह कानून पूरे देश में लागू होगा।

2. कानून के तहत 2011 की जनगणना पर आधारित देश की जनसंख्या के 67 प्रतिशत को अनाज उपलब्ध कराया जाएगा। इनमें 75 प्रतिशत ग्रामीण एवं 50 प्रतिशत शहरी आबादी शामिल है। यह प्रतिशत हर राज्य में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में गरीबी के अनुसार भिन्न-भिन्न होगा।

3. कानून के दायरे में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए वितरित अनाज व आंगनबाड़ी के माध्यम से पूरक पोषाहार एवं स्कूलों में मध्यान्ह भोजन भी शामिल हैं।

4. मातृत्व लाभ (हक) को भी इसके दायरे में लाया गया है।

5. इस कानून में लाभार्थियों को दो श्रेणियों में बांटा गया है - अन्त्योदय एवं प्राथमिक।

6. प्राथमिक परिवारों का चयन कानून के लागू होने के 365 दिन के अन्दर पूरा करना है। अर्थात हर राज्य में 9 सितम्बर 2014 तक चयन प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए।

 

कानून के तहत ‘खुराक’ का मतलब


खुराक से तात्पर्य है- गरम पका भोजन या पहले से तैयार व पका हुआ भोजन, जिसे गरम कर परोसा जा सके, अथवा ऐसी सामग्री जो घर ले जाने वाली खुराक (टेक होम राशन) हो।

 

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून में दिए गए अधिकार


खाद्य-सुरक्षा कानून के तहत हमारी चार प्रकार की हकदारी हैं -

राशन दुकान से अनाज


1. प्राथमिकता वाले परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को हर महीने सस्ती कीमत (चावल 3 रु. किलो, गेहूं 2 रुपए किलो, बारीक अनाज 1 रूपए किलो) 5 किलो अनाज राशन दुकान से उपलब्ध कराया जायेगा।

2. अन्त्योदय परिवारों को 35 किलो अनाज प्रति परिवार प्रति माह इसी दर पर उपलब्ध होगा।

आंगनबाड़ी से पूरक पोषाहार


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 20131. प्रत्येक गर्भवती महिला एवं धात्री माताओं को गर्भधारण के समय से लेकर बच्चे के जन्म के 6 माह तक आंगनबाड़ी से घर ले जाने के लिए 600 कैलोरी व 18-20 ग्राम प्रोटीन युक्त पूरक पोषाहार दिया जायेगा।

2. 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों को घर ले जाने के लिए 500 कैलोरी व 12 से 15 ग्राम प्रोटीन युक्त पूरक पोषाहार दिया जायेगा।

3. 3-6 वर्ष तक के बच्चों को आंगनबाड़ी केन्द्र पर 500 कैलोरी व 12-15 ग्राम प्रोटीन युक्त नाश्ता व गर्म पका हुआ भोजन दिया जायेगा।

4. आंगनबाड़ी द्वारा संबंधित क्षेत्र में कुपोषित बच्चों की पहचान की जायेगी।

5. कुपोषित बच्चों को घर ले जाने के लिए 800 कैलोरी व 20-25 ग्राम प्रोटीन युक्त पूरक पोषाहार दिया जायेगा।

6. प्रत्येक आंगनबाड़ी में रसोईघर की सुविधा होगी और पीने का स्वच्छ पानी एवं शौचालय उपलब्ध करवाया जायेगा।

स्कूलों में मध्यान्ह भोजन


1. सभी सरकारी/स्थानीय निकायों/सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को 450 कैलोरी व 12 ग्राम प्रोटीन युक्त भोजन, कक्षा 6 से 8 कक्षा तक के बच्चों को 700 कैलोरी व 20 ग्राम प्रोटीन युक्त गर्म पका भोजन, स्कूल में छुट्टी के दिनों को छोड़कर हर रोज मुफ्त दिया जायेगा।

2. प्रत्येक स्कूल में रसोईघर, पीने का साफ पानी और शौचालय उपलब्ध करवाया जाएगा।

3. शहरी क्षेत्रों में केन्द्र सरकार के मापदंडों पर केन्द्रीय रसोई से मध्यान्ह भोजन दिया जा सकता है।

मानक


सामाजिक अंकेक्षण में यह तोलना होगा कि बच्चों को तय मात्रा में भोजन मिल रहा है। यह सुनिश्चित किया जायेगा कि बच्चों को भारत सरकार द्वारा तय न्यूनतम मात्रा और पोषण तत्वों के मुताबिक भोजन उपलब्ध हो। इस सन्दर्भ में 1 दिसंबर 2009 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा निम्न मापदंड जारी किये गए थे -

 

भोजन मानक 01.12.2009 से लागू

क्रम

सामग्री

प्रति बच्चा मात्रा प्रतिदिन

प्राथमिक, उच्च प्राथमिक

1.

अनाज

100 ग्राम

150 ग्राम

2.

दालें

20 ग्राम

30 ग्राम

3.

सब्जियाँ (पत्तेदार भी)

50 ग्राम

75 ग्राम

4.

खाने का तेल और वसा

5 ग्राम

7.5 ग्राम

5.

नमक और मसाले

जरूरत के मुताबिक

जरूरत के मुताबिक

 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013

गर्भवती-धात्री महिलाओं को मातृत्व लाभ


मातृत्व लाभ के रूप में हर गर्भवती-धात्री महिला को कम से कम 6000 रु. का अनुदान केन्द्र सरकार द्वारा बनाई गयी योजना के तहत दिया जायेगा।

- राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून के तहत बनी हुई व्यवस्थाएं

- राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून और महिला सशक्तिकरण

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून के तहत बनी हुई व्यवस्थाएं


- अब राशन कार्ड पर परिवार की सबसे वरिष्ठ महिला (18 वर्ष से ऊपर की) का नाम परिवार की मुखिया के रूप में अंकित होगा।

- इसमें गर्भवती और धात्री महिलाओं के लिए पोषण के अधिकार को शामिल किया गया है।

- पहली बार देश में सभी गर्भवती-धात्री महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ (मातृत्व हक) का प्रावधान किया गया है। इसके तहत उन्हें छः हजार रूपए का लाभ दिया जाना है।

शिकायत निवारण व्यवस्था


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013- राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून के अनुसार शिकायत निवारण व्यवस्था स्थापित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। यह व्यवस्था दो स्तरीय होगी - जिला स्तर पर एक जिला शिकायत निवारण अधिकारी एवं राज्य स्तर पर खाद्य आयोग।

- राज्य सरकार को हर जिले में शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना है। उसके काम की शर्तें, योग्यताएं, शक्तियां आदि का निर्धारण तथा शिकायत निराकरण, समय सीमा आदि प्रक्रियाओं का निर्धारण राज्य सरकार करेगी। यदि शिकायतकर्ता जिला स्तर पर कार्यवाही से संतुष्ट नहीं हो तो वह राज्य आयोग को अपील कर सकेगा।

- कानून पर अमल की निगरानी और समीक्षा के लिए प्रत्येक राज्य सरकार 'राज्य खाद्य आयोग' का गठन करेगी। आयोग में एक अध्यक्ष व 5 सदस्यों के साथ राज्य के संयुक्त सचिवस्तर का एक सदस्य सचिव होगा। सदस्यों में दो महिला और एक-एक सदस्य अनुसूचित जाति व जनजाति के होने चाहिए। अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा तथा उन्हें दोबारा भी नामित किया जा सकेगा। सदस्यों की अधिकतम उम्र 65 वर्ष होगी। नियुक्तियां और नियुक्ति की शर्तें तथा शक्तियां राज्य सरकार तय करेगी।

- राज्य आयोग का मुख्य कर्तव्य खाद्य-सुरक्षा कानून की निगरानी व मूल्यांकन, स्वतः संज्ञान लेकर या शिकायत प्राप्त होने पर जांच, राज्य सरकार को प्रभावी रूप से कानून लागू करने के लिए सलाह देना, जिला शिकायत निवारण अधिकारी के विरुद्ध की गई अपीलों को सुनना एवं राज्य विधान सभा के पटल पर रखने हेतु वार्षिक रपट तैयार करना होगा।

- राज्य सरकार यदि चाहें तो अधिसूचना के द्वारा वर्तमान में कार्यरत वैधानिक आयोग को राज्य आयोग का कार्यभार दे सकती हैं। कोई भी दो या दो से ज्यादा राज्य मिलकर केन्द्र सरकार की सहमति से एक संयुक्त 'राज्य खाद्य आयोग' की स्थापना कर सकते हैं।

- राज्य आयोग को सीआरपीसी के तहत सिविल कोर्ट के अधिकार होंगे।

पारदर्शिता और निगरानी का प्रावधान


यह कानून स्थानीय निकायों के जरिये समाज को खाद्य-सुरक्षा कार्यक्रमों- योजनाओं की सामाजिक संपरीक्षा और मूल्यांकन करने का अधिकार देता है।

खाद्य-सुरक्षा कानून को लागू करने की जिम्मेदारी


खाद्य-सुरक्षा कानून को लागू करने की जिम्मेदारी केन्द्र, राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों की है। इसे इस तरह समझें :-

केन्द्र सरकार


1. केन्द्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से अनाज खरीदेगी। यही अनाज सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बांटने के लिए राज्यों को उपलब्ध कराया जाएगा। हर राज्य में चिन्हित गोदामों तक अनाज पहुंचेगा।

2. अनाज को राज्य के भीतर एक जगह से दूसरी जगह परिवहन के लिए, राशन दुकानदारों को कमीशन देने के लिए भी राज्य सरकारों को सहायता दी जाएगी।

3. विभिन्न स्तरों पर आधुनिक और वैज्ञानिक भण्डारण व्यवस्था स्थापित करेगी और उसका रखरखाव भी करेगी।


1. हर राज्य सरकार विभिन्न मंत्रालयों व विभागों की खाद्य-सुरक्षा योजनाओं को तय दिशा-निर्देशों के अनुसार लागू करने और उनकी निगरानी करने का काम करेगी।

2. केन्द्र सरकार के गोदामों से अनाज उठाकर राशन दुकान तथा हितग्राही तक पहुंचाएगी।

3. यदि किसी कारण से हितग्राही को अनाज या पूरक पोषाहार नहीं मिल पाता है तो इसके एवज में उसे खाद्य-सुरक्षा भत्ता भी राज्य सरकार ही उपलब्ध करेगी।

4. राशन व्यवस्था को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए आवश्यकतानुसार राज्य, जिला, जनपद स्तर पर भण्डारण व्यवस्था की जाएगी। इसके साथ ही संबंधित संस्थानों की क्षमता का विकास एवं राशन दुकानों का लाइसेंस देने का काम भी राज्य सरकार पर होगा।

स्थानीय निकाय


1. स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने-अपने क्षेत्र में राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार कानून को प्रभावी रूप से लागू करें।

2. राज्य सरकार उन्हें अतिरिक्त दायित्व भी दे सकती हैं।

3. स्थानीय सतर्कता-निगरानी समितियों में इन निकायों का प्रतिनिधित्व होगा।

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के प्रावधान


राज्य सरकार पारदर्शिता और जिम्मेदारी तय करने के लिए नियम और व्यवस्था बनाएगी। राज्य सरकार के बताये गये तरीके से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित सभी दस्तावेज़ों को जनता के समक्ष रखा जायेगा, जो आम लोगों के परीक्षण के लिए खुला होगा।

1. राज्य सरकार द्वारा अधिकृत स्थानीय निकाय राशन दुकानों और अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण कर सकेंगे-कर सकते हैं, साथ ही आवश्यक कार्यवाही भी कर सकेंगे।

2. अगर केन्द्र जरूरी समझे तो अनुभवी स्वतंत्र संस्थानों से भी सामाजिक अंकेक्षण करवाया जा सकता है।

3. लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता और इसके सही संचालन के लिए राज्य सरकार राज्य, जिला, ब्लाक और राशन दुकान स्तर पर सतर्कता समितियां बनाएगी। इनका काम कानून के अमल का लगातार निरीक्षण करना तथा चोरी, धांधलियों, कानून के प्रावधानों का उल्लंघन आदि की शिकायत जिला शिकायत निवारण अधिकारी को लिखित में करना है।

अनाज की कीमत


खाद्य-सुरक्षा कानून के तहत अनाज की मौजूदा निर्धारित कीमतों (3 रु. प्रति किलो चावल, 2 रु. प्रति किलो गेहूं एवं 1 रु. प्रति किलो बारीक अनाज) पर अनाज केवल पहले तीन साल तक के लिए मिलेगा। उसके बाद इनकी कीमतों को तात्कालिक न्यूनतम समर्थन मूल्य या लागत मूल्य के आधार पर बढ़ाया जा सकता है।

हक न मिलने पर क्या?


केन्द्र व राज्य सरकारों से हितग्राही को अगर कोई हक न मिले तो कानून उसे दावा करने का अधिकार देता है। अगर कोई सरकारी कर्मचारी कानून में उल्लंघन का दोशी पाया जाता है तो उस पर 5000 रु. तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है।

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून और अन्य कार्यक्रम-योजनाएं


राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून लागू होने के बाद भी, जो भी खाद्य आधारित या अन्य कल्याणकारी योजनाएं केन्द्र या राज्य सरकारों द्वारा वर्तमान मे चलाई जा रही हैं, उन्हें जारी रखने या नई योजना बनाने या चलाने में कानून आड़े नहीं आएगा।

मातृत्व लाभ (मातृत्व हक) का भुगतान की प्रक्रिया


मातृत्व लाभ केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से जारी अधिसूचना में बताए गए नियमों के आधार पर प्राप्त होगा। नियमों को संसद के दोनों सदनों में रखा जायेगा।

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून के व्यवस्थागत पहलू


इस कानून को लागू करने के लिए एक बड़ी राशि की जरूरत पड़ेगी। यह खर्च मुख्यतः केन्द्र सरकार उठाएगी। यह खर्च अनाज को गोदामों में रखने व राज्यों तक पहुंचाने के रूप में होगा। मातृत्व लाभ, अनाज के राज्य में परिवहन, दुकानदारों का कमीशन, पूरक पोषाहार, मध्यान्ह भोजन आदि खर्चों का बंटवारा केन्द्र सरकार के नियमों के तहत निर्धारित होगा। शिकायत निवारण व्यवस्था का खर्चा राज्य सरकार उठायेगी।

विशेष परिस्थितियों में कानून का क्रियान्वयन


युद्ध, बाढ़, सूखा आदि विशेष परिस्थितियां युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की विशेष परिस्थितियों जैसे- बाढ़, सूखा, आग, तूफान या भूकम्प के कारण अगर अनाज या पूरक पोषाहार की नियमित आपूर्ति में बाधा आती है तो केन्द्र व राज्य सरकारें कानूनी हकदारियों के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगी। केन्द्र सरकार योजना आयोग से विचार-विमर्श के बाद एक क्षेत्र विशेष के संदर्भ में यह घोषणा कर सकती है कि वहां हकदारियां देना संभव है या नहीं।

कानून में खाद्य-सुरक्षा के व्यापक पहलुओं से संबंधित प्रावधान


हम सब यह जानते हैं कि केवल राशन व्यवस्था, मध्यान्ह भोजन और पोषण आहार से समग्रता में खाद्य-सुरक्षा की स्थिति हासिल नहीं की जा सकती है। देश-समाज में कुपोषण, भुखमरी को मिटाते हुए स्थायी खाद्य-सुरक्षा की स्थिति हासिल करने के लिए हमें कई क्षेत्रों में काम करना होगा।

यह कानून केन्द्र व राज्य सरकारों से कमजोर वर्गों, खासकर जो पहाड़ों और जनजातीय क्षेत्रों में रहते हैं, की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने को कहता है। इसके अलावा अनुच्छेद-3 में कई अन्य उपायों के बारे में प्रावधान हैं।

खेती को पुनर्जीवित करने के लिए-

1. छोटे व सीमान्त कास्तकारों के हितों की रक्षा के लिए भूमि सुधार किया जाएगा।

2. खेती में उत्पादकता तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए शोध एवं विकास, विस्तार सेवाएं, छोटी व लघु सिंचाई, बिजली आदि के लिए कृषि में ज्यादा निवेश के प्रावधान हैं।

