राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून के दो साल

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून की एक विशेष खासियत यह है कि यह सामाजिक लेखापरीक्षण को केन्द्रीय भूमिका प्रदान करता है। इसका मूल मकसद परियोजनाओं, कानून एवं नीतियों पर अमल में सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना है। पिछले दो साल के अनुभव तथा अमल के दौरान मिली सीख के बल पर नरेगा को ज्यादा प्रभावकारी ढंग से लागू किया जाएगा। यह कार्यक्रम लाभार्थियों की आमदनी में बढ़ोत्तरी करेगा, स्थायी परिसम्पत्तियाँ निर्मित करेगा तथा ग्रामीण भारत के लिए दीर्घकालीन ठोस लाभ अर्जित करेगाराष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून (नरेगा) 7 सितम्बर, 2005 को अधिसूचित किया गया था। इस कानून का लक्ष्य हर वित्तीय साल में प्रत्येक परिवार के ऐसे वयस्क व्यक्ति को कम से कम 100 दिन का रोजगार सृजन वाला गैर-हुनर काम मुहैया कराना है जो सूखा, वनों की कटाई तथा भू-क्षरण के कारण लगातार पैदा होने वाली गरीबी की समस्या के निवारण में मददगार साबित हो ताकि लगातार रोजगार सृजन की प्रक्रिया जारी रहे।

2 फरवरी, 2006 को लागू इस कानून के प्रथम चरण में यह सुविधा 200 जिलों में उपलब्ध कराई गई थी। 2007-08 में इस कानून का विस्तार 330 अतिरिक्त जिलों में किया गया जबकि बाकी जिलों को इसमें शामिल करने की अधिसूचना 1 अप्रैल, 2008 को जारी की गई।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून के दो साल

नरेगा का महत्त्व


नरेगा का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि इसका संचालन अनेक स्तरों पर होता है। यह संवेदनशील वर्गों को ऐसे वक़्त में रोजगार उपलब्ध कराता है जब उसके दूसरे साधन कम हो गए हों या वे अपर्याप्त हों। जिससे वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध होता है। इससे विकास की प्रक्रिया में समानता का आयाम जुड़ता है। यह काम पाने के कानूनी अधिकार, रोजगार की माँग करने का अधिकार तथा समय-सीमा में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार को जवाबदेह बनाकर मजदूरी प्राप्ति के योजनागत कार्यक्रम के लिए अधिकार पर आधारित एक प्रशासनिक ढाँचा भी निर्मित करता है।

प्राकृतिक संसाधनों की प्राथमिकता निर्धारण तथा स्थायी परिसम्पत्ति के सृजन पर जोर देने के कारण इसमें खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था के स्थिर विकास के लिए इंजन बनने की भी सम्भावना है। अन्ततः विकेन्द्रीकरण के इर्द-गिर्द निर्मित इसका संचालन सम्बन्धी स्वरूप तथा स्थानीय समुदाय के प्रति इसकी समानान्तर जवाबदेही कारोबार का नया तरीका प्रस्तुत करती है और पारदर्शिता तथा बुनियादी जनतन्त्र के सिद्धान्तों से संचालित प्रशासनिक सुधार का एक मॉडल भी उपलब्ध करती है। इस मायने में नरेगा की सम्भावना बुनियादी मजदूरी सुरक्षा तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सक्रिय करने सहित जनतन्त्र को बदलाव सम्बन्धी अधिकारिता प्रदान करने के एक व्यापक क्षेत्र तक कायम है।

कानून की विशेषताएँ


अधिकार पर आधारित ढाँचा
1. गाँव के जो वयस्क लोग गैर-हुनर वाले काम करने के इच्छुक हैं वे लिखित अथवा मौखिक रूप से स्थानीय ग्राम पंचायत में अपना नाम दर्ज कराने का आवेदन कर सकते हैं।
2. ग्राम पंचायत उनकी दरख्वास्त की उचित जाँच-पड़ताल के बाद जॉब कार्ड जारी करेगी। जॉब कार्ड बिना कोई शुल्क लिये जारी किया जाएगा और उस कार्ड पर घर के सारे वयस्क लोगों के नाम होंगे।
3. जॉब कार्ड वाले परिवार ग्राम पंचायत के पास रोजगार के लिए दरख्वास्त देंगे, जिस दरख्वास्त पर काम पाने के समय और अवधि का जिक्र रहेगा।

समय-सीमाबद्ध गारण्टी
1. ग्राम पंचायत रोजगार सम्बन्धी लिखित दरख्वास्त की तारीख के साथ प्राप्ति रसीद जारी करेगी। इस रसीद की प्राप्ति के 15 दिनों के भीतर उसे काम नहीं दिया जाता है तो उसे नकद दैनिक बेरोजगारी भत्ते का भुगतान किया जाएगा। बेरोजगारी भत्ते के भुगतान की जिम्मेवारी राज्य सरकार की होगी।
2. आमतौर पर काम गाँव के 5 किलोमीटर के दायरे में उपलब्ध कराया जाएगा। उससे अधिक दूरी होने पर 10 प्रतिशत की दर से अतिरिक्त मजदूरी दी जाएगी।
3. मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी दर के आधार पर किया जाएगा। मजदूरी का भुगतान हर सप्ताह किया जाएगा और किसी भी हालत में एक पखवारे के भीतर।

महिलाओं के अधिकार
जितने लोगों को काम दिया जाएगा उनमें से कम से कम एक तिहाई महिला होनी चाहिए।

कार्यस्थल पर सुविधा
कार्यस्थल पर पालना, पीने के पानी तथा शेड की सुविधा देनी होगी।

विकेन्द्रित प्रशिक्षण
1. परियोजनाओं की रूपरेखा ग्राम सभा द्वारा तैयार होनी है। कुल काम के 150 प्रतिशत का आवण्टन ग्राम पंचायतों को किया जाएगा।
2. पंचायती राज संस्थाओं को परियोजना की योजना बनाने तथा उस पर अमल में मुख्य भूमिका निभानी है।

श्रम बहुल निर्माण कार्य
श्रम और सामग्री का अनुपात 60:40 का रखना होगा। ठेकेदारों एवं श्रमिक की जगह मशीनरी के इस्तेमाल पर प्रतिबन्धित है।

सार्वजनिक जवाबदेही
1. ग्राम सभा द्वारा सामाजिक लेखापरीक्षण (सोशल ऑडिट) कराया जाना है।
2. जवाबदेही वाली अमल प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए शिकायत निवारण तन्त्र कायम किया जाएगा।

पारदर्शिता
माँग करने तथा निर्धारित शुल्क जमा करने पर स्कीम से सम्बन्धित सारे लेखाओं तथा रिकॉर्डों की प्रति किसी भी इच्छुक व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगी।

अनुमत काम
1. जल संरक्षण
2. सूखा रोकनेवाला काम (पौधा रोपण तथा वनीकरण सहित)
3. सिंचाई नहर
4. लघु सिंचाई, बागवानी तथा भूमि विकास। यह भूमि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों/गरीबी रेखा से नीचे/आईएवाई तथा भूमि सुधार के लाभार्थियों की होनी चाहिए।
5. पारम्परिक जल निकायों का जीर्णोद्धार
6. बाढ़ नियन्त्रण
7. भूमि विकास
8. ग्रामीण सम्पर्क मार्ग

धन की व्यवस्था
केन्द्र सरकार निम्नलिखित मदों की लागत का खर्च उठाएगी :
1. गैर-हुनरमन्द श्रमिकों की मजदूरी की पूरी लागत।
2. कुशल और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की मजदूरी की सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत।
3. केन्द्र सरकार द्वारा तय प्रशासनिक खर्च। इसमें प्रोग्राम अफसर, उनके सहायक कर्मी तथा निर्माण-स्थल पर उपलब्ध सुविधाओं के लिए दिए जाने वाले वेतन तथा भत्ते शामिल हैं।
4. राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी परिषद का खर्च।

राज्य सरकार निम्नलिखित मदों की लागत का भार उठाएगी :
1. कुशल और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की मजदूरी की सामग्री की लागत का 25 प्रतिशत।
2. राज्य सरकार द्वारा समय पर मजदूरी अर्जन वाला काम उपलब्ध न कराने पर दिया जानेवाला बेरोजगारी भत्ता।
3. राज्य नियोजन गारण्टी परिषद का प्रशासनिक खर्च।

अब तक के परिणाम


नरेगा पर अमल के दो साल पूरे होना इस कार्यक्रम का औचित्य साबित करता है। इससे यह बात भी साफ है कि रोजगार की प्रकृति मौसमी है और इसके तहत होने वाले काम, स्थानीय खेती के तरीके तथा रोजगार के वैकल्पिक स्वरूपों के अनुसार अलग-अलग किस्म के हैं। इसलिए सारे जॉब कार्डधारी परिवारों के लिए पूरे 100 दिन के काम की माँग करना जरूरी नहीं है।

इस तरह नरेगा के तहत श्रमबल में जिलावार और राज्यवार पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। सारे जिलों में एक ही तरह की श्रमिक माँग और माँग का स्तर नहीं होता। प्रथम चरण के जिलों में 150 जिलों का चुनाव अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी के आधार पर किया गया था और प्रति श्रमिक खेती की उत्पादकता तथा खेतिहर मजदूरी की दर का ख्याल नहीं रखा गया था। इन जिलों में ज्यादा रोजगार की माँग की सम्भावना है। जो जिले अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित हैं वहाँ नरेगा के तहत कम रोजगार की माँग की सम्भावना है, क्योंकि वहाँ खेती तथा गैर-खेती सम्बन्धी अन्य ग्रामीण गतिविधियों के कारण रोजगार की काफी सम्भावना है। इस तरह यह बात काफी साफ है कि नरेगा ‘गरीबी के भूगोल’ का ख्याल रखता है क्योंकि यह अति उपेक्षित इलाकों में अधिक रोजगार पैदा करता है।

2008 की जनवरी के मध्य तक इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित हैं :

1. ग्रामीण श्रमिक बल के लिए वर्द्धित रोजगार सुअवसर
इस कार्यक्रम पर अमल के रुख से नरेगा के मकसद का औचित्य सिद्ध होता है। इसका मकसद रोजगार तथा रोजगार सृजन के सुअवसर में वृद्धि करना रहा है। 2006-07 में 200 जिलों में 90 करोड़ 50 लाख श्रम दिवस तथा इस साल फरवरी तक 330 जिलों में 119 करोड़ 78 लाख श्रम दिवस सृजित हुए। एसजीआरवाई की तुलना में यह उल्लेखनीय वृद्धि है। एसजीआरवाई के तहत पूरे देश के लिए औसत 85 करोड़ श्रम दिवस सृजित हुए थे।

2. समावेशी विकास
(अ) ग्रामीण गरीबों तक पहुँच : 117.54 प्रतिशत बीपीएल परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराए गए, जिससे यह संकेत मिलता है कि नरेगा का लाभ ग्रामीण गरीबों को मिला है। 2006-07 में यह संख्या 127 प्रतिशत रही। 2007-2008 के फरवरी तक की अवधि में 118 प्रतिशत ग्रामीण बीपीएल परिवारों को यह लाभ मिला। इनमें से 610 प्रतिशत राजस्थान, 28 प्रतिशत महाराष्ट्र तथा 19 प्रतिशत अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा रहा। बिहार, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, नागालैण्ड, ओडिशा, पंजाब, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल में ग्रामीण बीपीएल परिवारों को इसका लाभ अपर्याप्त रूप से मिला। वहाँ इसका उपयोग 100 प्रतिशत से नीचे रहा।

(ब) महिला श्रमबल की भागीदारी का वर्द्धित अनुपात 2006 के मार्च से 2007 के अप्रैल तक 41 प्रतिशत रही। यह भागीदारी 2007 के अप्रैल से 2008 की फरवरी तक की अवधि में बढ़कर 42.18 प्रतिशत हो गई। तमिलनाडु में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत सर्वाधिक (82 प्रतिशत) रहा। उसके बाद राजस्थान का स्थान (70 प्रतिशत) रहा। एसजीआरवाई के तहत महिला श्रमबल की 25 प्रतिशत भागीदारी की जगह यह भी एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि मानी जाएगी।

लेकिन पश्चिम बंगाल (17 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (14 प्रतिशत), झारखण्ड (23 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (23 प्रतिशत) तथा बिहार (27 प्रतिशत) जैसे राज्यों में महिलाओं की भागीदारी कम रही।

(स) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवारों का रोजगार में कुल हिस्सा 2006-07 में 62 प्रतिशत रहा (अनु. जाति 25.3 प्रतिशत तथा अनु. जनजाति 36.5 प्रतिशत) और 2008 की जनवरी तक यह हिस्सा 58 प्रतिशत रहा (अनु. जाति 27 प्रतिशत तथा अनु. जनजाति 31 प्रतिशत)। गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा तथा झारखण्ड सहित 14 राज्यों में राष्ट्रीय औसत से उनका हिस्सा ज्यादा रहा।

3. न्यूनतम मजदूरी का प्रभाव
खेतिहर श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी बढ़ी है। महाराष्ट्र में न्यूनतम मजदूरी 47 रुपए से बढ़कर 100 रुपए हो गई है। इसी तरह बिहार में 68 रुपए से 77 रुपए, कर्नाटक में 62 रुपए से 74 रुपए, पश्चिम बंगाल में 64 रुपए से 74 रुपए, मध्य प्रदेश में 58 रुपए से 67 रुपए, हिमाचल प्रदेश में 65 रुपए से 75 रुपए, नागालैण्ड में 66 रुपए से 100 रुपए, जम्मू-कश्मीर में 45 रुपए से 70 रुपए तथा छत्तीसगढ़ में 58 रुपए से 66 रुपए तक हो गई है।

4. अधिक मजदूरी का अर्जन
नरेगा के लिए निर्धारित धन का साठ प्रतिशत से अधिक का भुगतान श्रमिकों को मजदूरी के रूप में किया गया। 2007-08 वित्तीय वर्ष के फरवरी माह के अन्त तक कुल 12,692 करोड़ 65 लाख रुपए खर्च किए गए, जिसमें से 8,593 करोड़ 53 लाख (68 प्रतिशत) मजदूरी के रुपए में भुगतान किया गया।

5. उत्पादक परिसम्पत्ति का सृजन
2006-07 में करीब 8 लाख निर्माण कार्य हाथ में लिए गए। इनमें से 5 लाख 30 हजार काम जल संरक्षण, सिंचाई, सूखा रोकने तथा बाढ़ नियन्त्रण सम्बन्धी निर्माण कार्यों से सम्बन्धित थे। 2007-08 में करीब 15 लाख 5 हजार निर्माण कार्य हाथ में लिए गए, जिनमें से 9 लाख 54 हजार से ज्यादा जल संरक्षण, सिंचाई, सूखा रोकने तथा बाढ़ नियन्त्रण सम्बन्धी निर्माण कार्य हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक एवं जीविकोपार्जन का संसाधन आधार तैयार हुआ है।

6. प्रशिक्षण
2006-07 में 20 लाख पंचायती राज संस्थाओं के पदाधिकारियों, 58,016 सरकारी पदाधिकारियों तथा 28,701 निगरानी तथा अनुश्रवण कमेटियों के सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया। चालू वित्तीय वर्ष में 2007 के नवम्बर तक 32 लाख 41 हजार पंचायती राज संस्थाओं के पदाधिकारियों, 1,75,745 सरकारी पदाधिकारियों तथा निगरानी एवं अनुश्रवण कमेटियों के 2,39,474 सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया।

ग्राम विकास मन्त्रालय ने निगरानी प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित किया। इसमें राज्य के अधिकारियों, सामाजिक संगठनों तथा पेशेवर लोगों को सामाजिक लेखापरीक्षण कार्यस्थल के प्रबन्धन तथा मेटों की तैनाती का प्रशिक्षण दिया गया।

7. वित्तीय समावेश
संस्थागत खातों से मजदूरी के भुगतान की व्यापक प्रणाली बनाने के मकसद से सभी राज्यों से यह सिफारिश की गई है कि वे डाकघरों तथा बैंक खातों के जरिये मजदूरी का भुगतान करने की व्यवस्था करें। आन्ध्र प्रदेश, झारखण्ड तथा कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने बैंकों एवं डाकघरों में श्रमिकों के बचत खातों के जरिये मजदूरी का भुगतान करना शुरू कर दिया है। राज्यों को चाहिए कि अपने मजदूरों की मजदूरी के भुगतान के लिए बैंकों एवं डाकघरों का एक नेटवर्क बनाएँ।

आज तक 96 लाख डाकघर एवं बैंक खाते खोले जा चुके हैं।

महत्त्वपूर्ण क्षेत्र


कार्य योजना के महत्वूर्ण क्षेत्रों में निम्नलिखित उपाय शामिल हैं। ये उपाय इस कार्यक्रम के प्रबन्धन को सुदृढ़ करने के लिए किए गए हैं। ग्रामीण श्रमिकों के बीच कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए सूचना, शिक्षा तथा संचार (इनफॉर्मेशन, एजुकेशन एण्ड कम्युनिकेशन (आईईसी) का ज्यादा महत्त्व है, क्योंकि ऐसा होने पर ही श्रमिकों द्वारा अधिक से अधिक काम की माँग होगी। इस दिशा में विविध पहलें की गई हैं। इनमें सारे सरपंचों का एक दिवसीय अनुकूलन प्रशिक्षण, हर पखवाड़े रोजगार दिवस का आयोजन, ग्राम सभा, स्थानीय भाषा के समाचारपत्र, रेडियो, टीवी, फिल्म तथा स्थानीय सांस्कृतिक मंच शामिल हैं। वॉल पेंटिंगों, पर्चों, स्थानीय भाषा में ब्रोशरों, कार्यकर्ताओं तथा पंचायती राज संस्थाओं के पदाधिकारियों के लिए सुगम पुस्तिकाओं के माध्यम से भी जागरूकता बढ़ाई जाती है। योजना की कोटि भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उचित समय पर निर्माण कार्य शुरू होने से भी इसकी माँग की समय पर पूर्ति होगी। यह मकसद तभी पूरा होगा जब हर गाँव के लिए परियोजना का आधार पहले से तैयार रहेगा। यह तैयारी तकनीकी एवं प्रशासनिक मंजूरी के साथ होनी चाहिए। प्रभावकारी ढंग से योजना बनाने से काम की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।

जॉब कार्डों, प्रामाणिक दैनिक श्रमिक पंजियों के रख-रखाव, राज्य सरकारों द्वारा दैनिक पंजियों के 100 प्रतिशत सत्यापन के अनवरत अभियानों, बाहरी एजेंसियों द्वारा दैनिक पंजियों का औचक नमूना लेकर सत्यापन तथा उन्हें नरेगा वेबसाईट पर डाले जाने से पारदर्शी रक्षोपाय की व्यवस्था करना सिद्धान्त रूप से तय है। मजदूरी का पारदर्शी भुगतान सुनिश्चित करने के काम को बैंकों और डाकघरों में मजदूरों के बचत खातों के माध्यम से भुगतान की व्यवस्था करके प्रोत्साहित किया जाता है तथा थ्रिफ्ट एवं लघु बचतों के लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून की एक विशेष खासियत यह हैं कि वह नरेगा की धारा 17 के तहत सख्त जन निगरानी के लिए सामाजिक लेखापरीक्षण को केन्द्रीय भूमिका प्रदान करता है। इसका मूल मकसद परियोजनाओं, कानून एवं नीतियों पर अमल में सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना है।इसके लिए प्रबन्धन सूचना प्रणाली (एमआईएस) विकसित की गई है। www.nrega.nic.in नामक वेबसाइट नेटवर्क ऑन-साइन मॉनिटरिंग तथा प्रबन्धन, आँकड़ों में पारदर्शिता तथा सभी तरह की जानकारियाँ आम लोगों को पाने में सुगमता के ख्याल से विकसित किया गया है। इससे आँकड़े पारदर्शी तरीके से तथा आम लोगों को सुलभ हो जाते हैं और समान रूप से सभी लोग इसे प्राप्त कर सकते हैं। ग्राम स्तरीय परिवार सम्बन्धी आँकड़ों के आधार की आन्तरिक जाँच की व्यवस्था की गई है ताकि उसे प्रामाणिक प्रक्रिया के अनुरूप रखा जा सके। सभी निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण मापदण्डों का सार्वजनिक हित की दृष्टि से अनुश्रवण किया जाता है :

(क) श्रमिकों के अधिकार सम्बन्धी आँकड़े तथा दस्तावेज जैसे पंजीकरण, जॉब कार्ड, दैनिक मजदूरी पंजी
(ख) निर्माण कार्यों का चयन तथा अमल सम्बन्धी आँकड़ा, जिसमें स्वीकृत एवं मंजूरी प्राप्त निर्माण कार्य, निर्माण कार्य की अनुमानित लागत, अमल वाले निर्माण कार्य तथा पैमाइश का विवरण शामिल हो
(ग) माँगे गए तथा उपलब्ध कराए गए रोजगार का विवरण
(घ) वित्तीय संकेतक यथा- उपलब्ध धन, खर्च धन तथा धन के उपयोग से सम्बन्धित निर्माण ढाँचों का विवरण, ताकि मजदूरी के रूप में भुगतान की गई राशि, सामग्रियों एवं प्रशासनिक खर्चों का आकलन किया जा सके।

चूँकि एमआईएस सभी महत्त्वपूर्ण आँकड़ा वेब पर डालने की सुविधा प्रदान करता है और यह आँकड़ा सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग पर आधारित है, इसका पारदर्शिता कायम करने के ख्याल से ज्यादा महत्त्व है, क्योंकि इससे रिकॉर्डों के पुनर्सत्यापन की सुविधा मिल जाती है और नरेगा के लिए बने कानून के तहत निर्धारित किसी भी मापदण्ड पर रिपोर्ट तैयार की जा सकती है। सारे जॉब कार्ड तथा दैनिक पंजी विवरणिका नरेगा वेबसाईट पर डाली जा रही है। यहाँ अभी तक 2,43,25,982 जॉब कार्ड तथा 32,96,448 दैनिक पंजियाँ उपलब्ध हो चुकी हैं।

मार्गनिर्देश के अनुसार, इस योजना के तहत हर मजदूरी सम्बन्धी निर्माण कार्य के लिए एक स्थानीय सतर्कता एवं निगरानी समिति गठित की जाएगी, जिसमें गाँव के लोग भी शामिल होंगे। यह समिति काम की प्रगति तथा उसकी गुणवत्ता पर भी नजर रखेगी।अनवरत मॉनिटरिंग एवं निगरानी की प्रक्रिया के तहत बाहरी एवं आन्तरिक एजेंसियों द्वारा कार्यस्थलों पर जाकर सत्यापन का काम किया जाता है। केन्द्रीय रोजगार गारण्टी परिषदों का गठन किया जा चुका है। राष्ट्रीय स्तर के मॉनिटर प्रथम चरण वाले नरेगा के अमल वाले सभी जिलों और दूसरे चरण के 113 जिलों का दौरा कर चुके हैं। ग्राम विकास मन्त्रालय अपने एरिया अफसर के माध्यम से इसकी सख्त निगरानी कराता रहता है। यह काम आन्तरिक निगरानी के सिलसिले में कराया जाता है। नरेगा के तहत राज्यों को ब्लॉक स्तर पर 100 प्रतिशत सत्यापन, जिला स्तर पर 10 प्रतिशत तथा राज्य स्तर पर 2 प्रतिशत सत्यापन अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए। मार्गनिर्देश के अनुसार, इस योजना के तहत हर मजदूरी सम्बन्धी निर्माण कार्य के लिए एक स्थानीय सतर्कता एवं निगरानी समिति गठित की जाएगी, जिसमें गाँव के लोग भी शामिल होंगे। यह समिति काम की प्रगति तथा उसकी गुणवत्ता पर भी नजर रखेगी।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून की एक विशेष खासियत यह हैं कि वह नरेगा की धारा 17 के तहत सख्त जन निगरानी के लिए सामाजिक लेखापरीक्षण को केन्द्रीय भूमिका प्रदान करता है। इसका मूल मकसद परियोजनाओं, कानून एवं नीतियों पर अमल में सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना है। सामाजिक लेखापरीक्षण के साथ-साथ समानान्तर लोक जवाबदेही प्रणाली तथा एमआईएस की भी व्यवस्था है। चूँकि यह नयी अवधारणा है और राज्यों, खासकर गाँवों तथा पंचायतों के स्तर पर सामाजिक लेखापरीक्षण की व्यवस्था असामान्य बात है, इसलिए मन्त्रालय की कोशिश है कि सामाजिक लेखापरीक्षण की कानूनी व्यवस्था के साथ-साथ वह भी राज्य के ऐसे कामों पर निगरानी रखे तथा राज्यों को अपनी क्षमता बढ़ाने में मदद करे। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान (एनआईआरडी) ने राज्यों के लिए एक पुस्तिका तैयार की है। यह कानून पारदर्शिता तथा स्वैच्छिक रूप से सार्वजनिक जानकारी देने पर भी जोर डालता है। इस कानून की धारा 11(1एफ) के तहत वार्षिक रिपोर्ट संसद तथा राज्य विधान मण्डलों में पेश की जानी है। नरेगा पर अमल की 2006-07 की वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर संसद में पेश की जा चुकी है।

स्थानीय समाधान तथा कार्यस्थल पर नया कुछ करने के सुझावों से नरेगा को पूरे देश में लागू करने की चुनौती का सामना करने में मदद मिली है। नरेगानेट ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा लागू ज्ञान बढ़ाने वाली पहल है ताकि स्थानीय समाधानों की जानकारी दूसरे क्षेत्रों को भी मिल सके। इस नेटवर्क का मकसद ज्ञान भण्डार का सृजन करना तथा एक-दूसरे के अनुभवों का लाभ उठाने की सुविधा प्रदान करना है। यह परस्पर बातचीत का एक मंच है, जहाँ से विचारों, अनुभवों तथा मतों का समाज के सभी वर्गों के बीच तथा चारों दिशाओं में फैलाव होगा। इस ज्ञान नेटवर्क का उद्देश्य लोगों को आपस में जोड़ना तथा व्यापक स्तर पर उपलब्ध समाधान सम्बन्धी ज्ञान का माँग के आधार पर पेशकश करना है।

नागरिक समाज द्वारा उल्लेखनीय योगदान के लिए हाल ही में एक पुरस्कार (रोजगार जागरण पुरस्कार) की घोषणा की गई है। इस पुरस्कार का मकसद राज्य, जिला, ब्लॉक तथा ग्राम पंचायत स्तर पर नरेगा पर प्रभावी अमल में उल्लेखनीय एवं असाधारण योगदान को मान्यता प्रदान करना है।

पिछले दो साल के अनुभव तथा अमल के दौरान मिली सीख के बल पर नरेगा को ज्यादा प्रभावकारी ढंग से लागू किया जाएगा। यह कार्यक्रम लाभार्थियों की आमदनी में बढ़ोत्तरी करेगा, स्थायी परिसम्पत्तियाँ निर्मित करेगा तथा ग्रामीण भारत के लिए दीर्घकालीन ठोस लाभ अर्जित करेगा।

(लेखक भारत सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्री हैं)

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