पानी के योग

water
water

आज लोगों के बीच जानने के लिये एक खास बात यह भी है कि बीस-बीस बीघा जमीन, आम के वृक्षों के मालिक होने के बावजूद भी पानी के योग गाँव की कुंडली में नहीं होने के कारण इन्हें मजदूरी करने सपरिवार जाना पड़ता रहा है। कोई नागदा, कोई खाचरौद, कोई कोटा तो कोई और कहीं मजदूरी करता और 25 से 40 रुपए रोज के उपलब्ध हो पाते। गाँव के सारे खेत रबी की फसल के दौरान बंजर पड़े रहते थे। पानी का महत्त्व इस मायने में भी सामने है कि किसी शहर में यदि किसी के पास 20 बीघा जमीन हो और उसे मजदूरी करना पड़े तो यह कितनी बड़ी सुर्खी होगी- आज हम अच्छी तरह से इसे समझ सकते हैं। उज्जैन जिले के खाचरौद क्षेत्र के रानी पिपलिया के पास बसे बरखेड़ा पित्रामल के बाशिंदे मांगू की जन्म पत्रिका में किस योग का उल्लेख होगा?

...राहु और केतु की युति बनेगी या हटेगी? शनि की साढ़े साती अच्छा फल देगी या परेशानी में डालेगी? शनि के ढैय्ये का मिजाज कैसा रहेगा। गुरू की दशा और चन्द्रमा का घर बदलना क्या शुभ रहेगा। इस जैसे और भी कई सवाल उनकी जन्म पत्रिका में खोजे जा सकते हैं।

लेकिन, एक सवाल को सम्भवतः कोई नहीं नकार सकता है।

उसकी जन्म पत्रिका में इस बात के अवश्य संकेत होंगे कि ‘पानी के योग’ की वजह से श्री मांगू बंजारा के जीवन में खुशहाली के मौके आएँगे।

जनाब, मांगू ही क्यों- आम ग्रामीण समाज के जीवन की कमोबेश यही कहानी है। ‘बिन पानी सब सून’ वाली कहावत आपको गाँव-गाँव, खेत-खेत और घर-घर मिल सकती है। और जब स्थानों पर पानी के योग उपलब्ध हो जाते हैं तो सुकून, शान्ति, विकास और समृद्धि स्वतः चले आते हैं। बरखेड़ा पित्रामल की कहानी भी यही कुछ कहती है। करीब साढ़े चार सौ की आबादी वाला यह गाँव लम्बे समय से पानी के लिये तरसता रहा है। गाँव में बरसात के दौरान आया पानी नाले, टापरे और खेतों में से बहकर निकल जाया करता था। जब पानी नहीं होगा तो उस जिन्दगी के मायने क्या होंगे! रोज दाने-पानी की चिन्ता, चेहरे बेनूर, काया कृषकाय, गाँव में गोधूलि बेला में इस बात की चिन्ता कि आखिर हमारे गाँव घर सुकून कब आएगा।

बरखेड़ा पित्रामल में तो अनेक घरों में दो जून की रोटी की चिन्ता सताती रहती। आज लोगों के बीच जानने के लिये एक खास बात यह भी है कि बीस-बीस बीघा जमीन, आम के वृक्षों के मालिक होने के बावजूद भी पानी के योग गाँव की कुंडली में नहीं होने के कारण इन्हें मजदूरी करने सपरिवार जाना पड़ता रहा है। कोई नागदा, कोई खाचरौद, कोई कोटा तो कोई और कहीं मजदूरी करता और 25 से 40 रुपए रोज के उपलब्ध हो पाते। गाँव के सारे खेत रबी की फसल के दौरान बंजर पड़े रहते थे। पानी का महत्त्व इस मायने में भी सामने है कि किसी शहर में यदि किसी के पास 20 बीघा जमीन हो और उसे मजदूरी करना पड़े तो यह कितनी बड़ी सुर्खी होगी।

आज हम अच्छी तरह से इसे समझ सकते हैं। इसलिये तो गाँव का स्थानीय जल प्रबन्धन - समृद्धि की कुंजी कहा जाता है। बरखेड़ा पित्रामल की मिसाल से यह बात और पुख्ता हो जाती है। गाँव में एक विशाल तालाब सहित कुल सात जल संरचनाएँ समाज की सहभागिता से बनाई हैं। अब यहाँ चप्पे-चप्पे पर पानी है और इन थमी बूँदों के साथ गाँव के सामाजार्थिक विकास की बदली तस्वीर भी सामने है। यहाँ लगभग 36 कुएँ हैं। ये लगभग सभी ‘जिन्दा’ हो गए हैं। ढाई सौ हेक्टेयर के बड़ले से होकर आने वाली बूँदों को जगह-जगह गाँव का मेहमान बनाया जा रहा है। गाँव में पहाड़ी क्षेत्र को बड़ला के नाम से भी जाना जाता है। सूखे के बावजूद यहाँ की जल संरचनाओं में रबी के मौसम में भी 10 से 15 फीट तक आप पानी बाबा के दर्शन कर सकते हैं। यहाँ कुल 8 तालाब, स्टॉपडैम, तीन आर.एम.एस., 20 हेक्टेयर में कंटूर ट्रेंचेस और चारागाह विकास का काम किया गया है।

...और हम सबसे पहले आपकी मुलाकात उनसे कराते हैं, जिनका आपको इन्तजार है।

...ये हैं श्री मांगू बंजारा! कभी किसी जमाने में क्यों, दो साल पहले की बात है। रोज सुबह जमीन मालिक होने के बावजूद आप सपरिवार नागदा मजदूरी करने जाते थे। कभी मजदूरी मिलती तो कभी नहीं! परेशानी और आर्थिक संकट पानी के अभाव में सदैव इन्हें घेरे रहते। अब ये अपनी डबरी के पास खड़े हैं।

मांगू ने 30X30X15 फीट गहरी डबरी खुद तैयार की है। तीन हजार रुपए की सरकारी सहायता के साथ कुल 18 हजार की राशि में यह तैयार हो गई है। बूँदों के इस खजाने में आव खत्म ही नहीं हो रही है। 12 से 14 घंटे इंजन चलता है, लेकिन पानी टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है। मांगू अपने जीवन के विविध पहलुओं को सुनाते हुए कहने लगे- ‘गाँव में पानी रोकने और इस डबरी ने हमारे जीवन के योग बदल दिये हैं। मेरे पास कुल 22 बीघा जमीन है। डबरी तैयार होने से 15 बीघे में गेहूँ बोया है। एक कुआँ भी लबालब भरा है, लेकिन उसके पानी की जरूरत ही नहीं है। एक बीघे में लहसुन बोई है। मेथी भी लगाई है। पहले रबी में यहाँ कुछ नहीं होता था। जमीन सूखी पड़ी थी। पानी आने के बाद पिछले साल 30 क्विंटल गेहूँ और 5 क्विंटल चना पैदा हुआ था। 60 हजार रुपए की आय हुई थी। इस साल यह आँकड़ा 90 हजार तक जाने की सम्भावना है। पानी के योग ने मांगू को लखपति बनने की ओर पहुँचा दिया है। अब उसके पास फुरसत नहीं है। खुद मजदूरी करने वाला यह शख्स जल प्रबन्धन की वजह से 8-10 लोगों को अपने खेत में मजदूरी करवा रहा है। खेतों में जाने के लिये इन्होंने एक मोटरसाइकिल भी खरीद ली है।’

...और थोड़ी ही देर में हम कनीराम के खेत पर पहुँच गए। इनकी कहानी भी काफी दिलचस्प है। ...जनाब कनीराम का कुआँ तो वाकई पानी का सम्बल है। लगातार तीसरे साल भीषण सूखे के इस दौर में आप 25 फीट इस गहरे कुएँ से हाथ से पानी ले सकते हैं। कुल 16 बीघा जमीन में वे इसके पानी से अपने खेत में सिंचाई कर रहे हैं। इसमें से 10 बीघा जमीन तो पूरी तरह से पड़त की थी। कनीराम अपने परिवार सहित नागदा व कोटा मजदूरी करने जाया करते थे। अब स्वयं के कार्य से ही फुरसत नहीं है। 8 हजार रुपए का इंजन भी लेकर आ गए हैं ताकि सिंचाई में कोई व्यवधान नहीं हो। अपनी जमीन पर गेहूँ- लहसुन और चना बोया है। दो बीघे में संतरा भी लगाया है। कुएँ के पास आम के वृक्ष से एक साल के अन्तराल से एक या डेढ़ क्विंटल आम निकलता था। पानी रोकने के बाद यहाँ 10 क्विंटल आम निकलने लगे। यानी आम की फसल पर 10 गुना लाभ हुआ। कनीराम कहने लगे- “कुएँ को तो 50 साल से ज्यादा हो गए। इस अकाल के साल में भी हमें पानी की कमी महसूस नहीं हो रही है, लबालब कुएँ की वजह से।” राष्ट्रीय मानव बसाहट एवं पर्यावरण केन्द्र के परियोजना अधिकारी अनिल शर्मा कहते हैं- “जल प्रबन्धन गाँव में समृद्धि कैसे लाता है, गरीबी कैसे अलविदा हो जाती है- इसकी बेहतर मिसाल है ये गाँव।” पहले यहाँ जमीन की कीमत 10 से 12 हजार बीघा ही थी, लेकिन अब एक लाख रुपये प्रति बीघा हो गई। गाँव का मार्केट कैसे उछला! पानी के योग की वजह से एकदम दस गुना।

