प्रकृति से कौन लड़ सकता है


बेंगलुरु और गुड़गाँव यानी गुरुग्राम को प्रगतिशील हिंदुस्तान के आदर्श चेहरे के रूप में जाना जाता है। इसमें से एक को सिलिकॉन वैली ऑफ इंडिया कहा जाता है तो दूसरे को राजधानी नई दिल्ली का सैटेलाइट टाउन। इन दोनों शहरों के निवासी इन पर गर्व करते हैं, करना भी चाहिए, क्योंकि ये दोनों शहर प्रगति के, विकास के, अति आधुनिकता के तथा उन्नत तकनीक के प्रतीक हैं। पर पिछले हफ्ते इन दोनों शहरों की सारी सूरत प्रकृति ने बिगाड़ कर रख दी। धुआंधार बारिश ने सारे समीकरण पलट दिये। दोनों शहरों को हिलाकर रख दिया। हिंदुस्तान के आई टी हब की आई टी और मिलेनियम सिटी का मिलेनियम महत्व कुछ-कुछ काम नहीं आया। देश के सबसे हाईटेक शहर बेंगलुरु में शहर की झील का पानी ओवरफ्लो होकर जब सड़क पर आ गया तो पूरे शहर भर में अफरातफरी मच गई। सड़कों पर नावें चली और लोगों ने मछलियाँ पकड़ी। दूसरी तरफ गुड़गाँव में 20 घंटे तक बुरी स्थिति रही।

दिल्ली गुड़गाँव एक्सप्रेस वे पिछले सप्ताह पूरे 14 घंटे बंद रहा। एक्सप्रेस वे पर 2 फीट से ज्यादा पानी भरा रहा। इससे जो जाम लगा वह गुड़गाँव के इतिहास का सबसे लम्बा जाम रहा। इसके साथ ही पड़ोसी देश नेपाल के साथ असम और बिहार में प्रचंड बारिश के बाद भयंकर बाढ़ का माहौल है। असम के 22 जिलों के 18 लाख लोगों को बाढ़ ने प्रभावित किया है जबकि बिहार के 10 जिलों के 22 लाख लोग बाढ़ की चपेट मे हैं। देश की राजधानी नई दिल्ली तथा मैक्सिम सिटी के रूप में जानी जाने वाली व्यापारिक राजधानी मुम्बई की रफ्तार को भी बारिश ने रोक दिया। शारदा, घाघरा, राप्ती और सरयू आदि उत्तर प्रदेश की नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

यह प्रकृति का कहर है। प्रकृति से आखिर कौन लड़ सकता है? समस्त तकनीक मिलकर भी प्रकृति का मुकाबला नहीं कर सकती। दरअसल, मौजूदा प्राकृतिक कहर और बेहिसाब बारिश को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ा जाना चाहिए जिससे प्राकृतिक मौसम का चक्र भी अनियमित हो गया है। दरअसल, हमारी धरती लगातार गर्म होती चली जा रही है। जिसकी वजह ग्रीन हाउस गैसों का प्राकृतिक परिस्थितियों पर प्रभाव बढ़ जाना है। इससे अब अनियमित बारिश और बहुत गर्मी पड़ने लगी है पर हम इससे निपटने का स्थाई रास्ता खोजने की बजाय प्रकृति से छेड़छाड़ करते हैं। बेंगलुरु में फार्च्यून 500 सूची की आधी से ज्यादा कम्पनियाँ हैं। वह हिंदुस्तान का आईटी हब है। दूसरी तरफ गुड़गाँव में कई नामचीन कम्पनियों के दफ्तर हैं। पर बारिश ने किसी को नहीं छोड़ा।

हरियाणा अर्बन डवलपमेंट अथॉरिटी हूडा ने अंधाधुंध विकास के बहाने बादशाहपुर ड्रेन बनाने के लिये इसे तीन जगहों पर बंद कर दिया था। बादशाहपुर ड्रेन का किनारा वैसे ही लगातार अतिक्रमण का शिकार रहता है। फिर पिछले तीन दशकों के दौरान नहरों के कांक्रीटकरण, ज्यादा से ज्यादा अपार्टमेंट तथा ऑफिस संकुल बनाने की दौड़ में ऐसे तालाब, खाली जमीनें और वाटर चैनल गायब हो गये जोकि बरसाती पानी को सोखकर संतुलन बनाए रखते हैं। दुष्परिणाम यह हुआ कि 1500 क्यूसेक से ज्यादा बरसाती पानी का फ्लो पूरी तरह से रुक गया। बेंगलुरु में भी बारिश के कहर के पीछे तकरीबन यही हालात जिम्मेदार रहे।

बिहार के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, दरभंगा, मधेपुरा, भागलपुर, कटिहार, सहरसा, सुपौल और गोपालगंज जिलों में बाढ़ से करीब 21.99 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। इसमें करीब 1.83 लाख हेक्टेयर जमीन भी डूबी। लिहाजा इसमें लगी फसल भी बर्बाद हुई। मुजफ्फरपुर के बेनीबाद में बागमती, दरभंगा के कमतौल में अघवारा, खगड़िया के बालटारा में कोसी, कटिहार के कुर्सेला में कोसी, पूर्णिया के धेंगरा में महानंदा और कटिहार में झावा नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर रहीं।

अगर पड़ोसी देश नेपाल की बात करें तो वहाँ भी मौसम में बदलाव की वजह से बारिश ने कहर ढाया है। देश के विभिन्न भागों में कई मकान और पुल बह गए। बाढ़ पीड़ितों में बड़ी संख्या में भूकम्प से प्रभावित लोग हैं। ये लोग भूकम्प में क्षतिग्रस्त हुए मकानों की मरम्मत कर उनमें रह रहे थे। देश के 14 जिले इस प्राकृतिक आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं और प्यूथान में हालात सबसे खराब है। यह प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा है। हम विकासशील से विकसित देशों की श्रेणी में आने की तेजी के चक्कर में विकास क्रम को सुपर फास्ट बनाने के लिये बिजली का उपयोग ऊर्जा के रूप में करना चाहते हैं। जरूरतें त्वरित पूरा करने हेतु बड़े-बड़े ताप बिजलीघरों की स्थापना की जा रही है। झुंड के झुंड स्थापित बिजली घर वायु व जल प्रदूषण की गंभीर समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक दोहन, वनों के नष्ट होने, अक्रियाशील कार्बन यौगिकों तथा खेती में खाद के प्रयोग आदि से वायुमंडल में कार्बन डाईआक्साइड, मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का जमाव बढ़ गया है लिहाजा धरती का तापमान घट रहा है। दुष्परिणाम, उपरोक्त घातक हालातों यानी जलवायु में आपदा लाने वाले परिवर्तनों से हम दो चार हो रहे हैं। इसलिये आज बेंगलुरु, असम, बिहार व गुड़गाँव आदि में प्रचंड बारिश का प्रकोप है।

गुड़गाँव और बेंगलुरु की बरसात से दुर्दशा तो एक झांकी है। लिहाजा अब बहुत हो गया प्रकृति से खिलवाड़। अब हमें प्रकृति का ध्यान रखना ही होगा। अन्यथा मौसम में बदलाव का आनेवाले दिनों में और ज्यादा कहर झेलना ही पड़ेगा। प्रकृति मित्र होने का कार्य मनुष्य कर भी सकता है। प्रकृति ने मनुष्य को अनूठी प्रतिभा, क्षमता, सृजनशीलता, तर्कशक्ति प्रदान कर विवेकशील चिंतनशील एवं बुद्धिमान प्राणी के रूप में बनाया है। अतः मनुष्य का दायित्व है कि वह प्राकृतिक संसाधनों में संतुलित चक्र के रूप में बनाए रखते हुए स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना अपना पुनीत कर्तव्य समझे। ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत पर चलकर हम पर्यावरण के संवाहक बन सकते हैं। यह हमारा संवैधानिक कर्तव्य भी है। हिंदुस्तान के संविधान की धारा 47 में इसका अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र है तथा धारा 48-ए के अनुसार हरेक हिंदुस्तानी नागरिक का पुनीत कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत जंगल, झीलों, नदियों व वन जीवों की सुरक्षा एवं अर्थवृद्धि करने का सफल प्रयास करे ताकि पर्यावरण शुद्ध व स्वच्छ रहे। तब हमें बारिश की विभीषिका जैसे हालातों से दो चार नहीं होना पड़ेगा।

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