पानी उजाड़ो भक्तों का भविष्य बनाओ

13 Dec 2016
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‘हमारे यहाँ पानी का बिगाड़ नहीं होता और हम किसी सरकार या सरकार के बाप का पानी नहीं लेते। मेरी ऊपर वाले से दोस्ती है और मैं जब चाहूँ, जहाँ चाहूँ बरसात करा सकता हूँ।’ -आसाराम बापू

लातुर में जल संकटहोली के मौके पर मुंबई, नागपुर और सूरत में लाखों लीटर पानी बर्बाद करने वाले आसाराम बापू मीडिया में हुई अपनी आलोचना के जवाब में न केवल कुतर्कों पर उतर आए हैं, बल्कि इतने उत्तेजित हैं कि संत होने के अपने छद्म तक का बचाव नहीं कर पाते। सूरत में वह कहते हैं, ‘मुंबई में मैंने 6000 लीटर रंग बनवाया था पर यहाँ तो मैं 12000 लीटर रंग बनवाऊँगा। जलने वाले जला करें। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि मीडिया बिकाऊ है। मैंने तो थोड़े से पानी से भक्तों को भक्ति के रंग में रंगने का प्रयास किया था कि मीडिया ने हल्ला मचा दिया, जबकि महाराष्ट्र के एक मंत्री पतंगराव कदम के लिये हैलीपैड बनाने के वास्ते 41 टैंकर पानी बर्बाद किया गया। मुंबई में आधा टैंकर पानी भी खर्च नहीं हुआ मगर पूरी दुनिया में हल्ला मचा दिया गया कि बापू के साधकों ने मीडियावालों को मारा। कितने मीडियावालों को मारा? लाखों साधक थे मगर एक ही मीडियावाला पिटा, वह भी खुला घूम रहा है।’

भारत में संतों की बहुत महिमा है मगर पता नहीं कौन सा संत ऐसा होगा, जो वाजिब आलोचना से इतना उत्तेजित होता होगा। शायद इस कलियुग का असर रहा होगा क्योंकि कहा गया है कि ‘संत छोड़ें न संतई कोटिक मिलें असंत, जैसे कागा कोकिला सीतलता न तजंत।’

महाराष्ट्र इस समय भीषण सूखे की चपेट में है, इसलिये यह स्वाभाविक और तार्किक ही है कि जब आसाराम बापू मुंबई में अपने अनुयायियों पर बड़े-बड़े पंपों से रंग बरसा रहे थे- जिसे वे प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ाने वाला तथाकथित संकल्पित जल कहते हैं- तब मीडिया का ध्यान पानी की इस बर्बादी पर जाता। एक टेलीविजन की टीम तब एक बस की छत पर चढ़ गई और उसने वहाँ खड़े पानी के टैंकों की संख्या और उनकी क्षमता के अनुसार हिसाब लगा कर बताया कि आसाराम बापू ने होली खेलने में 30 हजार लीटर पानी बर्बाद कर दिया। टीवी चैनलों पर पानी की इस बर्बादी के दृश्य जैसे ही आने शुरू हुए, आसाराम बापू के भक्तगण पत्रकारों पर पिल पड़े लेकिन आसाराम की संवेदनहीनता देखिए कि वे तर्क दे रहे हैं कि लाखों भक्तों की मौजूदगी के बावजूद सिर्फ एक मीडियावाला पिटा और वह भी उनके अनुसार छुट्टा घूम रहा है! पिछले हफ्ते ही मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा था कि महाराष्ट्र में जितना भयंकर सूखा पड़ा है, वैसा संभवत: पिछले 40 वर्षों में कभी नहीं पड़ा।

लातूर जिले के गाँव की महिलाएं पानी लाने के लिये दिन में कम से कम दो बार दो किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय करती हैराज्य के 12 से अधिक जिलों के करीब 6 या 7 हजार गाँवों में टैंकरों से पानी की सप्लाई करनी पड़ रही है। बेशक मुंबई, नागपुर और गुजरात के सूरत शहर में पानी का वैसा हाहाकार नहीं है, जैसा कि महाराष्ट्र के कई जिलों में है लेकिन यह किसी भी जिम्मेदार नागरिक का सामाजिक सरोकार होना चाहिए कि वह पानी की बर्बादी को रोके। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन तक ने इस बार सूखे की भयंकर स्थिति को देखते हुए प्रदेश के लोगों से सूखी होली अर्थात अबीर और गुलाल से होली खेलने की अपील की थी, जिसका कुछ असर भी हुआ। आसाराम भी- जिनके अनुयायियों की संख्या लाखों में बताई जाती है- अगर ऐसी अपील करते तो उसका कुछ न कुछ प्रभाव जरूर पड़ता मगर वे तो खुद अपने भक्तों के साथ होली खेलने लगे। यही नहीं, वे चुनौती देने लगे कि मैं और भी ज्यादा रंग बरसाऊँगा क्योंकि पानी किसी के बाप का नहीं।

इन अतीतजीवी धर्म के सौदागरों को क्या मालूम कि पानी समूची मानवता की बल्कि इस पृथ्वी के सभी वासियों की साझा संपत्ति है। हमारे समुद्रों, ग्लेशियरों, नदियों, झीलों और तालाबों में जितना पानी शुरू में था, उतना ही आज भी मौजूद है। इसमें भी पीने और इस्तेमाल करने लायक पानी मात्र तीन या चार प्रतिशत ही है। पानी को प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता। आसाराम ईश्वर का आह्वान करके बारिश कराने के भले ही बड़बोले दावे करते घूमते-फिरते हों, पानी बनाना उनके लिये तो क्या, किसी के लिये भी नामुमकिन है। वैसे बारिश कराना ही उनके बायें हाथ का खेल है तो वे कृपया महाराष्ट्र के सूखापीड़ित गाँवों में जल बरसा कर दिखा दें न! राज्य में जगह-जगह लोगों को टैंकरों से पानी खरीदना पड़ रहा है और आरोप ये है कि बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ और उनके समर्थक पार्षद पानी बेचने के इस धंधे में शामिल हैं।

जो भी हो, इसमें कोई शक नहीं है कि आसाराम की इस संवेदनहीन ‘होली’ के कारण टेलीविजन चैनलों को होली के इस मौके पर पानी बचाने की मुहिम चलाना पड़ा। चैनलों को ऐसे खबरों की हर रोज जरूरत होती है मगर ऐसा प्राय: नहीं होता कि वे टिककर किसी एक मुद्दे पर दर्शकों को जागरूक और शिक्षित करें। पानी और हवा का मुद्दा मनुष्य और प्राणिमात्र के अस्तित्व से जुड़ा है। औद्योगीकरण और शहरीकरण ने पानी जैसे कुदरत के अनमोल और अपरिहार्य तोहफे को कायदे, संयम और न्याय से बरतने का सत्य बार-बार रेखांकित किया है। हम प्रगति और विकास के पहिए को तो रोक नहीं सकते मगर पानी को कायदे से बरतने और उसके विवेकपूर्ण इस्तेमाल के बारे में भावी पीढ़ियों को तो शिक्षित कर ही सकते हैं।

कहते हैं कि भारतीय परंपरा में एक सच्चा संत समाज से कम से कम लेता है लेकिन आसाराम बापू जैसे संत तो हेलीकॉप्टर में घूमते हैं, अपने आश्रम के उत्पाद बेचते हैं और अपना साम्राज्य खड़ा करते हैं। वे सब कुछ करें मगर मनुष्यता के प्रति अपने सरोकारों की गंभीरता का भी तो परिचय दें! यह कौन मानेगा कि पानी उजाड़ कर भक्तों का भविष्य सँवारा जा रहा है?

संपर्क- 09810012277

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