पंचनदा को पर्यटन केंद्र बनाने की अखिलेश की दिलचस्पी

9 Nov 2013
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पांच नदियों का यह संगम उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर बिठौली गांव में है। जहां पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य के लाखों की तादात में श्रद्धालुओं का जमाबड़ा लगता है। इस संगम को पंचनदा या पंचनद भी कहा जाता है, यहां के प्राचीन मंदिरों में लगे पत्थर आज भी दुनिया के इस आश्चर्य और भारत की श्रेष्ठ सांस्कृतिक धार्मिक विरासत का बखान कर रहे हैं। पर्यावरणीय इंजीनियर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का पर्यावरण प्रेम जग जाहिर है इसके लिए किसी प्रमाण की शायद जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री ने दुनिया के इकलौते पांच नदियों के संगम स्थल पंचनदा को देश का बेहतरीन पर्यटन केंद्र बनाने की दिलचस्पी दिखलाई है। मुख्यमंत्री की इस दिलचस्पी पर चंबल के जागरूक लोगों में खासी खुशी है पंचनदा के लिए मुख्यमंत्री की दिलचस्पी पर लोगों ने उनका आभार जताते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री को एक बार आकर धार्मिक,पौराणिक महत्व के पंचनदा स्थल पर आना चाहिए। दुनिया के एक मात्र पांच नदियों के संगम स्थल पंचनदा को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव देश का बेहतरीन पर्यटन केंद्र बनाना चाहते हैं। पर्यटन की पंचनदा में किस तरह की संभावनाएँ हैं इस दिशा में पर्यावरणीय संस्थाओं के साथ-साथ खुद मुख्यमंत्री ने अपने करीबियों से एक विस्तारपूर्ण रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। दोनों रिपोर्टों के सामने आने के बाद खुद मुख्यमंत्री इन रिपोर्टों का मिलान कराके पंचनदा में पर्यटन की योजनाओं को एलान करेंगे। मुख्यमंत्री ने पंचनदा में पर्यटन को लेकर बहुत जल्द ही अपनी रिपोर्ट तैयार कराने को कहा है लेकिन फिर भी एक माह के आसपास किसी ठोस नतीजे सामने आने की संभावनाएं हैं।

सबसे हैरत की बात यह है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पंचनदा के लिए यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उनके ही वन मंत्रालय और स्थानीय अफसरों की ओर से उनको लगातार पंचनदा के महत्व से अनजान रखने की कोशिश की जाती रही है इसी कारण खुद मुख्यमंत्री ने पंचनदा के धार्मिक,पौराणिक और पर्यटनीय महत्व को जीवंत बनाए रखने का कदम उठाया है।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने सैफई दौरे के दौरान लायन सफारी में चल रहे कार्यों से संर्दभित जानकारी लेने के दौरान ही इस बात को इंगित करते हुए कहा कि पर्यटकों के लिए और बेहतर क्या काम किया जा सकता है। इस पर मुख्यमंत्री को बताया गया कि अगर पंचनदा,जो इटावा से करीब 70 किलोमीटर दूर है और इतनी ही दूरी उरई जालौन से भी है। अगर पंचनदा को पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित कराया जाता है तो जाहिर है कि पूरे के पूरे बीहड़ी इलाके की दशा खुद ब खुद ही संवर जाएगी। अभी तक पंचनदा में सिर्फ एक गेस्ट हाउस बनाए जाने का एलान राज्य के कैबनिट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने किया है जिस का अभी तक काम शुरू नहीं हो सका है।

कालेश्वर महापंचालत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार ने मुख्यमंत्री की पंचनदा के प्रति जागी दिलचस्पी पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उनकी ओर से पिछले दिनों पंचनदा को पर्यटन केंद्र बनाए जाने संबंधी एक खत भेजा गया था जिसमें सिर्फ पंचनदा ही नहीं बल्कि चंबल के कई अन्य पौराणिक स्थलों के साथ-साथ आज़ादी के आंदोलन के दौरान अहम बने रहे खंहडर हो चुके स्थलों को भी संरक्षित करने का ज्रिक किया गया था अब खुद मुख्यमंत्री की ओर से ही पंचनदा के लिए एक सार्थक कदम उठाया गया है तो जाहिर है कि निकट भविष्य में ऐसे स्थल के दिन बदलेगे जो लंबे समय से बदहाल बना रहा है।

