राहत शिविरों में भी राहत नहीं

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मुजफ्फरपुर के लकड़ी ढाई गाँव में बाढ़ का पानी घुस जाने के कारण 45 वर्षीय पुतुल देवी स्कूल में बने राहत शिविर में रह रही हैं। उन्हें शौच करने के लिये रोज सुबह आधा किलोमीटर पैदल चल कर बनारस चौक जाना पड़ता है, क्योंकि राहत शिविर में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। पुतुल देवी की तरह ही शिविर में दिन गुजार रही दो दर्जन से अधिक महिलाएँ सुबह जागती हैं, तो सब काम छोड़कर चौक की तरफ रुख करती हैं।

पुतुल देवीपिछले एक सप्ताह से इस गाँव में बाढ़ आयी हुई है जिस कारण लोग अपना घर-बार छोड़कर मारवाड़ी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के बरामदे में शरण लिये हुए हैं। इस विद्यालय के दो शौचालय ही खुले हुए हैं जिनमें पुरुष जाते हैं। महिलाओं को निबटने के लिये चौक पर बने शौचालयों में जाना पड़ता है। पुतुल देवी कहती हैं, “शौचालय तक जाने में आधा घंटा लग जाता है। वहा जाती हूँ, तो भीड़ रहती है। इंतजार में और आधा घंटा निकल जाता है। कुल मिलाकर दो से ढाई घंटे रोज निकल जाते हैं।”

वक्त तो बर्बाद होता ही है, साथ ही पैसे भी खर्च होते हैं। सोना देवी बताती हैं, “बनारस चौक पर 5 से 6 शौचालय हैं, लेकिन जानेवालों की संख्या अधिक रहती है जिस कारण लंबी कतार लग जाती है। शौच करने के लिये 5 रुपये देना पड़ता है। जिस परिवार में 3-4 महिलाएँ हैं, उनका रोज 20-25 रुपये खर्च हो जाता है। और अगर पेट खराब हो तो, वह अलग मुसीबत है।”

राहत शिविर में रहने वाली कई महिलाएँ दूसरी जगहों पर काम करती हैं, इसलिए उन्हें जल्दी सबकुछ निबटाना पड़ता है। पुतुल देवी घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं। उन्होंने कहा, “शौचालय में बड़ी भीड़ रहती है, लेकिन क्या करें, दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है। मेरी तरह मेरी बहुओं को दिक्कतों का सामना न करना पड़े, इसलिए उन्हें उनके मायके पहुँचा दिया है।” उन्होंने कहा, “बाढ़ से राहत के लिये यहाँ आये, लेकिन यहाँ भी राहत कहाँ है।”

सोना देवी​राहत शिविर में रह रहे अजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा, “राज्य सरकार की तरफ नाव नहीं दिया गया था, जिस कारण हमें सामान सिर पर लाद कर पैदल यहाँ आना पड़ा। जितना हो सका सामान उठाकर लाये और बाकी वहीं छोड़ दिया।”शिविर में रहनेवाले लोगों को चूड़ा-गुड़ और खिचड़ी खिलायी जा रही है। बिजली की सुविधा नहीं है। हाँ, एक जेनरेटर रखा गया है, जो रात में चलता है।

लोगों का कहना है कि राहत शिविर में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। उनकी मांग है कि कम से कम मुख्य गेट पर एक पुलिस कर्मचारी को तैनात किया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाएँ व लड़कियाँ भी बरामदे में खुले में ही सोती हैं। राहत शिविर में रहनेवाले 65 वर्षीय सुरेश वर्मा ने कहा, सुबह में एक पुलिस कर्मचारी आया था, जो इधर-उधर देखकर चला गया। रात में किसी पुलिस कर्मचारी की ड्यूटी नहीं लगती है। उन्होंने कहा कि कैंप में दवा की भी व्यवस्था नहीं है और न ही मच्छरों से बचाव के लिये ब्लीचिंग पाउडर का ही छिड़काव होता है।

इस बार बाढ़ की चपेट में करीब डेढ़ करोड़ लोग आये हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि राज्य के बाढ़ ग्रस्त इलाकों में कुल 1346 राहत शिविर चल रहे हैं। इन राहत शिविरों की हालत भी कमोबेश मारवाड़ी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जैसी ही है। शिविरों में रहनेवाले लोगों को शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी मयस्सर नहीं हैं। सरकार का ध्यान बाढ़ पीड़ितों तक भोजन पहुँचाने पर तो है, लेकिन शौचालय की सुविधा उनकी प्राथमिकता सूची में नहीं है। पुरुष तो किसी तरह निबट लेते हैं, लेकिन महिलाओं को बड़ी मुश्किल हो रही है।

कुछ जगहों पर तो महिलाएँ निबटने के लिये जान जोखिम में डालते हुए नाव लेकर दूर निकल जाती हैं। लेकिन, नाव भी एक-दो ही हैं, जिस कारण दो तीन महिलाएँ एक घंटे में लौटती हैं, तो दूसरी महिलाएँ जाती हैं। घर में घुटनाभर पानी घुस जाने के कारण बाँध पर रह रही फगुनी देवी कहती हैं, “हर जगह पानी ही पानी है। सुबह-सुबह नाव लेकर हमलोगों को नदी में जाना पड़ता है। सरकार की तरफ से अगर मोबाइल टॉयलेट लगा दिया जाता, तो सहूलियत होती। हमें नाव का सहारा लेना पड़ता है। कई महिलाओं को तैरना नहीं आता है, लेकिन मजबूरी है जाना।”

मारवाड़ी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का मुख्य द्वारमधुबनी जिले में स्कूलों में राहत शिविर बनाये गये हैं। इन स्कूलों में एक-दो शौचालय हैं लेकिन एक-एक स्कूल में 300 से 400 लोग रह रहे हैं। इतने लोगों के लिये एक-दो शौचालय नाकाफी हैं। सरकारी राहत शिविरों के अलावा बाढ़ से पीड़ित एक बड़ी आबादी बाँधों पर रह रही है। उनके लिये तो शौचालय का कोई इंतजाम है ही नहीं। मधुबनी के बेनीपट्टी प्रखंड के रिंग बाँध पर समय काट रही सीता देवी और मरनी देवी ने कहा कि हर तरफ पानी ही पानी है। लेकिन सरकारी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।

रिंग बाँध पर ही रह रही छात्रा पुष्पा कुमारी ने कहा, “किसी तरह बाढ़ के पानी से बचे हुए हैं, लेकिन शौचालय नहीं होने से परेशानी हो रही है। हर तरफ पानी ही पानी है। खुले में भी जाना मुश्किल है और उस पर लोगों का आना-जाना लगा रहता है।”

मधुबनी के बाढ़ग्रस्त इलाकों में 15 अगस्त से लगातार राहत कार्य कर रही मिथिला स्टूडेंट यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बीजे विकास कहते हैं, “सरकारी राहत शिविर स्कूलों में है। वहाँ तो एक-दो शौचालय हैं, जिससे थोड़ी राहत भी है, लेकिन बाँधों व अन्य ऊँची जगहों पर जो लोग रह रहे हैं, उनके लिये शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। पुरुष तो किसी तरह निबट लेते हैं, लेकिन महिलाओं के सामने विकट समस्या है।”

उन्होंने कहा, “सरकार इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है। लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।” मुजफ्फरपुर के एक समाजिक कार्यकर्ता सोनू सरकार ने कहा कि सरकार को इस गंभीर समस्या की ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए और राहत शिविरों में मोबाइल टॉयलेट की व्यवस्था करनी चाहिए। जहाँ मोबाइल टॉयलेट पहुँचा पाना असंभव है वहाँ अस्थायी शौचालय बनवाना चाहिए, ताकि महिलाओं को दिक्कत न हो।
 

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