पानी के मसले एक ही मंत्रालय के पास हो

7 Sep 2008
0 mins read
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज

हर आम और खास की सबसे बड़ी जरूरत है पानी। बढ़ती आबादी व सीमित पानी को देखते हुए झगड़े भी बढ़ रहे हैं। देश में पानी राज्यों का विषय है और केंद्रीय स्तर पर भी पानी कई मंत्रालयों में बंटा है। इन हालात में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज का आए दिन किसी न किसी नए विवाद से सामना होता रहता है। उनका स्पष्ट मानना है कि पानी के लिए तो एक ही मंत्रालय होना चाहिए। 'दैनिक जागरण' के विशेष संवाददाता रामनारायण श्रीवास्तव के साथ खास बातचीत में सोज ने पूरी साफगोई के साथ यह भी स्वीकार किया कि पानी के लिए जो भी मंत्रालय काम कर रहे हैं उनमें भी समन्वय की कमी है। पानी से जुड़े अन्य तमाम मुद्दों पर भी सोज ने अपनी राय खुलकर व्यक्त की। पेश हैं प्रमुख अंश-

प्र : पानी बहुत गंभीर व बड़ा विषय है, लेकिन जिस तरह से यह कई मंत्रालयों में बंटा हुआ है उससे क्या आपको नहीं लगता है कि पानी के सारे मुद्दे एक ही मंत्रालय के पास होने चाहिए?

उ : उसमें मैं कुछ नहीं कह सकता। इस संदर्भ में जैसी व्यवस्था की गई है वैसा चल रहा है, लेकिन जो काम मेरे जिम्मे है वह मैं करूंगा? मेरे पास सिंचाई व बाढ़ प्रबंधन है, उसमें मैं दिलचस्पी लूंगा। हम जो काम कर रहे है उसमें पीने का पानी भी साथ रहता है। जहां-जहां ट्यूबवेल हैं, उनसे जो पानी निकलता है वह कुछ सिंचाई के काम आता है और कुछ पीने के। असल बात यह है कि पीने का पानी एक ही मंत्रालय में होना चाहिए। वह कौन सा मंत्रालय होगा, मुझे नहीं मालूम, लेकिन जिन भी मंत्रालय का संबंध पानी से है उनके बीच समन्वय होना चाहिए। फिलहाल इसमें कुछ कमजोरी है।

प्र : पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी नदी जोड़ परियोजना के बारे में आरोप लगते रहे हैं कि संप्रग सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल रखा है, आपका क्या मानना है?

उ : इस बारे में बड़ी गलतफहमी है। नदी जोड़ को हमने पीछे नहीं छोड़ा है, बल्कि आगे बढ़ा रहे हैं। पांच नदी जोड़ने पर काम हो रहा है। पहला एमओयू केन-बेतवा जोड़ का दो साल पहले हो चुका है, उसकी डीपीआर बन रही है? बाकी पर राज्यों को एमओयू दिए गए हैं, जिन पर वे समझौते के नजदीक पहुंच रहे हैं। नदियों को जोड़ने का काम है तो बड़ा अच्छा, लेकिन रफ्तार सुस्त है। असल में यह राज्यों का मामला है, इसमें हम जबरदस्ती नहीं कर सकते हैं?

प्र : नए बांध व नई परियोजनाओं की तरफ तो सबका ध्यान है, लेकिन खतरनाक स्थिति में पहुंच चुके पुराने बांधों के लिए कोई योजना है क्या?

उ : केंद्रीय जल आयोग बांधों की देखभाल करता है। जहां बांध खराब हालात में होता है तो संबंधित राज्य को मरम्मत करने को कहा जाता है। हम राज्यों को तकनीकी सलाह भर देते है, बाकी काम उन्हें खुद करना होता है।

प्र : पानी की सभी समस्याओं के निदान के लिए क्या केंद्र सरकार इसे राज्य सूची से हटा कर समवर्ती सूची में लाने की सोच रही है?

उ : हमारे मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थाई समिति ने इस तरह की सिफारिश की है। उसमें शामिल सभी दलों के सदस्यों ने राय दी थी कि इसको समवर्ती सूची में लाया जाए। इसे मानना या न मानना संसद का काम है। वैसे इस संदर्भ में केंद्र के अधिकार में बढ़ोतरी होने से सारे देश को राहत मिलेगी।

प्र : हर साल बाढ़ आती है। लगभग हर पंचवर्षीय योजना में यह मामला अहम रहा है, लेकिन क्या वजह है कि अभी तक इस पर प्रभावी रोक नहीं लग पाई?