बरखेड़ा पित्रामल में छीतरसिंह हो या फिर कोई और! आपको चप्पे-चप्पे पर डबरियाँ और कुएँ- विकास की कहानी सुनाते मिल जाएँगे। जहाँ नजर उठाओ- वहाँ की जमीन आपको कहती नजर आएगी- पहले मैं ‘पड़त’ की थी, अब ‘हकत’ की हूँ। पड़त यानी वैसे ही पड़ी थी और ‘हकत’ याने अब हाँका जा रहा है।

बरखेड़ा में बदलाव की गंगोत्री यानी एक विशाल तालाब की पाल पर हम खड़े हैं। गाँव का समाज याद करता है, पहली बरसात के बाद हम इसे देखने आये थे। तब की खुशी को कैसे बताएँ। पहले तालाब बनाने को लेकर कुछ विवाद हुए थे, लेकिन समाज के साथ-साथ गाँव के ही श्री राजाराम जाट ने इसके निर्माण पर निगरानी रखने का किरदार निभाया। सुबह-शाम, रात राजाराम जी आपको यहीं मिल जाते। मिट्टी निकालने वाले ट्रैक्टरों को उन्होंने ऐसे नियंत्रित किया मानो किसी महानगर के व्यस्ततम चौराहे पर यातायात नियंत्रित कर रहे हों। चन्द दिनों की इस मेहनत का परिणाम है यह विशाल संरचना, जो गाँव में खुशियों की सौगात दे रही है। राजारामजी को समाज में ‘तालाब वाले’ कहकर पुकारा जाता है। वाटर मिशन के तहत इस तालाब की लागत चार लाख 37 हजार रुपए आई है। इसमें समाज का भी योगदान है। इससे नीचे की ओर लगभग 100 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई हो रही है।

आपको बरखेड़ा पित्रामल की कुंडली कैसी लगी?

‘पानी का योग’ आने पर गाँव की सामाजिक-आर्थिक प्रगति की गृह दशा को क्या टाला जा सकता है?

क्या हर गाँव में ऐसे बड़ले या खेत हो सकते हैं, जहाँ के पानी को रोककर समाज अपने हाथों की रेखाओं को बदल सकता है। उन्हीं हाथों की, जिन्हें जोड़कर वह अपनी खुशियों की - प्रार्थना करता है।

हाँ, निश्चित ही ऐसा हो सकता है। एक बार बरखेड़ा पित्रामल के खेतों में जाकर देखने से यह आत्मविश्वास गाँव-समाज के भीतर आ सकता है...!

 

बूँदों के तीर्थ


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

बूँदों के ठिकाने

2

तालाबों का राम दरबार

3

एक अनूठी अन्तिम इच्छा

4

बूँदों से महामस्तकाभिषेक

5

बूँदों का जंक्शन

6

देवडूंगरी का प्रसाद

7

बूँदों की रानी

8

पानी के योग

9

बूँदों के तराने

10

फौजी गाँव की बूँदें

11

झिरियों का गाँव

12

जंगल की पीड़ा

13

गाँव की जीवन रेखा

14

बूँदों की बैरक

15

रामदेवजी का नाला

16

पानी के पहाड़

17

बूँदों का स्वराज

18

देवाजी का ओटा

18

बूँदों के छिपे खजाने

20

खिरनियों की मीठी बूँदें

21

जल संचय की रणनीति

22

डबरियाँ : पानी की नई कहावत

23

वसुन्धरा का दर्द

 


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading