प्रस्तावित कृषि नीति का मसौदा

4 Mar 2017
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कृषि उद्योग से अधिक महत्त्वपूर्ण है, कारण स्पष्ट है कि हमारे उद्योग कृषि पर ही निर्भर करते हैं उद्योग जोकि निस्संदेह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, तब तक आगे नहीं बढ़ सकते जब तक हमारी कृषि विश्वसनिय, टिकाऊ और प्रगतिशील न हो। - जवाहरलाल नेहरू

1. भारत के सुनियोजित सामाजिक आर्थिक विकास के लिये व्यापक अर्थों में कृषि का विकास सभी कार्य नीतियों का केन्द्र बिन्दु है। कृषि राज्यों का विषय होने के कारण राज्य सरकारें इस पर पूरा ध्यान देती रहेंगी और केन्द्र की भूमिका-कृषि के विकास तथा क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिये इसमें राज्यों के प्रयासों को पूरा करने की होगी।

2. विगत चार दशकों में कृषि उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई है किन्तु इसके साथ ही क्षेत्रों और फसलों के अनुसंधान और उत्पादन दोनों में असमान विकास हुआ है। अतः इस नीति का उद्देश्य बागवानी, पशुधन, मात्स्यिकी और रेशम कीट पालन सहित कृषि की आर्थिक व्यावहार्यता और समग्र विकास की गति तेज करना है। बुनियादी ढाँचे के विकास में सार्वजनिक निवेश प्राप्त करके और निजी निवेश पर अत्यधिक बल देकर नई गतिशीलता प्रदान करना इसका लक्ष्य होगा। फार्मिंग को आवश्यक सहायता, प्रोत्साहन और बढ़ावा दिया जाएगा ताकि ग्रामीण लोग इस नेक व्यवसाय को चहुँमुखी विकास, कल्याण और आशा के रूप में देखें।

3. आज भारतीय कृषि के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिन्हें इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है :

1. बढ़ती हुई आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करना।

2. उन क्षेत्रों का विकास करना जिनकी क्षमता का दोहन नहीं किया जा सका है ताकि पूर्वी, पर्वतीय, वर्षा सिंचित क्षेत्रों तथा सूखा प्रवण क्षेत्रों में असंतुलन को दूर किया जा सके।

3. भूमि पर बढ़ते हुए जैविक दबाव के कारण होने वाले पारिस्थितिक असंतुलन और घटते हुए भूमि तथा जल संसाधनों के निम्नीकरण की चुनौतियों का सामना करना।

4. भूमि जोतों के आकार छोटे होना व खंडित होना जिसके कारण प्रबन्ध विकल्प सीमित हो गए हैं तथा आय स्तर गिर गया है।

5. कृषि का विविधीकरण करके और बागवानी, मात्स्यिकी, डेयरी, पशुधन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, रेशम-कीट पालन आदि को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में न्यून रोजगारी, बेरोजगारी और कुपोषण की समस्याओं को हल करना।

6. परिसंस्करण, विपणन और भण्डारण सुविधाओं में वृद्धि करने पर लगातार जोर देने से ही कृषि में अधिक मूल्य के पदार्थों को बनाना होगा। यह कृषि परिसंस्करण उद्योगों के लिये अनिवार्य है जो कृषि में विकास के प्रमुख क्षेत्र हैं।

7. ऋण, आदान व विस्तार सहायता तथा विपणन व प्रसंस्करण की अधिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिये सहकारी संस्थाओं को लोकतांत्रिक और पुनः गतिशील बनाना।

8. वर्षा सिंचित, असिंचित तथा सूखा प्रवण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से व्यवहार्य और स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकी का विकास करने के लिये कृषि अनुसंधान पद्धति पर ध्यान देना और उन्नत कृषि तकनीकों में किसानों की शिक्षा और प्रशिक्षण के लिये संस्थागत तन्त्र को मजबूत बनाना।

9. कृषि समुदाय के सभी तबकों के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रमुख क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान का लाभ उठाना।

10. फार्म पर काम करने वाली महिलाओं, आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले व ग्राम्य समाज के अन्य कमजोर तबकों के जीवन की चाकरी और बोझ को दूर करने के लिये तथा उनकी आय में वृद्धि करने हेतु प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण व आदान सम्बन्धी उनकी आवश्यकतओं की पूर्ति करना।

11. निर्यात व घरेलू मंडी दोनों के लिये प्रसंस्करण व विपणन की पूरी सहायता सहित वर्षा सिंचित व सिंचित बागवानी,पुष्प कृषि संगठित व औषधीय पादपों, बागवानी फसलों का विकास तेज करना।

12. कृषि व कृषि वानिकी के माध्यम से सीमान्त भूमि के प्रभावी उपयोग को प्रोत्साहन देना व जैविक उत्पादन में वृद्धि करना।

13. सिंचाई क्षमता के उपयोग में वृद्धि करना और जल संरक्षण और इसके कुशल प्रबंध में वृद्धि करना।

14. किसानों को उनके गाँवों में या उनके निकट उन्नत किस्म के बीज, कृषि उपकरण तथा मशीनरी और अन्य महत्त्वपूर्ण आदान सुलभ कराना।

15. विकेन्द्रित नियोजन के तर्कसंगत साधनों के रूप में किसान समुदाय के स्थानीय संस्थानों को स्थानीय समुदाय के पूरे सहयोग से फिर से चालू करना और उन्हें मजबूत बनाना।

16. कृृषि विकास और ग्रामीण सुधार कार्यक्रमों में गैर-सरकारी संगठनों की सहभागिता में वृद्धि करना।

17. व्यापार की स्थितियाँ ठीक करना ताकि वे कृषि के अनुकूल हो जाएँ और इस तरह संसाधन प्रवाह तथा कृषि में पूँजी सृजन की गति को बहुत अधिक बढ़ाना।

कृषि विकास तथा अनुसंधान कार्यक्रमों को इन चुनौतियों से सम्बद्ध किया जाएगा।

एक समृद्ध और संपोषित कृषि अर्थव्यवस्था के लिये नीति को एक नई दिशा देनी होगी। कृषि में पूँजी सृहन में बाधक प्रवृत्तियाँ खत्म की जाएँगी। और कृषि क्षेत्र में संसाधन आवंटन प्रणाली की समीक्षा की जाएगी, ताकि उपलब्ध संसाधनों को वर्तमान सहायक उपायों के स्थान पर पूँजी सृजन और बुनियादी तंत्र के सृजन के लिये इस्तेमाल किया जा सके। अनुकूल कीमतों और व्यापार प्रणाली के द्वारा किसानों के अपने निवेशों और प्रयासों में वृद्धि करने के लिये आर्थिक माहौल उत्पन्न किया जाएगा।

5. कृषि और ग्रामीण विकास के लिये सहायक बुनियादी ढाँचे के तीव्र विकास के लिये सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जाएगी। अनुसंधान, बुनियादी ढाँचे के विकास तथा परिसंस्करण इत्यादि क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी। विशेष रूप से जल संसाधनों के संरक्षण के लिये कृषि में प्लास्टिक का प्रयोग करने जैसी नई पहल पर जोर दिया जाएगा। सिंचाई और अन्य कृषि कार्यों के लिये ऊर्जा के वैकल्पिक और पुनः नवीनीय स्रोतों को प्रयोग करने के लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। बुनियादी ढाँचे से सम्बन्धित निवेश में क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने और निर्यात योग्य अधिक कीमत के अतिरिक्त पदार्थ निर्मित करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।

6. अनेक वर्षों के परिश्रम से निर्मित ऋण-तंत्र ने कृषि विकास को मूलभूत सहायता प्रदान की है। इस क्षेत्र में ऋण प्रवाह में वृद्धि सुनिश्चित करना कृषि विकास का एक मत्त्वपूर्ण उद्देश्य होगा। आर्थिक रूप से व्यवहार्य कार्यकलापों में संलग्न, व्यावसायिक रूप से प्रबंधित तथा लोकतंत्रात्मक ढाँचे पर चलने वाली सहकारी संस्थाओं के समस्त प्रयासों को सरकार पूरा-पूरा सहयोग देगी। लोकतंत्रात्मक प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने के लिये सहकारी कानूनों में संशोधन किए जाएँगे तथा सहकारी आंदोलन को राज्यीय नियंत्रण से मुक्त किया जाएगा। वैसे, जिन क्षेत्रों में यह आंदोलन कमजोर हैं अथवा जहाँ इसने अभी जड़ें नहीं जमाई हैं, वहाँ स्थित सहकारी समितियों को सरकार द्वारा वित्तीय तथा विस्तार सहायता जारी रखी जाएँगी।

7. देश के विभिन्न क्षेत्रों तथा विदेशों में कृषि उत्पादों के विपणन में सुधार के साथ-साथ कटाई पश्चात की प्रौद्योगिकी के विकास पर पर्याप्त बल दिया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों के सृजन के लिये वहाँ कृषि प्रसंस्करण इकाइयाँ खोली जाएँगी। कृषि उत्पाद के प्रभावी उपयोग तथा अधिक मूल्य वाले पदार्थों का निर्माण करने वाली सुविधाओं का सृजन उत्पादन स्थल के निकट करने पर जोर दिया जाएगा ताकि उत्पादक को अधिक मूल्य दिलाना सुनिश्चित हो सके।

8. खासतौर से वर्षा सिंचित क्षेत्रों में फसल नष्ट होना तथा उत्पादन स्तर की अस्थिरता से उत्पन्न जोखिमों का सामना करने में किसानों की असमर्थता के परिणामस्वरूप अक्सर कृषि में निवेश कम होता है। इस प्रयोजन के लिये ऋण उपलब्धि की व्यवस्था तथा वृहत फसल तथा पशुधन बीमा योजना को फिर से तैयार किया जाएगा जिसमें कृषकों को वर्षा न होने तथा प्राकृतिक आपदाएँ आने से उत्पन्न होने वाली वित्तीय कठिनाइयों से राहत दिलाने का प्रावधान अंतर्निहित होगा।

9. कृषक समुदाय को लाभकारी मूल्य दिलाना सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में सरकार अपने दायित्व का निर्वाह करती रहेगी। उपरोक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिये सरकार मूल्य तंत्र व्यापारिक पद्धति की लगातार समीक्षा करती रहेगी ताकि एक अनुकूल आर्थिक वातावरण बनाना सुनिश्चित हो सके। यह इस क्षेत्र में अधिक पूँजी सृजन को बढ़ावा देने का प्रयास करेगी।

10. आदानों के आयात की हमारी कम जरूरतों, हमारी उचित श्रम लागत तथा हमारी विविध कृषि जलवायु स्थितियों के कारण भारत के पास कृषि निर्यात का एक प्राकृतिक तुलनात्मक लाभ है। फलों, सब्जियों, मुर्गी तथा पशुधन उत्पादों के निर्यात पर विशेष जोर देकर इस लाभ को अधिकतम बनाकर कुल निर्यात में अपने अंश में भारी वृद्धि की जानी है। उपर्युक्त की प्राप्ति हेतु कृषि उत्पादन के विस्तार और विविधीकरण की एक दीर्घावधि नीति बनानी होगी जो किसानों को उचित अंश देने के लिये हमारे समग्र उद्देश्यों के अनुकूल होगी।

11. सरकार कृषि के लिये उद्योग के समान एक सृजनात्मक व्यापार और निवेश का वातावरण सृजित करने की कोशिश करेगी। सरकारी नीति का उद्देश्य कृषि के लिये उसी तरह के लाभ सुलभ कराने के लिये प्रभावी पद्धतियाँ विकसित करना होगा जैसे उद्योग के लिये सुलभ हैं। लेकिन, यह सुनिश्चित करने की ओर ध्यान दिया जाएगा कि कृषकों को सरकार के विनियमन और कर एकत्र करने के तंत्र का सामना न करना पड़े। साथ ही, किसानों को निर्धारित नगर-निगम सीमाओं में अनिवार्य कृषि अधिप्राप्ति पर पूँजीगत लाभ करके भुगतान से मुक्त रखा जाएगा।

12. भारतीय कृषि मूलतया छोटे और सीमांत किसानों के प्रयासों पर निर्भर करती है। भूमि सुधारों के मामले में इस प्रकार कार्रवाई की जाएगी कि उनकी शक्ति को अधिक उत्पादन की प्राप्ति हेतु इस्तेमाल किया जा सके।

13. सरकार देश की भूमि की क्वालिटी को अधिकतम महत्त्व देती है तथा निम्नीकृत भूमि को फिर से ठीक करने को उच्चतम प्राथमिकता दी जाएगी। भूमि को उसकी क्वालिटी और क्षमता के अनुसार विकसित किया जाएगा, ताकि हमारी बढ़ती हुई आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें। देश के विशाल वर्षा सिंचित क्षेत्रों को विकसित करने के लिये पनधारा प्रबंधन के माध्यम से वानस्पतिक संरक्षक उपायों द्वारा वर्षा के पानी के संरक्षण को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा छोटे और बहुत छोटे किसानों के स्वतः विनियमित लाभानुभोगी वर्गों की मदद से समेकित विकास किया जा सके।

14. भारत सरकार को विश्वास है कि कृषि नीति सम्बन्धी इस वक्तव्य को लोगों के सभी वर्गों का समर्थन मिलेगा तथा इससे कृषि में विकास को प्रोत्साहन मिलेगा जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक आय का सृजन होगा। इससे गाँवों के जीवनस्तर में सुधार होगा; ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में शिक्षा स्वास्थ्य, एवं अन्य सेवाओं के मामले में अन्तर को दूर किया जा सकेगा तथा आत्मनिर्भरता के आधार पर लाभप्रद रोजगार के अवसरों का सृजन होगा।

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