रानीखेत और गैरसैण वासियों की प्यास बुझायेंगे बैराज

21 Mar 2017
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Prem Pancholi
Prem Pancholi

उत्तराखण्ड हिमालय में ‘वन विकास निगम’ की स्थापना के बाद से लोक सहभागिता से बनने वाली चाल-खाल हुई बन्द तो सूखने लगे प्राकृतिक जल स्रोत। रानीखेत में गगास नदी और गैरसैण में रामगंगा पर बनने हैं बैराज। इसके लिये आईआईटी रुड़की ने डिजाइन तैयार कर लिया है। मार्च के दूसरे सप्ताह में किया जायेगा स्थलीय निरीक्षण। उत्तराखंड सिंचाई विभाग की ओर से बैराज का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है।वैसे तो उत्तराखण्ड के पहाड़ी गाँव के लोग अपने आस-पास के जंगलो में बरसात के पानी का संरक्षण करते आये हैं। जिसमें वे चाल-खाल के नाम से छोटे-छोटे गड्ढेनुमा आकार के तालाब बनाते थे। इस तरह बरसात का पानी उनमें एकत्रित होकर निचले स्तर के जलस्रोत स्वस्फूर्त ही रिर्चाज हो जाते थे। अलबत्ता जबसे उत्तराखण्ड हिमालय में ‘‘वन विकास निगम’’ की स्थापना हुई तब से लोक सहभागिता से चाल-खाल का बनना बन्द ही हो गया है। अब लोग भी सरकारी बजट पर ही निर्भर है कि यदि चाल-खाल के संरक्षण हेतु बजट आता है तो ग्रामीण इस काम को आगे बढायेंगे। यह भी वजह है कि पहाड़ी गाँव वर्तमान में पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। हालाँकि इस नये बजट सत्र में चाल-खाल के लिये जो भी बजट सरकार ने प्रस्तुत किया हो सो अलग बात है मगर, पहाड़ों में पेयजल संकट को दूर करने की कवायद हुई है। इसके लिये रानीखेत में गगास नदी पर बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। जबकि दूसरी तरफ गैरसैण में रामगंगा नदी पर बैराज के लिये आईआईटी रुड़की ने डिज़ाइन तैयार कर लिया है। मार्च के दूसरे सप्ताह में स्थलीय निरीक्षण करके डिज़ाइन फाइनल किया जाएगा।

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में पेयजल संकट बना हुआ है। पेयजल संकट इस मायने में भी की गाँव पहाड़ी के ऊपर और नदियाँ गहरी घाटियों से गुजरती हुई लोगों के हलक तर करने में अब तक नहीं आ पायी है। फिर भी कुच्छेक जगह पर सरकारी प्रयास से नदी के पानी को ‘‘विद्युत मोटर’’ से गाँव तक पहुँचाया जा रहा है। कुछ गिने चुने गाँव के लोगों ने सोलर के माध्यम से गाँव तक पानी पहुँचाया है। ज्ञात हो कि यहाँ की नदियों में अचानक पानी आता है और फिर उतर जाता है। बरसात के पानी की भण्डारण की व्यवस्था भी कहीं नजर नहीं आती। जिसकी वजह से गर्मियों में पेयजल की समस्या आम है। अल्मोड़ा में तीन साल पहले पेयजल की समस्या को देखते हुए बैराज बनाया गया था। इसका डिजाइन आईआईटी रुड़की ने ही तैयार किया था।

इस बैराज में चार लाख क्यूबिक मीटर पानी स्टोरेज की व्यवस्था है। अल्मोड़ा के बाद अब उत्तराखंड सिंचाई विभाग गैरसैण और रानीखेत में बैराज निर्माण की कवायद कर रहा है। इसके लिये आईआईटी रुड़की सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों से सलाह मांगी गई है। आईआईटी सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. जुल्फिकार अहमद का कहना है कि गैरसैण में पेयजल की समस्या के समाधान के लिये उत्तराखंड सिंचाई विभाग की ओर से बैराज का निर्माण किया जाना है। इसका भी डिजाइन आईआईटी रुड़की को ही तैयार करना है, लेकिन जनवरी में बर्फबारी और फिर फरवरी में चुनाव के कारण स्थलीय निरीक्षण सम्भव नहीं हो पाया है। मार्च के दूसरे सप्ताह में साइड विजिट कर इसका डिजाइन फाइनल किया जाएगा। उन्होंने बताया कि रानीखेत में गगास नदी पर बैराज बनाया जाना है, इसके लिये आईआईटी रुड़की से डीपीआर माँगी गई है।

यह दीगर है कि यदि रानीखेत और गैरसैण में इस योजना के तहत लोगों को पेयजल की समस्या से निजात मिल जाती है तो भविष्य में ऐसी योजनाएँ गाँव-गाँव बनने चाहिए। क्योंकि उत्तराखण्ड के सर्वाधिक गाँव नदियों और घाटियों में ही बसे हैं। यदि ऐसी सभी नदियों पर बैराज बनते हैं तो एक तरफ सिंचाई की सुविधा होगी और दूसरी तरफ रानीखेत और गैरसैण के नगरवासियों की प्यास बुझेगी। यह बात कार्यदायी विभाग में चर्चाओं का विषय बना हुआ है। कुलमिलाकर बैराज बनने से रामगंगा व गगास घाटी के लोगों की प्यास बुझेगी की नहीं पर गैरसैण व रानीखेत नगरवासीयों तक पानी जरूर पहुँच जायेगा। अब इसमें चाहे समय ज्यादा लग सकता हो, मगर पेयजल कर समस्या पर सरकार की नजर गयी है यह स्थानीय लोगों के लिये सुखद खबर है। रानीखेत मंगलराम का कहना है कि इस नगर में अधिकांश ढाँचागत विकास सैनिकों के लिये सरकार ने किया है जिन्हें पेयजल आपूर्ति के लिये रक्षामंत्रालय की व्यवस्था है। मगर स्थानीय लोग वर्षों से गर्मी शुरू होते ही पेयजल के संकट का सामना करते आये हैं। उनका कहना है यदि गगास पर बैराज बनता है और इस बैराज का पानी रानीखत पहुँचाया जाता है तो ऐसा सुखद पल रानीखेत नगरवासियों के लिये पहली बार होगा। उनका आरोप है कि रानीखेत में एक तरफ सैनिकों के उच्चाधिकारी हैं और दूसरी तरफ इसी विधानसभा से हमेशा राजनीति में अहोदेदारो ने प्रतिनिधित्व किया है परन्तु उन्हें इस नगर की आम जनता की पानी की किल्लत नजर तक नहीं आई।

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