पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन

12 Jul 2015
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पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (ईएसएसओ) धरती की प्रक्रियाओं से संबंधित विभिन्न पहलुओं का समग्र अध्ययन करता है ताकि पृथ्वी प्रणाली की परिवर्तनशीलता को समझा जा सके और मौसम, जलवायु एवं आपदाओं की भविष्यवाणी प्रणाली में सुधार लाया जा सके।पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (ईएसएसओ) धरती की प्रक्रियाओं से संबंधित विभिन्न पहलुओं का समग्र अध्ययन करता है ताकि पृथ्वी प्रणाली की परिवर्तनशीलता को समझा जा सके और मौसम, जलवायु एवं आपदाओं की भविष्यवाणी प्रणाली में सुधार लाया जा सके। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए ध्रुवीय क्षेत्रों से संबंधित अन्वेषण किए जाते हैं। यह संगठन देश के सामाजिक आर्थिक लाभ के लिए समुद्री संसाधनों की खोज और उनके स्थाई दोहन के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने का दायित्व भी निभा रहा है।

पिछले एक वर्ष के दौरान संगठन द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों का ब्यौरा नीचे दिया गया है :

तूफान पूर्वानुमान


भारत को अनेक उष्णकटिबंधी चक्रवातों जैसे फालिन, हेलन, लहर, महासेन, माडी, और विषम मौसम परिस्थितियों जैसे उत्तराखंड और गुजरात में भारी वर्षा की स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इन विषम परिस्थितियों के संदर्भ में जारी की गई मौसम संबंधी प्रचालनगत भविष्यवाणियों और चेतावनियों की व्यापक सराहना हुई। इससे इन सेवाओं की गुणवत्ताओं का पता चला और यह स्वीकार किया गया कि ये सेवाएँ न केवल अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की सेवाओं के समान थीं बल्कि फालिन चक्रवात के मामले में तो उनसे बेहतर सिद्ध हुईं। समुद्री तूफानों का पता लगाने और स्थलों पर उनके पहुँचने संबंधी भविष्यवाणी में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यह कार्य स्व-स्थाने और उपग्रह दोनों ही माध्यमों से पर्यवेक्षण क्षमता में वृद्धि के कारण संभव हुआ है। समुद्री और वायुमंडलीय पर्यवेक्षण क्षमता के साथ कम्प्यूटिंग क्षमता और गतिशील मॉडलो के इस्तेमाल में भी वृद्धि हुई है। चक्रवात के मार्ग और प्रकोप के स्थान, तूफान की लहरों के प्रवाह, उच्च तरंगों और तत्संबंधी वर्षा और फालिन तूफान के दौरान अंधड़ के बारे में सही पूर्वानुमान की बदौलत सरकार को लोगों की जान बचाने के लिए सभी स्तरों पर प्रभावकारी कार्रवाई कर पाने में मदद मिली।

कृषि जलवायु परामर्श सेवाएँ


सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले करीब 50 लाख किसानों की जरूरतें पूरी करने के लिए स्थानीय भाषा में सप्ताह में दो बार जिला स्तरीय मौसम भविष्यवाणी और फसल विषयक परामर्श सेवा का विस्तार किया गया। कृषि जलवायु परामर्श सेवाएँ देश के सभी 600 कृषि जिलों को प्रदान की गई।

मानसून पूर्वानुमान


मानसून मिशन कार्यान्वित किया गया और विभिन्न स्थानों तथा दक्षिण-पश्चिम मानसून से सम्बद्ध वर्षा की मात्रा का पूर्वानुमान व्यक्त करने के लिए प्रयोग के आधार पर डायनामिक यानी गतिशील मॉडल इस्तेमाल किया गया। वर्ष 2013 में देश में लंबी अवधि (जून-सितंबर) के लिए मानसून की वर्षा संबंधी पूर्वानुमान 104-108 प्रतिशत वर्षा का व्यक्त किया गया था जबकि वास्तविक वर्षा एलपीए का 106 प्रतिशत हुई। इस मिशन के अंतर्गत एनसीईपी सीएफएसवी 2.0 मॉडल अपनाया जाता है ताकि मानसून की वर्षा के बारे में प्रेरकों/पूर्वानुमान कौशल में सुधार के लिए नई भौतिक वैज्ञानिक/पैरामीटराइजेशन योजना अपनाई जा सके और तत्संबंधी शक्तियों और कमजोरियों की पहचान की जा सके। इस मॉडल के आधार पर एक स्वदेशी जलवायु मॉडल विकसित किया गया है। इसके जरिए मौसमी, अंतर-वार्षिक और दशकीय समय पैमाने पर मानसून की परिवर्तनशीलता और पूर्वानुमान क्षमता का अध्ययन किया जाता है। इन अध्ययनों के हिस्से के रूप में महाबलेश्वर में एक बादल-भौतिकी प्रयोगशाला चालू की गई है।

उच्च निष्पादन कम्प्यूटिंग


उच्च निष्पादन कम्प्यूटिंग सुविधाओं में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की गई है, जिन्हें मौजूदा 170 टेराफ्लॉप से बढ़ कर 01 पेटाफ्लॉप कर दिया गया है। इसका विश्व में 36वां स्थान है जबकि भारत की यह पहली प्रणाली है।

