प्राचीन वृषभावती नदी का नामो-निशान मिटा

20 वर्ष पहले तक बेंगलुरु शहर का पूरा पानी इस नदी से ही लिया जाता था, लेकिन आज इसके मूल पानी का स्रोत खत्म हो चुका है, क्योंकि शहर का गंदा पानी इसमें गिरता है…
बेंगलुरु शहर और उसके आस-पास से निकलकर अर्कावती नदी में मिल जानेवाली नदी वृषभावती की कुल लंबाई 52 किलोमीटर है। यह पीन्या के जंगलों से निकल कर शहर को पानी की आपूर्ति करते हुए बहती थी। वृषभावती में कई छोटी नदियां आकर मिलती रही हैं।

बेंगलुरु के निवासियों की मानें तो आज से लगभग 20 वर्ष पहले तक बेंगलुरु शहर का पूरा पानी इस नदी से ही लिया जाता था। लेकिन आज स्थिति यह है कि जहां एक ओर वृषभावती गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है, वहीं उसकी सहायक नदियां बस केवल नाम के नहर जैसे रह गए हैं। पानी तो उनमें कई सालों से नहीं है। कुछ पानी बरसात के मौसम में आता है लेकिन वह भी कुछ समय में ही सूख जाता है।

वृषभावती नदी का उद्गम ठीक से पता नहीं, पर इसका उद्गम तीन स्थानों से हुआ अनुमान लगाया जाता है। एक सिद्धांत के अनुसार इसका उद्गम मल्लेश्वर से है। यहां शिव के वाहन नंदी की मूर्ति बनी है, जिसके मुंह से पानी गिरता रहता है। लेकिन यह इतना अधिक नहीं कि नदी पूरी हो जाए। दूसरा सिद्धांत बासवनगुड़ी के जंगल से मानने का है तथा तीसरा पीन्या के जंगल से। लेकिन वर्तमान में जो स्थिति है, उसमें सारे बेंगलुरु शहर का गंदा नाला ही इस नदी में आकर मिलता है। उसी से यह नदी नाले के रूप में बह रही है। नाला बन चुकी इस नदी के गंदे पानी की सफाई की कोई कारगर व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई है। जो जल संशोधन प्लांट लगे हैं, उनकी क्षमता मात्र 180 मिलीलीटर प्रति दिन की है जबकि अंदाजन इसमें 600 मिलीलीटर गंदा पानी गिरता है।

यहां का सारा गंदा पानी शहर से 30 किलोमीटर दूर बिदाड़ी गांव के पास जलाशय में जमा होता है। इस जलाशय का दूसरा नाम बैरमंगला टैंक है। यहां से नहरों के माध्यम से यह पानी सिंचाई के लिए निचले इलाके के गांवों में जाता है। फिर आगे जाकर कनकपुरा गांव के पास मूल नदी अर्कावती नदी में मिल जाता है।

वृषभावती के गंदे पानी में औद्योगिक कचरा होने की वजह से इसमें भारी धातुएं मसलन, क्रोमियम, कैडमियम, लीड, जिंक, मैगनीज, निकेल आदि प्रचूरता से पाए जाते हैं। इन जहरीले धातुओं की वजह से इलाके की परंपरागत फसलें- रागी और धान बिल्कुल खत्म हो गए। क्योंकि यह पानी इनके पौधों में जाकर इन धातुओं को भी मिला देता है। इससे यह फसलें जहरीली होने लगीं। अब खाने की फसलों की जगह वाणिज्यिक फसलों की खेती जैसे मलबरी, बैबीकॉर्न की खेती होती है। इसमें बिना खाद के ज्यादा उपज होती है। लेकिन इनमें भी भारी धातुएं पाई गई हैं।

लेकिन इसका दुष्प्रभाव एक ओर तो यह हुआ कि परंपरागत खाद्य फसलें खत्म हो गई तो वहीं बेबीकॉर्न गायों को खिलाया गया। गायों के दूध में भी इन धातुओं की मौजूदगी पाई गई है। कुल मिलाकर वृषभावती नदी एक ऐसे दुष्च्रक में फंस गई है जहां से सहज रूप से निकलना उसके क्या किसी के वश में नहीं। इसमें जो कचरा जमा होता है, उसे निकालने का भी कोई उपाय सरकारी तौर पर नहीं किए गए हैं। आस-पास के किसान खुद अपनी सुविधा के लिए इसे गर्मी के मौसम में जलाते हैं। अब देखना है कि सरकार की जल संरक्षण और नदी शुद्धीकरण की योजनाएं इस प्राचीन नदी के पुनरोद्धार मे कितना मदद करती है।

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