पेरिस समझौता : अच्छे जीवन की संकल्पना (Paris Agreement : A concept for better life)


भारत, यूरोपियन यूनियन, चीन सहित अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पेरिस समझौते में अच्छी भूमिका अदा की। विकसित और विकासशील देशों के बीच खाई को पाटते हुए ओबामा प्रशासन ने 3 अरब डॅालर के सहयोग का वादा किया था। इसमें से एक अरब डॉलर के करीब दिया भी गया। नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते से हटने का निर्णय लिया। उनका कहना है कि पेरिस समझौता अमरीका की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, और भारत व चीन को फायदा पहुंचाता है। इस संबंध में एक और तर्क दिया गया है कि समझौते से 2025 तक अमरीका में 27 लाख नौकरियां चली जाएंगी। ट्रंप का जो संदेश भारत और चीन का जिक्र करते हुए आया है, वह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है।

जलवायु परिवर्तन ढा रहा कहर विश्व में 1965 में 3.3 अरब लोग थे, जो बढ़कर 2015 में 7.3 अरब हो गए। 2050 तक यह संख्या 9 अरब हो जाने की उम्मीद है। इस तरह हमारी आवश्यकताएँ बढ़ती जा रही हैं, और अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जिसका हमारी जीविका और स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। मानव क्रियाओं से कार्बन उत्सर्जन में लगातार वृद्धि होती रही है, और अप्रत्याशित गर्मी महसूस की जा रही है। दिल्ली का उदाहरण दिया जा सकता है-पिछले कुछ दिनों में जून में जिस तरह पारा 45 से 47 डिग्री सेल्सियस तक रहा है, यह पहले कभी महसूस नहीं किया गया। वैसे तो जलवायु परिवर्तन के कुछ प्राकृतिक कारण भी होते हैं, जिनमें सूर्य के कक्ष में परिवर्तन, सूर्य ताप में परिवर्तन, महाद्वीपीय द्वीप, पर्वत बनने की प्रक्रिया, ज्वालामुखी आदि प्रमुख हैं, लेकिन जो तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है, उसमें कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख हाथ है। 2015 के एक अनुमान के मुताबिक, विश्व में कार्बन उत्सर्जन 36 अरब टन है।

इसमें चीन का हिस्सा लगभग 11 अरब टन, अमरीका का 5 अरब टन, यूरोपियन यूनियन का 3.5 अरब टन, भारत का 2.5 अरब टन, रूस का 2 अरब टन और जापान का 1.25 अरब टन है। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय जल परिवहन, ईरान, द. कोरिया, कनाडा, सऊदी अरब, इंडोनेशिया आदि का कार्बन उत्सर्जन एक अरब टन से कम है। इसके अलावा, पूरे विश्व में कार्बन उत्सर्जन करीब 7.5 अरब टन से अधिक है। विश्व के विभिन्न देशों द्वारा अलग-अलग उत्सर्जन को ध्यान में रखते हुए ‘रियो सम्मेलन’ से ही डिफरेंशिएट उत्तरदायित्व की संकल्पना की गई ताकि प्रत्येक देश अलग-अलग तरह से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहयोग दे सकें।

जलवायु परिवर्तन ढा रहा कहर


वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में यह बदलाव प्राकृतिक आपदाएं बाढ़, सूखा, गरम हवा (लू) आदि और खाद्य असुरक्षा उत्पन्न कर रहा है। इसका सीधा प्रभाव रोगों के कारक (वेक्टर) और नवीनतम वेक्टर की उत्पत्ति से विभिन्न रोगों के बढ़ते प्रभाव में देखा जा रहा है। जैसे-इंदिरा गाँधी नहर की वजह से राजस्थान जैसे सूखे क्षेत्र में मलेरिया जैसे वेक्टर उत्पन्न हुए हैं। अल नीनो का प्रभाव भी मौसमी तंत्र पर पड़ रहा है, और मलेरिया का उचित वातावरण तैयार करता है। खासकर सूखे क्षेत्रों में ‘हरित तकनीक’ का सामंजस्य इस जटिल समस्या में निदान दिला सकता है।

इस संबंध में एक और चीज ध्यान में लाने की जरूरत है। भारत जैसे विकासशील देशों में अभी भी गरीबी है। ऑक्सफोर्ड की एक संस्था ने बहुआयामी गरीबी सूचक निकाला है। इसके अनुसार बच्चों की आधी संख्या इसके अंतर्गत आती है। कुपोषण, अधिक मृत्यु दर, प्रदूषित जल और साफ-सफाई की खराब स्थिति जैसी समस्याओं से बच्चे, गरीब तबके के लोग, महिलाएं, बुजुर्ग संवेदनशील समूह के रूप में जाने जाते हैं। ये जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित होते हैं। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए 194 देशों द्वारा हस्ताक्षरित पेरिस जलवायु समझौता किया गया।

