प्राकृतिक आपदा के लिये मानवजनित कारनामें

7 Jul 2016
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ऐसा लगता है कि उत्तराखण्ड और आपदा का चोली दामन का साथ हो गया है। साल 2010 से लगातार बरसात आरम्भ होने से ही आपदाओं का डर लोगों को सदमें में डाल देता है। अभी मानसून पूर्ण रूप से आया ही नहीं था कि राज्य के पहाड़ी जिले पिथौरागढ़, चम्पावत, चमोली, उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, अल्मोड़ा एवं देहरादून व नैनीताल जिलों के पहाड़ी क्षेत्र आपदा की चपेट में आ गए।

आश्चर्य इस बात का है कि हमेशा की तरह इस दौरान भी पहाड़ी जिलों के सीमान्त क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। बताया जा रहा है कि राज्य का जो क्षेत्र चीन और तिब्बत सीमाओं से लगा है उन क्षेत्रों में आपदाओं की घटनाएँ अधिकांश हो रही हैं।

यहाँ वैज्ञानिक आपदाओं के लिये चाहे जो भी दावे करें वह अपनी जगह सच भी हो सकते हैं, किन्तु आपदा वाले क्षेत्रों के लोग जहाँ सुरक्षित ठौर-ठिकाने की तलाश में हैं वही वे आपदा के बारे में अलग-अलग राय दे रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना हैं कि चीन ने ल्हासा जैसे विकट पहाड़ी क्षेत्र में रेल सेवा व मोटर सड़कों का विकास कर दिया है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव निश्चित रूप से उत्तराखण्ड के सीमान्त क्षेत्रों पर जरूर पड़ेगा। क्योंकि हिन्दूकुश हिमालय का ही पर्वतशिखर भारत और चीन का सीमांकन करता है। वह चाहे बन्दरपूँछ हो या कैलाश मानसरोवर हो, या निलांग-कोपांग हो।

वर्तमान समय में भारत और चीन प्राकृतिक संसाधनों को नजरअन्दाज करके विकास के नए आयाम ढूँढ रहे हैं। भले भारत अभी प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन ना कर रहा हो मगर चीन ने तो सड़क, विद्युत, रेल आदि विकास के लिये प्राकृतिक संसाधनों की बली चढ़ा दी है। जिसका असर उत्तराखण्ड राज्य पर सर्वाधिक पड़ रहा है, क्योंकि हिन्दूकुश हिमालय के पर्वतों की ढलान राज्य की तरफ 90, 100, 110 सेंटीग्रेड पर बनाते हैं। जबकि चीन की तरफ इन पहाड़ों की ढलान 130 सेंटीग्रेड से बनने आरम्भ होती है। अर्थात खड़े और गलेशियरो से बने कच्चे पहाड़ भी उत्तराखण्ड राज्य के हिस्से अधिक आते हैं।

बादल फटने से भयभीत लोगकुल मिलाकर जानकारों का यहाँ तक कहना है कि इधर उत्तराखण्ड के सीमावर्ती क्षेत्रो में बाँध, सुरंग और सड़क निर्माण के कार्य हो रहे हैं तो उधर पड़ोसी देश चीन भी त्वरित लाभ एवं वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करने के लिये इस तरह के विकास को महत्त्व दे रहा है। जिसके लिये चीन के नियोजनकर्ता प्राकृतिक संसाधनों का अनियोजित दोहन करवा रहा है। इसका असर भी सीधा-सीधा उत्तराखण्ड के पर्यावरण पर पड़ रहा है। यही वजह है कि उत्तराखण्ड आपदाओं का घर बनता ही जा रहा है।

उल्लेखनीय हो कि पिछले छः वर्षों में उत्तराखण्ड राज्य ने प्राकृतिक आपदाओं के कारण जो खोया है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती, मगर भविष्य में इन आपदाओं से बचने के कुछ उपाय किये जा सकते है। ऐसा कई बार वैज्ञानिकों ने सरकारों को सलाह भी दी है।

आईआईटी रुड़की के जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन विभाग के प्रो. नयन शर्मा ने बताया कि किस तरह से सबसे उन्नत सेटेलाइट तकनीक से प्रत्येक पाँच किलोमीटर के दायरे में बादल फटने, भारी बारिश और इससे होने वाली तबाही के बारे में सटीक भविष्यवाणी सम्भव है। यह उन्होंने नवम्बर- 2015 में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की उपस्थिति में बाढ़ और उससे होने वाली तबाही के पूर्वानुमान पर तकनीक का प्रस्तुतीकरण दिया था। साथ ही बारिश से नदियों में आने वाले पानी के आयतन, वेग और इससे प्रभावित होने वाली आबादी पर भी आकलन प्रस्तुत किया गया था।

वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि बारिश के पूर्वानुमान के आधार पर नदियों में पानी के प्रवाह की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इसके लिये नदियों को चैनेलाइज्ड करने के लिये इसकी गहराई और चौड़ाई को जरूरत के हिसाब से विकसित करने का काम किया जा सकता है। साथ ही तेज प्रवाह में पहाड़ों के भूस्खलन को रोकने के लिये रॉक बाल्टिंग तकनीक से इन्हें मजबूती प्रदान की जा सकती है।

मलबे में दबा ट्रकबादल फटने और भारी बारिश के साथ होने वाली तबाही का पूर्वानुमान सम्भव है। जबकि आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिको ने प्रत्येक पाँच किलोमीटर में बारिश का सटीक आकलन कर डिजिटल एलीवेशन मॉडल (डीईएम) के जरिए निश्चित हिस्सों में होने वाली तबाही बताने वाली रिपोर्ट भी केन्द्र को भेजी हुई है। ताज्जुब हो कि आठ माह बाद भी इसका संज्ञान सरकार ने नहीं लिया है। उधर जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस तकनीक में रुचि दिखाई है।

यदि केन्द्र इस पर संज्ञान लेता तो पहाड़ को हालिया तबाही से बचाया जा सकता था। गौरतलब हो कि उत्तराखण्ड के लिये यह तकनीक बहुत जरूरी है। उनकी इस तकनीक पर जम्मू-कश्मीर सरकार ने गौर करते हुए डल झील के प्रोजेक्ट पर काम भी शुरू कर दिया है।

 

आपदा पूर्वानुमान के लिये तकनीकी विकसित


आईआईटी रुड़की के जल संसाधन एवं प्रबन्धन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नयन शर्मा ने बताया कि उन्होंने आपदा पर सटीक आकलन की सम्बन्धित तकनीक पर रिपोर्ट केन्द्र को भेज दी थी। कहा कि आईएमडी (इण्डिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट) की ओर से केवल बारिश का पूर्वानुमान दिया जाता है, वह भी निर्धारित मॉडल के आधार पर जारी किया जाता है। लेकिन ग्लोबल प्रेसीपीटेशन मेजरमेंट तकनीक से विभिन्न सेटेलाइटों के जरिए बादलों के प्रतिक्षण दबाव एवं घनत्व के आधार पर जानकारी दी जा सकती है। यही नहीं, बारिश के साथ-साथ इससे होने वाली तबाही का आकलन भी नई तकनीक की खासियत में शामिल है।

 

शासन हुआ सर्तक


उत्तराखण्ड शासन ने राज्य में आई प्राकृतिक आपदा में भारी जानमाल के नुकसान का आँकड़ा सार्वजनिक किया है। आपदा सचिव शैलेश के मुताबिक पिथौरागढ़ के डीडीहाट और थल तहसील के अन्तर्गत अत्यधिक वर्षा से त्वरित बाढ़ और मलबा आने की घटना से ग्राम सिघाली, दाफीला, बस्तड़ी एवं नौलड़ा क्षेत्र में अब तक लगभग 160 परिवारों के प्रभावित होने के साथ ही नौलड़ा गाँव में तीन, बस्तड़ी में 11, चर्मा में एक व्यक्ति की मृत्यु की खबर है।

बाढ़ में कई गाँव बह गएअब तक 15 लोगों ने आपदा में अपनी जान गँवाई और तीन व्यक्ति गम्भीर घायल हैं, जबकि 12 लोगों के लापता होने की सूचना है। वहीं 164 पशुओं के बहने के साथ ही पिथौरागढ़ से 12 भवन आंशिक और चार भवन पूर्णतः क्षतिग्रस्त हुए हैं। अधिकारियों के मुताबिक आपदा प्रभावित परिवारों को राहत शिविर में रखा गया है।

डीडीहाट के बस्तड़ी ग्राम में स्कूल एवं पंचायत घर में 50 लोग, ग्राम सिघाली के राजकीय इंटर कॉलेज में 150 लोग, ग्राम मल्ला पत्थरकोट स्थित प्राथमिक विद्यालय में 15 लोग और मुनस्यारी के ग्राम नौलाड़ा की जू. हाईस्कूल में 25 लोग ठहराए गए हैं। 03 जुलाई तक कुल 284 मार्ग बन्द हुए थे, जिसमें से 110 मार्गों को यातायात के लिये खोल दिया गया है। कुुमाऊँ मण्डल के लिये वैली ब्रिज, चार फोल्डिंग ब्रिज और चार ट्रॉली भी वैकल्पिक यातायात के लिये उपलब्ध कराई जा रही हैं।

 

तबाही की एक बानगी


चमोली के घाट बाजार के एक मकान में सोए दादा और पोता मकान गिरने से लापता हो गए हैं। जैसे-जैसे मौसम करवट लेता है वैसे-वैसे केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री हाईवे बन्द और खुलता रहता है। मानसून की पहली बरसात ने लोगों का सुख-चैन छीन लिया है। मूसलाधार बारिश से मसूरी में भी कई जगह पुस्ते गिरे। पुस्ता गिरने से कार क्षतिग्रस्त हो गई।

देहरादून जिले में बांदल घाटी स्थित सरखेत और क्यारा गाँव के मोटर मार्ग में बाँदल नदी का पानी आने के कारण लोग अपने-अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए। इसी तरह जब श्रीनगर गढ़वाल में तेज बारिश के चलते तिवाड़ी मुहल्ला में मलबा घुसा तो लोग सूझ नहीं पाये कि सुरक्षित ठिकाना कहाँ होगा।

बादल फटने से क्षतिग्रस्त मकानगोपेश्वर-चमोली सड़क अवरुद्ध होने की वजह से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी ठप हो गई। देहरादून के जनजातीय क्षेत्र में भी भारी बारिश और भूस्खलन के चलते सड़कों पर मलबा आने से जौनसार बावर के 300 से अधिक गाँवों का सम्पर्क देश दुनिया से कट गया है।

चकराता-कालसी, हरिपुर-कोटी-मीनस समेत क्षेत्र के 16 मार्ग मलबा आने से बन्द हो गए हैं। मार्ग बन्द हो जाने के कारण लोग सुरक्षित ठिकानों तक पहुँचने के लिये 45-50 किमी का अतिरिक्त सफर तय कर रहे हैं। कालसी-चकराता मोटर मार्ग पर जजरेट, ककाड़ी खड्ड, लालढांग, शम्भू की चौकी, चापनू, झड़वाला, भूतियाधार, सैंसा, पणायसा, कोथीधार के पास भारी मात्रा में मलबा आने से सड़क पर वाहनों की लम्बी कतार लग गई। जो मार्ग खुलने तक की इन्तजारी में है। गाँवों का सम्पर्क जिला मुख्यालय से कटा हुआ है। नगदी फसलों से भरे कई ट्रक बीच रास्ते में ही फँसे हुए हैं। इसके साथ ही कई बड़े और छोटे मोटर मार्ग भी जगह-जगह मलबा आने से बन्द पड़े हैं।

उत्तराखण्ड में तबाही

 

 

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