परंपरा की दुहाई आखिर कब तक!

Ganga
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि अगले साल से उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले में गंगा और यमुना में मूर्ति विसर्जन न किया जाए। न्यायालय का यह फैसला सराहनीय है। गंगा और यमुना जैसी नदियां आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं। जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदियों की हालत इतनी खराब होगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा। गंगा को तो देश की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। इसी कारण गंगा को मां का दर्जा दिया गया है।

हम भारतवासी यह चाहते हैं कि मृत्यु के अंतिम क्षणों में मुंह में गंगाजल डाला जाए। मान्यता है कि ऐसा करने से हम जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं, अर्थात मोक्ष मिल जाता है। कृष्णलीला के कारण कालिंदी का भी अपना ही महत्व है। कालिंदी को पतितपावनी कहा जाता है। विभिन्न पर्वो पर यमुना में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसी दोनों ही नदियों का जल नहाने की बात तो दूर, आचमन लायक भी नहीं बची हैं। हिन्दू धर्मावलम्बी मानते हैं कि गंगा और यमुना में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।

सही बात तो यह है कि पापियों के पाप धोते-धोते गंगा और यमुना दोनों ही मैली हो गई हैं। इस हालात से उबरने में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से कुछ राहत मिलेगी। आर्थिक और सामाजिक महत्व गंगा नदी हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार के अनेक जिलों से होते हुए पश्चिम बंगाल पहुंचती है। उत्तर प्रदेश के सोरों (कासगंज), फरुखाबाद, कन्नौज, मुरादाबाद, रामपुर, कानपुर, कासगंज, बुलंदशहर, अलीगढ़, बनारस, इलाहाबाद, गाजीपुर आदि जिलों में खुद और अपनी सहायक नदियों के माध्यम से पहुंचती है।

यमुना नदी उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक आती है। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा- वृंदावन, आगरा, फीरोजाबाद, इटावा से आगे चम्बल में मिल जाती है। यमुना अपनी सहायक नदियों के माध्यम से कई जिलों में पहुंचती है। लेकिन महत्व यमुना और गंगा का ही है। दोनों नदियों का धार्मिक ही नहीं, आर्थिक और सामाजिक महत्व भी है।

नदियों का पानी सिंचाई के काम आता है। यह पानी शुद्ध करके पेयजल के रूप में भी प्रयोग होता है। जिन नगरों से किनारे से ये नदियां निकल रही हैं, वे तो पूरी तरह से पेयजल के लिए इन्हीं पर निर्भर हैं। अगर इन नदियों में पानी कम है या प्रदूषित है, तो इसका सीधा सा मतलब यही है कि पेयजल संकट है। आम आदमी के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

धर्मान्धता गति के साथ बहता जल शुद्ध होता रहता है। अशुद्धियां पानी के साथ बहती रहती हैं। गंगा और यमुना का प्रवाह इतना नहीं रहा है कि अशुद्धियां बह जाएं। ऊपर से हम धर्म और परंपरा की दुहाई के नाम पर गंगा- यमुना में गंदगी बहाए जा रहे हैं। कभी गणेश प्रतिमा तो कभी दुर्गा प्रतिमा के विसजर्न के नाम पर नदियों को लगातार मैला किया जा रहा है। इन प्रतिमाओं के निर्माण में जहरीले रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ये पानी में घुल जाते हैं और जल को अत्यधिक जहरीला बना रहे हैं।

गंगा और यमुना नदियां अनेक स्थानों पर हाथ से स्पर्श करने लायक भी नहीं हैं। ये तो आस्था ही है, जो लोग स्नान करते हैं। साधु-संत एक ओर तो गंगा की पवित्रता की दुहाई देते हैं और दूसरी ओर कुम्भ के दौरान देखा गया था कि खुद गंगाजल न पीकर बंद बोतलों का पानी पीते रहे। गंगा और यमुना को इस हाल तक पहुंचाने के लिए हम ही जिम्मेदार हैं।

बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण का कूड़ा-कचरा, गंदा पानी इन्हीं नदियों में बेखटके बहाया जा रहा है। आगरा के संदर्भ में तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि गंदे पानी को शुद्ध करके ही यमुना में डाला जाए। इसके लिए यमुना कार्ययोजना के तहत अनेक कार्य हुए हैं, करोड़ों रुपये खर्च हो गए हैं, लेकिन अनेक नाले सीधे यमुना में गिर रहे हैं।