भारत, यूरोपियन यूनियन, चीन सहित अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसमें अच्छी भूमिका अदा की। विकसित और विकासशील देशों के बीच खाई को पाटते हुए ओबामा प्रशासन ने 3 अरब डॅालर के सहयोग का वादा किया था। इसमें एक अरब डॉलर के करीब दिया भी गया। 2017 में नये राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते से हटने का निर्णय लिया। उनका कहना था कि पेरिस समझौता अमरीका की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, और भारत व चीन को फायदा पहुँचाता है। इस संबंध में यह जानना भी जरूरी है कि शायद ट्रंप प्रशासन को कोयले के उत्पादन, जो 27 फीसद रह गया है, को लेकर भी चिंता है। कोयले के प्रयोग के दुष्प्रभाव को जानते हुए भी तमाम कंपनियां इसे व्यापार के लिए उपयोग करती रही हैं।

अमरीकी तर्क


इस संबंध में एक और तर्क दिया गया है कि इस समझौते से 2025 तक अमरीका में 27 लाख नौकरियाँ चली जाएंगी। ट्रंप का जो संदेश भारत और चीन का जिक्र करते हुए आया है, वह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अत: भारत जैसे विकासशील देशों पर खुद को प्रभावी रूप से पेश करने की जिम्मेदारी आ पड़ी है। ऐतिहासिक तौर पर अमरीका पहला एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दूसरा सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है। इस तरह तकनीक एवं वित्त के दायित्व की जिम्मेदारी भी विकासशील देशों की अपेक्षा उस पर ज्यादा है। अमरीका के पेरिस समझौते से बाहर आने से विश्व को बड़ी हानि पहुंच सकती है। इस संदर्भ में येल समझौते के अंतर्गत ज्यादा अमरीकी नागरिकों ने पेरिस समझौते में बने रहने की इच्छा जताई थी। स्वच्छ ईंधन के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान राष्ट्रपति की नीति बिल्कुल उलट है। भारत साफ तौर पर पेरिस समझौते को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराता रहा है। भारत उन राष्ट्रों का नेतृत्व करता है, जो ज्यादा जलवायु परिवर्तन के शिकार हैं। जिस समय अमरीका ने समझौते से हटने का फैसला किया, उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चार देशों की यात्रा पर थे। और उनकी यात्रा के दौरान फ्रांस, जर्मनी, रूस और स्पेन में आपसी सहयोग के साथ-साथ जलवायु समझौते की प्रतिबद्धता दोहराई गई। इस दौरान जारी साझा बयान में जर्मनी, इटली और फ्रांस ने पेरिस समझौते से जुड़े रहने की बात कही है।

यूरोपियन यूनियन, कनाडा, चीन के साथ मिलकर भारत को ‘‘हरित ऊर्जा तकनीक’ के मामले में आगे आकर विकासशील देशों का नेतृत्व करना चाहिए।

फ्रांस के राष्ट्रपति ने ठीक ही कहा है कि पेरिस समझौता ‘अपरिवर्तनीय’ है। मोदी ने कहा है कि वातावरण एवं धरती माँ का संरक्षण हमारे अस्तित्व से जुड़ा है। इसी बीच फ्रांस और भारत के बीच हुए सौर ऊर्जा संबंध को मजबूती देने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति भारत में प्रथम ‘‘सौर गठबंधन’ की अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में शिरकत करेंगे। फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘सौर गठबंधन दोनों देशों के लिए मील का पत्थर साबित होगा।’

ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन


1751-2010 के बीच दुनिया के विभिन्न देशों की उत्सर्जन हिस्सेदारी

 

 

 

रूस

7.3%

भारत

2.8%

चीन

9.8%

अमरीका

26.8%

कनाडा/ऑस्ट्रेलिया

3.1%

शिप-एयर

2.3%

शेष विश्व

13.9%

शेष यूरोप

18%

यूके

5.6%

जर्मनी

6.3%

जापान

4.1%

 

 

लेखक प्रख्यात भूगोलविद हैं।

 

TAGS

paris agreement pdf in Hindi, paris agreement definition in Hindi, paris agreement summary in Hindi, paris agreement wiki in Hindi, paris agreement ratification in Hindi, paris agreement unfccc in Hindi, paris agreement text in Hindi, paris accords India in Hindi, paris agreement key points, ppt in Hindi, paris agreement key points pdf in Hindi, what is the paris climate deal in Hindi language, Essay on paris climate deal in Hindi, Article on Paris Climate agreement in Hindi, paris agreement analysis in Hindi, Information on paris summit in Hindi, Some points on climate change in Hindi, what is paris agreement on climate change in Hindi, paris summit and role of india (information in Hindi), cop21 paris agreement india commitment in Hindi, paris agreement summary in Hindi, what is the paris agreement in Hindi language, paris agreement on climate change pdf, paris agreement and India, Paris Climate Agreement in hindi wikipedia, Paris Climate Agreement in hindi language pdf, Paris Climate Agreement essay in hindi, Definition of Paris Climate Agreement in Hindi, impact of Paris Climate Agreement on local communities in Hindi, Information about Paris Climate Agreement in hindi wiki, Paris Climate Agreement ka kya prabhav hoga, Information about Paris Climate Agreement in Hindi, Free Content on Paris Climate Agreement information in Hindi, Paris Climate Agreement information (in Hindi), Explanation Paris Climate Agreement in India in Hindi, Hindi nibandh on Paris Samjhauta,

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading