पंचायतों के जरिये हो क्रियान्वयन

9 Jun 2015
0 mins read
चुने गए कार्य की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए जिसमें तात्कालिक स्तर पर लाभदायक कार्य उपलब्ध कराने का गुण हो और साथ ही, दीर्घकाल तक कार्य-सृजन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को विकसित करने की क्षमता भी हो।रोजगार गारण्टी विधेयक अवश्यम्भावी है और इसके लिए धन की व्यवस्था भी हो रही है। लेकिन उच्चतम स्तर तक लाने हेतु, यदि कानून और धन के राशिकरण का पुनरीक्षण हुआ भी, तो क्या हम ये सुनिश्चित कर पाएँगे कि बेरोजगारों तक रोजगार पहुँचाना शुरू हो गया है?

इसे मूर्त रूप देने के लिए, एक साथ कई महत्त्वपूर्ण सृजनात्मक कदम उठाने पड़ेंगे, जो अभी तक स्पष्ट नहीं हैं। अन्य बातों के अलावा इनका ताल्लुकः (अ) कार्य-प्रकृति (ब) तकनीकी सहायता (स) वित्तीय रूपात्मकता और (द) क्रियान्वयन एजेंसी से भी है जो न सिर्फ लोगों के प्रति उत्तरदायी हो बल्कि उनका सुनियोजित विस्तार प्रत्येक कार्यक्षेत्र यानी गाँव तक भी पहुँचे।

एक चूक स्पष्ट है और सब किए-कराए पर पानी फेर सकती है, वह यह है कि ऐसा कोई भी ब्लूप्रिण्ट नहीं है जिसमें कार्य-प्रकृति का वह खाका मौजूद हो, जिसके आधार पर बेरोजगारों को काम सौंपा जाएगा। चुने गए कार्य की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए जिसमें तात्कालिक स्तर पर लाभदायक कार्य उलब्ध कराने का गुण हो और साथ ही, दीर्घकाल तक कार्य-सृजन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को विकसित करने की क्षमता भी हो। यह तो स्पष्ट है कि वह क्षेत्र सुनिश्चित करना होगा जहाँ कार्य उपलब्ध कराया जाएगा यानि उस इलाके में और उसके आसपास, जहाँ बेरोजगार रहते हैं या काम की खोज में आते हैं गाँव ऐसी ही जगह है।

रोजगार गारण्टी के व्यापक राष्ट्रीय विस्तार और पोषण से निर्धारित होगा कि कार्य किस हद तक, गैर-वित्तीय स्थानीय संसाधनों पर ज्यादा और बजट द्वारा उपलब्ध कराए गए धन पर कम निर्भर है। पिछले 50 वर्षों के रिकॉर्ड के मद्देनजर ऐसे मानकों की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती कि व्यवस्था तदर्थ हो या रोजगार योजनाओं को रूप देने के लिए केन्द्रीय/राज्य कर्मचारियों के भरोसे रहा जाए।

तब फिर कहाँ से और कैसी कार्य-धारणाएँ या विचार विकसित किए जाएँ? 73वें संविधान-संशोधन ने रास्ता सुझाया है। उसने आर्थिक विकास और सामाजिक नयाय के लिए एक ग्राम-क्षेत्र योजना की तैयारी की परिकल्पना या यूँ कहें कि नुस्खा दिया है।

किसी भी ग्राम-क्षेत्र योजना में शुरुआत में विवरणात्मक दस्तावेज और विद्यमान आर्थिक सम्भावनाओं के विश्लेषण और उसके बाद उत्पादकता, रोजगार-सार और कमाई बढ़ाने की सम्भावना पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ग्रामीण परिवारों को काम और आजीविका उपलब्ध कराने में आज भी कृषि-सम्बन्धी कार्यों का ही बोलबाला है, तो जाहिर है कि ग्राम-क्षेत्र योजना के मूल में यही होंगे।

गाँव के लिए ऐसा कोई एरिया-प्लान नहीं है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ही आधारित हो, 73वें संविधान संशोधन में परिकल्पित ग्राम-क्षेत्र योजना इसी कमी को दूर करने का प्रयास है।ग्रामीण जनसंख्या बेकार तो बैठी नहीं है। वे किसी न किसी काम में लगे हैं और जानते हैं कि उनकी सेवाओं और उत्पादों की कितनी माँग है। उनके पास कुछ जानकारी, हुनर और औजार भी मौजूद हैं और कुछेक अतिआवश्यक संसाधनों, जैसे भूमि, जल, हरियाली, पशु और मानव-श्रम तक उनकी पहुँच भी है। मगर इससे ज्यादा आमदनी नहीं मिलती, बल्कि सर्वसम्मत राय है कि सम्भाव्य से यह कमतर ही होती है। इसकी एक वजह यह भी है कि गाँव के लिए ऐसा कोई एरिया-प्लान नहीं है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ही आधारित हो, 73वें संविधान संशोधन में परिकल्पित ग्राम-क्षेत्र योजना इसी कमी को दूर करने का प्रयास है। यह क्षेत्रीय योजना वास्तव में पंयाचती राज की धुरी है।

न्यूनतम मजदूरी

राज्य

रुपए/दिन

आन्ध्र प्रदेश

80

असम

46

बिहार

59

छत्तीसगढ़

53

गुजरात

60

हरियाणा

80

हिमाचल प्रदेश

60

झारखण्ड

63

कर्नाटक

46

केरल

91

मध्य प्रदेश

53

महाराष्ट्र

54

उड़ीसा

50

पंजाब

82

राजस्थान

60

तमिलनाडु

54

उत्तर प्रदेश

58

उत्तरांचल

58

पश्चिम बंगाल

62

सभी राज्य (जनसंख्या-दबाव औसत)

59

 

तकनीकी सहायता


ऐसे उद्देश्य और विवरण वाली ग्राम-क्षेत्र योजना के लिए कई लोगों के मिल-बैठकर सोचने की जरूरत है। सर्वप्रथम है स्थानीय समुदाय, जिसके पास स्थानीय क्षेत्र की भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक जानकारी और अनुभव है। इनके सहयोग के लिए दूसरे समुदाय की मदद भी आवश्यक है जिनमें हों वैज्ञानिक, संसाधनों का नक्शा दूरसंवेदी तकनीक आदि से तैयार करने के लिए इंजीनियर और अन्य विशेषज्ञ ताकि मिट्टी, पानी, जैव-विविधता, फसल और पशु-विज्ञान का प्रबन्धन हो सके।

उपलब्ध विभागीय तकनीकी कर्मचारी इस चुनौती को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं। यह तो अच्छी बात है कि आज देश के अधिकतर हिस्सों में हमारे पास व्यावसायिक संस्थाओं और व्यक्तियों की विशाल फौज मौजूद है और इनके ताने-बाने से हजारों तकनीकी सहायता समूह बनाए जा सकते हैं, जैसा कि हाल में केरल ने किया है। तकनीकी सहायता समूह को सबसे पहले सहयोग देना चाहिए, प्रत्येक गाँव के लिए क्षेत्रीय योजना तैयार करने में योजना के प्रत्येक घटक में रोजगार सम्भावनाओं का विस्तृत ब्यौरा तैयार हो और स्थानीय निकायों को प्राथमिकताएँ चुनने और उन्हें क्रमबद्ध करने में भी मदद मिले।

वित्तीय रूपात्मकता


क्षेत्रीय योजना से अधिकाधिक लाभ लेने के लिए यह जरूरी है कि इसे धन-आवण्टन एक समग्र योजना की तरह किया जाए न कि अनेक बँटी हुई आयोजनाओं की तरह जिसे अलग-अलग विभाग नियन्त्रित करें। ऐसी प्रणाली का अब कोई महत्त्व नहीं है।

क्षेत्रीय योजना के लिए धन आवण्टन में लागत का 3-5 प्रतिशत, परामर्शकारी आधार पर तकनीकी सहायता जुटाने के लिए होना चाहिए, जैसा स्थानीय क्रियान्वयन संस्थाएँ तय करें।

क्रियान्वयन एजेंसियाँ


क्रियान्वयन एजेंसी ऐसी होनी चाहिए जो हरेक गाँव में मौजूद हो और स्थानीय जनता के प्रति उत्तरदायी हो। हमें ऐसी एजेंसी का आविष्कार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 73वां संविधान संशोधन यह मामला सुलझा चुका है। उसने ग्रामसभा और पंचायत को वही अधिदेश दिया है जिसकी आवश्यकता रोजगार-गारण्टी के लिए होती। एक स्थानीय संस्थागत उपकरण जो जनता के प्रति जवाबदेह हो और जिसमें (क्षेत्रीय) योजना और क्रियान्वयन का मेल हो।

लेकिन इसकी सफलता के लिए दो पूर्व शर्तें जरूरी हैं। पहला, गाँव में गरीबी-उपशमन के नाम पर जो मौजूदा चक्रव्यूह हजारों-करोड़ भ्रष्टतापूर्वक डकार रहा हैं, उसे समाप्त किया जाए और उसका आवण्टित धन पंचायतों को सौंप दिया जाए, क्षेत्रीय योजना, जिसमें रोजगार कार्यक्रम शामिल हैं, उसकी सहायता के लिए।

दूसरा, पंचायत को पूर्ण कार्यपरक अधिकार मिलें, स्वायत्त शासन की तरह कार्य सम्भालने का, जैसा संविधान में परिकल्पित है।

(लेखक योजना और विकेन्द्रीकरण के क्षेत्र में एक सम्मानित व्यक्ति हैं। उन्हें लोक-सेवा के लिए मैग्सेसे सम्मान भी मिल चुका है)

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading