पानी पर गलत बयानी

30 Aug 2010
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महाराष्ट्र के जलसंसाधन मंत्री की विदर्भ में ताप विद्युतगृहों के विरुद्ध चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए अमरावती शहर के सीवेज के पानी के इस्तेमाल को लेकर भ्रामक घोषणा से पूरे इलाके में असंतोष व गुस्सा फैल गया है। इस आलेख से यह स्पष्ट होता है कि पानी की जबरदस्त कमी ने अब गंदे पानी की मिल्यिकत प्राप्त करने के भी कई दावेदार खड़े कर दिए हैं। महाराष्ट्र के अमरावती ताप विद्युतगृह का वर्षों से सार्वजनिक विरोध हो रहा है। विदर्भ क्षेत्र के किसानों को डर है कि यह विद्युत संयंत्र अपर-वर्धा सिंचाई परियोजना से पानी लेगा। गत 17 जून को इस विषय में अचानक ही समझौते के आसार नजर आने लगे। राज्य के जलसंसाधन मंत्री अमरावती के नागरिक प्रतिनिधियों और राजनीतिज्ञों से मिले और इस दौरान उन्होंने यह घोषणा कि यह ताप विद्युतगृह अपरवर्धा के पानी को छुएगा भी नहीं और इसके बदले यह अमरावती शहर के सीवरेज के पानी को रिसाइकल कर इस्तेमाल करेगा।

स्थानीय निवासियों को और भी सुविधाएं देने की घोषणा करते हुए मंत्री ने घोषणा की कि इस परियोजना के पश्चात इस जिले में विद्युत कटौती समाप्त हो जाएगी। इस घोषणा का कार्यकर्ताओं के उस वर्ग ने स्वागत किया है जो कि पूर्व में सोफिया पावर कंपनी द्वारा निर्मित किए जा रहे इस ताप विद्युतगृह का विरोध कर रहे थे। उन्होंने इसे किसानों की जीत घोषित किया। परन्तु कुछ ही दिनो में यह बात सामने आई कि इस निर्णय ने बजाए समाधान के नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं। इसके बाद पुनः इस परियोजना का विरोध प्रारंभ हो गया है।

क्षेत्रीय विधायक यशोमति ठाकुर का कहना है कि 2640 मेगावाट की निर्माणाधीन परियोजना के प्रथम चरण में 8.7 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता है। जबकि अमरावती के सीवेज से अधिकतम 2.4 करोड़ लीटर पानी ही निकलता है। अतएव ताप विद्युतगृह की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जिले के काउडन्यापुर बांध से पानी की आपूर्ति होगी। बांध का निर्माण अभी प्रारंभ होना है और सोफिया, जिस नाम से इस परियोजना को जाना जाता है, के सितंबर-अक्टूबर में चालू होने की उम्मीद है।

आंखों में धूल झोंकना


सोफिया हटाओ संघर्ष समिति जिसने इस परियोजना के खिलाफ नागपुर उच्च न्यायालय में अपील दर्ज करवाई है, के समन्वयक सोमेश्वर पुसाड़कर का कहना है कि मंत्री द्वारा पानी के स्त्रोत के संबंध में लिया गया निर्णय आँख में धूल झोकना है। अपर वर्धा सिंचाई परियोजना में 2.4 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी उद्योगों के लिए सुरक्षित रखा गया है। पुसाडकर का कहना है, ‘‘अपर वर्धा बांध से अभी भी 2.4 करोड़ क्यूबिक मीटर या उससे भी अधिक पानी इस्तेमाल में आएगा। ‘उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि इस पानी के संपूर्ण औद्योगिक कोटे का सिर्फ सोफिया के लिए इस्तेमाल करना हानिकारक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इसके बाद 2347 हेक्टेयर में फैले नंदगांव पेठ औद्योगिक क्षेत्र की औद्योगिक इकाईयों के लिए पानी बचेगा ही नहीं। इसी प्रकार बात सिर्फ पानी की नहीं है बल्कि रोजगार की भी है। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास औद्योगिक विकास निगम ने जब औद्योगिक क्षेत्र के लिए भूमि का अधिग्रहण किया था तो 1,178 किसान विस्थापित हुए थे, जिनसे उसने रोजगार का वादा किया था। ऐसे में यदि सोफिया ही सारे पानी का इस्तेमाल कर लेगी तो सरकार अपने द्वारा किए गए वायदे को किस प्रकार पूरा करेगी? क्योंकि सोफिया से तो कुल 370 व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा।

पुसाडकर का कहना है कि अमरावती जिले में अभी भी 2,35,000 हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई व्यवस्था बाकी है। इस परियोजना के पूरा होने से पानी की कमी के फलस्वरूप उपरोक्त आंकड़े में 23,219 हेक्टेयर की और वृद्धि हो जाएगी। इस परिस्थिति में जिले में कहीं से भी पानी लिया जाए चाहे वह ताजा हो या दूषित, किसानों को सिंचाई से बेदखल ही करेगा।

नागरिक समूह की बिजली कटौती समाप्त करने के आश्वासन से भरपाए हैं। विदर्भ में ताप विद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रहे समूह, आंदोलन समिति, के विवेकानन्द माथने का कहना है कि ‘विदर्भ अभी भी अपनी खपत से अधिक विद्युत उत्पादित करता है। हमें सोफिया की जरूरत ही नहीं है।‘ वही पुसाडकर का कहना है यदि अमरावती का सीवेज सोफिया की पानी आपूर्ति हेतु पर्याप्त होता तो भी यह पानी इतनी मात्रा में उसे नहीं मिल पाता क्योंकि इस पानी के अन्य भी कई दावेदार हैं।

अंबा नाला को ही लें। इसके माध्यम से शहर के सीवजस के पानी से अमरावती के सुकाली, वानार्शी, हर्तुना एवं अन्य गांवों की 400 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है। इस नाले के पानी को उपचारित कर इसको पुनः शहर में गैर पीने योग्य कार्यों के लिए दिए जाने का प्रस्ताव भी लंबित है और इस हेतु नगरपालिका ने करीब तीन हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित भी कर ली है। इसके अलावा एक विवादास्पद बांध परियोजना भी अमरावती के सीवेज से जुड़ी है। नाले के माध्यम से सीवेज का 2.4 करोड़ क्यूबिक पानी बहकर पेडी नदी में मिलता है, जो कि इसके कुल प्रवाह का 40 प्रतिशत है। इसी योगदान की वजह से ही लोअर पेडी पर बनने वाली 500 करोड़ की सिंचाई परियोजना को न्यायोचित बताया जा रहा है। माथने का कहना है सोफिया के तस्वीर में आने से अब इस पानी के चार दावेदार हो गए हैं। यह किस तरह का योजना निर्माण है?

किसान सन् 2005 से लोअर पेडी बांध परियोजना के इसलिए खिलाफ हैं क्योंकि उनके अनुसार इसका उद्देश्य क्षारीय भूमि को सिंचित करना है। इस भूमि पर सिंचाई से हानि होती है। अब जबकि सरकार ने अंबा नाले के पानी को सोफिया की ओर मोड़ने का निश्चय कर लिया है तो उन 12 गांवों के जिन किसानों ने अपनी कृषि भूमि लोअर पेडी परियोजना हेतु खाली की थी, ने मांग करते हुए कहा है कि जब परियोजना की ही आवश्यकता नहीं है तो हमें हमारी जमीनें वापस की जाएं।

अलंगगांव के निवासी विजय पूछते हैं कि, एक निजी समूह को पानी देने के लिए सरकार सार्वजनिक आंकाक्षा के विरुद्ध इस हद तक जाकर बांध बनाने पर क्यों तुली है?पेडी धरण संघर्ष समिति के समन्वयक अधिवक्ता श्रीकान्त खोरगड़े का मत है कि ‘निर्णय में बड़ी चतुराई से यह स्पष्ट नहीं किया गया है अंबा नाला का पानी कहां से लिया जाएगा। अधिकांशतः पानी बांध से ही लिया जाएगा। ऐसे मामले में बांध द्वारा सिंचाई के लिए किए गए वादों का क्या होगा? समिति के सदस्यों का कहना है कि या तो बांध निर्माण निरस्त किया जाए या इसकी ऊंचाई कम की जाए, जिससे कम से कम भूमि डूब में आए।

वहीं पुसाड़कर का कहना है, यदि बिना तोडे-मरोड़े अमरावती की स्थिति को देखा जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि जिले में इतना पानी ही नहीं है कि वह सोफिया जैसी परियोजना की पूर्ति कर पाए।(सप्रेस / सी.एस.ई, डाऊन टू अर्थ फीचर्स)

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