पहाड़ों को भी समझें अपना घर : रस्किन बॉन्ड

8 Apr 2018
0 mins read


मौसम में तपिश बढ़ी नहीं कि पहाड़ याद आने लगते हैं। वहाँ परिवार या दोस्तों के साथ मन कुछ ऐसा बौरा जाता है कि हमें पहाड़ की मर्यादा याद ही नहीं रहती। उस खूबसूरत जगह को हम बदले में प्लास्टिक कचरे का उपहार देकर लौटते हैं। आँखों से होकर दिल में उतरने वाले पहाड़ों को आप अपना घर क्यों नहीं समझते? पहाड़ से कैसे करें प्यार, ‘फुरसत’ के लिये खासतौर से बता रहे हैं मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड

 

 

अधिकतर लोग कहते हैं कि पहाड़ों में आकर उनकी सारी थकान दूर हो जाती है। अच्छे मौसम के साथ पहाड़ों का एक फायदा ये भी है कि यहाँ किस मोड़ पर भगवान से मुलाकात हो जाये, कहा नहीं जा सकता। ज्यादातर लोग जो एक बार पहाड़ घूम चुके हैं, दोबारा यहाँ आना चाहते हैं। पहाड़ की सैर सालों तक दिलो-दिमाग में छाई रहती है।

मैं पिछले छः दशकों से मसूरी में रह रहा हूँ। मसूरी में न होता तो शायद मैं इतना लिख भी नहीं पाता। सही मायनों में इन वादियों ने मेरे अन्दर के लेखक को बड़ा विस्तार दिया। मेरा जन्म कसौली में हुआ। 1904 में दून में रेलवे स्टेशन खुला तो मेरे नाना मिस्टर क्लार्क ने ओल्ड सर्वे रोड पर घर बनाया। तब हर घर के साथ लम्बा-चौड़ा बगीचा और खुली जगह होती थी। चारों तरफ बासमती के खेत महकते थे, लेकिन अब यहाँ भी कंक्रीट का जाल हो गया है। पुराने लोग मसूरी में जब मिलते हैं तो उनकी जुबां पर यही सवाल रहता है कि, आखिर पहाड़ों के बारे में सोचेगा कौन?

दरअसल पहाड़ों में जीवन बहुत धीमी गति के साथ आगे बढ़ता है। पर यहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार जैसे मुद्दे हल हो जाएँ तो पहाड़-सी लगने वाली कठिनाइयाँ चुटकियों में हल हो जाएँ। स्थानीय शासन को यहाँ सुविधाएँ बढ़ाकर पर्यटकों को आकर्षित करना चाहिए। पचास-साठ के दशक में मसूरी में सिर्फ दो-तीन स्कूल वैन थीं। अब 100 से ऊपर टैक्सी, निजी कारें, मोटरसाइकिल, स्कूटी हो गई हैं। आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि क्या हो रहा है। भीड़-भाड़ से परेशानी भी है।

कूड़ा एक समस्या है। उसे रीसाइकिल नहीं किया जा रहा। जंगलों में कूड़ा फेंका जा रहा है। मैदानों में सफाई तो हो भी जाये, मगर गहरी खाइयों में पड़े कचरे को कैसे साफ किया जाये। प्लास्टिक, पॉलिथीन पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। लोगों को जागरूक होना होगा। यहाँ आने वाले पर्यटकों के साथ व्यवसाय कर रहे लोगों को भी कागज के बैग का इस्तेमाल करना चाहिए। पर्यटकों को चाहिए कि वह अपना कचरा पहाड़ों पर ही न छोड़ें, अपने साथ वापस लेकर जाएँ।

दूर हो जाती है थकान


मुझे मेरे प्रशंसक अक्सर चिट्ठियाँ भेजते हैं, जिनमें पहाड़ों के अनुभव दर्ज होते हैं। अधिकतर लोग कहते हैं कि पहाड़ों में आकर उनकी सारी थकान दूर हो जाती है। अच्छे मौसम के साथ पहाड़ों का एक फायदा ये भी है कि यहाँ किस मोड़ पर भगवान से मुलाकात हो जाये, कहा नहीं जा सकता। ज्यादातर लोग जो एक बार पहाड़ घूम चुके हैं, दोबारा यहाँ आना चाहते हैं। पहाड़ की सैर सालों तक दिलो-दिमाग में छाई रहती है।

पर अब लोग उस तरह से पहाड़ पर आते भी नहीं। कभी लम्बी छुट्टियाँ बिताने आते थे, पर अब सप्ताह की छुट्टियों में आते हैं और चले जाते हैं। ये सही है कि पर्यटकों की संख्या बढ़ने से यहाँ लोगों की आय भी बढ़ी है, पर इतने सारे लोगों की आवाजाही से पर्यटन स्थलों की स्थिति पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है। उनका स्वरूप बिगड़ता है। इसलिये लोग यदि चाहते हैं कि ऐसी जगह आकर उन्हें मायूस न होना पड़े और उन्हें ठंडी ताजी हवा के साथ धार्मिक यात्रा का पुण्य भी मिलता रहे तो वह पहाड़ के संवेदनशील पर्यावरण व वहाँ की संस्कृति-सभ्यता का खास ख्याल रखें। ये ध्यान रखें कि पहाड़ केवल एक पर्यटन स्थल नहीं हैं। यहाँ भी उन जैसे ही लोग रहते हैं। पर्यटकों की लापरवाही के कारण स्थानीय जीवन पर कोई फर्क न पड़े। जैसे लोग अपने घर को साफ रखते हैं, वैसे ही दूसरे के घर को भी साफ रखें।

मेरा कहने का मतलब है कि पहाड़ का सौन्दर्य उसकी निर्मलता के कारण है। अगर इसे ही नष्ट कर दिया तो घूमने को बचेगा क्या? यहाँ घूमने आयें तो यहाँ के लोगों के बीच घुलने-मिलने की कोशिश करें। व्यंजनों का स्वाद लें। अपने घर की तरह इसे प्यार करें और केवल एक यात्रा के लिये ही नहीं, भविष्य की कई यात्राओं के लिये भी इसे अपनी खुशियों का घर जानकर साफ-सुथरा निर्मल छोड़कर जायें।

मैं लंदन दोबारा नहीं गया


पहाड़ियों के दृश्य मुझे अपनी ओर खींचते हैं। जब मैं पहली बार मसूरी आया, यहाँ एलन स्कूल के पास घर लिया। मैं प्रकृति से घिरा हुआ था। गाँव, पगडंडियाँ, यहाँ के गढ़वाली लोग मेरे आस-पास होते थे। मेरी उम्र अब 83 साल है। इसमें मैं सिर्फ दो-तीन साल लंदन रहा। दिल्ली, कसौली, जामनगर भी रहा। लेकिन जिन्दगी का बड़ा हिस्सा मसूरी में बीता। मैं इसे पसन्द करता हूँ। मैं कभी यहाँ से नहीं जाना चाहता। एक वाकया है, जब मैं लंदन से लौट रहा था तो पानी के जहाज पर मुझे एक ज्योतिषी मिला, उसने मेरा हाथ देखा और देखते ही कहा कि मैं दो साल के बाद वापस लंदन चला जाऊँगा। तब से सालों बीत गये, लेकिन मैं दोबारा लंदन नहीं गया। हाँ नेपाल, भूटान जरूर गया। शायद वो अच्छा ज्योतिषी नहीं था।

 

 

 

88 लाख पर्यटक भारत आये साल 2016 में

25 रैंक है भारत का, अन्तरराष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन के मामले में

1,54,146 करोड़ रुपए की कमाई हुई फॉरेन एक्सचेंज के जरिये साल 2016 में

 

ये भी सनद रहे

 

क्या न करें


1. पिकनिक के बाद कचरा न फैलाएँ
2. प्लास्टिक या पॉलीथिन सामग्री का प्रयोग न करें
3. स्थानीय प्रशासन के नियम-कायदों का पालन करें
4. वाहन गलत जगह पार्क न करें
5. शराब पीकर कार ड्राइव न करें
6. पहाड़ी सड़कों का अनुभव नहीं है तो वाहन खुद न चलाएँ,
प्रोफेशनल ड्राइवर रखें
7. रात के समय यात्रा करने से बचें

क्या करें


1. आपात स्थिति के लिये जरूरी दवाएँ साथ रखें
2. पैदल चलते हुए लकड़ी की छड़ी साथ रखें
3. टॉर्च व गर्म कपड़े, टोपी, मफलर हमेशा साथ रखें
4. बरसाती और रबड़ के शूज भी साथ में रखें
5. पोर्टेबल मोबाइल चार्जर साथ में रखें

और भी सुन्दर शहर हैं


जहाँ तक पर्यटकों की बात है तो आज पर्यटक और स्थानीय लोगों के बीच व्यावसायिकता हावी है। मसूरी और नैनीताल जैसे हिल स्टेशनों की क्षमताएँ सीमित हैं। यहाँ पार्किंग सीमित हैं। सालों से सारा दबाव गिने-चुने पर्यटन स्थलों पर ही है, जबकि रानीखेत, अल्मोड़ा, लैंसडाउन, पौड़ी जैसे स्थान भी कम खूबसूरत नहीं।

 

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading