polluted river
polluted river

पानी एक, परिदृश्य तीन

Published on
4 min read

परिदृश्य-एक

उतरता पानी : बैठती धरती

भारत की ज्यादातर फैक्टरियों और उनसे दूषित नदी किनारे के गांवों का सच यही है। कृष्णी नदी किनारे के इस गांव का भूजल जहर बन चुका है। काली नदी के किनारे क्रोमियम-लैड से प्रदूषित है। हिंडन किनारे बसे गाजियाबाद की लोहिया नगर काॅलोनी की धरती में जहर फैलाने वाली चार फैक्टरियों में ताले मारने पड़े और तो और गोरखपुर की आमी नदी के प्रदूषण से संत कबीर के मगहर से लेकर सोहगौरा, कटका और भडसार जैसे कई गांव बेचैन हो उठे हैं। भारत में एक भी ऐसा राज्य नहीं, जिसका प्रत्येक विकासखंड भूजल की दृष्टि से पूरी तरह सुरक्षित होने का दावा कर सके। आजादी के वक्त 232 गांव संकटग्रस्त थे। आज दो लाख से ज्यादा यानी हर तीसरा गांव पानी की चुनौती से जूझ रहा है। देश के 70 फीसदी भूजल भंडारों पर चेतावनी की छाप साफ देखी जा सकती है। पिछले 18 वर्षों में 300 से ज्यादा जिलों के भूजल में चार मीटर से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है।

जम्मू, हिमाचल, उत्तराखंड, झारखंड जैसे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर सबसे ज्यादा बारिश वाले चेरापूंजी तक में पेयजल का संकट है। हरित क्रांति के अगुवा पंजाब के भी करीब 40 से अधिक ब्लॅाक डार्क जोन हैं। नारनौल, हरियाणा के गांव - दोहन पच्चीसी में पानी के चलते चुनाव के बहिष्कार का किस्सा पुराना है। बेचने के लिए पानी के दोहन ने दिल्ली में अरावली के आसपास जलस्तर 25 से 50 मीटर गिरा दिया है।

राजस्थान के अलवर-जयपुर में एक दशक पहले ही अतिदोहन वाले उद्योगों को प्रतिबंधित कर देना पड़ा था। उ.प्र. के 820 में से 461 ब्लॅाकों का पानी उतर रहा है। म.प्र. के शहरों का हाल तो बेहाल है ही, सुदूर बसे कस्बों में भी आज 600-700 फीट गहरे नलकूप हैं। बड़े बांधों वाले गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र, उड़ीसा और कर्नाटक से लेकर ज्यादा नदियों वाले केरल, बिहार, बंगाल, उत्तराखंड और उत्तर-पूर्व ...सब जगह पानी का संकट है।

क्या कोई बेपानी देश महाशक्ति बन सकता है? सोचिए और बताइए।

परिदृश्य-दो

बढ़ता जहर : मरते लोग

‘‘हमें क्या मालूम था कि चीनी बनाने आई फैक्टरी एक दिन हमारी ही हत्यारी बनेगी। ‘‘- सोमपाल, गांव भनेड़ा खेमचंद, नानौता, सहारनपुर, उ. प्र. भारत की ज्यादातर फैक्टरियों और उनसे दूषित नदी किनारे के गांवों का सच यही है। कृष्णी नदी किनारे के इस गांव का भूजल जहर बन चुका है।

काली नदी के किनारे क्रोमियम-लैड से प्रदूषित है। हिंडन किनारे बसे गाजियाबाद की लोहिया नगर काॅलोनी की धरती में जहर फैलाने वाली चार फैक्टरियों में ताले मारने पड़े और तो और गोरखपुर की आमी नदी के प्रदूषण से संत कबीर के मगहर से लेकर सोहगौरा, कटका और भडसार जैसे कई गांव बेचैन हो उठे हैं। कानपुर, बनारस, पटना, बोकारो, दिल्ली, हैदराबाद ...गिनते जाइए कि नदी से भूजल में पहुंचे प्रदूषण और ऊपर आई बीमारियों के उदाहरण कई हैं।

गिरते भूजल के कारण गुणवत्ता में आई कमी का परिदृश्य भी कम खतरनाक नहीं है। राजस्थान, म.प्र. उड़ीसा, गुजरात में फ्लोराइड की अधिकता नई नहीं हैं। उ.प्र. में उन्नाव के बाद अब रायबरेली-प्रतापगढ़ फ्लोराइड नए शिकार हैं। उ.प्र.के जौनपुर, झारखंड के पाकुड़ और बंगाल के मुर्शिदाबाद के भूजल में आर्सेनिक नामक जहर की उपलब्धता डराने वाली है।

आंकड़ा है कि महाराष्ट्र में 89.7 प्रतिशत उपलब्ध पानी पीने योग्य नहीं है। भारत के 1.8 लाख गांवों का पानी प्रदूषित है। दुनिया की 50 प्रतिशत कृषि भूमि खारी होने की ओर बढ़ रही है। भारत के अन्य समुद्री इलाकों के साथ-साथ दुनिया का सबसे बड़ा तटवर्ती वन-सुंदरवन इसी रास्ते पर है।

इससे हो रही सेहत की बर्बादी का चित्र और भी खतरनाक है, ... इतना खतरनाक कि ऐसे विकास से तौबा करने का मन चाहे।

परिदृश्य- तीन

कायदे कई : पालना सिफर

कागज देखिए तो आंकड़े, आदेश और योजनाओं की कोई कमी नहीं। बतौर नमूना भूजल प्रबंधन संबंधी उ.प्र. के चुनिंदा शासकीय निर्देशों पर निगाह डालें कि ये कितने अच्छे हैं। ये निर्देश ही अगर हकीकत में तब्दील हो जाएं, तो सच मानिए कि जेठ में पानी की गुहार की बजाए फुहारें नसीब हो। काश ! कभी हम ऐसा कर पाएं।

1. चारागाह, चकरोड, पहाड़,पठार व जल संरचनाओं की भूमि को किसी भी अन्य उपयोग हेतु प्रस्तावित करने पर रोक।

2. अन्य उपयोग हेतु पूर्व में किए गए पट्टे-अधिग्रहण रद्द करना, निर्माण ध्वस्त करना तथा संरचना को मूल स्वरूप में लाना प्रशासन की जिम्मेदारी।

3. प्राकृतिक जलसंरचनाओं में केवल वर्षाजल के सतही बहाव व प्रदूषण रहित प्राकृतिक ड्रेनेज के मिलने की व्यवस्था हो।

4. जलाशय निर्माण से पूर्व कैचमेंट एरिया का चिन्हीकरण तथा व्यावहारिकता आकलन अनिवार्य।

5. वर्षा पूर्व जून के प्रथम सप्ताह तक चेकडैम से गाद-कचरा का निस्तारण अनिवार्य।

6. प्रत्येक ज़िलाधीश संबंधित अधिकारी, ग्राम प्रधान तथा लाभार्थियों के एक प्रतिनिधि के तकनीकी समन्वय समिति का गठन कर जल हेतु दीर्घकालीन एकीकृत योजना निर्माण व क्रियान्वयन सुनिश्चित करें।

7. 300 से 500 मी. की छत, स्टोरेज टैंक, रिचार्ज वेल की सफाई हेतु वित्तीय प्रावधान।

8. 300 वर्ग मी. व अधिक क्षेत्रफल की प्रत्येक नए-पुराने शासकीय इमारत में तय समय सीमा के भीतर रूफ टॅाप हार्वेस्टिंग अनिवार्य।9. 100 से अधिक 200 वर्ग मी.से कम क्षेत्रफल के भवनों में सामूहिक रिचार्ज, 200 से अधिक 300 से कम के भवनों में सामूहिक हो या एकल, किंतु रिचार्ज व्यवस्था आवश्यक।

10. निर्माण योजना बनाने से पूर्व भूगर्भीय /जलीय सर्वेक्षण जरूरी।11. 20 एकड़ से कम क्षेत्रफल की औद्योगिक योजना में जलाशय अथवा इसके हरित क्षेत्र में रिचार्ज वेलः/ टैंक निर्माण अनिवार्य। 20 एकड़ से अधिक में कम से कम पांच फीसदी जमीन पर जल पुनर्भरण इकाई जरूरी। न्यूनतम क्षेत्रफल- एक एकड़। गहराई- छह मीटर।

12. 1000 वर्ग मी. से अधिक के प्रत्येक भवन, ग्रुप हाउसिंग, शैक्षिक-व्यावसायिक-औद्योगिक परिसर तथा जलधारा पर बनाए गए चेकडैम में जल पुनर्भरण मापने के लिए पीजोमीटर की स्थापना अनिवार्य।

13. ब्लॅाक स्तर तक भूजल सप्ताह मनाकर जनभागीदारी सुनिश्चित करने का आदेश।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org