पंचनदा को पर्यटन स्थल बनाने की मुख्यमंत्री का सपनापर्यावरणीय संस्था के सचिव डॉ.राजीव चौहान का कहना है कि मुख्यमंत्री की पंचनदा के प्रति दिलखाई जा रही दिलचस्पी वाकई में स्वागत योग्य है क्योंकि चंबल में खूंखार डाकुओं के आंतक ने पंचनदा के महत्व को उभरने ही नहीं दिया है जब कि पंचनदा देश दुनिया में लोकप्रिय होने योग्य स्थल है। डॉ.राजीव बताते हैं कि इस समय मौसम सर्दी का शुरू हो चुका है और प्रवासी पक्षी भी इस इलाके को गुलजार रखे रहते हैं साथ ही चंबल सेंचुरी में हमेशा रहने वाले दुर्लभ मगरमच्छ, घड़ियाल, डाल्फिन और विभिन्न प्रजाति के कछुओं के अलावा कई सैकड़ों किस्म की चिड़ियों को देखने का आंनद ही अपने आप में बिल्कुल अनोखा होगा। दुनिया में दो नदियों के संगम तो कई स्थानों पर है जब कि तीन नदियों के दुर्लभ संगम प्रयागराज, इलाहबाद को धार्मिक दृष्टि से अत्यत महत्वपूर्ण समझा जाता है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पांच नदियों के इस संगम स्थल को त्रिवेणी जैसा धार्मिक महत्व नहीं मिल पाया है। प्रयाग का त्रिवेणी संगम पूर्णतः धार्मिक मान्यता पर आधारित है क्योंकि धर्मग्रन्थों में वहां गंगा तथा यमुना के अलावा अदृश्य सरस्वती नदी को भी स्वीकारा गया है, यह माना जाता है कि कभी सतह पर बहने वाली सरस्वती नदी अब भूमिगत हो चली है बहराहल तीसरी काल्पनिक नदी को मान्यता देते हुये त्रिवेणी संगम का जितना महत्व है उतना साक्षात पांच नदियों के संगम को प्राप्त नहीं हैं।

अरुणमय मधुमय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा.....। स्पष्ट है कि शीर्षस्थ छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने भारत की श्रेष्ठता का बखान करने के लिए इन पंक्तियों की रचना की होगी। प्रसाद के इन्हीं उद्गारों के अनुरूप प्रकृति ने इस देश को एक ऐसी भी अनूठी श्रेष्ठता प्रदान की है कि कोई भी अन्य देश उसकी बराबरी तो क्या उससे दो तीन सीढ़ी नीचे तक नहीं पहुंच सका है। और भारत की यह विशेषता है कि यहां दो, तीन, चार नहीं बल्कि पांच-पांच नदियों का संगम है। पांच नदियों का यह संगम उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर बिठौली गांव में है। जहां पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य के लाखों की तादात में श्रद्धालुओं का जमाबड़ा लगता है। इस संगम को पंचनदा या पंचनद भी कहा जाता है, यहां के प्राचीन मंदिरों में लगे पत्थर आज भी दुनिया के इस आश्चर्य और भारत की श्रेष्ठ सांस्कृतिक धार्मिक विरासत का बखान कर रहे हैं।

800 ईसा पूर्व पंचनदा संगम पर बने महाकालेश्वर मंदिर पर साधु-संतो का जमाबाड़ा लगा रहता है। मन में आस्था लिए लाखों श्रद्धालु कालेश्वर के दर्शन से पहले संगम में डुबकी अवश्य लगाते हैं। यह वह देव शनि है जहां भगवान विष्णु ने महेश्वरी की पूजा कर सुदर्शन चक्र हासिल किया था। इस देव शनि पर पांडु पुत्रों को कालेश्वर ने प्रकट होकर दर्शन किए थे। इसीलिए हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद छोड़कर पंचनदा पर कालेश्वर के दर्शन के लिए साधु-संतो की भीड़ जुटती है। पंचनदा के नाम से ख्याति अर्जित करने वाली इस तीर्थस्थली के बारे में बेशक लोगों को अधिक जानकारी न हो परंतु यह वह स्थान भी है जहां तुलसीदास ने कालेश्वर के दर्शनोपरांत राम चरित मानस के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की रचना की थी। इसलिए श्रद्धालुओं को मानना है कि पंचनदा जैसी दूसरी कोई तीर्थस्थली भारत में कहीं अन्यत्र हो ही नहीं सकती है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने पावन स्थान को यदि उस प्रकार से लोकप्रियता हासिल नहीं हुई जिस प्रकार से अन्य तीर्थस्थलों को मिली तो इसके लिए यहां का भौगोलिक क्षेत्र कसूरवार है। यहां तकरीबन दो सौ किमी के दायरे में फैला खतरनाक बीहड़ एवं उसमें पनपने वाले तमाम खूंखार डकैतों के कारण यहां भक्तों की अपेक्षित संख्या नहीं पहुंच पाती। यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज के इस संगम स्थल की सुरक्षा के लिए सरकारों ने भी कोई ठोस इंतज़ाम नहीं किए हैं। चंबल घाटी क्षेत्र में नदियों की गहराई सारे देश की अन्य नदियों से अधिक है। जिसके कारण ही यहां बाढ़ के खतरे कमोबेश कम ही रहते हैं। सरकार की उपेक्षा का ही परिणाम है कि यह स्थान विकास कार्यों से पूरी तरह से उपेक्षित है।

देश की धार्मिक परंपरा के तहत विभिन्न नदियों की उपासना की जाती है परंतु इस मामले में पतित पावनी गंगा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। श्रद्धालु गंगा को मोक्ष का साधन समझते हैं। गंगा नदी के समकक्ष अन्य नदियों का महत्व कम ही है। इसी वजह से पंचनद अद्भुत आश्चर्य होने के बावजूद उपेक्षित ही रह गया है।

पंचनदा को पर्यटन स्थल बनाने की मुख्यमंत्री का सपनापंचनदा प्राकृतिक सुंदरता में देश के गिने चुने स्थानों में से एक माना जाता है। यहां के मनोरम दृश्य किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। पंचनदा का सबसे उत्तम प्राकृतिक दृश्य तो भरेह के ऐतिहासिक किले से दिखाई देता है। वनों से घिरे इस इलाके का अनुपम दृश्य वर्षा ऋतु में और मनोरम हो जाता है। इसका उदाहरण इसी से लिया जा सकता है कि जो भी इस मनोरम दृश्य को एक बार देख लेता है उसे यह दृश्य हिमालय में किए जाने वाले पर्वतारोहण के समान महसूस होता है। पंचनद के एक प्राचीन मंदिर को बाबा मुकुंदवन की तपस्थली भी माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार संवत 1636 के आसपास भादों की अंधेरी रात में यमुना नदी के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास कंजौसा घाट पहुंचे थे और उन्होंने मध्यधार से ही पानी पिलाने की आवाज़ लगाई थी, जिसे सुनकर बाबा मुकुंदवन ने कमंडल में पानी लेकर यमुना की तेज धार पर चल कर गोस्वामी तुलसीदास को पानी पिलाकर तृप्त किया था। बाद में रामभक्त महाकवि उनके आश्रम पर रुके और जगम्मनपुर किले के मैदान में उन्होंने भगवान राम की कथा सुनाई थी। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि बाबा की अलौकिक शक्तियां उनकी रक्षा करती हैं जिसका प्रमाण है कि यहां पर कभी भी उपलवृष्ठि नहीं हुई है। इसी के निकट काली मंदिर है जिसमें बाबा के चरण बने हुए हैं जिन पर पान या पांच बताशे रखकर श्रद्धालु माथा टेकते हैं। इस स्थल को विकसित करने की भी योजनाएं भी बनाई गई लेकिन खूखांर डाकूओं के आंतक के चलते कोई भी विकास योजना सतह पर प्रभावी नहीं हो सकी।

पंचनद बांध बीहड़ के सपनों में शामिल है। सपना जो सत्ताधारी यहां की जनता को बीते 4 दशकों के दिखा रहे हैं। पंचनद मध्य प्रदेश के भिंड और उत्तर प्रदेश के इटावा, जालौन, औरैया जिले की सीमा पर यमुना और उसकी सहायक नदियों चंबल, क्वारी, पहुज और सिंध का मिलन स्थल है। इस जगह पर ही वह प्रसिद्ध मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि तुलसीदास ने यहां प्रवास किया हो। आज तो यह स्थल बीहड़ में अपराध और गरीबी के बीच सांसे ले रही जनता और उपजाऊ होने के बाद भी बेकार पड़ी बीहड़ की ज़मीन को एक नई जिंदगी दे सकता है। इस बांध पर सबसे पहली योजना 1986 में बनी थी। यहां बांध बनाने की बात इंदिरा गांधी ने कही थी।

पंचनद बांध योजना के तहत उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद में यमुना नदी पर औरैया घाट से 16 किमी अपस्ट्रीम में सढरापुर गांव में बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। इस स्थल के अपस्ट्रीम में चंबल, क्वारी, सिंध और पहुज नदियां मिलती हैं। प्रस्तावित पंचनद बांध के डाउन स्ट्रीम में कम से कम 3000 क्यूसेक के डिस्चार्ज अवश्य छोड़ा जाना चाहिए। न्यूनतम 3000 क्यूसेक की क्षमता का जल विद्युत स्टेशन प्रस्तावित किया जाए। पंचनदा पर बने द्वापरकालीन महाकालेश्वर मंदिर को सुदर्शन तीर्थ के नाम से भी ख्याति अर्जित की है। इसी स्थान पर ओम कालेश्वर व महाकालेश्वर दोनों शिवलिंग एक ही स्थान पर स्थापित हैं। जो समूचे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं देखे जा सकते हैं। इसका उल्लेख पूर्ण पुराण के 82वें अध्याय में उल्लिखित है। जिसकी सूक्ष्म कथा देवी भागवत में भी देखने को मिलती है। यहां पहले कभी सोवरण मंदिर हुआ करता था जो कलियुग के आरंभ होने के साथ ही पंचनदा के कुंड में चला गया और पुनः पाषाण पूजा में महाकालेश्वर की प्रतिमा प्रकट हुई जो आज इस मंदिर में स्थापित है। इसे देव स्थान की संज्ञा इसी से मिलती है कि यहां ग्वालियर स्टेट के बादशाह को भी नतमस्तक होकर पश्चाताप करना पड़ा और यहां के दैवीय चमत्कार को आत्मसात होते देख बादशाह ने यहां मठ की स्थापना की।

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