प्रचालनगत समुद्री विज्ञान के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र


प्रचालनगत समुद्री विज्ञान के लिए ईएसएसओ-इन्कोइस, हैदराबाद में एक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य हिन्दी महासागर क्षेत्र के देशों की क्षमता बढ़ाना है। इसके लिए आईओसी/यूनेस्को के साथ समन्वय किया जाता है।

ध्रुवीय अनुसंधान


भारत ने लार्सेमन हिल्स, पूर्वी अंटार्कटिका में तीसरे स्थाई केंद्र “भारती” को सफलतापूर्वक चालू किया। इससे ग्लेशियोलॉजी, वायुमंडलीय, पैलियोक्लाइमेट और ध्रुवीय जीव विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अध्ययन को बढ़ावा मिलेगा। भारत के वैज्ञानिक योगदान और ध्रुवीय अनुसंधान के प्रयासों को मान्यता देने के लिए एरेक्टिक काउंसिल में भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है। भारत ने जुलाई, 2014 में एरेक्टिक जल में समुद्री पर्यवेक्षण प्रणाली स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है।

समुद्री सर्वेक्षण और खनिज अन्वेषण


भारत ने हिंद महासागर में पॉलीमेटैलिक सल्फाइड्स की खोज के लिए एक स्थल (10 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक) के आवंटन के लिए आवेदन किया था जिसे जुलाई, 2014 में किंग्स्टन, जमैका में हुई इंटरनेशनल सीबैड अथॉरिटी की बैठक के दौरान मंजूरी दी गई। समुद्री खनिजों की खोज और सर्वेक्षण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 7 प्रमुख अनुसंधान बेड़ों की एक शृंखला मध्य हिंद सागर बेसिन में शुरू की गई है। इसके अंतर्गत समुद्री भूवैज्ञानिक आँकड़े हासिल करने के लिए प्रत्येक बेड़ा 30 दिन काम करेगा। सेंट्रल इंडियन रिज (सीआईआर) और साउथ-वेस्ट इंडियन रिज (एसडब्ल्यूआईआर) में अभी तक एकत्र किए गए आँकड़ों की मात्रा में 65,000 किलोमीटर (क्षेत्र) से अधिक का मल्टीबीम इको साउंडर (एमबीईएस) सर्वेक्षण, 17,000 किलोमीटर (लाइन) से अधिक का मेगनेटिक सर्वेक्षण और 9,115 किलोमीटर (लाइन) का गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण शामिल है।

राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (एनसीईएसएस)


तिरूवनंतपुरम स्थित केरल सरकार के पृथ्वी विज्ञान केंद्र को 01.01.2014 से मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत लाया गया। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से ठोस भूमि अनुसंधान को सुदृढ़ करना है।

कोयना वर्ण क्षेत्र में गहन छिद्रान्वेषण


महाराष्ट्र के कोयना वर्ण क्षेत्र में एक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य भूकम्पों के आने और उसके मैकेनिज्म संबंधी प्रमुख मुद्दों का अध्ययन करना है। इसके अंतर्गत द्वीपीय भूकंप जोन में 6-7 किलोमीटर का एक गहरा बोर होल ड्रिल किया जा रहा है ताकि किसी भूकम्प से पहले, उसके दौरान और उसके बाद आने वाले भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सके। तत्संबंधी प्रारंभिक गतिविधियों में 1.5 किलोमीटर तक गहरे चार बोरहोल्स की ड्रिलिंग का काम पूरा कर लिया गया है, जिससे दक्कन वाल्केनिज्म और स्ट्रेस रिजीम, पोर फ्लूइड प्रेशर और इसके उतार-चढ़ावों, ताप प्रवाह और उसके उतार चढ़ावों फाल्ट्स आदि की अनुस्थिति संबंधी जानकारी मिली है। बैसाल्टिक चट्टानों के नीचे कोई अवसादी चट्टानें नहीं हैं। कोयना और वर्णा, दोनों स्थलों पर बैसाल्ट चट्टानों की मोटाई क्रमशः करीब 933 मीटर और 1185 मीटर है। ग्रेनाइट बेसमेंट के नीचे कोई अवसादी चट्टानें नहीं हैं। पोरहोल्स से निकाले गए क्रोड से एक फ्लड बैसाल्ट के ढेर का पता चलता है जिसमें अनेक लावा प्रवाह शामिल हैं। प्रत्येक प्रवाह के साथ एक वेसीकुलर और/या अमीग्डलोयडल परत देखी गई है जो बारीक दानेदार व्यापक बैसाल्ट से बनी है। कुछ प्रवाहों में फ्लोटॉप ब्रिक्सियास की पहचान की गई है।

तटीय परिवर्तनशीलता


9 तटवर्ती राज्यों और द्वीपों के लिए 1 : 1000000 पैमाने पर 157 मानचित्रों वाली तटीय परिवर्तनशीलता सूचकांक एटलस तैयार की गई है ताकि सुनामी, चक्रवातों और तूफानी लहरों जैसी विभिन्न समुद्री आपदाओं के समय मुख्य रूप से कार्रवाई करने वाली विभिन्न एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल में लाई जा सके।

(डॉ. शीलेश नायक, अर्थ विज्ञान मंत्रालय में सचिव हैं।)
(स्रोतः पीआईबी फीचर)

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