प्रतिदिन करोड़ों लीटर गंदा पानी यमुना में बहाया जा रहा है। रही-सही कसर धर्मान्ध लोग कर देते हैं। पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि, ये पंच महाभूत हैं, जो जीवन चलाने के लिए जरूरी हैं। नदियां जल का मुख्य स्रोत हैं। जल को जीवन की संज्ञा दी गई है। इस तरह नदियों को किसी भी रूप में प्रदूषित करके हम जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

क्या कर सकते हैं हाईकोर्ट ने यह तो कहा है कि अगले साल से गंगा और मयुना में मूर्ति विसजर्न नहीं होंगे, लेकिन कोई वैकल्पिक उपाय नहीं सुझया है। सिर्फ आदेश से गंगा और यमुना में मूर्ति विसजर्न नहीं रोका जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर ही रिवर पुलिस का गठन किया गया था। रिवर पुलिस की जिम्मेदारी थी कि यमुना में गंदगी फैलाने वालों पर कार्रवाई की जाए। नदियों में पशुओं को स्नान तक नहीं कराया जा सकता है। रिवर पुलिस कागजी साबित हो रही है।

जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदियों की हालत इतनी खराब होगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा। गंगा को तो देश की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। इसी कारण गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। हम भारतवासी यह चाहते हैं कि मृत्यु के अंतिम क्षणों में मुंह में गंगाजल डाला जाए। इसके साथ ही सरकार ने नदियों को स्वच्छ रखने के लिए करोड़ों रुपये की योजनाएं चला रखी हैं। इसका द्वितीय चरण भी पूरा हो गया है, लेकिन गंदगी है कि बढ़ती जा रही है। मुझे लगता है कि साधु-संत आगे आकर नदियों को बचाने का आह्वान करें। लोगों को बताएं कि गंगा-यमुना में मूर्ति विसजिर्त न करने से पुण्य कम नहीं होगा। जब इन नदियों में पर्याप्त जल था, तब ठीक था। अब ऐसी स्थिति नहीं है। नदियां खुद पानी के लिए तरस रही हैं। फिलहाल इस पानी की जरूरत पेयजल के लिए है, विसजर्न के लिए नहीं।

गांव-गांव में तालाब बनाए जाएं, जिनमें प्रतीकात्मक रूप से गंगा और यमुना का जल डाल दिया जाए। इसी में सम्मानपूर्वक मूर्तियों का विसजर्न हो। आगरा में यमुना को और प्रदूषित होने से बचाने के लिए सफल प्रयोग किया गया। दो घाटों पर गड्ढा बनाकर यमुना जल डाला गया। इन गड्ढों में मूर्तियों का विसजर्न किया गया। इस तरह का प्रयोग हर जिले में किया जाना चाहिए। गणोश चतुर्थी, दुर्गा नवमी, राम नवमी पर मूर्तियों का विसर्जन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

इससे पहले ही इस तरह की तैयारी कर लेनी चाहिए। न जाने क्यों पूजा सामग्री भी नदियों में ही डालने की परम्परा है। क्या हमारी नदियां कचरा घर हैं? अगर हम अपने घर में कचरा रखना गलत समझते हैं, तो गंगा- यमुना में डालना पुण्य का काम क्यों मानते हैं? बावजूद इसके कि इन नदियों से हमें पेयजल मिल रहा है। मेरी नजर में धर्म के नाम पर नदियों को गंदा करना अधर्म है। अगर हमने नदियों का संरक्षण तत्काल नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए विकराल संकट खड़ा कर जाएंगे और इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।

और अंत में स्नान करते वक्त एक मंत्र पढ़ा जाता है- ’गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधं कुरु।’ (मैं जिस जल से स्नान कर रहा हूं, उसमें गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी का जल समाहित हो जाए।) इस मंत्र की सार्थकता तभी होगी, जब हम नदियों को स्वच्छ रखें। धर्मान्धता छोड़कर अपने दायित्व को निभाएं।

(लेखक ‘द सी एक्सप्रेस’ के समाचार सम्पादक हैं)
 

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