3. किसानों को आजीविका सुरक्षा देने के लिए उन्हें लाभकारी कीमतों और सिंचाई, बिजली, फसल बीमा, कर्जा, खाद-बीज आदि सुनिश्चित किया जाएगा।

4. खाद्यान्न उत्पादन के लिये जमीन और पानी का प्राथमिक उपयोग होगा और इसमें अवांछित परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

उठाव, भंडारण और परिवहन


अन्य प्रावधान
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013इनमें सुरक्षित एवं समुचित पेयजल, सवच्छता, स्वास्थ्य, किशोरी बालिकाओं के पोषण स्वास्थ्य और शिक्षा को सहयोग एवं वृद्ध, विकलांगों, एकल महिलाओं को पेंशन देने का प्रावधान शामिल हैं।

कानून के तहत राज्यों के लिए अनाज का आवंटन


कानून की अनुसूची-4 में देश व राज्यों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा किये गये आवंटन की जानकारी है। शुरूआत में कुल आवंटन 549.26 लाख टन प्रति वर्ष होगा। हर राज्य का कोटा जनगणना- 2011 की जनसंख्या व गरीबी की स्थिति के आधार पर निर्धारित किया गया है। कानून में इसे बदलने का प्रावधान नहीं है। वर्तमान में यदि किसी राज्य में इससे ज्यादा आंवटन हो रहा है तो वह बरकरार रखा जायेगा।

खाद्य-सुरक्षा कानून और नकद भुगतान


हां। कानून के तहत नकद भुगतान की बात दो जगह की गई है। पहला- यह कहा गया है कि यदि किसी भी कारणवश हकदार को अनाज-पूरक पोषाहार नहीं मिलता है तो राज्य सरकार उसे नकद भत्ता देगी। दूसरा- राशन व्यवस्था में सुधार कार्यक्रम के तहत भी नकद भुगतान का प्रावधान रखा गया है। अर्थात कानून की दृष्टि से सरकार नकद भुगतान को प्रभावी लक्षित जन वितरण प्रणाली के लिए आवश्यक मानती है।

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के लिए प्रावधान


इस कानून में यह कहा गया है कि सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार बदलाव के लिए व्यापक काम करेगी ताकि अनाज का भ्रष्टाचार खत्म हो और लोगों के अधिकारों का हनन न हो। इसके साथ ही हर योजना को पारदर्शी बनाने, लोगों को हर जानकारी दिए जाने का प्रावधान किया गया है। कुल मिलाकर व्यवस्था में बदलाव के लिए निर्देश स्पष्ट हैं।

सरकार सुधार के लिए कम्प्यूटरीकरण करेगी, सभी हितग्राहियों की सूची वेबसाइट पर डालेगी, हर हितग्राही को उसके हक मिले हैं कि नहीं, यह जानकारी भी खुली होगी। राशन की दुकानें चलाने और उनका प्रबंधन करने में पंचायतों, स्थानीय निकायों, सहकारी संस्थाओं, महिला समूहों की मुख्य भूमिका होगी। सरकार अब अनाज को खुद राशन की दुकान तक पंहुचाएगी। जहां अनाज का भण्डारण होता है, उसे भी वैज्ञानिक और सुरक्षित बनाया जाएगा। अनाज का भण्डारण विकासखंड यानी ब्लाक के स्तर पर किये जाने की व्यवस्था है।

केन्द्र व राज्य सरकारें इसमें सुधार के लिए लगातार कोशिश करेंगी। इसके लिए निम्न उपाय किए जायेंगे-

1. अनाज को सरकार के गोदाम से राशन दुकान के दरवाजे तक पहुंचाना तथा पारदर्शिता के लिए अनाज के परिवहन में पहले से अन्तिम सिरे तक कम्प्यूटरीकृत प्रणाली का उपयोग।

2. कानून का लाभ वास्तविक चिन्हित हितग्राहियों तक पहुंचे, इसे सुनिश्चित करने के लिए ‘‘आधार’’ कार्ड की बायोमेट्रिक सूचनाओं का उपयोग करना।

3. राशन दुकानों के संचालन में पंचायत, महिला समूह, सहकारी समितियां आदि को प्राथमिकता देना तथा राशन में अनाज व सामग्री की विविधता लाना।

4. स्थानीय जनवितरण व्यवस्था के मॉडलों और अनाज बैंकों को सहयोग देना।

5. नये कार्यक्रमों जैसे- नकद भुगतान, फूड कूपन आदि को प्रारम्भ करना।

राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून के महत्वपूर्ण बिंदु


1. राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून 10 सितम्बर 2013 को लागू किया गया। यह पूरे भारत पर लागू होता है।

2. इस कानून के जरिये खाद्य-सुरक्षा अब एक कानूनी अधिकार बन गयी है।

3 इस कानून के जरिये गरीबी की रेखा से बुना गया महीन जाल एक हद तक टूटा है। पहले कोशिश यह थी कि केवल गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को ही इस कानून के दायरे में लाया जाए। यदि ऐसा होता तो आज के आंकड़ों के मुताबिक केवल 22 फीसदी लोग ही इस कानून के हिसाब से हकदार होते। जिस रूप में कानून अब हमारे सामने है, उसमे 67 फीसदी जनसंख्या को खाद्य-सुरक्षा का हक है। छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को आंगनबाड़ी से पोषण आहार पाने का हक है। जबकि 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों, जो सरकारी या सरकार से सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ते हैं, को मध्यान्ह भोजन योजना के तहत भोजन का हक मिलेगा।

4. देश की ग्रामीण क्षेत्रों की 75 फीसदी और शहरी क्षेत्रों की 50 फीसदी जनसंख्या इस कानून के तहत हकदार है।

5 यदि सरकार राशन नहीं दे पायी, तो राज्य सरकार खाद्य-सुरक्षा भत्ता देने के लिए बाध्य होगी।

6. केंद्र सरकार अनाज का आवंटन करेगी।

7. राशन की दुकानों के संचालन की जिम्मेदारी पंचायतों, स्वयंसेवी संस्थाओं, सहकारी संस्थाओं, महिलाओं के समूह को दिए जाने की बात है।

8. इस कानून के तहत परिवार के हर सदस्य को हर माह 5 किलो सस्ता राशन मिलेगा।

9. अन्त्योदय श्रेणी के तहत हक-धारकों को 35 किलो राशन मिलेगा।

10. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ढांचागत और बुनियादी बदलाव लाने के लिए पारदर्शिता, कम्प्यूटरीकरण और जन सहभागिता की बात इसमें है।

11. कानून के मुताबिक राशन कार्ड परिवार की वरिष्ठ महिला या 18 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिला सदस्य के नाम से बनेगा।

12. राशन की दुकान से लेकर राज्य स्तर तक सतर्कता समितियां बनेंगी।

13. जिला स्तर पर जिला शिकायत निवारण अधिकार होगा।

14. राज्य स्तर पर 'राज्य खाद्य आयोग' का गठन होगा, जो आर्थिक दंड लगाकर अन्य कार्यवाहियां कर सकेगा।

15. अब तक पीडीएस से केवल गेहूं और चावल मिलता था। नये कानून के हिसाब से मोटे अनाज (मिलेट्स) भी मिलेंगे।

16. मध्यान्ह भोजन योजना भी अब कानूनी कार्यक्रम है।

17. एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम परियोजना (आईसीडीएस) का पोषण आहार कार्यक्रम भी अब कानूनी कार्यक्रम है, यानी पोषण बच्चों का अधिकार है।

18. मातृत्व हक भी कानूनी हक है। इस कानून के मुताबिक गर्भवती-धात्री महिलाओं को 6000 रूपए की आर्थिक सहायता पाने का हक होगा।

19. इस कानून में खेती की व्यवस्था को सुधारने के लिए कदम उठाने की बात कही गयी है। हांलाकि इसे कानून के मुख्य हिस्से में न लिख कर अनुसूची (3) में लिखा गया है।

20. किशोरी बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा के हक के बारे में मुख्य कानून में प्रावधान नहीं है। इनका जिक्र अनुसूची में है।

सामाजिक संपरीक्षा या जन निगरानी (सोशल ऑडिट) की व्यवस्था


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013अब राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून 2013 भी लागू हो गया है। यह कानून ‘‘जनसाधारण को गरिमामय जीवन व्यतीत करने के लिए सस्ती कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में क्वालिटी खाद्य की सुलभ्यता को सुनिश्चित करके, मानव जीवन चक्र के मार्ग में खाद्य और पोषण सम्बन्धी सुरक्षा और उससे संबंधित या उसके अनुषांगिक विषयों का उपबंध करने के लिए’’ लागू किया गया है।

हमारे लिए यह कानून दो नजरियों से महत्वपूर्ण है -


क. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ-साथ मध्यान्ह भोजन, मातृत्व हक और एकीकृत बाल विकास परियोजना कार्यक्रम के पोषण आहार वाले हिस्से को भी इस कानून में शामिल किया गया है।

ख. राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून 2013 में सामाजिक संपरीक्षा (सामाजिक अंकेक्षण) का प्रावधान किया गया है।

इस कानून में सामाजिक संपरीक्षा (सोशल-आडिट) के सन्दर्भ में दो महत्वपूर्ण उल्लेख हैं-


1. सामाजिक संपरीक्षा से ऐसी प्रक्रिया अभिप्रेत है जिसमें जनता किसी कार्यक्रम या स्कीम की योजना और कार्यान्वयन की सामूहिक रूप से मानिटर और उसका मूल्यांकन करती है।” - अध्याय 1 (20)

2. प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी या ऐसा कोई अन्य प्राधिकारी या निकाय, जिसे राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किया जाए, उचित दर की दुकानों, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य कल्याणकारी स्कीमों के कार्यकरण के सम्बन्ध में समय-समय पर सामाजिक संपरीक्षा करेगा या करवाएगा और ऐसी रीति में, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए, अपने निष्कर्ष प्रचारित करवाएगा और आवश्यक कार्यवाही करेगा।

इन दोनों बिंदुओं का अध्ययन करने से समझ आता है कि आंगनबाड़ी के जरिये संचालित होने वाला पोषण आहार कार्यक्रम, कुपोषित बच्चों की पहचान का काम और मातृत्व हक सामाजिक संपरीक्षा (सोशल-आडिट) के प्रावधान के तहत आते हैं। यह काम स्थानीय निकाय करेंगे। अब हमें यह देखना है कि इस कानून में महिलाओं और बच्चों को क्या-क्या हक अभी तक मिले हैं?

सतर्कता समिति


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013इसके साथ ही राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून में चार स्तरों पर सतर्कता समितियों का राज्य जिला, ब्लाक और राशन दुकान (यानी लगभग पंचायत स्तर पर), का गठन किया जायेगा। इन समितियों का काम सभी योजनाओं की निगरानी करना होगा। इनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं, निराश्रित और विकलांग व्यक्तियों, जो कानून के हितग्राही हैं, को भी शामिल किया जायेगी।

ये समितियां योजनाओं का पर्यवेक्षण करेंगी और यदि ये समिति पाती है कि कहीं कानून के प्रावधान का उल्लंघन हुआ है तो शिकायत निवारण अधिकारी को लिखित में सूचित करेंगी।

 

‘राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून-2013

और सामुदायिक निगरानी मैदानी पहल के लिए पुस्तक


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम और अध्याय

पुस्तक परिचय : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013

1

आधुनिक इतिहास में खाद्य असुरक्षा, भुखमरी और उसकी पृष्ठभूमि

2

खाद्य सुरक्षा का नजरिया क्या है?

3

अवधारणाएँ

4

खाद्य सुरक्षा और व्यवस्थागत दायित्व

5

न्यायिक संघर्ष से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून-2013 तक

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनने की पृष्ठभूमि

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का आधार

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून-2013 के मुख्य प्रावधान

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में दिए गए अधिकार

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत बनी हुई व्यवस्थाएँ

6

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और सामाजिक अंकेक्षण


 

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