पूरी तरह सूखने की कगार पर कोटद्वार की कोह नदी
पूरी तरह सूखने की कगार पर कोटद्वार की कोह नदी

पूरी तरह सूखने की कगार पर कोटद्वार की कोह नदी

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अजय खंतवाल, कोटद्वार (दैनिक जागरण)।

मैं सदियों से लोगों का जीवन बचाती आई हूं, लेकिन आज मेरा ही जीवन खतरे में है। मेरी जननी लंगूरगाड और सिलगाड अंतिम सांसें गिन रही हैं। मेरे संरक्षण की बात तो हो रही है, लेकिन कोई यह समझने को तैयार नहीं कि मेरा अस्तित्व ही सिलगाड व लंगूरगाड से है। इन्हीं दो नदियों के मिलन से पौड़ी जिले के एतिहासिक दुगड्डा कस्बे में मेरा जन्म होता है और वन क्षेत्र से 25 किमी का सफर तय कर कोटद्वार से दस किमी आगे मैं सनेह में कोल्हू नदी से मिल जाती हूं। इसके बाद धामपुर (बिजनौर-उत्तर प्रदेश) में राम गंगा नदी में समाहित होकर मैं आगे की यात्र करती हूं।

करीब डेढ़ दशक पूर्व तक मैं कोटद्वार नगर के साथ ही आसपास के तमाम गांवों की प्यास बुझाती थी, लेकिन क्षेत्र में आई नलकूपों की बाढ़ ने मुझसे मेरा यह हक भी छीन लिया। आज मैं लैंसडौन वन प्रभाग के जंगलों में बसे उन बेजुबानों की प्यास बुझा रही हूं, जिन्होंने इस क्षेत्र की जैवविविधता को पहचान दी है।

मेरे वजूद पर संकट खड़ा करने वाला कोई और नहीं, बल्कि वही सरकारी सिस्टम है, जो आज मुझे बचाने के दावे कर रहा है। सुनने में आ रहा है कि मुझे बचाने के लिए मेरे आंचल में चेकडैम बनाने की तैयारी है। जबकि, मैं चीख-चीख कर कह रही हूं कि मेरा अस्तित्व उसी सिलगाड व लंगूरगाड से है, जिन पर सरकारी सिस्टम की मिलीभगत से अतिक्रमण कर लगातार व्यावसायिक प्रतिष्ठान बन रहे हैं। क्या कोई इस ओर भी ध्यान देगा या फिर मैं तड़पते-तड़पते अपना अस्तित्व खो बैठूंगी। पौड़ी के जिलाधिकारी धीराज सिंह गब्र्याल का कहना है कि खोह नदी के संरक्षण को सिंचाई विभाग के साथ योजना तैयार की जा रही है। योजना में खोह के साथ ही उसे जीवन देने वाली सिलगाड व लंगूरगाड में भी पानी रोकने के उपायों को शामिल किया जाएगा।

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