पृथ्वी दिवस रस्म नहीं जरूरत है

2 Apr 2015
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आज मानव सभ्यता विकास के चरम पर है। भौतिक एवं तकनीकी प्रगति ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है। तेज चलती कारें, हवा से बात करती हवाई जहाज एवं एक सेकेंड में ही लाखों किमी दूर बैठे स्वजन से मोबाइल पर बात की जा सकती है। आज के सौ साल पहले ये सब बातें सोची भी नहीं जा सकती थीं। लेकिन भौतिक एवं तकनीकी प्रगति की इस आपसी प्रतिस्पर्धा ने आज मानव जीवन को बहुत खतरे में डाल दिया है।

मानव के लिये यह पृथ्वी ही सबसे सुरक्षित ठिकाना है। विज्ञान की प्रगति ने आज तक इसका दूसरा विकल्प नहीं खोज पाया है। लेकिन ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी उन्नति ने धरती को काफी असुरक्षित कर दिया है। वैज्ञानिक खोजों ने जहाँ एक ओर मानव जीवन को बेतहाशा गतिशील किया है वहीं पर मनुष्य अब कई खतरों के बीच अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद करने में लगा है।

एक आम धारणा है कि पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, ग्लेशियर के पिघलने से पर्यावरण एवं पृथ्वी को खतरा है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि सबसे बड़ा खतरा मानव जाति के लिये है। बाकी जीव जन्तु तो किसी तरह से अपना अस्तित्व बचा सकते हैं लेकिन समस्त कलाओं के बावजूद मनुष्य के लिये यह नामुमकिन है। आज धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि समस्त मानव जाति है।

सुविधाभोगी जीवनशैली में सामाजिक सरोकारों को पीछे छोड़ दिया है। जैसे-जैसे हम विकास के सोपान चढ़ रहे हैं वैसे-वैसे पृथ्वी पर नए-नए खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। दिनोंदिन घटती हरियाली व बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण रोज नई समस्याओं को जन्म दे रहा है। इस कारण प्रकृति का मौसम चक्र भी अनियमित हो गया है।

अब सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई निश्चित समय नहीं रह गया। हर वर्ष तापमान में हो रही वृद्धि से बारिश की मात्रा कम हो रही है। इस कारण भूजल स्तर में भारी कमी आई है। अगर समय रहते कोई उपाय नहीं किए तो समस्याएँ विकराल रूप धारण कर लेंगी। इसलिये सभी को एकजुट होकर पृथ्वी को बचाने के उपाय करने होंगे।

भूमण्डलीकरण के कारण आज पूरा विश्व एक विश्वग्राम में तब्दील हो चुका है। ऐसे में कोई भी प्रगति एवं विनाश के अवसर मनुष्य के लिये साझा है। कोई एक देश, व्यक्ति और समाज अपने को एकांगी तरीके से अलग नहीं रख सकता है।

पर्यावरण और पृथ्वी पर मँडराने वाले सम्भावित खतरों को देखते हुए अब पूरे विश्व में 22 अप्रैल को ‘पृथ्वी दिवस’ मनाया जा रहा है। इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा 1970 में पर्यावरण शिक्षा के रूप में की गई थी। पर्यावरण एवं पृथ्वी सम्बन्धी जागरूकता को देखते हुए इसे कई देशों ने प्रतिवर्ष मनाना शुरू किया।

परम्परा के तौर पर ही सही लेकिन आज हम पहले से ज्यादा पृथ्वी एवं पर्यावरण की रक्षा के प्रति सतर्क एवं संवेदनशील हुए हैं। यह तारीख उत्तरी गोलार्द्ध में वसन्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद का मौसम है। अक्सर यह समाचार सुनने को मिलता है कि उत्तरी ध्रुव की ठोस बर्फ कई किलोमीटर तक पिघल गई है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद हो गया है। इसके अलावा फिर भयंकर तूफान, सुनामी और भी कई प्राकृतिक आपदाओं की खबरें आप तक पहुँचती हैं, हमारे पृथ्वी ग्रह पर जो कुछ भी हो रहा है? इन सभी के लिये मानव ही जिम्मेदार है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ गया है।

मानव समाज को इसका दुष्परिणाम देखने को मिलने लगा है। भविष्य की चिन्ता से बेफिक्र हरे वृक्ष काटे गए। पहाड़ों को पत्थर के लिये नष्ट किया गया। नदियों के तलहटी तक निर्माण कार्य किया गया। उत्तराखण्ड के केदारनाथ में आई तबाही इसका उदाहरण है।

सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत का इसी तरह से क्षरण होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। जीव-जन्तु अन्धे हो जाएँगे। लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी और त्वचा कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती इलाके चपेट में आ जाएँगे।

पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत बहुत ही रोचक है। सितम्बर 1969 में सिएटल, वाशिंगटन में एक सम्मलेन में विस्कोंसिन के अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन घोषणा की कि 1970 की वसन्त में पर्यावरण पर राष्ट्रव्यापी जन साधारण प्रदर्शन किया जाएगा। सीनेटर नेल्सन ने पर्यावरण को एक राष्ट्रीय एजेंडा में जोड़ने के लिये पहले राष्ट्रव्यापी पर्यावरण विरोध की प्रस्तावना दी। कार्यक्रम की घोषणा करते हुए किसी को भी यह अन्दाजा नहीं था कि यह इतना सफल होगा हर कोई एक जुआ की तरह इसे खेल रहा था। लेकिन शुरुआत रंग लाई।

आज हमारी धरती अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहाँ देखों वहाँ कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौन्दर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है। ठोस अपशिष्ट पदार्थों के समुचित निपटान के लिये पर्याप्त स्थान की आवश्यकता होती है। हजारों लोग इसमें शामिल हुए। अमेरिका के जानेमाने फिल्म और टेलिविज़न अभिनेता एड्डी अलबर्ट ने पृथ्वी दिवस, की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि पर्यावरण सक्रियता का सन्दर्भ में जारी इस वार्षिक घटना के निर्माण के लिये अलबर्ट ने प्राथमिक और महत्वपूर्ण कार्य किये, जिसे उसने अपने सम्पूर्ण कार्यकाल के दौरान प्रबल समर्थन दिया। अलबर्ट को टीवी शो ग्रीन एकर्स में प्राथमिक भूमिका के लिये भी जाना जाता था, जिसने तत्कालीन सांस्कृतिक और पर्यावरण चेतना पर बहुमूल्य प्रभाव डाला।

विज्ञापन लेखक जुलियन केनिग 1969 में नेल्सन की संगठन समिति में सीनेटर थे और उन्होंने इस घटना को ‘पृथ्वी दिवस’ नाम दिया। 22 अप्रैल 1970 को पृथ्वी दिवस ने आधुनिक पर्यावरण आन्दोलन की शुरुआत की योजना बनी। पहले कार्यक्रम में लगभग 20 लाख अमेरिकी लोगों ने, एक स्वस्थ, स्थाई पर्यावरण के लक्ष्य के साथ भाग लिया।

हजारों कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने पर्यावरण के दूषण के विरुद्ध प्रदर्शनों का आयोजन किया। वे समूह जो तेल रिसाव, प्रदूषण करने वाली फैक्ट्रियों और उर्जा संयन्त्रों, कच्चे मलजल, विषैले कचरे, कीटनाशक, खुले रास्तों, जंगल की क्षति और वन्यजीवों के विलोपन के खिलाफ लड़ रहे थे, ने अचानक महसूस किया कि वे समान मूल्यों का समर्थन कर रहे हैं।

‘पृथ्वी दिवस’ पहला पवित्र दिन है जो सभी राष्ट्रीय सीमाओं का पार करता है, फिर भी सभी भौगोलिक सीमाओं को अपने आप में समाए हुए है, सभी पहाड़, महासागर और समय की सीमाएँ इसमें शामिल हैं और पूरी दुनिया के लोगों को एक गूँज के द्वारा बाँध देता है, यह प्राकृतिक सन्तुलन को बनाए रखने के लिये समर्पित है, फिर भी पूरे ब्रह्माण्ड में तकनीक, समय मापन और तुरन्त संचार को कायम रखता है।

कई शहर पृथ्वी दिवस को पृथ्वी सप्ताह के रूप में पूरे सप्ताह के लिये मनाते हैं, आमतौर पर 16 अप्रैल से शुरू करके, 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के दिन इसे समाप्त किया जाता है। इन घटनाओं को पर्यावरण से सम्बन्धित जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।

आज हमारी धरती अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहाँ देखों वहाँ कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौन्दर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है। ठोस अपशिष्ट पदार्थों के समुचित निपटान के लिये पर्याप्त स्थान की आवश्यकता होती है।

ठोस अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में लगातार वृद्धि के कारण उत्पन्न उनके निपटान की समस्या न केवल औद्योगिक स्तर पर अत्यन्त विकसित देशों के लिये ही नहीं वरन् कई विकासशील देशों के लिये भी सिरदर्द बन गई है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 600 मीट्रिक टन पॉलीथिन का निर्माण होता है, लेकिन इसके एक प्रतिशत से भी कम की ही रीसाइकिलिंग हो पाती है।

अनुमान है कि भोजन के धोखे में इन्हें खा लेने के कारण प्रतिवर्ष लाखों समुद्री जीवों की मौत हो जाती है। देश में हजारों गायों की मौत प्लास्टिक खाने से होती है। जमीन में गाड़ देने पर पॉलीथिन थैले अपने अवयवों में टूटने में एक हजार साल से अधिक समय लेती है। यह पूर्ण रूप से तो कभी नष्ट होते ही नहीं हैं।

पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी की शुरुआत बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही हो गई थी। माना जाता है कि पिछले सौ सालों में पृथ्वी के तापमान में काफी वृद्धि हो चुकी है। यदि हम अब भी नहीं चेते तो मानव जाति का भविष्य भयावह होगा। ऐसे में हमें पृथ्वी दिवस को रस्म न बनाते हुए एक आवश्यकता के बतौर मनाने की जरूरत है।

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