उ : देखिए, अगस्त 2004 में जो बाढ़ आई थी उसमें बिहार व पश्चिम बंगाल में भारी नुकसान हुआ था। वह जबरदस्त बाढ़ थी। प्रधानमंत्री ने उस मौके पर बाढ़ प्रबंधन के लिए एक टास्क फोर्स बनाई थी। उसने दिसंबर 2005 में रिपोर्ट दी थी। यह बड़ी अच्छी रिपोर्ट थी। उस पर अमल हो रहा है। हमने बिहार व पश्चिम बंगाल के लिए काफी प्रोजेक्ट पेश किए, लेकिन उन्होंने खास दिलचस्पी नहीं ली। मैंने उनसे कहा है कि आप प्रस्ताव भेजिए, हम उन पर अमल करेंगे। जहां तक बाढ़ के स्थाई प्रबंध का मसला है तो इसके लिए राष्ट्रीय बाढ़ प्रबंधन आयोग बनाने की सोच रहे हैं। इसके लिए जल्द ही कैबिनेट के पास जाऊंगा। यह आयोग टास्क फोर्स की सिफारिश के मुताबिक ही बनेगा। इसके पास इतना पैसा जरूर होगा कि मानसून से पहले देश में जगह-जगह बाढ़ से बचाव के प्रबंध करेगा। जहां बांध बनाए जा सकते हैं वहां बांध बनाए जाएंगे। जहां जरूरी हुआ वहां ड्रेनेज का इंतजाम होगा। उस आयोग से पूरे देश को राहत मिलेगी, खासकर बिहार, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में।

प्र : पानी राज्य का विषय होने के कारण कई बार केंद्र चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता है। ऐसे में राज्यों को किस तरह साथ लेकर चल पाएंगे जिससे महत्वपूर्ण योजनाएं प्रभावित न हों?

उ : केंद्र सरकार ने अभी बिहार को दो परियोजनाएं-महानंदा व बागमती बनाकर दी हैं। ये तकरीबन 1600 करोड़ रुपए की परियोजनाएं हैं। इससे बिहार को काफी राहत मिलेगी, क्योंकि वहां पर न केवल बांध बनाए जाएंगे, बल्कि और भी काफी काम होगा। इसी तरह पश्चिम बंगाल से भी कहा है कि आप प्रस्ताव दे दीजिए, हम उनको मंजूर करेंगे।

प्र : बहुत सारी परियोजनाएं हैं जो शुरुआती पंचवर्षीय योजनाओं में शुरू हुई थीं, मगर धीमे काम की वजह से उनका बजट कई सौ गुना बढ़ चुका है? आखिर ये योजनाएं कब पूरी होंगी?

उ : इस वक्त मैं यह नहीं बता सकता, लेकिन हमारा ध्यान इस तरफ है। हमने अपनी प्राथमिकताएं तय कर ली हैं। अब हम 300 बड़ी व मझोली सिंचाई परियोजनाओं को पहले पूरा करेंगे। उसके बाद दूसरे प्रोजेक्ट हाथ में लेंगे। तेज रफ्तार से काम करने का जो हमारा कार्यक्रम है उसके जरिए इन परियोजनाओं को पूरा करना लक्ष्य रहेगा।

प्र : भूजल नियंत्रण के लिए केंद्र कई सालों से जो प्रयास कर रहा है उसमें कितनी प्रगति हुई है? क्या कुछ राज्य अब भी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं?

उ : हमने जो माडल बिल बनाया उसे सभी राज्यों ने मान लिया है। केवल जम्मू-कश्मीर अपने यहां अलग तरीके से कानून लाएगा, क्योंकि उसे 370 के तहत अलग दर्जा हासिल है। पंजाब भी अब मान गया है। वहां के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल यहां आए थे और उन्होंने कहा कि हम इस कानून को मान रहे हैं। तात्पर्य यह है कि अब पूरे मुल्क ने इसे मान लिया है। मैं नहीं कहता कि वही शब्द वे इस्तेमाल करें, लेकिन माडल कानून उनकी नजर में है। कानून बनाने के बाद पानी रिचार्ज होगा तो पूरा देश सुरक्षित होगा। बारिश का हर कतरा बहुत जरूरी है हमारे लिए। इससे छतों पर भी जल संचयन होगा। जहां-जहां पानी बरसता है, वहां जल संचयन का इंतजाम होगा। जहां मकान के साथ जमीन है वहां रिचार्ज करेंगे। इससे भूजल का स्तर बढ़ेगा व पीने के पानी की समस्या खत्म करने में मदद मिलेगी।

प्र : छोटे या बड़े बांध को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। पानी का समस्याओं का समाधान किस तरह के बांधों से संभव है?

उ : छोटा बांध हो या बड़ा बांध, अब जो कमीशन बनेगा वही इस विषय को देखेगा। वही बताएगा कि कि किस जगह छोटा बांध बनाना है और किस जगह बड़ा। पूरा सर्वे होगा और पूरे देश का मास्टर प्लान बनेगा। यह मामला मेरी निगाह में है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading